Dekh Lenge Yaar (Hindi Edition)
Dekh Lenge Yaar (Hindi Edition)
‘एका’ श द एकता का पयाय है। इसका ता पय है ‘कई’ को ‘एक’ के प म समे कत करना। व भ भारतीय
भाषा क बेहतरीन रचना को सं हत करने तथा व भ भाषा म पु तक के पठन को बढ़ावा दे ने के लए, दे श के
वचारशील य क रचना को का शत करने के उ े य से वे टलड के इस नवीन भाषाई काशन- च को बनाया
गया है। एका व भ भाषा म अनुवाद तथा अलग-अलग सं कृ तय एवं पृ भू म के लेखक और पाठक को संब
करते ए सा ह य को अ य व वधतापूण व जीवंत भाषाई बाजार तक प ंचाने के लए भी यासरत है। 23 आ धका रक
भाषा और 700 से अ धक बो लय वाले इस दे श म अनुवाद केवल ज़ रत क पू त का साधन नह है—ब क यह एक
ता का लक आव यकता है।
एका ारा दस भारतीय भाषा क मूल रचना का काशन कया जाएगा: जसम हद , उ , बंगाली, गुजराती, मराठ ,
ओ डया, क ड़, तेलुगु, त मल और मलयालम शा मल ह। यह इन भाषा म पर पर अनुवाद तथा इनके अं ेजी म
अनुवाद क व वधतापूण कताब का भी काशन करेगा। वष 2019 के लए ता वत 100 पु तक के मुख लेखक म
मनोरंजन ापारी (बंगाली), सरशो बंदोपा याय (बंगाली), ववेक शानभग (क ड़), वसुध (क ड़), पे मल मु गन
(त मल), कैफ़ आज़मी और जां नसार अ तर (उ ), वो गा (तेलुग)ु , उ ी आर. (मलयालम), वीजे जे स (मलयालम),
जॉनी मरांडा (मलयालम), व ास पाट ल (मराठ ), रणजीत दे साई (मराठ ), शवाजी सावंत (मराठ ), पवन के. वमा,
संजीव सा याल, अमीश, अ न सांघी, चेतन भगत, राजेश कुमार (त मल) तथा अनु सह चौधरी ( हद ) शा मल ह।
हम आपको वे टलड के इस ब कुल नए व रोमांचक सफ़र, अथात् एका के साथ जुड़ने के लए आमं त करते ह।
दे ख लगे यार
द पक कुमार
Published in Hindi in paperback as Dekh Lenge Yaar in 2019 by Hind
Yugm and Eka, an imprint of Westland Publications Private Limited.
1st Floor, A Block, East Wing, Plot No. 40, SP Infocity, Dr MGR Salai,
Perungudi, Kandanchavadi, Chennai 600096
Hind Yugm
201 B, Pocket A, Mayur Vihar Phase-2, Delhi-110091
www.hindyugm.com
Westland, the Westland logo, Eka and the Eka logo are the
trademarks of Westland Publications Private Limited, or its affiliates.
ISBN: 9789388689977
987654321
This is a work of fiction. Names, characters, organisations, places, events and incidents are
either products of the author’s imagination or used fictitiously.
No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or transmitted in any
form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording, or otherwise, without
express written permission of the publisher.
शु या
“आपक कब, कहाँ और कैसे लगने वाली है ये पहले से ही तय है, आपका काम बस
इतना-सा है क आप सही व पर अपनी लेकर वहाँ प ँच जाएँ और फर आराम से बैठकर
तमाशा दे ख।”
हमने इसे कह से सुना नह था, हमने तो इसे जया था और ये उसी दौर क बात है
जसने हम एक मासूम लड़के से एक बेबाक ल डा बनाया था। जसने हमारी जवानी क
अकड़ को इतना बढ़ा दया था क हम बना कुछ सोचे-समझे ही इस धम और जात-पात के
स दय पुराने भूत के सामने अपना सीना चौड़ा करके खड़े हो गए थे। तब जन पर हम चल
रहे थे, ये असल म वो रा ते थे जनके एक ओर तो जमाने भर के उसूल और कायदे -कानून
हमारे घरवाल का हाथ थामे ए हम सही रा ता दखाने के लए खड़े थे, तो सरी ओर
जदगी को अपने ही हसाब से जीने क एक आवारा जद हमारी नस म भड़क रही जवानी
क उस धधकती आग म ऊपर से और घी डालने के लए कसी भूखे भे ड़ये-सी अपनी लार
टपकाए खड़ी थी।
इस दौर म हमने ब त-सी लड़ाइयाँ लड़ । कभी इस व ज नट क बीमारी से खुद को
आजाद कराने क , तो कभी इस जदगी को उसक औकात याद दलाने क । म मानता ँ
क इस सफर म हमसे ब त-सी गल तयाँ भी , पर आज भी इस बात को सोचकर खुद पर
फ -सा होता है क हजार बार टू टने के बाद भी हम कभी बखरे नह , हम कसी के सामने
झुके नह । हमने जो भी जया, जतना भी जया, अपने ही हसाब से जया। अपनी ही
अकड़ म जया।
ये हमारी दो ती क कहानी है। ये हमारे यार क कहानी है। ये जदगी पर हमारी जीत
क कहानी है। ये सब कुछ पाकर भी अपना सब कुछ खो दे ने क कहानी है।
तो चल…
(1)
एक बात आपको म पहले ही बता दे ना चाहता ँ क आगे के 5-6 प को पढ़कर कह ये
मत समझ लेना क ये लड़का तो रोतलू क म का है। और अगर सोच भी लो तो भी म या
उखाड़ पाऊँगा आपका! सच क ँ तो म आज तक उसका भी कुछ नह उखाड़ पाया जसने
मेरी ये हालत क थी। अगर अभी भी आपको मेरी बात समझ नह आ रही हो तो म आपको
ये बता ँ क ‘हम कोटा रटन ह।’ और इस बात का दद हम उतना ही है जतना आपको
साल तक कसी कंचे ( ीम गल) के लए लार टपकाने के बाद, उसे कसी और ल डे के
साथ सेट होते ए दे खने पर होता है। हाँ, हाँ वही वाला, मर जाएँग,े मार डालगे वाला। अब
तो साला हाल ये है क अगर कोई गलती से भी ‘कोटा’ या ‘MBBS’ का नाम ले लेता है तो
मन करता है क साले को पेल दे वह के वह । अब छोड़ो भी यार, फालतू म फर याद दला
दया सब कुछ।
“अंकल म खाली है या कोई?” मने लगभग च लाते ए उस सेकड लोर से मेरी
ओर झाँकती ई कसी फूले खरबूज-े सी मुंडी से पूछा।
“हाँ है न, अंदर आओ दखाता ँ।”
2 साल तक कसी ग े क तरह कोटा म पसने के बाद, घर वाले शायद यही सोचकर
मुझे यहाँ उदयपुर ले आए थे क कह मर-मरा न जाए। सच क ँ तो उन दो साल म, टे ट-
दर-टे ट म इतनी दफा टू टा था क जदगी अब बस एक मजाक-सी लगने लगी थी। मुझे
अपनी गहराइय तक ये यक न हो गया था क अब यहाँ अपने बस का कुछ भी नह । और
वैसे भी जब रोज-रोज आपने खुद को यूँ कतरा-कतरा बखरते दे खा हो तो जदगी क उन
खुशनुमा ग लय के बारे म वैसे भी आपको कोई गुमान नह रहता। वही ग लयाँ जहाँ कहते
ह क खु शयाँ और सपने हाथ म हाथ डाले आजाद उड़ा करते ह।
तो लगातार सरे साल भी जब म ी-मे डकल टे ट लयर नह कर पाया तो एक बार
तो मन कया क एक साल और ाप लेकर एक अटे ट और ले लेता ँ। पर म कुछ सोचता,
अपने लए कुछ फैसला लेता इससे पहले ही पापा ने ये ड लेयर कर दया क तुमसे नह हो
पाएगा बेटा, तु हारे बस का ये खेल नह है ल ला और इसी लए उ ह ने मेरी औकात के
हसाब से ही ( जतनी उ ह तब लगी) B.Sc. म मेरा एड मशन करवा दया। ले कन सच क ँ
तो म तब ये समझ ही नह पा रहा था क मेरे साथ ये या हो रहा है क B.Sc. और वो भी
म! ये कैसे हो सकता है! शायद इसी लए ही कॉलेज शु होने के 5-6 महीन के बाद तक
भी म कॉलेज गया ही नह । फ ट ईयर का लगभग आधा सेशन नकल चुका था पर म अभी
भी अपने ही गु से म घर वाल के फैसले से ठा आ अपने घर ही बैठा आ था। मने तो
सोच लया था क अब मुझे कुछ करना ही नह है। म अब ऐसे ही पड़ा र ँगा बस। पर जैसे-
जैसे व नकलता जा रहा था, मुझे फर से अपने क रयर क चता सताने लगी थी और
सरी ओर मेरे यूँ ठाले घर पर बैठे रहने से मेरी और पापा क अब हर रोज भयंकर लड़ाइयाँ
होने लगी थ । इसी रोजाना क मचमच क वजह से मेरे लए अब घर म एक दन भी
गुजारना मु कल-सा हो गया था। मने अपने इस बेकारीपने से छु टकारा पाने के लए और
अपनी क ई-सी जदगी को आगे बढ़ाने के लए बेमन ही सही पर कॉलेज कंट यू करना
ही सही समझा और इसी लए म आ गया उदयपुर।
मुझे अभी भी वो पल याद है क कैसे कूल ख म होते ही पूरे जोश के साथ म कोटा के
लए नकला था क साला अब कुछ भी य न हो जाए डॉ टर तो बनकर ही आएँगे। पर
शायद जदगी के आईने म कुछ सपन का अ स कभी नह बनता। वो सपने होते ह और
हमेशा के लए सपने ही रह जाते ह।
कॉलेज वाइन करते ही कुछ जान-पहचान के सी नयर लड़क ने कॉलेज े सडट से
बात करवाकर मेरी अटडस वाली ॉ लम तो सॉ व करवा द ले कन अभी भी म सेट
करना बाक था, इसी लए म अब यही कर रहा था। आज अपने एक पहचान के लड़के के
बताए अनुसार एक म दे खने आया था।
“कैसा लगा कमरा?” लडलॉड ने अपना सा ा य पी कमरा दखाने बाद मुझसे मेरी
राय जाननी चाही।
“अ छा है अंकल, ब त अ छा है।”
सच क ँ तो तब मुझे कोई आइ डया नह था क अ छा कमरा या होता है और बुरा
या होता है। ये पहली बार था जब खुद के लए खुद ही कुछ फैसला करना था। इससे पहले
तो मने सफ घरवाल और करीबी र तेदार क उ मीद क जमीन पर महल खड़े कर उ ह
अपना बताया था और खुश भी आ था क दे खो कैसे सब कुछ अपनी मज से हो रहा है।
पर अब जब इतनी दफा टू टे ह तो उनका वो छलावा भी बड़े अ छे से समझ आने लगा है क
कैसे उन सब ने मलकर मेरे खुरदरेपन को कसी माबल क तरह घसा था और उसे इतना
चकना बनाने क को शश क थी क जससे म बड़े आराम से उनके जानने वाले लोग के
सामने चमक सकूँ, उनके सामने उनक इ जत बनाए रख सकूँ।
“करते या हो तुम?” लडलाड ने फर से अपनी उसी लडलॉड वाली अकड़ म मुझसे
पूछा।
“B.Sc. कर रहा ँ अंकल। दो साल तक कोटा था, पी.एम.ट . क को चग के लए।”
मने भी करायेदार वाले लहजे म जवाब दया।
“ या बात है भाई! ब त मेहनत कर के आए ह आप तो!” इस बार उनके चेहरे पर
कुछ अजीब ही भाव थे और उ ह दे खकर म ये समझ नह पा रहा था क वो मेरी तारीफ कर
रहे ह या फर मेरी ले रहे ह।
“पता नह अंकल, शायद कुछ ऐसा ही!” मने भी बात को टालने के इरादे से कहा।
“दे खो, कुछ बात म पहले ही लयर कर दे ता ँ। हम शमा ह, मतलब समझते होना
इसका? यहाँ शराब, माँस-म छ और ल डयाबाजी बलकुल नह चलेगी। वैसे तुम तो मुझे
शरीफ दख रहे हो ले कन फर भी बता दे ता ँ।” उ ह ने अपनी टम एंड कं डशन का पटारा
बड़ी बेरहमी से मेरे सामने खोलते ए कहा।
“हाँ, हाँ अंकल। सवाल ही नह उठता है इन सबका तो।” मने भी तुरंत अपने चेहरे पर
भोलेपन का फेसपैक लगा लया।
‘शमा’ ये श द सुनते ही पुराने दन क कुछ याद मेरे जेहन म अचानक ही ताजा हो
ग और दमाग कहने लगा, ‘अ छा तो ये ‘दे व त’ ह भई! भगवान के बचे ए त और
पूत’। जैसे ही दमाग ने उन खयाल से छे ड़छाड़ करनी शु क , मेरी हँसी ने भी उ ह पुराने
दन क तरह बना कुछ सोचे-समझे ही उनका साथ दे ना शु कर दया। ए चूअली हमारे
एक हद के ट चर थे का लया जी। उनके नाम क तरह उनक श ल-सूरत भी उतनी ही
काली थी। म शत लगा सकता ँ क फेयर एंड लवली वाले अपनी पछाड़ी का दम भी लगा
दे ना, तब भी उ ह एक शेड भी गोरा नह कर सकते। ले कन इसके इतर यहाँ खास बात तो
ये थी क उनको भगवान और इन पं डत जनको वो ‘दे व त’ कहते थे, से ब त ही यादा
चढ़ थी। अब ये तो का लया जी और उनक धम प नी ही बता सकती ह क इन ‘दे व त ’ ने
उनका या बगाड़ा था। जब भी कभी कसी चै टर म कह ा ण, पं डत या यो तषी
लखा आ जाता तो वो शु हो जाते और माँ कसम तब उनक बात सुनकर पूरी लास का
हँस-हँसकर बुरा हाल हो जाता। उनको सुनना तब कसी भी कॉमेडी शो से कम नह होता
था।
“चाय लोगे या?” दे व त ने अपने दल क द रया दली दखानी शु क ।
“नह अंकल, थक यू!”
“अरे जनाब चाय को कभी मना नह करते, ये तो अमृत है। बस दो बूँद चढ़ने दो इसक
और फर दे खो कैसे शरीर और दमाग दौड़ने लगता है!”
“ठ क है अंकल!” मने उनक दो टके क फलॉसफ म न चाहते ए भी अपनी हामी
भरते ए कहा।
“मतलब ले रहे हो ना?” इस बार उनके माथे क लक र पहले से यादा गहराई लए
एथ।
“हाँ अंकल।”
शमा अंकल, नाम शायद द प था उनका। तब उनक श ल को दे खकर मुझे आंट पर
तरस आ रहा था और उनका पेट दे खकर उस चेयर पर दया जस पर वो बैठे थे। उनको
दे खकर मुझे लग रहा था क जैसे भगवान अपने इस त को बनाने के बाद शायद फ न शग
टच दे ना भूल गया था। पर कुछ भी हो, बंदा इ जत से बात कर रहा था और इ जत के
बदले इ जत दे ना तो इंसा नयत का पहला उसूल रहा है। तो म कैसे पीछे हट सकता था।
जहाँ तक हो सके म भी वही कए जा रहा था।
“ये लो जनाब, गरमा गरम अदरक वाली चाय।” दे व त ने गम चाय से भरे ए कप को
मेरे सामने पड़े लकड़ी के एक शानदार ट टे बल पर रखते ए कहा।
“थक यू अंकल!”
