बिहार की पारसा विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी. 73 वर्षों में यहां 18 बार चुनाव हुए, लेकिन विकास अब भी पारसा से कोसों दूर है. आज भी लोग बस या ट्रेन पकड़ने के लिए 5 से 10 किलोमीटर तक पैदल सफर करने को मजबूर हैं. इलाके में साप्ताहिक हाट ही एकमात्र बाजार है और आधारभूत संरचनाओं की लगभग पूरी तरह से कमी है.
इस पिछड़ेपन की वजह समझना मुश्किल नहीं है. पारसा में सबसे बड़ी आबादी (लगभग 27%) अहिर (यादव) समुदाय की है. यही कारण है कि पार्टी चाहे कोई भी हो, यहां से आज तक कोई गैर-यादव उम्मीदवार नहीं जीत पाया. नेता वोटरों को अपनी जेब में समझते हैं और वोटर भी यही मानकर संतुष्ट रहते हैं कि उनकी जाति का नेता जीत गया, यही बड़ी बात है. यही जातिवादी राजनीति बिहार की सबसे बड़ी विडंबना है, जो सवालों को जन्म लेने नहीं देती, और न ही जवाबों की जरूरत पड़ती है.
हालांकि, यह नहीं कहा जा सकता कि पारसा ने कभी कमजोर या अज्ञात नेताओं को चुना हो. दरोगा प्रसाद राय, जिन्होंने यहां से सात बार (छह बार लगातार) जीत हासिल की, एक समय बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी पार्वती देवी 1981 के उपचुनाव में विधायक बनीं और फिर उनके बेटे चंद्रिका राय ने कमान संभाली. चंद्रिका राय ने छह बार जीत हासिल की, जिनमें पांच बार लगातार विधायक रहे. वे बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं.
राय परिवार से इतर केवल दो ही नेता अब तक पारसा से विधायक बने हैं – 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में रामानंद प्रसाद यादव और वर्तमान विधायक छोटे लाल राय, जो अब तक तीन बार यह सीट जीत चुके हैं.
चंद्रिका राय शायद आज भी पारसा के विधायक होते, अगर उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नहीं छोड़ी होती. 2018 में लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव ने राय की बेटी ऐश्वर्या राय से विवाह किया, लेकिन जल्द ही उसे छोड़ दिया. ऐश्वर्या ने अपनी सास राबड़ी देवी पर दुर्व्यवहार के आरोप लगाए, और यह मामला अब भी अदालत में लंबित है. इसी विवाद के बाद चंद्रिका राय ने RJD से इस्तीफा दे दिया.
पारसा में जातीय निष्ठा इतनी गहरी है कि लोग नेताओं के दल बदलने पर भी प्रभावित नहीं होते. चंद्रिका राय ने 1985 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव जीता था. 1990 में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते. 1995 में जनता दल से, फिर RJD के टिकट पर पांच चुनाव लड़े और बाद में JD(U) में शामिल हो गए.
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका. छोटे लाल राय, जिन्होंने चंद्रिका राय को तीन बार हराया, पहले JD(U) से चुनाव लड़े. 2015 में जब JD(U) ने RJD से गठबंधन किया और उन्हें टिकट नहीं मिला, तो वे LJP से लड़े लेकिन हार गए. 2020 में चंद्रिका राय JD(U) से लड़े, जबकि छोटे लाल राय RJD से, और 17,293 वोटों से जीते.
पार्टीवार नतीजे देखें तो कांग्रेस ने 9 बार, RJD ने 4 बार, JD(U) ने 2 बार और जनता पार्टी व एक निर्दलीय प्रत्याशी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.
यह साफ करता है कि दरोगा प्रसाद राय का परिवार अजेय नहीं है, लेकिन पारसा के वोटरों ने कभी भी यादव समुदाय से बाहर किसी को नहीं चुना. यही झुकाव लोकसभा चुनावों में भी दिखता है – 2019 में पहली बार कोई गैर-यादव उम्मीदवार (BJP के राजीव प्रताप रूडी) ने पारसा विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल की थी. पारसा सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित विधानसभा क्षेत्र है और सारण लोकसभा क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों में से एक है.
प्रशासनिक रूप से, पारसा एक सामुदायिक विकास खंड है. गंडक नदी से मात्र 7 किलोमीटर दूर स्थित यह इलाका कृषि प्रधान है. यहां धान, गेहूं, मक्का और दालों की खेती होती है. हाल के वर्षों में केले की खेती ने रफ्तार पकड़ी है, वहीं डेयरी और पोल्ट्री से लोगों को अतिरिक्त आमदनी होती है. एकमा सबडिवीजन मुख्यालय यहां से 7 किमी, जिला मुख्यालय छपरा 42 किमी और राज्य की राजधानी पटना 60 किमी दूर है.
पूरी तरह ग्रामीण इस सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में 2,66,693 मतदाता पंजीकृत थे. इनमें 11.96% (31,896) अनुसूचित जाति और 9.50% (25,336) मुस्लिम मतदाता शामिल थे, लेकिन यादव मतदाताओं की संख्या 27% से अधिक है. 2020 में इस क्षेत्र में 57.79% मतदान हुआ, जो हालिया वर्षों में सर्वाधिक था.