“जनाब, या तु ह पता है चाय पीने का भी एक तरीका होता है?” उ ह ने
लडलॉड गरी छोड़कर, सामा जकता क तरफ अपना पहला कदम बढ़ाते ए मुझसे पूछा।
“हाँ, हाँ पता है ना मुझे, मद क तरह चाय पीनी चा हए एकदम खुल के। मतलब क
आवाज आनी चा हए हर सप के साथ।” मने भी अपनी शेखी झाड़ते ए कहा।
तभी पता नह य , मेरी बात सुनते ही दे व त के मुँह से ठूँ सी ई चाय तुरंत ही बाहर
आ गई और वो खाँसते-खाँसते अपनी हँसी रोकने क नाकाम को शश करने लगे। मुझे
समझने म यादा दे र नह लगी क मने हो शयारी झाड़ने के च कर म अपनी ही लगवा ली
है।
“ या आ अंकल? कुछ गलत कह दया या मने?” मने चाय के कप को वापस
टे बल पर रखते ए कहा।
“अरे नह रे! बस अलग-सा कह दया तून।े कहाँ से सुना ये सब?” उ ह ने ये पूछते ए
खुद के इमोशंस को थोड़ा-सा सँभाला।
“पता नह अंकल, शायद कसी मूवी म दे खा होगा ये।” म अपनी इ जत को बचाते
ए बोला।
“अ छा है ये भी, पर म कहने वाला था क अगर आपको अपनी चाय का पूरा मजा
लेना है तो सबसे पहले आपको अपनी चाय से दो ती करनी पड़ेगी जनाब!” वो अपने चाय
के कप को अपनी महबूबा क तरह दे खते ए कहने लगे। “आपको पहले उसे अपने हाथ
म थामकर उसक थोड़ी-सी गम बाँटनी पड़ेगी, उससे थोड़ी-सी अपने हाथ क ठं डक
बाँटनी पड़ेगी। उसे अपने हाथ म लेकर, कुछ दे र उसे खुद से जुड़ने का मौका दे ना पड़ेगा।
उसक खुशबू को अपनी गहराइय तक उतारकर उसे इजाजत दे नी होगी एक नये र ते के
प म आपसे एक होने क । और फर जो र ता बनेगा, उसका रंग जदगी भर नह उतरेगा।
वो फर हर मूड म आपके हाथ म होगी, चाहे आप खुश हो या फर परेशान।”
‘बूढ़ा ज र स ठया गया है या फर शायद खुद को मागन मैन समझने लगा है,’
उनक बात सुनकर पहला खयाल दमाग म यही आया। अरे भाई चाय को लेकर ऐसी बात
कौन करता है! हद है यार! पर जो भी था, तब वो या कहना चाह रहे थे ये तो मुझे सही से
समझ नह आया पर उनका उनक चाय से र ता ज र समझ आ गया था मुझ।े और अगर
सच क ँ तो वो र ता मुझे थोड़ा सं द ध ही लग रहा था।
“सही है अंकल!” मने तुरंत ही एक आइ डयल करायेदार क तरह बना कुछ सोचे-
समझे ही अपने मकान मा लक क बात के समथन म अपना हाथ उठा लया।
“समझे कुछ?” दे व त ने फर से बाजी मार लेने वाली मु कान के साथ पूछा।
“थोड़ा-सा अंकल!” मने एक मरी-सी मु कान को अपने ह ठ तक लाते ए कहा।
मकान मा लक क बुराई करना शायद कसी भी करायेदार का पहला हक होता है, जो
म यहाँ कर भी रहा ँ। ले कन सच म कतने दन बाद या फर शायद साल बाद कसी
जदा दल इंसान से बात कर रहा था म। हमने घंट बात क उस दन पर यादातर मने
उनक सुनी। इस लए नह क मजबूरी थी पर इस लए क कह -न-कह वो बात मुझे चुभ
रही थ । जैसे क वो मुझे ये कहकर चढ़ा रहे ह क दे ख रे उ लू जीते कैसे ह। हँसते कैसे
ह। बस 21 साल क उ म एक नाकामी ने मुझे इतना हला दया था क जैसे मेरा सब कुछ
ख म हो चुका हो। मेरा जमीर तो ये तक मानने लगा था क अब जो बचा है वो बस जदगी
क खैरात है, जसे बस काटना है और एक दन मौत क गहरी न द म सो जाना है। एक ओर
उस एक ए जाम म सले ट न हो पाने क वजह से न म अब तक घरवाल से खुद को जोड़
पाया था और न ही शायद खुद से। तो सरी ओर अब मुझे वो काम करना था जो इस खेल
म हारे ए खलाड़ी कया करते थे। मतलब क कसी भी कॉलेज से ेजुएशन और फर
कोई भी गवनमट ए जाम नकालकर एक सरकारी नौकरी। पर इससे भी मु कल बात तो ये
थी क अब मेरी माँ को हर बार कई वजह गना- गनाकर लोग को ये बताना होता था क म
य सले ट नह हो पाया। ले कन ये बात म और मेरी माँ दोन ही अ छे से जानते थे क उन
वजह का सच से र- र तक कोई लेना-दे ना नह था। माँ क बात सुनकर ऐसा लगता था
क मानो जैसे वो मुझे हारने के बाद भी हारा आ नह दे खना चाहती थी। अब इसक वजह
उसका यार था या अपने खून को जमाने के सामने बेहतर सा बत करने क होड़, ये न तो
मुझे तब समझ आया और न ही अब।
तो आ खरकार मड सेशन के बाद ही सही पर अब म उदयपुर था, शमा अंकल के
साथ। म हँस रहा था। सुन रहा था। थोड़ा-सा जी रहा था तो थोड़ी-सी काट रहा था। म,
अ भनव कलाल।
(2)
“साले कससे बात करता रहता है तू इतनी? और यहाँ गाडन म आकर भी अगर तुझे
कसी और से ही बात करनी थी तो मुझे यहाँ य लेकर आया?” बस दो मनट का कहकर
फर से फोन पर चपक जाने के कारण म उस पर च लाने लगा।
रतेश, अभी महीने भर पहले ही मले थे केमे लैब म। वैसे तो ये साहब कॉलेज क
टा टग से ही यहाँ थे पर उन हजार क भीड़ म शायद उस दन पहली बार मने और बाक
सब ने उ ह नो टस कया था। उस दन लैब म घुसते ही लास क सबसे हॉट लड़क को
इ ह ने ट चर और सबके सामने ही पोज कर दया। अब ये तो तय था क लड़क ना बोलने
वाली थी पर बड़ी बात तो ये थी क इ ह भी ये पता था। फर भी कर दया इ ह ने और जब
पूछा क भाई य कया? तो बोले, “दे ख यार, वैसे भी पूरे ेजुएशन म वो मेरे बारे म या
सोच रही है म यही सब सोचता रहता। या पता वो कभी मुझे नो टस करती भी या नह ? ये
तो तू भी जानता है क न म दखने म यादा माट ँ, न ही तेरी तरह इंटेलीजट ँ और न ही
पैसे वाला। और वो श ल से समझदार दखती है यार! और उसक समझदारी मुझे यही बता
रही है क म उसक वाय ड वाली ल ट के ब त ही यादा बाहर ँ। पर अब मेरी इस
हरकत से उसके साथ मेरा नाम हमेशा के लए जुड़ गया है। अब जब भी कॉलेज म कह भी
उसक बात होगी, वहाँ पर कह -न-कह मेरा नाम भी जदा रहेगा। अब जब भी म उसके
सामने आऊँगा मुझे और उसे दोन को पता होगा क हम एक- सरे के बारे म या सोच रहे
ह और वो पूरे ेजुएशन मेरे बारे म कुछ भी न सोचे उससे तो यही अ छा है क कुछ उ टा ही
सोचे।”
रतेश क फलॉसफ एकदम स पल थी, “कोई अपना रहे या न रहे इससे यादा फक
नह पड़ता, पर उस श स म हमारा कुछ-न-कुछ ज र रहना चा हए। कोई फक नह पड़ता
क वो यार हो या नफरत। जब तक तुम हो वहाँ तु हारा चांस है भाई।” और शायद उसक
इ ह हरकत और इसी बेकार-सी फलॉसफ के कारण हम ज द ही अ छे दो त बन गए थे।
“अरे! दो त है अपनी।” रतेश ने कॉल काट कर मेरी पीठ पर अपना हाथ तबीयत से
जमाते ए कहा, जसे वो अपना सोकॉ ड यार कहता था।
“कॉलेज क कम पड़ गई ह या जो फोन पर भी तू चालू हो जाता है?” मने रतेश के
उस यार क वजह से अपनी पीठ पर पैदा ए दद को कम करने के लए उस पर अपना
हाथ रगड़ते ए कहा, “और हर बार अपने इस चव ीछाप यार के नाम पर मुझे मारा मत
कर, लगता है बे साले!”
“अरे यार, तू नह समझेगा। इंसान को अपने टै लट क धार को हमेशा तेज करते रहना
चा हए।” उसने मेरी न मारने वाली बात को लगभग इ नोर करते ए कहा।
“कभी-कभार अपने दमाग क धार भी तेज कर लया कर लास म काम आएगा।”
म अभी भी अपनी पीठ को आराम प ँचाने के लए उस दद वाली जगह को रगड़े जा रहा
था।
“चल अब चढ़ मत ऊपर। बता या लान है फर आज का?” रतेश सीधे अपने
मतलब क बात पर आते ए बोला।
“दे ख बे, श द का इ तेमाल ना तू सही से कया कर। माना क साले सगल ह पर
इतनी खराब वाइस भी नह है मेरी और न ही अभी इतने खराब दन आए ह क तुझ पर
चढ़ना पड़े। और अभी तक घर से रोकड़ा आया नह है तो तू ही दे ख ले लान के बारे म
तो।” मने अपनी लाचार, पर स त भावना और अपनी जेब क हालत का सीधा
आकाशवाणी सारण करते ए कहा।
“हद है यार! अब पैस क बात यहाँ कहाँ बीच म आ गई! तेरा भाई है ना यार! पैस
क चता मत कर तू और बस बोल क या करना है?” रतेश ने मौका दे खते ही अपनी
अमीरी का स ट फकेट दखा दया।
रतेश के पास हमेशा मु कल से 300-400 पये ही रहते थे पर बात उसक ऐसी
होती थ मानो जैसे वो पूरा आसमान ही खरीद लेगा, पर कुछ भी कहो साला डे रग ब त था
वो। हर हाल म जीना कैसे है ये बड़े अ छे से आता था उसको। वो भी मेरी तरह एक एवरेज
लु कग लड़का ही था, चलो ठ क है ना… थोड़ा-सा मुझसे यादा हड् सम था। ले कन पता
नह वो ये सब कुछ कैसे कर लेता था। वो बड़े आराम से कुछ ही दन म कसी भी लड़क
को इ ेस कर लेता था और फर बड़ी आसानी से बाक सब कुछ भी। अब बा कय का तो
पता नह पर मुझे तो कह -न-कह पूरा यक न था क उस साले क कामदे व से तगड़ी वाली
से टग थी और सरी ओर उसके इन कारनाम से म ये भी समझ गया था क गल ड बनाने
म श ल का कोई यादा लेना-दे ना नह होता। फर भी म अब तक कुछ भी नह कर पाया
था। मेरा कॉ फडस तो उस लेवल पर था जहाँ से मुझे तो बस यही लगता था क अपन तो
कसी भी लड़क के लायक ही नह ह। तो खुद क सामने से बेइ जती करवाने से तो अ छा
ही है क साला कसी के लए ाई ही न कया जाए और इसी लए ही अपन कसी-न- कसी
बहाने का टै ग लगाकर इस ाई वाली बात को खुद से र ही रखा करते थे।
पर अगर लड़ कय क बात छोड़ द जाए तो बाक सब मैटस म अपने भी अलग ही
नखरे थे। चाहे अपनी औकात एक पेग क ही य न थी पर अपन को ांड अपने वाली ही
चा हए होती थी और चखना भी अपनी ही पसंद का। पर सरी ओर रतेश को कभी कुछ
फक ही नह पड़ता था। चाहे उसके पास पैसे ह या नह । चाहे कोई उसके साथ हो या नह ।
न कभी उसे ांड क चता होती थी और न ही कभी चखने क । वो नमक न के साथ भी
उतने ही मजे से शराब पीता था जतना क चकन के साथ। वो कसी बकवास लड़क को
भी उतने ही यार और गौर से दे खता था जतना क कसी टं च वाली को। उसका मानना था
क हम कोई हक नह है क हम भगवान क बनाई चीज म बँटवारा कर। उ ह अ छा-बुरा
कह।
“ कतने ह तेरे पास?” मने रतेश क अमीरी से पदा उठाने के लए उससे पूछा।
“200-300 पये तो ह गे ही, बाक का तू दे ख ले न यार!”
“ या लेगा फर?”
“ठं डाई ( बयर) पएँगे आज तो।” वो अपनी भौह को ऊपर उठाते ए बोला।
“और कहाँ पर?”
“तेरे म पर और कहाँ!” रतेश गाडन क उस सीमटे ड चेयर से उठते होते ए बोला।
“सही है, य तेरे घर पर या आ है? वहाँ जाएँगे आज।” म भी रतेश के पीछे -पीछे
खड़ा हो गया और फर हम दोन गाडन के बाहर खड़ी मेरी लडर क ओर बढ़ने लगे।
“वहाँ पर वो बात नह है यार, जो तेरे म म है। मन लगा रहता है वहाँ।” उसने बाइक
के पीछे बैठते ए कहा।
आज मौसम बड़ा बेईमान है…
कसी महान आदमी ने कहा है क आपक कब, कहाँ और कैसे लगने वाली है ये पहले
से ही तय है। आपका काम बस इतना-सा है क सही व पर अपनी लेकर वहाँ प ँच जाएँ
और फर आराम से बैठकर तमाशा दे ख। रतेश जी तीन-चार बयर म ही ज त छू ने लगते थे
और उसके बाद उनक यारी बात मेरे म क द वार चीरकर पास के पेड़, बाथ म, बाइक
और उस हवा को पूरे लोकतां क तरीके से अपना यार बाँटने लगती थ । वो भी बना
कसी भेदभाव के।
“अ भनव, मौसम का हाल तो ठ क है ना?” दे व त क आवाज रतेश क उस यार
क हवा के बीच से अपना रा ता बनाते ए, बड़े हौले से मेरे कान म आई।
“ रतेश, चुप हो जा भाई। म खाली करवाएगा तू आज।” मने घबराहट म धीमी-सी
आवाज म उससे कहा और फर सरे ही पल उसके राग बेवड़े क तान को रोकने के लए
अपने दोन हाथ से मने उसके मुँह को जोर से दबा दया। और हाँ म कोई मूवी का हीरो नह
था जसे चढ़ती नह थी और जो इस कंडीशन म कोई कॉमेडी कर के अपने म और अपने
दो त क इ जत बचाएगा। मुझे तो एक बयर म ही चढ़ जाती थी और इसी डर से म यादा
पीता नह था। उधर रतेश भी यादा पीने क लालच म कभी मुझे फोस करता नह था। तो
जब दे व त क आवाज मेरे म के और नजद क आ गई तो मने फटाफट ही अपने आस-
पास कसी माउथ े शनर को ढूँ ढ़ा और कुछ भी न मलने क हालत म मने फटाफट पास म
रखे याज को ही अपने मुँह म ठू स लया और दे व त महाराज से बात करने बाहर चला
आया।
“हाँ अंकल, कुछ कह रहे थे आप?”
“जनाब म कह रहा था क मौसम का हाल कैसा है? सुनने म आ रहा है क बड़ा
बेईमान है आज!”
“अंकल, वो रतेश आया है। वो ऐसे ही गाते रहता है दन भर।” मने बात को संभालने
क को शश करते ए कहा।
“तो दो त बन गए तु हारे यहाँ, अ छा है चलो।”
“हाँ अंकल, बस एक-दो।”
मेरी को शश थी क कम-से-कम श द म यादा-से- यादा बात क जाए य क म
कसी भी हाल म ये नह चाहता था क उस दे व त को ये पता चल जाए क हमने पी रखी
है।
“और या कर रहे हो अभी? आओ ऊपर दोन , थोड़ी चाय और बाते- याते हो जाएँ।”
दे व त ने फर से बेव -बेमाहौल अपनी सामा जकता क गंध फैलानी शु कर द और जे
ही पल म भी धीरे-धीरे खुद को उस गंध म फँसता आ महसूस करने लगा पर सरी ओर
मुझे ये भी अ छे से याद था क चाय को मना नह करते ह। पर तब क हक कत चीख-
चीखकर ये कह रही थी क अगर यहाँ लंबे तक वाली चाय पीनी है तो आज तुझे इसे
मना करना ही पड़ेगा।
“अंकल वो आज मन नह है और आज थोड़ा ए स डट जैसा भी हो रहा है हम दोन
को।” मने बड़े हौले से अपने पेट पर हाथ घुमाते ए खुद को और अपने म को बचाने क
एक और को शश क ।
“ओ ह, चलो ठ क है तो फर तुम दोन ए वाय करो। और हाँ अगर तुम दोन क
ए स डट ठ क न हो तो ऊपर से न बू ले जाना, आराम मलेगा। तु ह तो पता ही होगा क
अगर सोमरस का असर गान तक प ँच जाए तो न बू आराम दे ता है।” उ ह ने वापस अपने
म क ओर जाते ए कहा।
म उनक ये बात सुनकर कुछ और कह ही नह पाया पर वो इतनी-सी बात म ब त
कुछ कह गए। मुझे अभी भी अ छे से याद था क वो शमा ह और ये भी क इस बात का
मतलब या है और शायद इसी लए ही तब उनक एक ही बात से मेरी फट के हाथ म आ
गई। मेरे पेट म अचानक ही गुड़-गुड़ होने लगी मानो जैसे पीछे के र ते से वो अभी नकलने
ही वाली हो। पर तब इन सबके बीच मुझे बस इस बात क तस ली थी क कम-से-कम
अभी के लए तो चलो बात टल गई।
असल म दे व त समझ गया था क हम पी रहे ह पर पता नह य उसने हम कुछ नह
कहा और ऊपर से न बू भी ऑफर कया। लडलॉड के जु म से परेशान इस नया म ऐसा
कौन करता है भाई? बस फर या था मने तुरंत ही वह के वह कसम खाई क ‘म आज से
और अभी से गलती से भी कभी इस महान पु ष को दे व त नह क ँगा। अब से म उ ह
सफ और सफ ‘अंकल जी’ क ँगा।’ पर कुछ भी कहो, साला जदगी भर कभी भूत से तो
कभी पापा के कॉल से डरने के बाद आज पहली बार न बू के नाम से डरा था। मेरा मन तो
कह रहा था छ ः! साले या दन आ गए ह तेर!े अब इस न बू से भी डरना पड़ रहा है तुझे?
***
उस न बू वाली बात के सदमे से बाहर नकलने के लए अंकल जी के जाने के बाद म
वह म के बाहर ही रोड क साइड बैठ गया और वहाँ बैठे-बैठे आती-जाती गा ड़य को
दे खने लगा। उनको चलाने वाले लोग को ताड़ने लगा। दे खते-ही-दे खते वो शाम रात के
आगोश म समाने लगी और उधर न जाने कौन-सी आफत आ गई थी क रतेश का फोन न
जाने कब से लगातार बजे ही जा रहा था। पर अब उस फोन क रग क आवाज म वो बात
कहाँ थी क जो उसे अपने ज त के सफर से वापस बुला सके। मने म म जाकर दे खा तो
मोबाइल न पर ‘क टमर केयर’ लखा आ रहा था। अब म उसका पापा, म मी या स टर
तो था नह तो मुझे पूरा यक न था क ये कॉल कसी-न- कसी लड़क का ही है। मतलब क
अपनी भाभी का ही है। और अब इसे अपनी फूट क मत कहो या फर खुद क गाँड़ पर
खुद ही लट् ठ मारना क मने न जाने या सोचकर वो कॉल रसीव कर लया।
“ रतेश जी पी कर पड़े ह। उठगे तो बता ँ गा क आपने कॉल कया था।” मने सरी
ओर से ‘हाय’ सुनते ही पूरे श ाचार के साथ उनका सच से सामना करवाया।
“मतलब या है तु हारा? तुमने दा पलाई उसे?” भाभी जी ने अपनी वीट-सी
आवाज म गु सा और पागलपन बराबर लेवल म मलाते ए कहा।
“ओ हे लो, हसाब से बोलो पहले तो। वो बाप है मेरा पीने म। म या पलाऊँगा
उसे?” मने सफाई दे ने के साथ-साथ अपने च र का बचाव कया।
“मतलब तुमने भी पी रखी है?” भाभी ने CID का झंडा उठा लया।
“हाँ, तो या?” इस बार ठकर बयर क त ाट बोली।
“ बगड़ गया है वो तुम जैसे दो त के साथ रहकर, शम नह आती या तु ह ये सब
करके?” भाभी अब अपनी औकात से यादा बोलने लग ।
“आती है ना, अभी भी आ रही है तुमसे बात करके। अब मेरी माँ बनने क को शश
मत करो। तु हारा वाय ड होश म आएगा तब उसक बनना, यादा सूट करेगा।” मने
भाभी-वाभी सब छोड़ उसे लगभग झाड़ते ए कहा।
“हो शयारी क पोटली, जबान संभाल के बात करो तुम। रतेश सफ दो त है मेरा।”
वो भी लगभग चीखते ए बोली।
पता नह वो दन कब आएगा जब लड़ कयाँ गीता पर हाथ रखकर कसम खाएँगी क
वो दो त को दो त और वाय ड को वाय ड कहगी। भगवान जाने उ ह ये कब समझ
आएगा क उनके इस कं यूजन से मद को कतना दद होता है।
“हाँ वही तो कह रहा ँ, तु हारा दो त!” बयर फर हावी होने लगी।
“तु हारी सोच सड़ चुक है, समझे? मुझे यह से पता चल रहा है क तुम या सोच रहे
हो।”
“ब त काम ह मुझे, तु हारे बारे म सोचने के अलावा भी।” वो बयर पता नह कहाँ से
ढूँ ढ़कर मेरे गुमशुदा एट ट् युड को मेरी आवाज तक ले आई। म तब उसक उस बे दमागी,
बेतुक बकवास पर च ला रहा था या शायद गु सा कर रहा था या शायद कुछ और ही…
पता नह या था वो? पर वो जो भी था, सच क ँ तो मुझे ब त मजा आ रहा था उसम।
“एक बात बताओ, तुमने भी पी है? उसने भी पी है। तो तु ह य नह चढ़ ?” उसने
अपने दमागी घोड़ को रेडबुल पलाते ए एक भारी वाला सवाल मेरी ओर दागा।
“मज भाई शराब क , उसको नह चढ़ना था, नह चढ़ ।” मने भी अपने एट ट् युड पर
पकड़ जारी रखी।
“ माट बनने क को शश मत करो और बताओ क ठ क तो है ना वो?” उसने अपनी
पागल जैसी बात को तुरंत ही केयर मोड पर सेट कर दया।
“हाँ, और या! शराब पी है कोई जहर नह ।” म बना पघले ए अपनी वाली पर ही
अड़ा रहा। पर फर भी यार जतनी फ तब उसे रतेश क हो रही थी उतनी फ तो मुझे
भी रतेश क नह थी और शायद न ही रतेश को खुद क भी। पर हाँ, इतनी फ करने के
बाद भी वो सफ उसक दो त थी। इससे यादा कुछ भी नह । साला चू तया समझा है या
हमको। मेरे दमाग म तब यही सब कुछ चल रहा था और एक अफसोस भी क साला मेरी
ऐसी कोई दो त य नह है!
“हाँ पता है मुझ।े कब तक ठ क होगा वो?” उसने फर से झ लाते ए पूछा।
“यार तु हारी हर बात मुझे ये दखा रही है क तुम कतनी इ डयट हो। अब ये बताओ
क ऐसी बात तुम सफ मुझे दखाने के लए कर रही हो या फर यही तु हारा नेचुरल लो
है!” इस बार मने सीधा हाइ ोजन बम फका।”
“तु हारी इतनी ह मत कैसे ई फट चर कह के क तुम मुझे इ डयट कहो?” वो कसी
जवान कड़क बजली क तरह चमकते ए च लाई।
“एक तो जबरद ती गले पड़ रही हो और ऊपर से कुछ भी बके जा रही हो गँवार कह
क ।” मने भी उसक बात को अब अपनी इ जत पर ले लया।
“कोई शौक नह है मुझे तु हारे जैस के गले पड़ने का फट चर कह के।” उसक एक
और को शश और उसके जवाब म म कुछ और कह पाता उसके पहले ही वो ‘बीप’ बज गई
जसने पहले भी मेरे जैसे हजार को लाचार छोड़ा था। दे खो यार वो भाभी थी अपनी र ते
म, दल म कोई बैर-वैर नह था उसके लए। पर खुद क बेइ जती भी कैसे होने दे त!े माना
क हम धम नह थे पर माँ का ध तो पया ही था ना!
तो उस फोन के कटने के बाद म भी रतेश के पास जाकर लेट गया पर अपनी लाख
को शश के बावजूद भी न द का आज कोई अता-पता नह था। म बस न द क तलाश म
ब तर म इधर-से-उधर करवट बदले जा रहा था और न चाहने के बाद भी उसी आवाज के
बारे म रह-रहकर सोचे जा रहा था जससे अभी कुछ व पहले म पागल -सा लड़ रहा था।
इतने गु से के बाद भी कतनी मठास थी उसक आवाज म, मानो जैसे कसी ने चीनी क
पूरी बोरी ही उसक आवाज म उड़ेल द हो। म तब ऐसे ही उसी के बारे म सोचते-सोचते इस
रात के गुजर जाने का इंतजार करने लगा पर तभी रात के 11 बजे के आस-पास फर से
रतेश का फोन बजने लगा। रतेश जी अभी भी अपनी उसी ज त के सफर म त थे और
मुझे वैसे भी न द नह आ रही थी तो खुराफाती दमाग बोला, ‘वैसे भी हम र तेदार ए और
भाभी से बात तो क ही जा सकती है। इसम गलत या है!’ तो मने फर से उसका कॉल
रसीव कर लया।
“कैसे हो अब? उतर गई तु हारी?” उसने मेरे कॉल रसीव करते ही ट ट कसते ए
कहा। उसक आवाज म अब भी हमारी पहले वाली बात से पैदा ए गु से क पूरी गम थी
मानो जैसे उसे फोन के इस तरफ से बस रतेश क आवाज भर का इंतजार हो और उसके
बाद तो जैसे वो बस बरस जाने वाली हो।
“हाँ बोलो।” मने रतेश बनने क को शश करते ए कहा।
“कौन था वो पागल जसने पहले फोन उठाया था?”
“अरे हद है यार कुछ भी! म ही था वो।” म अपनी इ जत बचाते ए बोला।
“ रतेश कहाँ है फर? उतरी नह या उसक अब तक?” इस बार उसक आवाज म
थोड़ी-सी नरमी थी।
“नह , सो गया है वो बस। सुबह तक ठ क हो जाएगा तुम टशन मत लो।” मने भी
उसक नम आवाज को सहेजते ए कहा।
“ओके, और तु हारी उतरी क नह ?” इसबार उसक आवाज एक मासूम-सी हँसी म
भीगती ई मेरे कान तक आई।
“अजीब हो यार तुम भी। पहले पूछ रही थी क चढ़ य नह और अब पूछ रही हो
उतरी क नह ।”
“तुम इरीटे ट कर रहे थे तब तो बस गु सा आ गया मुझ।े ” उसक आवाज क वो
मठास जसके बारे म म अभी कुछ व पहले ही सोच रहा था वो आ ह ता से वापस आने
लगी।
“सही है यार! अब ये भी मुझ पर ही डाल दो तुम।” उस मठास का रंग अब मेरी
आवाज पर भी छाने लगा।
“तो और है कौन यहाँ! तुम पर ही आएगा सब।”
“अ छा! पर तुमने अपना पता तो बताया ही नह ?” मने तुरंत ही शाह ख खान मोड
म आते ए पूछा।
“पता?”
“अरे! आपको कहते या है?”
“ व ध और आप जनाब?”
“अ भ मतलब अ भनव।” मने ‘अ भ’ पर यादा जोर दे ते ए कहा जैसे क म उसे ये
बता दे ना चाहता था क अगर तुम मुझे अ भ बुलाओगी तो मुझे यादा खुशी होगी। “इतना
शोर कस बात का हो रहा है वहाँ?” मने कुछ लड़ कय के च लाने क आवाज सुनकर
उससे पूछा।
“म हॉ टल म रहती ँ और लग रहा है क आज कसी का बथडे है तो ए वाय कर
रहे ह सब।”
“तो तु ह नह जाना या ए वाय करने?”
“नो थ स, ठ क ँ म यह । कह तुम बोर तो नह हो रहे हो न मुझसे?” उसने शरारत
भरी आवाज म पूछा मानो जैसे उसे मेरा जवाब पहले से ही पता हो।
“नह तो, ऐसी कंपनी तो नसीब वाल को मलती है यार।” मने अपनी बात पर
म खन लगाते ए कहा।
“ये तारीफ थी या…?” शायद वो म खन यादा लग रहा था उसे।
“तारीफ थी यार, तु ह भरोसा नह है या खुद पर?”
“तुम पर नह है, तुम कुछ भी बोल सकते हो।” उसक आवाज थोड़ी-सी बदमाशी
लए ए थी।
“वाह रे मेरे शेर! ब त ज द ही पहचान लया तुमने मुझ!े ” म हँसने लगा।
“करते या हो तुम?” उसने एक सधी ई आवाज म पूछा।
“दे खो यार, अब ये पूछकर माहौल क ऐसी-तैसी मत करो तुम।” म गम और गु से के
म स लेवर म बोला।
“अब या आ? मने तो कुछ कहा ही नह !”
“यार तु हारा ये सवाल मेरे जले पर नमक छड़क रहा है।”
“मतलब?”
“कोटा था यार पहले म।” मने उसके सवाल का फल इन द ल स भर दया।
“ओ ह, चलो फर तो सही म ही रहने दो म समझ गई।” उसने शायद मेरे ज म
को पुचकारते ए कहा।
ये एक नाम कोटा अपने साथ ब त-सी कहा नयाँ समेटे ए है। इससे कोई फक नह
पड़ता क आपने कौन-सी कहानी सुन रखी है या फर आज तक सुनी भी है क नह । अगर
सामने वाला इस जगह का नाम लेकर ख से मुँह लटकाए बैठा है तो हो सकता है आप
उसक कहानी का पता नह लगा पाएँ, पर एक चीज है जसके बारे म आप बड़ी आसानी से
पता लगा सकते ह और वो है उस कहानी का अंत, जो हमेशा एक-सा ही रहता है। सरी
ओर इस हादसे के बाद समझदार लोग इतनी स पैथी तो दखाते ही ह क वो आपसे इस
हादसे के बारे म कोई बात नह करते।
“ह म म। और तुम या करती हो?” मने भी पूछा।
“B.sc. in Biotech.” उसने थोड़ी-सी हँसी के साथ कहा।
“अ छा जी!” म ‘ठ क है ये भी’ वाले टोन म बोला।
“सोना नह ह या तु ह?” व ध ने बात को चज करते ए पूछा।
“न द नह आ रही यार।”
“ य ?”
“बस सो नह पाता कभी-कभार।” मेरी आवाज ने फसलकर अचानक ही उदासी का
दामन थाम लया, जैसे वो व ध क थोड़ी-सी केयर क उ मीद म हो।
“तुम कहो तो लोरी सुना ँ ?” व ध ने लगभग हँसते ए कहा।
“रहने दो यार बेकार ही आस-पास के जानवर जाग जाएँग।े ” मेरी इस बात पर हम
दोन थोड़ा ही सही पर पहली बार एक साथ हँस दए।
उस रात दे र तक बात क हमने जैसे हम दोन अपना-अपना सफर छोड़ कुछ दे र के
लए क गए ह । बलकुल वैसे ही जैसे अचानक ही पीछे से कसी के हाथ लगाने पर हम
अपना सफर छोड़ कुछ पल के लए पलट जाते ह ये दे खने के लए क कौन है? अगर कोई
अपना मल जाए तो हम ठहरते ह। उससे बात करने लगते ह। और अगर कोई अनजान हो
तो हम वापस अपने सफर पर चल दे ते ह। उस रात हम दोन भी क गए थे। या बात ई
इसका तो सही से अंदाजा नह पर हमने उस रात खूब बात क ।
उस रात पहली बार रात को बड़ी गहराई से दे खा था मने। रा ते क उन सी ढ़य पर
बैठकर म छर क उस तानाशाही के बीच अँधेरे के साथ सड़क के उस मासूम से र ते को
बड़ी शद्दत से महसूस कया था मने। मने महसूस कया था क कैसे रात का अँधेरा और
उसक वो ह क ठं ड बेघर लोग और जानवर को सुलाने के लए लो रयाँ लेकर आती ह
और वो लोग भी अपने अधूरे सपने और अपना खाली पेट लए इस सुकून म सो जाते ह क
ये रात उनके लए एक नये रंग क सुबह लेकर आएगी और फर सब कुछ ठ क हो जाएगा।
सच क ँ तो उस रात ने सब को सुलाकर कुछ जगा दया था मुझम। म खुश था, सही वाला
खुश।
(3)
“अरे कौन-सी ांड पीते हो तुम लोग?” अगली सुबह अंकल ने मोचा सँभालते ए
पूछा।
उनक आवाज सुनते ही मेरी फर फटकर हाथ म आ गई। म समझ गया क आज तो
गए भाई, आज तो यहाँ से प ा कट है अपना। तभी पलक झपकते ही एक ओर मेरा दमाग
ये सोचने म लगा क अब इस बात को कैसे सँभालूँ तो उसक सरी ओर वो ये सोचने लगा
क अगर यहाँ से म खाली करना पड़ा तो नया म ढूँ ढ़ने क मश कत कौन-से ए रया से
शु करनी है और साथ-ही-साथ इस बात के लए रतेश को जो गा लयाँ दे नी ह उस मे यू म
कौन-कौन सी गा लयाँ कस- कस ऑडर म रखनी ह।
“ या अंकल म कुछ समझा नह ?” मने तुरंत ही नादानी के तालाब म डु बक लगा द ।
“अ छा! तो अब ये भी समझाना पड़ेगा मुझ।े ” अंकल तुरंत गंगाधर से श मान बन
गए मतलब क लडलॉड जो क शमा ह के अवतार म आ गए।
मुझे तो कल से ही इस बात का अंदाजा हो गया था क अब ज द ही मकान मा लक
वाली ांड पीनी ही पड़ेगी और वो भी गा लय के चखने के साथ। कॉलेज म ब त से लड़क
के म इस शराब ने खाली करवा दए थे और अब म कोई उनका जमाई तो था नह क वो
जमाने के स दय पुराने री त- रवाज तोड़कर मेरी मनमा नयाँ सहगे।
“अंकल वो…” म कुछ कहते-कहते, कुछ भी न सूझने पर फर से खामोश हो गया।
“मने पहले ही साफ-साफ कह दया था क खाना और पीना यहाँ नह चलेगा। तु ह
या लगता है क तुम अपनी मज से यहाँ जो चाहो वो कर सकते हो! यहाँ का मौसम म
कभी बेईमान नह होने ँ गा। समझ म आ रहा है तु ह?” उनक आवाज क गूँज उनके
खामोश हो जाने के बाद भी हवा म गूँज रही थी और सरी ओर रह-रहकर बस मेरी फट
जा रही थी।
“ म म, सॉरी अंकल!” मने इतना कहकर फर से अपना सर नीचे झुका लया।
“ या ह म? और या सॉरी? ये उ है तु हारी दा पीने क ! तुम यहाँ पढ़ने आए हो
या ये सब करने! नह भाई ये सब नह चलेगा यहाँ।” वो फर गरजे।
“सॉरी ना अंकल, कसम से आगे से यान रखूँगा।” म लगभग गड़ गड़ाया।
“नह , हम ऐसे करायेदार चा हए ही नह भाई। हमारी भी इ जत है आस-पास। तुम
आज ही खाली कर दो म और रट वापस मल जाएगा ये गलती से भी सोचना मत। मुझे
ऐसे लड़के अपने यहाँ नह चा हए जो दा पीकर तमाशा कर। अरे मोह ले के लोग या
सोचगे हमारे बारे म! मने बताया था ना क हम शमा ह!” उनक आवाज अपनी पूरी अकड़
से चलकर मेरे पास आई और इसका मतलब ये था क कल से नह , आज से ही नया म
ढूँ ढ़ने का काम शु कर दे ना है।
साला आज कह जाकर मुझे का लया जी क उस नफरत क वजह का अंदाजा हो
रहा था क य वो इन दे व त से हमेशा चढ़े ए रहते थे। मेरी हालत बलकुल उस लड़के
क तरह हो गई थी जसे कसी लड़क ने यार के खट् टे -मीठे सपने दखाकर, कुछ दन
घुमा- फराकर और उसका ब त सारा खचा करवाकर, उसे बस ये कहकर छोड़ दया हो क
बलमा तु हारी श ल मेरी े सग सस के साथ सूट नह करती। उस शराब और उस बेईमान
मौसम ने एक और घर तोड़ दया था आज। सॉरी, एक और म तोड़ दया था आज और वो
भी उस रतेश क वजह से। मने मना कया था उसे च लाने के लए पर उसका वो ‘दे ख
लगे यार’ वाला ऐ टट् युड! अब जब म खाली करना पड़ेगा तो या घंटा दे ख लेगा कसी
को वो।
“अब बोलो भी कुछ। कल तो बड़े जोर से गाने गाए जा रहे थे!” अंकल ने अपनी
भारी-भरकम मुंडी को अपनी आवाज के साथ ऊपर करते ए पूछा जैसे वो कसी मरे ए
आदमी को एक-दो लात और मारकर ये कंफम कर लेना चाहते ह क मरा भी क नह ।
“सॉरी अंकल … अब कभी नह पऊँगा और कसी दो त को भी नह आने ँ गा म
पर।” मने पूरी मासू मयत के साथ अपना म बचाने क फर एक को शश क । पर सच म
यार या दन आ गए थे मेरे। एक तो म पैसे भी दे रहा था और ऊपर से अपने हाथ से ही
अपनी मरवा भी रहा था।
“हाहाहा .. य , आया मजा अब?” दे व त अचानक ही कसी रावण क तरह हँसते
ए बोला।
पुरानी फ म म लड़के वाल के सामने जैसे कोई लड़क बड़े धीरे से, बड़े हौले से,
अपना सर उठाकर लड़के को दे खती है उसी तरह मने भी इतनी दे र तक फश पर हीरे-
जवाहरात खोजने के बाद उस ‘हम शमा ह’ को दे खने क ह मत क ।
“ य भाई, मजे सफ तुम ही करोगे या? हमारा या?” अंकल ने फर से हँसते ए
कहा।
“अंकल वो …”
“तुम तो वह अटक गए यार! म तो बस मजाक कर रहा था। दे खो कतना डर गए तुम
और वैसे भी मकान मा लक से डरना भी चा हए। चलो अब एक-एक चाय हो जाए पर आज
क चाय तुम बनाओगे।” श मान ने फर गंगाधर बनकर कहा।
“ओके अंकल!” गाँव म जैसे बजली आ जाने पर ब चे खुश हो जाते ह, मेरी हँसी भी
वैसे ही आसमान छू ने लगी। चलो अ छा है यार, नह तो अब कहाँ म खोजने जाते फर
से। और म अभी कसी भी हाल म उन बे म लोग क कटै गरी म नह आना चाहता था
ज ह दो त बेचारे क नजर से दे खते ह।
“वैसे अ भनव कौन-सी ांड थी कल?” अंकल ने बड़े लाड से पूछा।
“अंकल छोड़ो भी ना अब उस बात को।” मने बात को टालते ए कहा।
“अरे ऐसे ही जनरल नॉलेज के लए पूछ रहा ँ। बताओ भी अब।”
“अंकल वो बयर लाए थे।” मने फटाक से बोल दया।
“तो हमेशा यही पीते हो फर?”
“अंकल मने तो कल पहली बार पी थी आप तो जानते ही हो क म ऐसा लड़का नह
ँ।” मने अपना करे टर स ट फकेट उ ह दखाते ए कहा। पर अंकल ने मेरी इस बात पर
ऐसा मुँह बनाया मानो जैसे कोई सास अपनी ब को ये दखाना चाहती हो क ब त आ
अब फटाफट लाइन पर आ जाओ।
“अंकल जतने पैसे होते ह उसम से खाने के नकालकर जो बच जाते ह, उसी हसाब
से ांड डसाइड करते ह हम।” मने माहौल का अंदाजा लगाकर सच बोलना ही सही
समझा।
“और चखना, वो कैसे डसाइड होता है?”
“वो तो जसको यादा गम हो वो अपने-आप ही ले आता है अंकल।”
“सही है यार तु हारा तो। पता है जब हम कॉलेज म थे तब शराब पीने का मतलब था
क उस रात कोई-न-कोई तो पटने वाला है या फर उस रात कोई-न-कोई ग स हॉ टल के
बाहर खड़ा होकर पूरे हॉ टल के सामने कसी लड़क को पोज करने वाला है।” शमा
अंकल ने चाय क एक चु क के साथ अपनी याद का पटारा खोल दया।
“सही म!” मने ऐसे रये ट कया जैसे उ ह ने कोई बड़ा तीर मार दया हो।
“और या! पर हमारे वहाँ बीयर-शीयर का रवाज नह था य क ये महँगा सौदा था।
य क एक तो हम जैसे रोज पीने वाल को बयर चढ़ती नह थी और चढ़े उतनी खरीदने
क तब हमारी औकात नह थी और वैसे भी जनाब वो नशा ही या जो कुछ व तक
कलेजे म ठहरे नह !” अंकल ने अपनी बाजी के प े खोलते ए कहा।
“तो या पीते थे आप?”
“ये उस शाम के बकरे पर डसाइड होता था।”
“और कोई बकरा न मले तो?” म भी उनक बात म रस लेने लगा।
“तो खुद ही कट जाते थे उस दन।” वो एक ह क -सी मु कान के साथ बोले।
“पर अंकल एक बात मुझे समझ नह आई!”
“ या?”
“अंकल उन दन आप शमा नह थे या फर शमा का मतलब या होता है ये नह
जानते थे आप? नह , मतलब क आपने मुझे पहले दन ही कहा था क हम शमा ह और
जहाँ तक मुझे पता है शायद ये ‘शमा’ शराब, माँस-म छ और ल डयाबाजी नह करते ह।”
इस बार बाजी मेरी थी और अंकल को अब चेक-मेट होने से कोई नह बचा सकता था।
मेरी बात सुनते ही वो जोर से हँस दए, “ये कॉलेज के दन क बात है बेटा और उन
दन सब चलता था। पर हाँ, अब म शमा ,ँ एकदम सही वाला शमा। समझे?”
“हाँ समझ गया शमा अंकल।” मने शमा पर यादा जोर दे ते ए कहा और उनके साथ
ही इस बात पर हँसने लगा।
***
“साले हरामी कह के, तेरी वजह से मुझे कल म खाली करना पड़ता।” सरे दन
रतेश के आते ही म उसपर बरस पड़ा।
“ या बात कर रहा है यार! पर उस दन तो सब मूदली आ था।” रतेश ने लगभग
स ाइज होते ए कहा।
“हाँ साले, तेरा मूदली नकालता ँ म क तू। च ला- च ला के गाने गा रहा था तू
पता भी है कुछ तुझे और फर फैल गया फश पर कसी साँड़ क तरह। तेरी सुरीली आवाज
सुनकर अंकल नीचे आ गए थे।”
“ओह तेरी! फर या आ?”
“कुछ नह , संभाल लया मने फर।” मने अपनी कॉलर ऊपर चढ़ाते ए कहा।
“यार, ये बूढ़ा चाहता ही नह है क हम ए वाय कर। खुद ने तो अपने टाइम म कुछ
कया नह और अब हम भी कुछ करने नह दे रहा है।” रतेश ने खीजते ए बोला।
“सही है भाई। पर पता है कल इमोशनल हो गया वो दे व त, साले ने खूब गुलछर
उड़ाए ह जवानी म।”
“ या बात है यार! तेरा माकन मा लक तो साला रंगीला नकला।” रतेश ने शमा
अंकल क तारीफ करते ए कहा।
“अ छा सुन ना भाई, तेरे सोने के बाद कल वो व ध का कॉल आया था तो मने बात
क थी।” मने बड़े आराम से और पूरे व ास से उससे कहा।
“तो या कहा उसने?”
“वही, क वो तेरी गल ड है।” मने इस बार ट ट मारते ए कहा।
“हाहाहा, तो साले बात वहाँ तक प ँच गई तु हारी। तू तो छा गया यार!” उसने अपनी
आवाज म स ाइज वाले जे चर का तड़का लगाकर मेरी पीठ को फर से अपने हाथ का
यार दे ते ए कहा।
“ऐसा कुछ नह है बे, बस ऐसे ही बात क थोड़ी-ब त। और तेरे को कतनी बार कहा
है मने क फालतू का मारा मत कर, लगता है यार।” म अपनी पीठ पर हाथ फेरते ए रतेश
पर च लाने लगा।
“सही है लगा रह, ब त अ छ लड़क है। यह उदयपुर ही मली थी मुझ,े ै श कोस
के टाइम पर। हम दोन हद मी डयम म थे तो जान-पहचान हो गई थी बस।” उसने अपने
मोबाइल म कुछ टटोलते ए मुझसे कहा। और फर वो मेरे बना पूछे ही मुझे व ध के बारे म
ब त कुछ बताने लगा। तब उसक बात सुनकर लग रहा था मानो जैसे वो अपनी गल ड के
खजाने म से एक गल ड मुझ जैसे लाचार-गरीब दो त को दे रहा हो। पर व ध तो उसक
गल ड थी ही नह ! तो शायद वो बस मुझे यही कहना चाह रहा था क लड़क सही है और
उन दोन के बीच कुछ नह है। उसने जो बात तब मुझे नह बताई थी वो ये थी क उसने भी
उन दन व ध को पोज कया था, पर व ध ने मना कर दया था। मुझे लगता है शायद वो
ये जानता था क कभी-कभी सब कुछ जानना भी खराब होता है। हम बस वही पता होना
चा हए जो हमारे वतमान के लए सही हो। बाक तो सब सफ बात ह, जनके न सर ह और
न ही पैर।
(4)
500 से अ धक टाइ स लगी थ गाडन के बीचो-बीच चलने के लए बने उस रा ते पर
ले कन उनम से भी ब त सारी कह -कह से टू ट रही थ । या रय म लगे पौधे भी कसी
सरकारी स सडी के इंतजार म लगभग सूखे जा रहे थे। कसी हो शयार ने इतनी सुबह घास
पर छ पर फाड़ पानी छोड़ दया था तो अब वहाँ भी बैठा नह जा सकता था। रतेश अपनी
गल ड के साथ मेरे म म था, इसी लए म घंटे भर से यहाँ गाडन म बैठा आ उसके
होने का इंतजार कए जा रहा था। इसी बीच ब त बार मन तो कया क व ध को कॉल
क ँ , पर न जाने य म कर नह पा रहा था। अब ये बात भी नह थी क म कोई भाव खा
रहा था या मुझम ईगो जैसा कुछ था, य क म ये अ छे से जानता था क हम जैसे फक र
का कोई भाव नह होता और ईगो तो हमारे लए कसी ले बो गनी कार जैसा था जसक
हमने अब तक सफ बात सुनी थ । कुछ-एक प स दे खी थ ।
“भाई कैसा रहा, बता तो और या- या कया आज?” लगभग 2 घंटे बाद रतेश के
होकर गाडन आते ही मने उसके सामने अपनी लार टपकानी शु कर द और जे ही
पल अपना पूरा फोकस रतेश के मुँह से नकलने वाली अगली बात पर लगा दया। अब
अपने उन बेबस हाथ को दे खने के अलावा म तब अपने हालात का कुछ तो कर नह सकता
था ले कन इन हालात म भी अपने कसी दो त के े श रोमांस क लाइव कम सुनने का
मजा ही कुछ और होता है।
“बस यार, तुझे तो पता ही है अब या बताऊँ समझ जा।” रतेश ने बात को टालते ए
और मेरी लाचारी को मुझे याद दलाते ए कहा।
“अब बात मत बना यार। बता ना भाई, या- या आ?” म लगभग भीख माँगने
लगा।
“ या- या आ, म म जाते ही ले लया उसे बाँह म मने और यार तूने वो टे बल सही
जगह पर नह रखा है। ब त द कत ई आज।”
“अरे रख ँ गा यार, तू आगे बता।” मेरा ए साइमट धीरे-धीरे बढ़ने लगा और साथ-
साथ मेरी साँस भी।
“यार या कस करती है वो! म तो साँस ही नह ले पा रहा था। आधे घंटे तक कस
करते रहे हम। चाट लया पूरा एक- सरे को हमने।” रतेश अपनी जीभ से अपने ह ठ को
भगाते ए बोलने लगा।
“ फर फर?” मने भी अपनी व जन जीभ को अपने ह ठ पर फेरते ए उससे पूछा।
“ फर या! वही जो तू सोच रहा है। अब या पूरा नंगा करवाएगा उसे!” रतेश ने
लाइव कम रोकते ए कहा।
“ कतनी बार कया भाई?”
“अरे वो ज द ही थक के सो गई यार और पहली बार म यादा फोस भी तो नह कर
सकते ना। तू तो जानता ही है!” रतेश ने ठं डी साँस छोड़ते ए कहा।
‘तू तो जानता ही है’ कहकर रतेश ने मेरी नह ब क मेरी मदानगी क तेल लगा-
लगाकर बेइ जती क थी। या जानता था म? घंटा? सच क ँ तो अगर ये हाथ साथ नह
होते तो अब तक तो म शायद आ मह या कर चुका होता।
“भाई पीते ह आज फर तो।” मने अपनी जगह से खड़े होते ए कहा।
“ य , या आ तुझ? े अचानक ही पीने का लान?” रतेश ने स ाइज होते ए पूछा।
“अरे, कुछ नह आ है। बस मन कर रहा है।” मने अपने व ज नट के े शन को
लगभग छु पाते ए कहा।
“तेरे पास तो पैसे भी नह ह, कैसे लाएँगे फर?”
“ले आएँगे यार, तू चल बस।” म बाइक क ओर बढ़ने लगा।
अब या बताता उसे क मुझे आ या था। मेरी कंडीशन बस व जन समाज ही अ छे
से समझ सकता था क कतना बुरा लगता है जब आपका दो त आए दन अपने झंडे गाड़
रहा हो और आप अभी भी उ ह पुराने हाथ से काम चला रहे ह । बस इस गम को भुलाने
के लए तो पीना ही पड़ेगा आज। और वैसे भी कसी महान इंसान ने कहा है, “अगर तु ह
अपनी औकात से ऊपर उठना है तो तु ह सबसे पहले अपनी आज क औकात को भूलना
होगा।” अपनी आज क औकात को भूलने के लए शराब से यादा खूबसूरत चीज और
या हो सकती थी! इसी लए म तब बना अगर-मगर कए ही शु हो गया और जब वो
सोमरस खून म घुलकर मेरे अकड़ के गु बारे म गम हवा भरकर उसे ऊपर उठाने लगा तो म
समझ गया क ये हालात व ध को कॉल करने के लए एकदम परफे ट ह और इसी लए
बना कुछ सोचे मने लगा दया उसे कॉल।
“हाय! कैसी हो?” मने उसके फोन उठाते ही कहा।
“याद आ गई आपको मेरी?”
हाय! उसक आवाज म कतनी ठं डक थी! एक अजीब ही सुकून था उसम, एक
अजीब-सी सुगंध थी उसम। उसक आवाज जैसे ही मेरे कान तक प ँची, वैसे ही मेरी आँख
अपने-आप ही बंद होने लग , मानो जैसे वो आवाज नह कोई तल मी सुर हो जसे मेरा
दमाग अपनी पूरी ताकत के साथ महसूस करना चाहता हो, उसका एक कतरा भी गलती से
गवाना नह चाहता हो।
“वो ऐसे ही मन कया बात करने का तो …” म अपनी बात कहते-कहते फर से ठहर
गया।
“हाँ तो ठ क है ना, तुम कर सकते हो कॉल।” व ध ने मेरी झझक को सहलाते ए,
उसे कसी जा गर क तरह अपनी टोपी म कह गायब कर दया।
‘तुम कर सकते हो कॉल’ सुनने म कतना अ छा लग रहा था! ब त ही अ छा।
“ओ ह! मुझे तो पता नह था बेकार म मने इतने दन खराब कर दए।” मने खुद को
थोड़ा और उससे जोड़ते ए कहा।
“तो या कर रहे ह आप?” उसने पूछा।
“बस को शश कर रहा ँ क कैसे भी ये बात थोड़ी लंबी चले।” मने अपना सच कह
दया।
“मतलब?”
“मतलब सोच रहा ँ क कस- कस टॉ पक पर बात कर सकता ँ तुमसे जससे क
तुम बोर भी न हो और थोड़ी यादा दे र तक मेरे साथ भी रहो। आज ब त अकेला महसूस
कर रहा ँ यार और कोई है भी नह यहाँ तो तु ह साथ रखने क को शश चल रही है बस।”
“अरे वाह! ऐसी बात भी कर लेते हो तुम!” उसने मेरी हालत क नजाकत समझते ए
कहा।
“कैसी बात?”
“वही जो सुनाई अलग दे ती ह और उनका मतलब अलग होता है।”
“पता नह यार! ऐसा लगा तु ह?”
“ज ट क डग यार। तो बताओ या आ है आज हमारे मोटू को?” व ध ने मेरी
उदासी का कारण जानने के लए पूछा।
“मोटू ? तुमने दे खा भी है मुझ,े कुछ भी बोले जा रही हो!”
“अरे पागल, मोटू का मतलब है ‘ यूट वाला ब चा।” उसने गुदगुदाते ए कहा।
अगर जदगी भर के हादस को दे खूँ तो माँ के बाद एक व ध ही थी जसने मेरे लए
ऐसी यूट वाली बात कही थी। मेरी आँख दे ख सकती थी क ये बात बलकुल सच नह है,
यूट और मेरा र- र तक कोई लेना दे ना नह है पर बा रश न भी आए तो भी उसके आने
क खबर उतनी ही तस ली दे ती है ना। माँ कसम, उसक ये ‘ यूट ‘वाली बात सुनकर म तब
सच म रो दे ता। ‘ यूट वाला ब चा’ और वो भी म! हाय…! कतना यूट साउंड कर रहा था!
“ऐसी बात है या मोटू , मुझे तो पता ही नह था।” मने भी उसी के अंदाज म उससे
लट करने क को शश करते ए कहा।
“चलो अपनी फोटो भेजो, मुझे दे खना है क कैसे दखते हो तुम।” व ध ऐसे बोली
जैसे कोई प नी अपने बेचारे प त क बुरी हालत दे खकर उससे थोड़ा यार से गुलामी करवा
रही हो।
बस, गए अब। शायद भगवान चाहता ही नह क मेरी लाइफ म भी कुछ अ छा हो।
यार म इतना भी बुरा नह था दखने म, पर म जानता था क एक भारतीय होने का मतलब
ही यही है क सबसे पहले आपको कसी म खराबी और बेवजह गल तयाँ नकालनी आए
और जब ये काम लड़ कय को दया जाए और वो भी हॉ टल वाली, तो अपना चांस न के
बराबर ही समझो। वो पूरे पक को जूम कर-करके, कसी ए सपी रयं ड CID ऑ फसर क
तरह इ वे ट गेट करगी। माँ कसम, मेरा तो मन बैठा जा रहा था।
“अरे या ज रत है इसक ! हम कुछ अलग करते ह ना। हम बना एक- सरे को दे खे
ही धमाल मचाएँगे। या खयाल है?” म बात टालने क नाकाम को शश करते ए बोला।
“कोई मूवी चल रही है या? चलो ज द भेजो, मुझे दे खना है।” उसने कसी बेरहम
कसाई क तरह कहा।
वैसे तो मुझे पूरा यक न था क उसने पहले ही इ वे ट गेशन कर ली होगी, पर
लड़ कय का या कह सकते ह यार! तो मने खुद को समझाया क दे ख जदगी भर इन
हाथ के सहारे रहने से तो अ छा है क एक चांस ले लया जाए।
“ओ ह! तो नह मानोगी तुम! फेसबुक पर मेरी प स ह, दे ख लो फर।” मने अपने
ह थयार डालते ए कहा।
“अ छा तो तुम फेसबुक पर हो।” उसने स ाइज होते ए कहा जैसे उसे पता नह हो।
“हाँ तो या!” मने ओ वीयस वाले टोन म कहा।
“ को 2 मनट, लोड हो रहा है।”
इन 2 मनट का वजन मेरी ह को दबाए जा रहा था और इसी बीच थोड़ी साँस भी
फूलने लगी थी मेरी। वैसे तो फेसबुक पर सारी प स अ छ वाली ही अपलोड क थी मने
पर या पता मेरा सबसे अ छा भी उसके लए अ छा न हो।
“ओके! तो मोटू आप न पर ह।” उसक आवाज अचानक ही न जाने कस बात
क खुशी मनाने लगी।
“ या यार! दे ख लया ना, अब बंद भी करो ये सब। मुझे अ छा नह लग रहा है।” मने
अपनी हालत उसे जताते ए कहा।
“ य , या आ? हम तो दे खना है यार क आप चीज या ह।” उसने मेरे मजे लेने क
अपनी वा हश जा हर कर द ।
“चलो तो फर म बाद म कॉल करता ,ँ तुम दे ख लो पहले।”
“डर रहे हो न क या सोच रही ँ म?” उसने मेरी हालत को बयान कर दया।
“ओह मैम! माना क हम इतने माट भी नह पर डर लगे इतने बेकार भी नह , समझी
या?” उसक बात सुनकर मेरे खून म घुली बयर बैकफूट से ं टफूट पर आकर बोली।
“हाँ, समझ रही ।ँ पर जो हाल तु हारी आवाज का हो रहा है, उससे तो लग रहा है क
ब त ही यादा नवस हो तुम।”
“ये तो ऑ वयस है यार! कोई लड़क तु हारा पक दे ख रही है और वो भी ये दे खने
क लए तुम कैसे दखते हो तो बंदा नवस तो होगा ही!” मने अपने डर को जायज बताते
ए कहा।
“ या यार तुम भी ना, बेकार ही नवस हो रहे हो। अ छे तो दखते हो!”
“उ मीद तो म त क थी पर अभी तो इससे भी काम चल ही जाएगा।” मने एक गहरी
साँस छोड़कर उसक बात को भुनाते ए कहा। ले कन कॉलेज भर के लड़क का हाल सुन-
सुनकर इतना तो म सीख ही गया था क लड़ कयाँ जो कहती ह वैसा हो, ये भी ज री नह
है। अभी खुद को तस ली दे ने के लए उसके मुँह से ये सुनना काफ था क म ठ क दखता
।ँ पर इसे सच तो म तब ही मानूँगा जब कल फर वो कॉल करे। या पता कुछ समझ नह
आ रहा हो इस लए ये कह दया हो उसने या फर कह मुझे बुरा न लग जाए इस लए। जो
भी हो, सच तो उसके अगले कॉल पर ही सामने आएगा।
“अब मेरी बारी, अब तुम अपनी पक भेजो। फेसबुक पर तु हारी कोई पक नह है तो
आगे तुम समझदार हो।” मने अपनी शेखी झाड़ते ए कहा।
“मतलब साहब ने पहले ही को शश कर रखी है दे खने क ।” उसने ट ट कसा।
“अरे नह , बस ऐसे ही दे ख लया था मने।” मने बात सँभाली।
“अगर म खराब ई तो?”
हहाहाहा … तो या आ! कौन-सा हमारे पास यहाँ लड़ कय क लाइन लगी है।
जसके पास कुछ न हो उसे सब कुछ चलता है। अब उसे म ये कैसे बताता क अब तो जो
भी हो, जैसी भी हो तुम ही हो।
“इतना तो तु हारी आवाज पर भरोसा है मुझे और थोड़ा अपनी क मत पर भी।” म
बात को सँभालते ए बोला।
“ या मतलब?”
“कुछ नह यार। पर मुझे ऐसा य लग रहा है क थोड़ी नवस हो तुम? तुम चता मत
करो, मुझे तो ठ क-ठाक भी चलेगा।” म फर बना सोचे-समझे कुछ भी बक गया।
“मतलब या है तु हारा क मुझे तो ठ क-ठाक भी चलेगा? और इसका मुझसे या
लेना-दे ना है? कह तुम ये तो नह कहना चाहते क …” वो हक कत और मेरे वाब के बीच
म साफ लक र ख चते ए कहने लगी। वो अपनी बात पूरी करती इससे पहले ही मने ये
सोचकर बात सँभाल ली क मु कल से तो एक लड़क से बात होने लगी है और कह मेरी
हो शयारी के च कर म वो भी हाथ से न नकल जाए।
“मेरा मतलब ये है क दो ती म श ल थोड़े ही दे खते ह और वैसे भी सारे खराब श ल
के ही दो त ह मेरे, एक और आ जाएगी तो भी चलेगा।” मने पहली वाली बात को हँसी म
टालते ए कहा और एक गहरी साँस ली।
“अब ये यादा हो रहा है।”
“तो चलो अब ज द भेजो फर।”
“ओके।” उसने हामी भरते ए कहा और फर कुछ दे र बाद वो अपने फोन के खजाने
से नकालकर शायद अपनी सबसे अ छ वाली फोटो ये कहकर मुझे भेजी क मेरे पास तो
कोई अ छ वाली पक है नह , ये बस ऐसे ही कह लक कर ली थी तो यही है। पर म भी
कहाँ कम था! मने पहले तो उसके पक को गौर से दे खा और फर कहने लगा, “मुझे लग
रहा है क…” और बात को यह बीच म अधूरा छोड़कर फर से चुप हो गया।
“ या लग रहा है?” उसने मेरे सोचे अनुसार ही नवस होते ए कहा।
“ को तो, जूम तो करने दो पहले।” मने उसे थोड़ा और परेशान करना चाहा।
“ठ क है, पहले दे ख लो अ छे से, फर बोलो कुछ।” वो परेशान और इ सी योर होते
ए बोली।
“यार बाक सब तो ठ क है पर ये नाक थोड़ी-सी…” मने फर से अपनी बात अधूरी
छोड़ द ।
“ या थोड़ी-सी?”
“चलो छोड़ो यार, जो भी है।” मने बात को टालने के अंदाज म कहा।
“नह , या छोड़ो? बताओ नाक म या ॉ लम है?”
“इतना डे परेट य हो रही हो यार! थोड़ा च ल मारो तुम।” मने उसे और परेशान
करते ए कहा।
“तुम बात को बीच म काटा मत करो और बताओ क अब नाक से या द कत ई
तु ह।” इस बार उसक आवाज थोड़ी सी रयस थी।
“अरे, ऐसे ही कह दया यार, सॉरी ना। और हाँ अ छ लग रही है पक।” मने अब बात
को सँभाल लेने म ही अपनी भलाई समझते ए, उस बात को वह रोकना सही समझा।
“मतलब क सफ पक अ छ लग रही है, म नह ?” उसने वही पुराना डायलॉग फर
से पेल दया।
“अरे, पक तु हारी ही तो है!”
“नह , दोन बात म फक है।”
“ओके, तुम अ छ लग रही हो, अब ठ क है?”
“ह म। पर स ची म मेरी नाक तु ह पसंद नह आई ना?” उसने फर भस क पूँछ
ख चते ए कहा।
“नह बाबा, ऐसा नह है।” मने अपनी आवाज म भोलापन और थोड़ा-सा यार
मलाते ए कहा।
“तो कैसा है फर?”
“ए चुअली, आई लव योर नोजी। इट् स यूट, रयली यूट!”
“ओह स ची! थ यू!” उसक आवाज म खुशी और बदमाशी बराबर मा ा म थी।
“अब हो गया तु हारा क कुछ और भी दे खना है?” मने राहत क साँस लेते ए पूछा।
“इतना काफ है आज के लए।” उसने हँसते ए कहा।
असल म हम दोन क आवाज और बात व के साथ-साथ यूट होती जा रही थ ।
जैसे वो कसी ढलान क तरह हम दोन को एक- सरे के पास धकेलना चाहती हो। उसके
साथ गुजारा व मतलब क उस मोबाइल फोन के आजू-बाजू वाला, अपने साथ-साथ मेरा
भी ब त कुछ बखेरता जा रहा था। मेरी अकड़, मेरी सड़ी-गली सोच, मेरा नज रया, मेरी
हवस, सब कुछ कह पीछे ही छू टता जा रहा था और मुझे इ ह दन शायद ये लगने लगता
था क र त म भी एक समझ होती है। र ते जानते ह क अगर दो लोग को पास लाना है
तो उनम कुछ-न-कुछ तो बदलना ही होगा और जब दल कसी इंसान को लेकर बेमतलब
और फजूल-सी हरकत करने लगता है तब ये र ते समझ जाते ह और फर ये चुपचाप ही
अपना काम करने लग जाते ह। उस नये र ते के बनने के लए उन दो लोग म जो बदलाव
ज री ह वो उ ह चुपचाप बना उन लोग को खबर होने दए ही उन बदलाव को उनम लाने
लगते ह। म ये तो नह क ँगा क मने कह दे खा है ये सब। पर हाँ, तब उन बदलाव को खुद
म महसूस ज र कर रहा था म। म बदल रहा था, व ध बदल रही थी। हमारा र ता बदल
रहा था। हमारी बात बदल रह थ ।
अब हम दोन अ सर बात करने लगे थे। एक- सरे को रोज थोड़ा-थोड़ा करके
अपनाने लगे थे। मुझे लगता है क जब आप सर क छोट -छोट गल तय पर खुद माफ
माँगने लगते ह तब ये तो समझ जाना चा हए क आपका र ता बदल रहा है और ये उ टा
भी उतना ही सही है। मतलब क जब आप कसी र ते म अपनी गल तय पर भी माफ
माँगना सही नह समझते तब भी ब त कुछ बदल रहा होता है।
म ये दल से चाहता था क मेरे यार क कहानी थोड़ी रोमां टक हो। ऐसी हो क म
हमेशा याद रख सकूँ। वैसी ही, जैसी कसी फ म म होती है। जसे म अपने भाग का थोड़ा-
सा और यार डालकर कसी कागज पर गाढ़े रंग म लख सकूँ। पर ऐसा कुछ भी आ नह
और अब जब बात मेरे पहले यार क है तो इसे झूठ के कपड़ म म दे ख नह पाऊँगा, चाहे
इस कागज पर वो ल ज कतने भी अ छे य न लग। तो ऐसा कुछ रोमां टक आ नह ।
सही क ँ तो हम दोन म से कसी ने भी एक- सरे को पोज नह कया। लड़ते-झगड़ते,
ठते-मनाते, हँसते-हँसाते हर दन थोड़ा-थोड़ा जुड़ता गया और एक र ता बन गया। जसे
हम दोन ने बना इक- जे को बताए ही अपना लया या फर शायद हम कभी भी एक- सरे
को ये बताने क ज रत ही नह पड़ी क हम एक- सरे को पसंद करने लगे ह, क हम एक-
सरे से यार करने लगे ह। मानो जैसे हम दोन ही ये जानते थे क हम कस ओर जा रहे ह।
(5)
मने लोग को ये कहते सुना है क कॉलेज क लाइफ कसी भी इंसान क जदगी का सबसे
हसीन व होता है। ले कन सर से इतर, मेरा ये हसीन व थोड़ा लेट शु आ था। मेरे
फ ट ईयर का आधे से यादा व तो घर पर ही दम तोड़ चुका था और बचा आ व फर
से अपनी जदगी को सही पटरी पर लाने म खच हो गया। और इ ह सब के बीच पता ही
नह चला क कैसे ये फ ट ईयर गुजर गया ले कन मुझे इस बात का कोई अफसोस नह था
क अगर म पहले सँभल गया होता तो मेरा ये साल भी बा कय क तरह वही लंबाई लए
ए होता, य क कसी महान इंसान ने कहा क अंत भला तो सब भला। वैसे भी अगर कुछ
बात को छोड़ दया जाए तो इस साल सब कुछ तो सही आ था। फाइनल ए जाम अ छे से
नपट गए थे। एक म त मौला मकान मा लक न जाने पछले ज म के कौन-से अ छे कम से
मेरी झोली म आ गरा था! आगे का व गुजारने के लए एक भाई जैसा दो त बन चुका था
और सबसे बड़ी बात मुझे अब अपना यार मल चुका था। अब इससे यादा और या
चा हए एक लड़के को!
व ध और मेरा यार व के साथ-साथ एहसास क आँच पर पकते-पकते, धीरे-धीरे,
एकदम गाढ़ा हो चुका था। उसका सुख रंग सूरज क पहली करण क तरह हमारी जदगी
के आसमान म चमक उठा था। और उससे भी बड़ी खुशी क बात ये थी क आ खरकार मेरे
लाख मनाने के बाद, कल सुबह व ध उदयपुर आ रही थी। उसका कुछ भी और बन पाता
उससे पहले ही उसका पापा बन गया था म। उसक हॉ टल वाडन को उसका पापा बनकर
बात कर चुका था और उसक छु ट् टय के लए झूठा फै स भी। सच क ँ तो उसे उदयपुर
लाने के लए उस दन म कुछ भी कर सकता था, शायद कुछ भी।
वो आ रही थी, ये ठ क था। म खुश था, ये भी ठ क था पर पता नह य मुझे उस दन
ब त अजीब-सा कुछ ए जा रहा था। म अपनी हजार को शश के बाद भी एक जगह
टककर बैठ ही नह पा रहा था। कल सुबह व ध यहाँ होगी। मेरे पास होगी। ये सब बार-बार
सोच-सोचकर जैसे मेरी हालत ही खराब हो चुक थी। म वो सब कुछ कए जा रहा था जो म
नॉमली कभी नह करता था। इतनी बेचैनी मुझसे सही नह जा रही थी। ऐसा लग रहा था
मानो जैसे मेरा दमाग आज फट जाएगा। म सच म ब त को शश कर रहा था खुद को शांत
करने क पर मेरे लए उस दन खुद को शांत कर पाना मु कल था, शायद ब त ही यादा
मु कल। रह-रहकर मेरे दमाग म अजीबो-गरीब खयाल आए जा रहे थे। कभी मेरा मन
करता क जाकर एक-दो बयर गटक लूँ, तो कभी मन करता क एक-दो सगरेट फूँक
आऊँ। ले कन अकेले कह भी जाने क न तो तब मेरी ह मत हो रही थी और न ही मन।
थक-हारकर मने रतेश को कॉल कया और उसे अपना पूरा हाल बता दया। रतेश जानता
था क मुझे या हो रहा है, य हो रहा है और ये भी क इस हालात म या कया जाना
चा हए।
तो उसके कहे अनुसार मने वही काम कया जसे करने म हर व जन को महारथ
हा सल होती है। दे खते-ही-दे खते कुछ ही दे र म सब कुछ थम-सा गया। मने भगवान को इन
हाथ के लए, आदमी क सोच को उन वी डयोज के लए और साथ-ही-साथ रतेश को उस
आइ डया के लए दल से शु या कया। उसके बाद मुझे कब न द आ गई पता ही नह
चला पर जब उठा तो दे खा क रात के 9:30 बज चुके थे और मोबाइल म व ध के 16 मस
कॉल थे।
“कहाँ हो यार तुम, कब से कॉल कए जा रही ँ म?” मेरा कॉल रसीव करते ही व ध
च लाने लगी। उसक आवाज म उदयपुर आकर मुझ पर एहसान करने वाली फ ल स
साफ-साफ नजर आ रही थी। पर म कोई पागल नह था। आज तो म उसक गा लयाँ तक
भी सुन सकता था और वो भी बना उफ तक कए।
“सॉरी ना बट् टू , वो थोड़ा थक गया था तो पता ही नह चला क कब आँख लग गई।”
मने मासू मयत ओढ़ते ए कहा।
“तु हारा अ छा है यार सो गए! म सुबह से यहाँ परेशान ए जा रही ँ। तुम तो जानते
हो ना क म पहली बार रात म अकेली सफर कर रही ।ँ ” उसक बात म रात म अकेले
सफर करने का डर पानी म घुले कसी रंग क तरह साफ-साफ झलक रहा था। उसक
आवाज म एक डर था जसम उस रात म उसके साथ या- या हो सकता है इसक सारी
संभावनाएँ अपना हाथ उठाए खड़ी थी। मु कल होता है एक लड़क के लए पहली बार
खुद क ज मेदारी लेकर और उस पर पूरी नया से झूठ बोलकर रात म अकेले े वल करके
कह जाना। वो भी उस दौर म जब इंसान क इंसा नयत कसी जंगली जानवर के जंगलीपने
से यादा बदतर हो चुक हो।
“म ँ ना यार! य डर रही हो तुम इतना। हम पूरे सफर बात करते रहगे। तू तो मेरा
ेव वाला लायन है ना? कसम इतनी ह मत है क जो तु ह डरा सके!” मने उसके डर और
उसक बेचैनी को हौले से सहलाते ए कहा।
“ह म ….. लव यू बट् टू !” उसक आवाज अभी भी थोड़ी-सी उदासी लए ए थी।
“लव यू टू बेब।ू ” म उसे थोड़ा-सा भरोसा और सब कुछ ठ क है, सब कुछ ठ क होगा
क उ मीद दे ते ए बोला।
म सही से तो नह कह सकता पर शायद व ध क हालत उस व नद के उस पानी
क तरह थी जसे पता था क उसे कुछ व के बाद समंदर म जाकर मलना है और समंदर
म मलते ही वो अपनी पहचान खो दे गा। वो रहेगा तो पानी ही पर ब त कुछ बदल जाएगा
उसका। उसका रंग, उसक मठास और भी ब त कुछ। पर शायद कभी-कभी खुद को खोने
का नशा इतना गहरा होता है क उसके सामने सही-गलत, अ छा-बुरा, सब कुछ बौना-सा
लगता है। हम बस वो चा हए होता है जो हम चा हए। और इसी नशे म शायद वो आज सबसे
झूठ बोलकर उस लड़के से मलने आ रही थी जससे उसने आज तक सफ फोन पर बात
क थी। जसक उसने बस कुछ एक फोटो दे खी थी।
मुझे भरोसा था खुद पर क उसक हाँ के बना म उसे हाथ तक नह लगाऊँगा ले कन
या उसे भी मुझ पर इतना ही भरोसा था? और अगर ऐसा था, तो मने उसे ऐसा या कह
दया था क उसे मुझपर इतना भरोसा था? या कर सकती थी वो अगर म गलत बंदा
नकलता? या वो मुझे रोक सकती थी अगर म, म ही न रहता? अगर म खुद क हैवा नयत
को रोक ही नह पाता? ऐसे कई सवाल थे ज ह उसक आवाज के उस डर ने तपाक से मेरे
जेहन म उतार दया था ले कन उस व मेरे पास इन सवाल के कोई जवाब नह थे। पर
आज, जब म इन रा त क हवा को थोड़ा ब त समझने लगा ँ तो लगता है जैसे उस
दन उसे मुझ पर थोड़ा-सा भी भरोसा नह था। उसे बस यक न था अपने कुछ महीन के
यार पर। उसे बस यक न था अपने ‘ बट् टू ’, ‘बेबी’ जैसे कुछ श द पर, ज ह ने मुझे हर
बार कभी शराब पीने से, तो कभी लड़ाई-झगड़ से रोका था। उसे यक न था अपनी आवाज
क उस गमाहट पर जसने कई बार मेरे सरदद को बना कसी दवाई के ही कह गायब कर
दया था। उसे यक न था अपनी उस खामोशी पर, जसने कई बार मेरे गु से, मेरी नाराजगी,
मेरी अकड़ को भाप क तरह कह उड़ा दया था। उसे शायद उन रय पर यक न था
जसने उससे र जाने क मेरी लाख को शश के बाद भी मुझे हर बार अपना सर झुकाए
वापस उसक आगोश म लौटाया था। हाँ, म ये कह सकता ँ क उसे उस दन मुझ पर
र ीभर भी यक न नह था पर उसे अपनी पसंद पर यक न था। उसे अपने र ते पर यक न
था और शायद तब ये काफ था उसके लए।
अगर म अपनी क ँ तो म भी एक नॉमल लड़का ही था जसे वो सब कुछ चा हए था
जो उसके बाक दो त के पास था। उसे वो सब कुछ करना था जो उसके बाक दो त ने
कया था। ले कन इन सब से अलग म ये जानता ँ क तब एक और ‘म’ था मेरे अंदर जो
सफ ‘अ भ’ नह था वो ‘ व ध का अ भ’ था। जो उससे बेइंतहा मोह बत करता था, जो
उससे पागल क तरह मोह बत करता था। शायद उस अ भ को आज के जमाने क हवा
नह लगी थी। उसका व ध के लए यार उतना ही पाक था जतना पाक शायद खुद खुदा।
वो रात भर जागता था जब पी रयड् स म वो सो नह पाती थी। वो रात भर सफ उसक
आवाज के साथ अकेले रहने के लए गली के उन म छर से लड़ता रहता था। जो चाहता था
क इन कुछ दन म वो व ध को पूरा उदयपुर दखाए और इसी के लए उसने अपने दो त
से भीख माँग-माँगकर हजार का बजट भी इकट् ठा कया था। वो मीरा वाला यार करता था
उससे और अगर सच क ँ तो वो आज भी उससे उतना ही यार करता है और शायद हमेशा
ही करता रहेगा। और वैसे भी पहले यार म ऐसी आ शक क इजाजत होती है, चाहे बाद म
इस पागलपन पर हम खुद ही लाख य न हँस।
***
वैसे जयपुर से उदयपुर यादा र तो नह था पर जब सफर म कसी का इंतजार जुड़
जाता है तो व अपनी र तार अचानक ही धीमी कर लेता है और फर थोड़ी-सी री भी
हम ब त यादा लगने लगती है। हर सेकंड लगता है क मानो घड़ी खराब हो गई है पर हर
तरह से उसे पीटने-पटकने के बाद भी जब वो वापस से वैसे ही क - क -सी, वैसे ही
ढु लमुल-सी चलने लगती है तो लगता है जैसे ये व ही आपके खलाफ कोई सा जश रच
रहा है क ये रात अब बना के स दय तक चलनी है। असल म ये तो सफ मेरी सोच थी,
वो तो व था, उसे तो न चाहते ए भी खुद को खच करना ही था। ले कन फर भी चाहे
आप मानो या न मानो पर बातो-बात म रात कैसे नकली पता ही नह चला। अब अगर सच
क ँ तो इस बात से बड़ी घ टया बात आज तक कभी बोली ही नह गई है और शायद
इसी लए ही अपने दल के लाख चाहने के बाद भी म ये झूठा डायलॉग यहाँ नह मा ँ गा।
अस लयत तो ये है क बड़ी मु कल से वो रात गुजरी पर आ खरकार उसने वो कह ही दया
जसका मुझे पूरी रात से इंतजार था। जसके लए पूरी रात म कभी व से तो कभी न द से
लगातार लड़े जा रहा था। आ खरकार उसने कह ही दया, “ बट् टू म प ँचने वाली ,ँ तुम
बस टे शन आ जाओ।”
उसके मुँह से ये सुनकर म खुशी से पागल आ जा रहा था। एक अजीब से डर के
साथ-साथ ब त सारी खुशी मेरी नस-नस म कसी आवारा साँड़ क तरह बेकाबू होकर
इधर-उधर दौड़े जा रही थी। जतना ज द हो सकता था, उतना ज द म टे शन प ँच गया
और उसे ढूँ ढ़ने लगा। ATM के कनारे खड़ी थी वो। कंधे पर पाइडरमैन का बैग और हाथ
म एक वाटर बोतल लए ए। उसे दे खकर लग रहा था जैसे कोई लड़क अभी-अभी अपने
कूल से बाहर आई हो। म उसक ओर जाने के लए बाइक से उतरने ही वाला था क उसने
भी मुझे दे ख लया। मुझे दे खते ही उसके चेहरे पर एक मासूम-सी खुशी छलक आई मानो
जैसे बा रश क पहली बूँद को जमीन मल गई हो। फर वो कसी ब चे क तरह अपना
भारी-सा बैग अपनी पीठ पर सँभालते ए मेरी ओर भागी चली आई। उसे अपनी ओर आते
दे ख मेरा मन तो कया क बाइक से उतरकर उसे गले लगा लूँ, पर तब जो मेरे अंदर हो रहा
था वो मुझे कुछ भी सही से सोचने नह दे रहा था। कुछ भी सही से करने नह दे रहा था।
असल म मेरे हाम स क वो उथल-पुथल मेरी समझ को कसी कनारे ढकेल आई थी। म उन
इमोशंस के समंदर म कसी भटके ए ना वक क तरह, बना कंपास लए बस तैरे जा रहा
था। फर मेरे यूँ दे खते-ही-दे खते वो मेरी बाइक के पास आकर खड़ी हो गई और उसी
मासू मयत के साथ मुझे दे खकर मु कुराने लगी। मुझे यक न नह हो रहा था क मेरी गल ड
मेरे पास खड़ी है। मुझे यक न नह हो रहा था क आज मेरे पास रयल वाली गल ड है। जो
मेरे लए पूरी नया से झूठ बोलकर, इतना सारा र क लेकर यहाँ मेरे पास आई है।
बस टे शन से मेरा म लगभग दो कलोमीटर के आस-पास था और ये यादा री
नह थी, पर म पूरी को शश कर रहा था क जतना हो सके म उतना धीरे बाइक चला पाऊँ
य क तब मेरा पूरा यान बाइक चलाने पर न होकर मेरे कंधे पर था जहाँ से उसने मुझे
पकड़ रखा था। मेरा दमाग अपनी पूरी ताकत लगा रहा था क वो कैसे भी उसके उस हाथ
के इंच-इंच को महसूस कर सके। जैसे उसे अब भी ये यक न ही नह हो पाया हो क व ध
मेरी है। सच क ँ तो वो दो कलोमीटर का सफर मेरे लए कसी आइस म के रैपर पर लगी
ई आइस म क तरह था, जो ए ा-सी लगती है पर मजेदार लगती है।
“आ गए बट् टू ।” मने उससे अपने म क तरफ इशारा करते ए कहा और फर उसे
बाइक से उतारकर, बाइक पाक करके म उसका हाथ थामे ए अपने म क तरफ जाने
लगा। म म का दरवाजा खोलने ही वाला था क उसने रोक लया मुझ।े उसने मेरा हाथ
पकड़ा और अगले ही पल मुझे हग कर लया। ये पहली बार था जब कसी लड़क ने मुझे
गले लगाया हो। म कह नह सकता क म तब कतना खुश था। पर मेरा खुराफाती दमाग
तभी सोचने लगा क यह य ? वो मुझे बस टे शन पर भी हग कर सकती थी या कुछ
सेकंड् स बाद म म भी। तो फर अभी ही य ? पर उधर मेरी सोच से बेखबर उसका हग
हर सेकंड मुझे और यादा कसता जा रहा था मानो जैसे वो मुझम कुछ खोज रहा हो, जैसे
मुझसे कुछ पूछ रहा हो।
“ या आ बट् टू ?” मने उसके सर को हौले से सहलाते ए पूछा।
“कुछ नह । थोड़ी दे र बस ऐसे ही रहने दो।” उसने अपने सर को मेरे कंधे पर अ छे से
एडज ट करते ए कहा।
वो कुछ नह तो ठ क था पर जब उसके बाद क खामोशी से बात ई तो पता चला क
वो थोड़ा डर रही थी मेरे साथ म म जाने से, पर वो जाना भी चाहती थी। उसका ये हग
इस लए था क जससे वो अपने शरीर और अपनी ह को ये यक न दला सके क ये
लड़का मेरा है। ये यार मेरा है और तुम दोन सुर त हो इसके साथ। मुझे यक न है इसपर।
तुम डरो मत।
“चल बट् टू , वरना तु ह ठं ड लग जाएगी?” मने उसके माथे को यार से चूमते ए
कहा। शायद उसके माथे को चूमकर म भी उसे तब यही यक न दलाना चाहता था क हाँ
तुम सही हो। तुम मेरे साथ सलामत हो।
अब आपने कभी इसे महसूस कया है या नह मुझे पता नह पर डर और यार के बीच
वही र ता होता है जो पानी और मछली के बीच म होता है। डर के बना यार कभी जदा
नह रह सकता। चाहे वो कोई भी र ता य न हो, चाहे उस र ते क उ कतनी भी य न
हो। अगर र ता जदा है, अगर उसम यार जदा है तो उसके जड़ म कह -न-कह , कोई-न-
कोई डर भी जदा है। चाहे वो आपको दखे या न दखे।
उधर ठं ड से कंपकपाती उस सुबह म ब त कुछ कहना-सुनना था हम एक- सरे से, पर
थकान सुबह-सुबह के गहरे अँधेरे क तरह उसक आँख म जमने लगी थी। लग रहा था
मानो व हम दोन के एहसास को दन भर से सँभालते-सँभालते अब खुद ही ऊँघने लगा
था। हम दोन के लए बेहतर यही था क तब हम खुद को बना एक पल रोके न द के हवाले
कर द और फर हमने वही कया। कुछ ही दे र म उसने अपना हक जताते ए मेरे हाथ को
अपना त कया बना लया और म बस वह उसके पास लेटे-लेटे उसक साँस क गरमी को
अपनी गदन पर महसूस कर के खुद को अभी भी यही यक न दलाने म लगा रहा क ये सब
सच है। ये सब कोई सपना नह । फर दे खते-ही-दे खते हमारी हर करवट थोड़ा-थोड़ा करके
हम और नजद क लाने लगी। आज ये पहली बार था क कसी को छू ने म मेरी उँग लयाँ
पीछे रह गई थ और नाक आगे। उस ब तर म पहली बार हम दोन क नाक ने एक- सरे
को महसूस कया था। एक- सरे से दो ती क थी। फर दो ती ई उसके बाल और मेरी
उँग लय क । म धीरे-धीरे अपनी उँग लय से उसके बाल को सहलाने लगा और जैसे-जैसे
मेरी उँग लयाँ उसके बाल म फसलने लगी वैसे-वैसे वो और भी यादा न द के आगोश म
समाने लगी। उसक हर ‘ऊ ह’ क आवाज उसक थकान को मानो इस सुबह के गहरे अँधेरे
म कह बखेर रही थी और फर वो दे खते-ही-दे खते न द क ग लय म कह खो गई।
(6)
कहते ह जब आप खुश होते ह तब व कैसे गुजरता है पता ही नह चलता य क तब व
दे खता कौन है। इन दन मेरे दन भी ऐसे ही नकल रहे थे। आज कल तो ऐसा लग रहा था
मानो व ध के आने क खुशी म उदयपुर ने खुद को सजा लया हो। जैसे यहाँ क हर गली,
हर चौराहे ने कसी खूबसूरत लड़क क तरह अपनी आँख म गहरा काजल लगा लया हो।
सरी ओर अगर मेरी बात क ँ तो अब मेरी यही को शश रहती थी क व के हर ल हे को
कैसे भी ख चकर बस लंबा करता र ँ और व ध के यार को व क उन सीमा के पार
जाकर थोड़ा-सा और जीता र ँ। पर कुछ बात कहाँ हमारे हाथ म होती ह! व तो आजाद
क औलाद है। उसे कौन काबू कर पाया है जो म कर पाता, तो जब इस को शश म खुद को
म नाकाम दे खता तो फर लग जाता नये-नये बहाने खोजने ज ह परोसकर कैसे भी म व ध
को कुछ दन और अपने पास रोक सकूँ।
उधर व ध अभी-अभी नहाकर म म आई थी और उसक े शनेस से न जाने कैसे
पर एक ही पल म पूरा म महक उठा था, और वो भी बदमाश कह क मेरे सामने ही खड़ी
होकर तैयार होने लगी। कसी शायर के गहराते खयाल -सी गहराती उसक वो मदहोश-सी
आँख, समंदर क लहर के जैसे उठते- गरते उसके वो मखमल से मुलायम गुलाबी ह ठ, शाम
क ला लमा-सा खला आ उसके ज म का वो गोरा रंग, कसी उफनती नद के मुड़ाव -सी
तराशी ई उसक वो कमर और इन सबसे खूबसूरत उसक कमर से थोड़ा-सा ऊपर तक
आते उसके वो रेशम से ह का ाउन शेड लए ए बाल। अगर सीधा-सीधा क ँ तो तब वो
स दय क सुबह क ह क सुनहरी धूप-सी लग रही थी। दे खते-ही-दे खते उसके उन भीगे
बाल से गरता वो बूँद-बूँद पानी, अपनी ही बदमाशी म मेरी धड़कन से छे ड़छाड़ करने
लगा। मेरा मन तो कर रहा था क बेड से उठकर उसके पास जाऊँ और उसक खूबसूरती
क अथाह मठास ली ई उन बूँद को एक-एक करके अपनी यास बुझने तक पीता जाऊँ।
तब शायद म अपनी ओर से इसके लए को शश कर भी लेता पर तभी रतेश का कॉल आया
और वो कहने लगा, “ मलना है यार, कुछ इ पॉटट बात करनी है तुझसे।” ऐसा अ सर होता
नह है क ‘ मलकर बात करगे’ जैसे श द का इ तेमाल करके वो खुद क और हमारी
दो ती क बेइ जती करे। पर आज उसक बात से लग रहा था क शायद आज सुबह-सुबह
ही एक-दो पेग लगा लए थे उसने या फर या पता सच म कह कुछ लफड़ा आ था। यही
सब सोचकर हम दोन बना यादा दे र कए प ँच गए फतेहसागर, जहाँ हमने रतेश से
मलने का तय कया था।
“ या आ रतेश? सब कुछ ठ क तो है ना?” व ध ने रतेश को दे खते ही उसके गले
मलते ए उससे पूछा।
“अब मुझे या होना है! म त ँ म तो पर कुछ बात करनी है यार तुझसे।” रतेश ने
व ध को अपना हाल बताकर मेरी ओर दे खते ए कहा।
“हाँ बोल ना यार, या आ है? तेरी हरकत बड़ी अजीब लग रही ह मुझे आज।” म
उसके लए अपने डर और अपनी चता को जा हर करने लगा और ये वाभा वक भी था
य क व के साथ-साथ हम दोन एक- सरे के ब त ही यादा करीब आ चुके थे मानो
जैसे दो त के प म एक भाई मल गया था मुझे। आज से पहले मने कभी भी रतेश को
ऐसी बात करते ए नह दे खा था।
“यार I think, I am in love.” रतेश ने इस बार व ध क ओर दे खते ए बोला और
व ध तुरंत ही अपने दो त क खुशी म खुश होते ए कहने लगी, “ये तो अ छ बात ह ना!
चलो कोई तो मला तु ह अपने लायक!” पर रतेश के लए व ध के ये ल ज कोई मायने
नह रखते थे। उसने उ ह एक ह क -सी माइल दे कर वहाँ से चलता कर दया। फर वो उस
आवाज को खोजने लगा जो उसके लए तब ज री थी और जो शायद मेरी ओर से आनी
थी।
“साले, ये नौटं क बंद कर तू। यार हो गया है तेरे को अब! कुछ और मला नह जो
अब तू ये सब करने लग गया और इसी बेकार-सी बात के लए तू सुबह से मेरी जान नकाले
जा रहा है। साले म वहाँ परेशान आ जा रहा था क या हो गया है? और तेरे को यार हो
गया है!” मने गु से म अपनी आँख लाल करते ए कहा।
“ बट् टू , ऐसे कैसे बोल सकते हो तुम? वो अपनी फ ल स तुमसे शेयर करना चाहता है
इस लए बता रहा है।” व ध गु सा होकर बना कुछ सोचे-समझे ही मुझ पर बल फाड़ने
लगी।
“अरे इसका रोज का है यार! आज तक तो कभी मुझे बताया नह क कसके साथ है
ये। हर बार कोई नई ही होती है इसके साथ और अब यार करने लग गए ह ये।” मने ‘अब ये
या नाटक है’ वाले भाव के साथ कहा।
“चल ठ क है भाई, तुम दोन ए वाय करो म चलता ँ।” रतेश ने मेरी बात सुनकर
बस इतना कहा और वहाँ से उठकर जाने लगा।
उसके ये करते ही म समझ गया क कुछ तो लफड़ा है भाई! ये ऐसे कभी नह करता।
आज ये पहली बार था क जब वो मुझसे ऐसे नाराज होकर जा रहा था और वो भी तब जब
व ध मेरे साथ थी। बीतते हर सेकंड के साथ मेरी परेशानी और भी बढ़ने लगी। म उठा और
उसे रोकते ए बोला, “ या है यार रतेश, अब तू लड़ कय क तरह बहैव कर रहा है यार!
चल बता कौन है वो जससे तुझे यार हो गया है?” मने उसके दल के हाल और उसके
इमोशंस को सँभालना चाहा।
“ शफा, वो जो अपने ही लास म है।” रतेश अपना मुँह जमीन म धँसाए ए बोला।
उसके यार का नाम सुनकर व ध क खुशी का तो ठकाना ही नह रहा। वो ऐसे खुश
हो रही थी जैसे साल पहले मेले म बछड़ी ई उसक कोई बहन मल गई हो।
“ब त यारा नाम है यार, और मुझे पूरा भरोसा है क वो भी इतनी ही खूबसूरत होगी।
और खूबसूरत हो भी य ना! आ खर तेरी पसंद है यार। अब बता क कब मलवा रहा है
मुझे उससे?” व ध रतेश के यार का झंडा अपने हाथ म लेकर चहकती ई बोली। पर म
खामोश था और रतेश भी। म रतेश को दे ख रहा था, रतेश मुझे दे ख रहा था और व ध हम
दोन क उस अजीब-सी खामोशी को। उधर रतेश क नई-नवेली मोह बत पास के लाइट
पोल पर चढ़कर अपने पूरे दाँत दखाते ए मुझ पर हँस रही थी। रतेश जानता था क म
या सोच रहा ँ और म भी ये जानता था क जो म सोच रहा ँ और जो म कहना चाहता ँ
उसे वो कसी भी हाल म सुनना नह चाहता।
ऐसा अ सर य होता है क आपके दो त क मोह बत म आपको सबसे पहले अपनी
अथ दखने लगती है। आपका दमाग तुरंत ही अंदाजा लगा लेता है क कहाँ-कहाँ पड़ेगी
और कतनी- कतनी पड़ेगी। आपको अचानक ही अपनी माँ दखने लगती है। हॉ पटल के
ऑपरेशन थएटर के बाहर लगी उस मन स-सी चेयर पर आपके डॉ टर का इंतजार करते
ए। जैसा क अ सर फ म म होता है।
“ शफा! तेरा दमाग तो खराब नह है साले! दे ख म साफ-साफ कह रहा ँ तुझसे, 2
साल और बाक ह अभी कॉलेज के। कुछ भी ऐसा मत करना क… समझ रहा है न भाई!”
मने शायद थोड़ा डरते ए, उससे यादा उसक उस नई-नई आ शक को समझाते ए
कहा।
“ या बट् टू ! तुम ऐसी बात य कह रहे हो आज? तु ह तो रतेश क हे प करनी
चा हए, उसे इ करेज करना चा हए।” व ध फर से बना कुछ सोचे-समझे मुझ पर च लाने
लगी। उसक बात सुनकर मेरा मन तो कर रहा था क म उसे क ँ, “तु ह कोई अंदाजा भी
नह ह क आगे या- या हो सकता है। अगर कुछ हो गया तो तुम बस बाद म रोने और
े सग करने ही आओगी अपने बट् टू क । जो बीतेगी वो तो साला हम पर बीतेगी, और
साला तु ह तो ये भी नह पता क स दय म मार नॉमल दन से कह यादा लगती है यार।”
पर कह वो उ टे मुझसे ये न पूछ ले क तुमने कतनी बार ठं ड म मार खाई है? इस लए मने
उससे कुछ भी कहना सही नह समझा।
“भाई सब सँभाल लगे अपन दोन , तू य डर रहा है इतना? कसी को कुछ पता नह
चलेगा। यार ही तो करते ह! कौन-सा म लेकर भाग रहा ँ उसे!” रतेश मेरे डर को कसी
पालतू कु े क तरह सहलाते ए बोला।
“ये तो ठ क है भाई और माँ कसम म समझ भी रहा ,ँ पर रहने दे न यार। य फालतू
के लफड़े म पड़ना! तेरे जैसी लाइफ के लड़के सपने दे खते ह यार और तू अब फजूल ही
इस यार के च कर म पड़ रहा है।” मने रतेश को उसक लाइफ टाइल का दलासा दे ते
ए कहा। आपने दे खा होगा क ऐसा अ सर ही होता है क जसके पास मु कल से मली
एक ही गल ड हो वो अपनी पूरी को शश म होता है क कैसे भी, कह भी और मुँह मार
सके और जसको ये सब कुछ आसानी से मल रहा होता है उसे ये नया भूत चढ़ जाता है,
यार का भूत। मुझे तब ये बात समझ नह आ रही थी क जब वो ब त सारी लड़ कय से
जब चाहे तब, जतनी बार चाहे उतनी बार पलंग तोड़ यार कर सकता है और वो भी बना
कसी क मटमट और र क के, तो इतना र क लेकर कसी एक को ही, वो या कहते ह
‘स चा वाला यार’ करने क उसे या ज रत है! यार चाहे चकन कतना भी टे ट य न
हो उसे रोज-रोज तो नह खाया जा सकता ना। अब हमारे जैस क तो मजबूरी थी क कोई
सरा मलता ही नह था पर उसे तो इसी काम म महारत हा सल थी। उसे ये सब कुछ करने
क या ज रत थी!
अब ये सब य था मुझे पता नह पर म तब पूरी को शश कर रहा था क कैसे भी हो
वो बस मान जाए और इस बात को भी अपने पछले अफेयस क तरह ही यह छोड़ दे । पर
इसके बाद जो आ, उसके बाद तो कोई उ मीद और रा ता ही नह बचा मेरे पास। मेरे
दे खते-ही-दे खते हमारे पास एक कूट आकर क । जनरली तो हम ऐसे हालात म कुछ
सेकंड् स म ही सामने वाली लड़क को पूरा ताड़ लेते ह या हमारी भाषा म कह तो नचोड़
लेते ह पर वो तो भाभी थी। मतलब क शफा मेरे सामने खड़ी थी।
शफा को दे खकर मुझे ये समझने म यादा दे र नह लगी क साले ने इस सब क पहले
से ही ला नग कर रखी थी। उसे पता था क अगर एक बार शफा, व ध से मल जाए और
फर दोन दो त बन जाएँ, तो फर म लाख चाहकर भी कुछ नह कर पाऊँगा। तभी मेरा
दमाग आने वाले कल के तूफान के बारे म सोच-सोचकर फटने लगा। मुझे अ छे से दख
रहा था क व ध और शफा, मनट म नह , गुजरते हर सेकंड के साथ-साथ अपने र ते को
फेवी वक लगा-लगाकर चपकाए जा रही थ । ऊपर से उनक बात पर रतेश क वो हँसी
उस र ते पर वो कभी न मुरझाने वाले ला टक के सुनहरे गुलाब सजाए जा रही थी। तभी
अचानक ही मुझे आस-पास से आवाज आने लगी क तू तो गया बेटा।
मुझसे अब रहा नह जा रहा था। मने व ध से कहा, “आप लोग बात करो म अभी
आता ।ँ ” और फर म वहाँ से नकल आया। व ध के पूछने पर भी म कुछ कह नह पाया
क म कहा जा रहा ।ँ पर म वहाँ से नकल आया और वहाँ से थोड़ा-सा आगे म एक चाय
क थड़ी पर का और फर कुछ ही कश म पूरी एक सगरेट ख च ली मने। फर एक और
ली और फर उसे जलाकर वह बैठ गया और सोचने लगा।
म सोचने लगा क म इतना परेशान य ? ँ बस एक लड़क क वजह से! ऐसी तो
रतेश म पर हर बार लाता रहता है। पर नह , म परेशान एक लड़क क वजह से नह ।ँ
म परेशान ँ रतेश के लए य क म जानता ँ उसे। म जानता ँ क वो मेरे लए कसी से
भी बना एक सेकंड के लए सोचे भड़ सकता है, चाहे उसे पता ही य न हो क यहाँ तो
खानी ही है। तो फर वो शफा के लए या-कुछ नह कर सकता है? और तब मने ये अ छे
से महसूस कया था क ‘ शफा’ का नाम बताते व उसक आवाज और उसक आँख म
वो ह कापन नह था जो हर बार कसी लड़क के बारे म बताते व उसक आवाज और
उसक आँख म होता था। उस ह केपन क जगह वहाँ आज एक अजीब-सी बचैनी थी।
वहाँ आज एक अजीब ही भारीपन था जो शायद तभी आता है जब कोई आप म गहरे तक
उतर चुका हो। जब कोई आपका ही एक ह सा बन चुका हो।
पर वो ‘ शफा खान’ थी यार। इस नाम का वजन शायद व ध समझ नह सकती थी
पर म और मेरे हालात इसे अ छे से समझ रहे थे। उस पर रतेश क जद और उसका नेचर
मुझे और भी यादा परेशान कए जा रहा था। म भी नया-नया ही यार को महसूस कर रहा
था। उसे जी रहा था। पर माँ कसम अगर बात लट् ठ खाने क हो तो एक ही साँस म ऐसे
100 यार कुबान। ले कन ये तो मेरी सोच थी, पर मुझे रतेश का भी अ छे से पता था क वो
इस कंडीशन म भी यही कहेगा क तू लोड न ले, दे ख लगे यार। कुछ भी य न हो जाए
उसका हमेशा फ स था क ‘दे ख लगे यार।’
तो म वहाँ बैठा-बैठा इन सब बात को उ टा-सीधा कर इधर-उधर कर शायद खुद को
ही कुछ-न-कुछ समझाने क को शश कर रहा था। ले कन अब व ध का कॉल बार-बार आए
जा रहा था, तो मुझे वापस वहाँ जाना ही पड़ा। सच म आज मेरा बलकुल मन नह था
वापस उनके पास जाने का। दल म बस एक ही बात थी क कैसे भी म रतेश को यार म
धम का लेना-दे ना समझा पाऊँ और ये भी क ‘दे ख लगे’ जैसा सच म कुछ नह होता।
“कहाँ गए थे? हम वेट कर रहे थे ना।” व ध ये कहते ए मेरे आते ही मुझसे आकर
लपट गई।
“कह नह बट् टू , यह तो था, तु हारे पास।” मने भी उसे हग करते ए कहा और फर
म शफा से बात करने लग गया। “तो शफा, कैसे आ ये सब? मतलब ये यार। मुझे बताया
नह कुछ इसने कभी। कब से चल रहा है ये सब?”
मेरे ऐसे वहाँ से चले जाने से रतेश थोड़ा-सा चढ़ गया था। शायद मुझसे थोड़ा गु सा
भी था वो। मने भी सोचा क ठ क है न यार अब जो भी है। उसक वाइस है। अब म या
कर सकता ँ इसम! अगर उसक जगह म होता और शफा अगर मेरी गल ड होती तो या
तब वो भी मेरे जैसे ही रए ट करता? बलकुल नह , मुझे पता है वो या कहता। वो कहता
कोई नह यार, तू अभी इ क दे ख बाक सब बाद म दे ख लगे। हाँ मुझे पूरा भरोसा है उस पर
क वो यही कहता।
“ रतेश चाहता था क म र से उसक से टग करवाऊँ और इसी बात के लए वो
रोज-रोज मेरी जान खाने लगा। मुझे भी फर इसक मासू मयत पर दया आ गई। फर इसी
च कर हम दोन क बात होने लग , फर धीरे-धीरे मलने लगे। और फर बस हो गया इस
बु से यार।” शफा ने रतेश के हाथ को अपने हाथ म थामते ए कहा।
“तुम पसंद करने लगी थी मुझ,े म नह । समझी?” रतेश शफा को छे ड़ते ए बीच म
बोला।
“अब ये र के लए इतना पागल था क मुझे भी जलन होने लगी उससे। तो मने
सोचा क य न इसे अपने पास ही रख लू।ँ ” शफा भी रतेश को छे ड़ते ए बोली।
पर काश म शफा को तब ये बता पाता क रतेश र के पीछे पागल नह था, वो
उसक कसी और चीज के पीछे ही पागल था और साथ-ही-साथ ये भी क उस र से
पहले भी उसके जैसी कई र और उसक लाइफ म आ-जा चुक थ , और उन सबके लए
भी वो इसी तरह ही पागल था। शफा को तो ये भी समझ नह आ रहा था क जसे वो खुद
पागल कह रही थी उस पागल पर भरोसा कैसे कर सकती थी वो। शायद कुछ झूठ डेयरी
म क क तरह होते ह, अ छे से रैप कए ए, अ छे से माकट कए ए और उनक मठास
भी गजब क होती है। तो मुझे लगता है उ ह वैसे ही रहने दे ने म र त क भलाई है, र त
क लंबाई है। तो मने भी तब उसे कुछ बताना सही नह समझा। शफा क नजर म जो
रतेश क मासू मयत थी मने उसे वैसे ही मासूम बने रहने दया और शायद तब यही उनके
र ते के लए सही था। मने बस जाते व रतेश को हग कया और कहा, “अ छ वाइस है
भाई। म ब त खुश ँ तुम दोन के लए। और हाँ, तू परेशान मत हो। दे ख लगे जो भी होगा।
म साथ ँ तेर,े हमेशा। चाहे जतने भी लट् ठ य न खाने पड़े।” वो भी बस थ स बोला मुझे
और फर हम सब मेरी उस लट् ठ वाली बात पर जोर से हँस दए। तब रतेश ने मुझसे ये
कहा तो नह पर मुझे कह तो अंदाजा था क वो मुझसे यही सुनना चाहता था, पर सरी
ओर म ये नह समझ पाया क इतना डरते ए भी म ऐसा कैसे बोल गया तब? शायद इसे ही
लोग दो ती कहते ह।
(7)
लड़क को लड़ कय म या पसंद होता है आज तक मने इस बारे म कभी कसी से बात
नह क । पर मुझे व ध से यादा उसके बाल से मोह बत थी। हर बार जब वो मेरी उँग लय
से गुजरते थे तो म रोक ही नह पाता था खुद को। जब वो अपने उन बदमाश और बेकाबू
बाल को सँभालते ए उ ह कभी अपने कान के पीछे तो कभी कसी लचर म रोकने क
नाकाम को शश करती तो उ ह यूँ बेकाबू दे ख मेरा दल 500 क र तार से धड़कने लगता,
मेरे हाम स अपना संतुलन खोने लगते। मेरा दल अपना पूरा दम लगा दे ता क वो इन
हालात म कैसे भी मेरे खून क र तार को सँभाल सके। सबसे बुरी बात तो ये थी क मेरी
उसके बाल से मोह बत वाली बात व ध को भी पता थी और शायद इस लए ही वो भी कोई
मौका नह छोड़ती मुझे परेशान करने का।
हम पछले 4 दन से साथ-साथ थे पर हमारे बीच कुछ ह स और कुछ कसेस के
अलावा अभी तक कुछ भी नह आ था। मने ये सोच रखा था क इस बार कुछ नह । म
नह चाहता था क व ध को लाइफ म कभी भी ये लगे क मने फोस कया था उसे। म नह
चाहता था क उसे कभी भी ये महसूस हो क उसके पास तब कोई और ऑ शन नह था।
सरी ओर म ये भी जानता था क ये मेरे लए सबसे बड़ा मौका है अपने इस व ज नट नाम
के शाप से हमेशा के लए छु टकारा पाने का। पर ये सब जानते ए भी व ध का यार और
उसका वो भोलापन मुझे न जाने कैसे तब रोके ए था! मेरे पास पूरा मौका था और इरादा
भी पर तब एक जंग छड़ी ई थी मेरे दमाग म। ‘ व ध के यार’ और ‘व ज नट क
े शन’ के बीच म। अब तक कुछ भी न कर पाने वाली मेरी े शन मुझे तरह-तरह से ये
समझाने क को शश कए जा रही थी क ये सब सही है क ये भी तो यार का ही एक
ह सा है क मुझे ये मौका शायद फर कभी नह मलेगा क अगर मने अब भी कुछ नह
कया तो व ध मुझे पागल समझेगी।
पर मेरी उस े शन के वो सारे तक जो मुझे ब त हद तक तब सही भी लग रहे थे,
वो सब व ध क उस खुशी के सामने हार गए थे जो उसके चेहरे पर सफ मेरे उसके साथ
होने क वजह से थी। मुझे तब या करना है ये तो नह पता था पर या नह करना है ये
अ छे से पता था। और इन हालात म जब आपक गल ड अकेले म आपके इतने करीब हो,
खुद को रोक पाना कतना मु कल होता है! शायद ये म तब तक आपको समझा ही नह
पाऊँ जब तक आप खुद ऐसी हालात से न गुजरे ह ।
रात के 9:30 क बस थी उसक और हम अपने म को बाय-बाय कहकर टे शन
प ँच गए थे। मने ब त को शश क थी कसी-न- कसी बहाने से उसे कुछ दन और रोकने
क , पर चार दन हो चुके थे और उससे भी बड़ी बात ये थी क उसका भाई भी उसक
कॉलेज म ही पढ़ता था पर उसका कपस अलग होने क वजह से उसका हो टल सरे कपस
म था। ले कन फर भी इतने दन तक उसे कह भी नो टस नह करना, उसके भाई के दमाग
म ‘कुछ तो गड़बड़ है’ का खयाल बड़ी आसानी से पैदा कर सकता था और इसी लए हमारे
लाख न चाहने के बाद भी उसे जाना ही था। ले कन म ये आज तक समझ नह पाया क
हमेशा ही ऐसा य होता है क जसे हम दलो-जान से अपने पास रखना चाहते ह, हम
हमेशा उ ह से बछड़ना होता है।
व ध क बस के जाने क अनाउंसमट हो चुक थी और वो मेरी आँख के सामने से ही
धीरे-धीरे मुझसे र होने लगी थी। जब तक बस चली नह , उसने मेरा हाथ छोड़ा नह और
जब तक बस उदयपुर से बाहर नकली नह , मने भी उसक बस का पीछा छोड़ा नह ।
उसक बस बलकुल मेरे आगे-आगे चल रही थी और म व ध से कॉल पर बात करता आ
अपनी बाइक लए उसके पीछे -पीछे । व ध बार-बार कह रही थी मुझसे क बट् टू चले जाओ
म पर ले कन मेरा दल था क मान ही नह रहा था। कुछ बात और कुछ हालात आपके
काबू म कहाँ होते ह! दे खते-ही-दे खते उसक बस उस रात के अँधेरे म कह खो गई और म
उस सड़क के अकेलेपन के साथ वह खामोश-सा खड़ा रह गया।
मुझे समझ नह आ रहा था क म या क ँ । ले कन अब मेरे लाख चाहने के बाद भी
या हो सकता था! अब सच तो यही था क व ध जा चुक थी और म फर से पहले क
तरह अकेला हो गया था। कुछ दे र वहाँ और कने के बाद बड़ी मु कल से म म पर वापस
आया और बेड पर लेटे-लेटे उन बीते कुछ दन क याद और अपने आज के अकेलेपन क
हक कत से जूझने लगा। पर आपक कब, कहाँ और कैसे लगने वाली है ये पहले से ही तय
है। रात 11 बजे के आस-पास व ध का कॉल आया और उसने बताया क ाईवर ने शराब
के नशे म बस को चरवा घाटे म ठोक दया है। ये सुनकर एक ही पल म मेरी हालत पतली
हो गई। इ क नाम का वो पंछ जो अब तक मुझे नये-नये रंग दखा रहा था वो तुरंत ही कसी
कोने म जाकर छप गया और डर नाम का भूत अपनी पूरी ताकत के साथ मेरे तन-बदन म
जाग उठा। व ध पहली बार कसी को बना बताए कह गई थी और फर ये सब। वो बस
फोन पर ये कहते ए रोए जा रही थी क यहाँ लेने आओ मुझे। मने तुरंत ही उस े व स के
ऑ फस कॉल कया पर वहाँ कसी ने कॉल नह उठाया। म भाग कर उसके ऑ फस भी
गया ले कन वहाँ पर भी कोई नह था।
मुझे समझ नह आ रहा था क म या क ँ , यहाँ बैठे-बैठे म व ध को कैसे सँभालू।ँ
मने बना और व गँवाए रतेश को सब कुछ बताकर उसे म पर बुला लया और फर
कुछ और दो त और उनक बाइ स को साथ लेकर हम सब नकल गए चरवा घाटे क
ओर। एक तो रात का व और ऊपर से चरवा घाटा, ब त ही खतरनाक कॉ बनेशन था
वो। कसी के मरने का पूरा-का-पूरा इंतजाम था यहाँ। हमारे पास तब सँभलकर धीरे-धीरे
चलने का व नह था। हम को शश कर रहे थे जतनी तेज हो सके उतनी तेज बाइ स
भगाने क । उस अँधेरे और खतरनाक घाटे को चीरते ए हम लगभग आधे घंटे म उस बस
तक प ँच गए, ले कन उस बस क हालत दे खकर हम सब क ह काँप गई। मुझे तो यक न
ही नह हो रहा था क व ध ऐसे सही-सलामत मेरे सामने खड़ी है। वहाँ लोग बात कर रहे थे
क ाइवर स हत तीन और लोग मर चुके ह। ये सुनकर म और डर गया और अपनी आँख
बंद करके भगवान को व ध को सलामत रखने के लए ध यवाद दे ने लगा।
ले कन जब तक हम वहाँ प ँचे तब तक वहाँ पु लस भी आ चुक थी। शायद एक
पु लस वाला सारे पैसजस क ल टं ग कर रहा था, शायद वो भी ये कंफम कर लेना चाहते
थे क सारे पैसजस को बस से बाहर नकाला जा चुका है। रतेश दौड़कर उस पु लस वाले
के पास गया और व ध को अपनी बहन बताकर उसे यहाँ से ले जाने का कहकर हमारे पास
वापस लौट आया। और फर हम व ध को लेकर वहाँ से वापस उदयपुर के लए नकल गए।
व ध ब त ही यादा डरी ई थी और बस रोए जा रही थी और म ये समझने क पूरी
को शश कए जा रहा था क ये सब या हो रहा है ये सब या हो गया!
“मने कहा था ना तुम साथ चलो पर तुम नह आए। तुमने अकेला भेज दया मुझ।े ”
व ध इतना बोलकर फर से रो पड़ी। उधर म एक हाथ से बाइक सँभाले ए था और सरे से
मेरी कमर को जकड़े ए उसके हाथ को। पर तभी चरवा घाटे क वो गहराई, या- या
और हो सकता था का सच मेरे कान म आकर अपनी पूरी अकड़ से मुझे सुनाने लगी। हम
सच म खुश क मत थे क व ध को कुछ आ नह । नह तो पता नह या होता, उसके घर
वाले मेरे साथ या करते।
हम सब तब सदमे म थे पर व ध का आज जयपुर जाना कसी भी हाल म ज री था
य क उस ए सीडट क वजह से व ध अपने घर पर बात नह कर पाई थी और चरवा
घाटे म नेटवक न होने क वजह से उसके घर वाले भी उससे कांटे ट नह कर पाए थे। जैसे
ही हम उदयपुर के पास प ँचे और वो नेटवक म आई, उसके फोन पर उसके म मी-पापा
और भाई के मस कॉल के नो ट फकेशन आने शु हो गए और हम पूरा यक न था क इसी
वजह से कल उसका भाई सुबह होते ही उसके हॉ टल जाने ही वाला था। चाहे कुछ भी य
न हो जाए, व ध को कल सुबह से पहले अपने कॉलेज प ँचना ही था और इसी लए हमने
बना कसी सेकड थॉट के टे शन जाकर फर से जयपुर क बस ली। इस बार म भी साथ था
उसके। हम एक ही लीपर म थे पर अब उस हवा म यार से यादा डर और रोने क
सस कयाँ थ , उसे शांत करने के लए, म उसे जतना पॉ सबल था उतना उसे अपने करीब
रखे आ था। बस उसे ये बताने के लए क सब कुछ ठ क है। उसे बस ये समझाने के लए
क मेरे होते ए उसे कुछ भी नह हो सकता।
तो उसे सँभालने के लए म धीरे-धीरे उसके माथे को सहलाने लगा। उसे शांत करने क
को शश करने लगा, ले कन वो इतना डर चुक थी क बना एक पल के बस रोए ही जा
रही थी। उसक ये हालत दे खकर मुझे अफसोस हो रहा था क म कैसे उसे अकेला भेज
सकता था। मुझे भी जाना चा हए था उसके साथ। पर जो होना था वो तो हो चुका था और
अब मेरे लाख अफसोस करने या उसके बारे म तरह-तरह से सोचने पर भी वो बदलने वाला
नह था। उस अफसोस को छोड़कर म बस यही को शश करने लगा क कैसे भी करके उसे
शांत कर सकूँ। उसके डर को कैसे भी थोड़ा ब त सँभाल सकूँ। उधर मेरी इन सब चता
के सरी ओर जैस-े जैसे व बस के उन च क के साथ-साथ आगे बढ़ता गया वो डरा आ
यार भी फर से अपना रा ता बनाते ए हमारे लीपर क उस हवा म अपने वच व को
बढ़ाने लगा।
“शायद म फर कभी तु ह दे ख ही नह पाती बट् टू , शायद फर कभी म तुमसे ये कह
ही नह पाती क म तुमसे कतना यार करती ।ँ ” व ध अचानक ही अपनी लड़खड़ाती
आवाज म ये कहते ए पागल क तरह मुझे चूमने लगी।
म व ध के उस शायद के डर से अपने वजूद क गहराइय तक घबरा गया। म व ध को
खो दे ने के खयाल भर से ही भीतर तक हल गया। म उससे यार करता था और उसे कसी
भी क मत पर खोना नह चाहता था। पर आज म उसे ऐसे ही खो दे ता! ये खयाल दमाग म
आते ही म अपनी समझ, अपना आपा खो बैठा। जे ही पल म उसके चेहरे को अपने हाथ
म लेकर उसे पागल क तरह चूमने लगा। जैसे तब मेरा रोम-रोम ये यक न कर लेना चाहता
था क वो जदा है क ऐसा-वैसा कुछ भी नह आ है उसके साथ। सच क ँ तो तब मेरी
समझ, मेरा यार इस डर को सह ही नह पा रहा था, इसे सँभाल ही नह पा रहा था। शायद
तब यही व ध के साथ भी हो रहा था। जब हमारे शरीर क गम , उस लीपर क ठं ड से दो-
दो हाथ करने लगी और हम दोन रोते-रोते, एक सरे को सँभालते-सँभालते एक- सरे के
और भी यादा करीब आने लगे, तब मुझे पहली बार ये एहसास आ क व ध के शरीर म
एक अजीब-सी महक थी और मुझे इतना तो पता था क वो कसी पर यूम क खुशबू तो
नह थी। वो उसक अपनी खुशबू थी। मुझे पता ही नह चला कब म उसी खुशबू को
खोजते-खोजते, उसके शरीर के एक-एक भाग को महसूस करते-करते उसके ह ठ से उसके
पैर तक जाने लगा। मेरी नाक जैसे-जैसे उसके शरीर को छू ती ई आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे
उसका शरीर भी उतना ही यादा कसता जा रहा था। मुझे उस दन ये पहली बार समझ
आया था क बना दे खे ा के क को खोलना कतना मु कल होता है। मने उस दन उस
लपर म आवाज को एहसास के साथ-साथ अपनी श सयत बदलते दे खा था। सस कयाँ
उस लीपर म पहले भी थी और अब भी, पर हमारे बदलते एहसास के साथ-साथ उन
सस कय क पहचान भी बदल चुक थी। सच क ँ तो ये हालात हम दोन के लए नये थे
और हम दोन को ही ये अंदाजा नह था क ये सब कुछ इस तरह होता है। मने तो इसके बारे
म आज तक सफ दे खा और सुना था पर उन दे खी-सुनी बात से हक कत म उसका असल
एहसास कह यादा खूबसूरत था, चाहे वो बात कतनी भी डटे ल म ही य न थ ।
अब कसे पता था क हम पहली बार अपने होने को इस छोटे से लीपर म महसूस
करगे। फर बस कुछ व म ही हम एक- सरे क पहचान भूलते ए एक- सरे म फना हो
चुके थे। दे खते-ही-दे खते जदगी के इस हसीन त ल म ने हम ज द ही न द के हवाले कर
दया और जब सुबह आँख खुली तब जयपुर हमारे पैर तले था। मने पहले तो व ध को
उसके कॉलेज छोड़ा और फर वापस े न पकड़कर रात तक उदयपुर आ गया। पर अब म
वो पहले वाला अ भ नह था। अब ब त कुछ बदल चुका था मुझम। सबसे बड़ा बदलाव जो
था वो ये था क अब म व जन नह था। अब मेरे समानांतर चलती ये नया, मेरे लए
बेचारा, लाचार, व का मारा, खराब क मत वाला जैसे श द का इ तेमाल नह कर सकती
थी। अब म भी अपने दो त के बीच से स पर अपना ओ प नयन खुलकर दे सकता था और
उ ह अब मुझे झक मारकर भी सुनना था। म खुश था क चलो जदगी के इस सफर म एक
और मील का प थर तो मने पार कर ही लया।
(8)
“अ भनव जी, मेहमान चले गए या?” व ध के जाने के कुछ दन बाद शमा अंकल
ने मुझे छे ड़ते ए पूछा।
“आपको पता था अंकल! मुझे लगा जैसे आपसे छु पाने म म कामयाब हो गया ।ँ ”
मने उनक बात पर स ाइज होते ए कहा।
अब तक शमा अंकल और म अ छे ड जैसे हो गए थे। ए चुअली शमा अंकल
फलॉसफ के रटायर ोफेसर थे और औलाद म उनका बस एक ही बेटा था और वो अभी
आबू धाबी म जॉब करता था। तो कुल- मलाकर घर म आंट , अंकल और मेरे अलावा कोई
और था नह । जब रटायरमट के बाद का व इंसान के चेहरे पर जमी उ क लक र को
और भी गहरा करने लगता है, तो उसके हाथ म बस एक ही चीज बची रह जाती है और वो
है ‘खालीपन’, और उस खालीपन को भरने के लए अंकल को हमसे अ छा टाइमपास कहाँ
मल सकता था! और ऊपर से वो लडलॉड भी थे तो उ ह ना कहने का तो हमारे पास कोई
ऑ शन ही नह था।
“अरे तुम ये य भूल जाते हो क म मकान मा लक ँ तु हारा। और मकान मा लक
का साँस लेने से भी यादा ज री काम यही है क वो हमेशा ये इ वे ट गेशन करते रह क
उनके करायेदार या कर रहे ह, समझे या?”
उनक इस बात पर हम दोन हँस दए। सच क ँ तो अंकल के बना कुछ भी पॉ सबल
नह था। म व ध को अपने म म इतने दन तक रोक पाया था, इसक वजह अंकल पर
मेरा भरोसा ही था। मुझे कह -न-कह ये भरोसा था क अगर कुछ भी उ टा-सीधा आ और
म उसे सँभाल नह पाया तो एक बार के लए तो अंकल सब कुछ सँभाल ही लगे।
“अंकल एक-एक चाय हो जाए, या कहते ह आप?” मने उस माहौल को और म त
करने क सोचते ए उनसे पूछा। पर सच क ँ तो मुझे उनसे कुछ बात करनी थी। मेरे जेहन
म ब त-सी बात थ जो मुझे ब त दन से परेशान कए जा रही थ । म चाहता था क वो
सब बात एक बार अंकल क नजर से भी गुजरे और फर दे ख क या नकलता है बाहर।
“ही य नह , पर आंट ह नह घर म तो बनानी तु ह ही है।” उ ह ने खुद को चाय
बनाने क झंझट से र रखते ए मुझसे कहा और फर कुछ ही व म चाय क चु कयाँ
जुबान पर थी और इधर म भी तैयार था एक और हसीन शाम को अपने नाम लखने के
लए।
“अंकल कल ही गई है वो। म डर रहा था तो आपसे मलवा नह पाया, सॉरी।” मने
उनक इ जत को अपने डर म लपेटकर उनके सामने रख दया।
“कोई बात नह , वैसे भी जब महबूब पास हो तो कुछ और सूझता कसे है! पर यान
रखना बेटा, कह कुछ ऐसा-वैसा मत कर लेना क आगे मु कल हो जाए।” उ ह ने मेरे मजे
लेते ए कहा।
“अंकल कुछ बात करनी थी आपसे। कुछ बात मुझे ब त दन से परेशान कए जा
रही ह, तो if you don’t mind या म आपसे उ ह शेयर कर सकता ँ?”
“अरे हाँ पूछो ना, जतना मुझे पता होगा म ज र हे प क ँ गा। वैसे भी हम बूढ़ के
दो ही रा ीय काम ह, एक तो ान बाँटना और सरा जो बात हम समझ नह आए वो हमारी
सं कृ त के लए खराब है इसका ढढोरा दे श भर म पीटना।” अंकल ने हँसते ए कहा।
“अंकल कसी मु लम लड़क से यार करना मु कल है या?” मने अपने सवाल का
पहला प ा उनके सामने डालते ए कहा।
“नह तो! कसने रोका है तु ह? मु कल तो तब है जब बात उसके बाप को पता चल
जाए। वैसे कसे आ है?” अंकल ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते ए पूछा।
“अंकल वो रतेश क गल ड मु लम है, और जब से मुझे ये पता चला है, मुझम कुछ
तो है जो ब त डरा आ है। मुझे पता नह चल रहा है क ऐसा य है? पर म इतना तो
जानता ँ क अगर वो ह होती तो म इतना डरा आ नह होता। शफा अ छ लड़क है
अंकल। उसम तमीज के साथ-साथ ठहराव भी दखता है। पर फर भी कुछ तो है जो मुझे
बेचैन कए जा रहा है।” मने अपनी बेचैनी और अपने डर को अंकल के सामने दल
खोलकर परोस दया।
“तु हारी बेचैनी अपनी जगह सही तो है। तुम रतेश और शफा के र ते को आज तक
क सुनी ई अपनी हर कहानी से गुजार रहे हो। जसम मूवीज क कहा नयाँ ह, अखबार
क सु खया ह, ह -मु लम क कभी न ख म होती खाइयाँ भी ह। और जब कोई इतना
सफर तय करेगा, तो बेचैन तो होगा ही ना!” उ ह ने अपने ोफेसर वाले पुराने अंदाज म
वापस आते ए कहा।
“अंकल मुझे लगता है क बात बगड़ जाएगी आगे जाकर।” मने फर से अपने डर को
उनके सामने रख दया।
“तो तु ह या लगता है क जब तु हारी गल ड के पापा को तुम दोन के बारे म पता
चलेगा तो वो हँसते ए तु हारी शाद के लए मान जाएँग!े वो खुश होकर मठाइयाँ बाटगे!
नह , वो भी वही करगे जो शफा के पापा करगे।” अंकल ने मेरी उलझन क गाँठे सुलझाते
ए कहा।
“अंकल पर दोन बात म फक है। व ध ह है। अब कैसे समझाऊँ म आपको!”
“तो तुम ये कहना चाहते हो क धम अलग होने से उनक बात और भी यादा बगड़
जाती है।” उ ह ने मेरे सवाल को लयर करना चाहा।
“हाँ अंकल, म यही कहना चाहता ँ। शफा के पापा के लए ये मानना यादा मु कल
होगा व ध के पापा के क पै रसन म। एक सरे धम को अपनाना हमेशा इतना मु कल य
होता है अंकल?”
एक सेकड ईयर का लड़का, एक रटायड ोफेसर के सामने धम और यार-मुह बत
क बात कर रहा था। मेरी ये बात शायद उनके लए बचकानी हो सकती थ । पर उ ह ने कह
से भी मुझे ये लगने नह दया। वो मुझे उसी गंभीरता से सुन और समझा रहे थे मानो जैसे वो
अभी अपनी लास म ह और म उनका कोई टू डट होऊँ।
“अ भनव ऐसा है क कोई भी धम, जात या समाज, चाहे वो कोई भी य न हो, वो
सब एक ब चे के जैसे बड़े होते ह। जब ये पैदा होते ह तब ये ब त ही यादा कमजोर होते
ह, बलकुल एक तुरंत पैदा ए कसी ब चे क तरह। उ ह सँभालने क ज रत होती है, उ ह
दे खभाल क ज रत होती है। उ ह बाक धम क सोच-समझ, बाक समाज के री त-
रवाज , बाक लोग के तक- वतक, व और माहौल के सद , गम , बा रश जैसे कई
मौसम से बचाने क ज रत होती है। उ ह बड़े यार से, बड़े सलीके से वो सब कुछ खलाने
क ज रत होती है जो उ ह बड़ा कर सके, जो उ ह मजबूत बना सके। इतना सब करने के
बाद भी कभी-कभी वो अपने रा ते से भटकने लगते ह। उठने क को शश म लड़खड़ाकर
गरने लगते ह। उस व उ ह हाथ पकड़कर ये सखाना होता है क चलना कैसे है, बोलना
कैसे है, खाना कैसे है, पीना कैसे है। कतना उड़ना है, कहाँ कना है। कहाँ लड़ना है और
कहाँ सँभालना है। शु आत म ये सब काम वो लोग करते ह, ज ह ने उ ह पैदा कया होता
है। बलकुल कसी माँ-बाप क तरह। वो उ ह बड़ा करते ह, उ ह ह मत दे ते ह, उनक
उड़ान तय करते ह, उनक सीमाएँ तय करते ह और जब वो धम, वो जात, वो समाज बड़ा
और मजबूत हो जाता है, तब वो फर उ ह लोग क दे खभाल करने लगता है। बलकुल
एक बेटे क तरह। वो पूरी को शश करता है क वो सब एक साथ रह, ज ह ने उसे बनाया
है, ज ह ने उसे माना है और इसके लए वो लोग के चार ओर अपने वचार , मा यता ,
नयम और री त- रवाज को एक के बाद एक लगातार घेर म जमाने लगता है। एकदम
कसी जलेबी क फड़ क तरह। और वो लोग भी फर इ ह नयम , री त- रवाज म खुद
को, और अपनी आने वाली पी ढ़य को सुर त महसूस करने लगते ह। और अब अगर
कसी नई बात या कसी नई सोच को इसम शा मल करना हो तो उस बात को इन सब घेर
से गुजरना होगा, इन सब घेर क सोच और वचार को मनाना होगा। उस नई बात को हर
एक घेरे पर एक नई लड़ाई लड़नी होगी। लड़ाई बदलाव क , लड़ाई सही-गलत क , लड़ाई
धम से ऊपर इंसान क , लड़ाई बदलते व क स चाई क , उसक ज रत क ।
तो अ भनव जी, बात ये है क एक इंसान को मनाना आसान है, चाहे वो कसी भी धम
या जात-पात का य न हो। पर वो इंसान भी ये जानता है क उसके अकेले के मान जाने से
यहाँ कुछ नह होना है। उसे अपने धम, अपने समाज, अपनी जात म बने रहने के लए उस
बात को फर उ ह परंपरा , री त- रवाज के घेर से गुजारना होगा, उसे उन सब लोग को
मनाना होगा जो उन घेर से जुड़े ए ह। और इतने घेर को पार करना, वहाँ खड़े लोग को ये
बात समझाना, तु हारी सोच से भी ब त यादा मु कल है। तो उस इंसान के लए आसान
रा ता यही है क बदलाव क उस बात को खुद क इ जत से जोड़कर या धम और समाज
के व बताकर हमेशा के लए नकार दया जाए। और अगर गलती से कोई बाप या
प रवार कसी नई बात के लए मान भी जाता है, तो भी वो कभी खुलकर इनके लए आगे
नह आता। इसी लए तुमने दे खा होगा क यादातर इंटरका ट मै रज या इंटर र लजन
मै रज या तो लड़का-लड़क भागकर करते ह या कभी घर वाले सपोट भी करते ह तो वो भी
सफ पीछे से।” अंकल ने अपने ान का पटारा खोलते ए मुझे समझाने क को शश क ।
“तो मुझे या करना चा हए अंकल?” मने फर अपनी उलझन उनक ओर दाग दया।
“अरे, ये रयाँ वैसे भी आजकल कम हो गई ह। और अगर तुम फर भी चाहते हो क
ये बदल, तो तु ह लड़ना तो पड़ेगा इन बात से। पर हक कत यही है क अब लोग समझदार
हो गए ह। वो समझने लगे ह क ये धम, जात और समाज के सब ताम-झाम उनके लए ह,
वो उन ताम-झाम लए नह ।” उ ह ने मुझे एक और चाय का इशारा करते ए कहा।
उनक इस एक और चाय वाली बात ने हम दोन के ह ठ पर वही वाली हँसी बखेर द
जो अ सर अपने महबूब का नाम लेते व उसके आ शक के ह ठ पर दखती है। तब
अंकल ने ब त हद तक मेरी परेशा नय को र कर दया था। वो डर और वो बेचैनी क धूल,
जो जाने-अनजाने मेरे वचार क खड़ कय से अंदर आकर मेरे आने वाले कल के खयाल
पर जमी जा रही थी, उसे उनक बात ने पूरी तरह हटाया तो नह था पर हाँ उसे अ छे से
झटक ज र दया था। मुझे अब भी उस बात का डर तो था, पर दलो- दमाग के कसी कोने
म थोड़ा-सा भरोसा भी जागने लगा था क कुछ आ तो सँभाल लगे यार, इतना मु कल भी
नह है ये।
(9)
कसी महान इंसान ने कहा है क जब तु हारे L*** लगने वाले होते ह तब सबसे
पहले तु हारा दमाग घास चरने चला जाता है और यही मेरे साथ भी आ। मने न जाने कस
पागलपन म शमा अंकल वाला म खाली कर दया। ए चुअली रतेश को अ धकतर शफा
के साथ अकेले व गुजारना होता था और उस व मुझे न चाहते ए भी म छोड़कर
गाडन जाना पड़ता था। अब म, मेरे ही म से कतनी बार बाहर रहता और सरा हम दोन
ये अ छे से जानते थे क मेरे लाख परेशान होने के बाद भी म उसे म के लए कभी मना
नह कर पाऊँगा। तो इस ॉ लम का परमानट हल नकालते ए हम दोन ने मलकर 2
BHK पोशन ले लया था।
वैसे तो रतेश का प रवार उदयपुर ही रहता था, पर वो मेरे साथ भी रट शेयर करता
था। बस रात को सोने ही जाता था वो वहाँ। बड़ा पेस था और हम दोन क ाईवेसी भी।
और वैसे भी व ध तो सफ दो-तीन महीने म एक बार ही आ पाती थी यहाँ, पर दो त का भी
तो यान रखना था। वैसे भी कॉलेज तो जाते थे नह , तो कहाँ पड़े रहते दन भर! पर इस
स के का सरा पहलू ये भी था क यहाँ आने पर हम ाइवेसी और बड़ा पेस तो मल गया
था पर हमने शायद वो आजाद खो सी द थी जो हम शमा अंकल के साथ रहते ए मली
थी और ये बात हम म श ट करने के कुछ दन म ही अ छे से समझ भी आने लगी थी।
“ये कहाँ से लाया तू? और आ या है तुझ? े ” म शाम को म म घुसते ही रतेश को
दे खकर च लाया। पूरा म धुएँ से ठसा-ठस भरा आ था और उसके बीच म फश पर पड़े-
पड़े रतेश आज कुछ नया ही कए जा रहा था। उसके पास कुछ सगरेट्स थ और एक
पु ड़या म कुछ और भी। वो सगरेट के तंबाकू को खाली कर, उस पु ड़या वाली चीज को
उसके अंदर भरे जा रहा था और सरी ओर उसने अपने मुँह म वैसी ही एक सगरेट भी
फँसा रखी थी, जससे वो बीच-बीच म बराबर कश मारे जा रहा था। उसके बहकते शरीर
और गहराती आँख को दे खकर मुझे समझने म यादा दे र नह लगी क वो या था? वो
गाँजा था।
उसे ये करते दे ख तुरंत ही मेरा पारा चढ़ गया। जतनी भी गा लयाँ उस व द जा
सकती थ सब-के-सब दे डाली। पर शायद मेरी गा लयाँ तब उस तक प ँच नह पा रही थ ,
य क तब न तो वो मुझे वापस कुछ बोल रहा था और न ही उसका सर हमेशा क तरह
अपनी गलती मानते ए फश को झाँक रहा था। रतेश क शराब पीने क कपै सट ब त
थी। वो एक ही बार म पूरी बोतल भी पी सकता था, चाहे कतनी भी घ टया ांड य न हो।
उसका शराब पीना मुझे कह -न-कह मंजूर भी था, पर ये गाँजा मेरी समझ के बाहर क बात
थी। उससे भी खराब बात तो ये थी क आज वो मुझे बना बताए ही कुछ ले रहा था।
सच क ँ तो गाँजे से मेरे खून क मुलाकात आज तक कभी ई नह थी, उसक नया
से म एकदम अंजान था ले कन उस व रतेश क जो हालत थी उसे दे खकर मेरे लए ये
मानना ब त ही यादा मु कल था क वो रतेश जैसे बंदे क ऐसी हालत कर सकता है!
रतेश मुझे दे खने के लए अपनी आँख को लगातार उनक औकात से यादा खोलने क
को शश कए जा रहा था, मानो जैसे वो मुझे दे ख ही नह पा रहा हो। यहाँ तक भी ठ क था,
पर तभी मेरी नजर टे बल के नीचे रखी पे सी क उस बोतल पर पड़ी। को ड क! और वो
भी हमारे म म! और वो भी रतेश खरीद के ले आए! ये पॉ सबल नह था भाई! ये तब ही
पॉ सबल था जब उस को ड क म घुलने वाली रम रतेश को ये कहकर मना ले क वो उसे
इस को ड क के पैसे पूरी तरह वसूल करके दे गी।
मतलब क साहब के खून म अभी गाँजा और रम दोन मलकर अपनी पूरी अकड़
दखा रहे थे और जब उनका असर रतेश क औकात से यादा बढ़ने लगा तो उसके शरीर
ने उससे बना पूछे ही उ ह वापस उसके शरीर से बाहर नकालना शु कर दया। वो थोड़ी
ही दे र म वो मट करने लगा। पर तब उसम इतनी ह मत भी नह थी क वो उठकर बाहर जा
सके और फर उसके पेट के अंदर का सब कुछ मेरे म के लोर पर कसी ए ज बशन क
तरह फैलने लगा। मने उसे बड़ी मु कल से उठाया और बाथ म म छोड़ आया, और फर
वापस आकर म क सफाई करने लगा।
रतेश क हालत धीरे-धीरे बगड़ती जा रही थी, ले कन वो ये बता भी नह पा रहा था
क उसे हो या रहा है। म भी ये सब कुछ पहली बार दे ख रहा था, तो मेरे लए भी ये फैसला
लेना मु कल था क अब क ँ या। तभी जो बाक था वो भी उसने कर दया, साला मुझे
पकड़कर पागल क तरह रोने लगा।
रतेश टफ बंदा था, ट पकल मद टाइप। पर नशे ने शायद उससे वो सब कुछ छ न
लया था जो उसने इस नया से, अपने आस-पास के लोग से लया था, यानी क दखावा।
अब वो कसी ब चे क