एक बात स्पष्ट है, जब बात जाति की आती है, तो पारसा के वोटर चंद्रिका राय की तुलना में लालू यादव को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन अगर TINA (There Is No Alternative – कोई विकल्प नहीं है) फैक्टर काम कर गया, तो 2025 के चुनाव में राय NDA की ओर से RJD को चुनौती देने के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार साबित हो सकते हैं.
(अजय झा)
Chandrika Rai
JD(U)
Rakesh Kumar Singh
LJP
Nota
NOTA
Manager Singh
IND
Mahesh Ray
IND
Swami Jitendra
IND
Shailendra Kumar
JAP(L)
Sandhya Ray
IND
Akhilesh Kumar
PP
Ramesh Kumar Rai
JGJP
पटना से 40 किलोमीटर दूर डेहरी गांव आज भी मूलभूत चीजों के लिए जूझ रहा है. 2007 में नीतीश कुमार ने महादलितों को सशक्त करने का वादा किया था, पर 18 साल बाद गांव में पानी, नाली, मनरेगा भुगतान और राशन सब अधूरा है. लोग भ्रष्टाचार, बदइंतज़ामी और टूटे भरोसे से जूझ रहे हैं.
पप्पू यादव ने कहा कि बिहार की जनता गठबंधन की राजनीति को देख रही है और विश्वास के साथ खेला गया तो माफ़ नहीं करेगी. वे दावा करते हैं कि जनता नई सरकार चाहती है. राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन मजबूत है, सीएम का चेहरा बाद में तय किया जा सकता है, और अकेले लड़ना मुश्किल है.
बिहार के प्रवासी मजदूरों की समस्याएं देश की आजादी के 79 साल बाद भी जस की तस बनी हुई हैं. हर पांच साल में चुनाव तो नए होते हैं, लेकिन इन मजदूरों की समस्या कोई हल नहीं कर पाता. ये मजदूर अपनी मेहनत से जिन शहरों को भव्यता प्रदान करते हैं, उन्हीं शहरों में सम्मान और सुरक्षा के लिए तरसते हैं.
बिहार की सियासत में एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव आमने-सामने हैं. मुजफ्फरपुर में एक चुनावी सभा के दौरान नीतीश कुमार ने बीजेपी प्रत्याशी रमा निषाद को माला पहनाई, जिस पर तेजस्वी यादव ने उनका वीडियो शेयर करते हुए तंज कसा. तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर लिखा, गजब आदमी है भाई, मुख्यमंत्री जी अगर सवस्थ हैं तो लिखा हुआ भाषण पढ़कर ऐसी हरकतें क्यों कर रहे हैं? इस घटना के बाद जेडीयू और आरजेडी में जुबानी जंग तेज हो गई है.
निर्वाचन आयोग ने बिहार में 824 उड़न दस्ते तैनात किए हैं, जो आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे. आम नागरिक ईसीआई के 24x7 कॉल सेंटर (1950) पर भी आचार संहिता से जुड़ी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं.
बिहार में टिकटों का बंटवारा फाइनल हो गया है. उम्मीदवारों को तय करने में आरजेडी, बीजेपी और जेडीयू ने जातिगत समीकरणों का पूरा ख्याल रखा है. तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव के प्रयोग को दोहराते हुए कुशवाहा उम्मीदवारों को ठीक-ठाक संख्या में टिकट दिया है.
वाल्मीकिनगर से जनसुराज पार्टी उम्मीदवार दृग नारायण प्रसाद का नामांकन विभागीय अनुमति न होने के कारण रद्द कर दिया गया. यह पार्टी और प्रशांत किशोर के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. इससे पहले भी कुछ उम्मीदवारों ने नामांकन वापस लिया था.
लालू परिवार के बाद संजय यादव आरजेडी नेताओं के निशाने पर हैं. आरजेडी नेता मदन शाह ने संजय यादव पर टिकट बेचने जैसा गंभीर आरोप लगाया है. टिकट न मिलने पर मदन शाह पटना में राबड़ी देवी के आवास पर कुर्ते फाड़कर जमीन पर लोट लोट कर रोने लगे - और संजय यादव को कठघरे में खड़ा कर दिया.
दरभंगा के गौड़ाबौराम सीट से आरजेडी ने अफजल अली खान को चुनाव चिह्न दिया था, लेकिन बाद में सीट वीआईपी के लिए छोड़ दी. अफजल खान ने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली, उनके पास राजद का चुनाव चिन्ह 'लालटेन' है. इससे महागठबंधन समर्थकों के लिए भ्रम की स्थिति बन गई है.
मोतिहारी की सुगौली सीट से विकासशील इंसान पार्टी के शशि भूषण सिंह का नामांकन तकनीकी लापरवाही के चलते रद्द हो गया है. साथ ही अन्य उम्मीदवारों के नामांकन भी रद्द होने से महागठबंधन को बड़ा राजनीतिक झटका लगा है. यह सीट अब एनडीए के लिए अधिक मजबूत हो गई है, जिससे चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं.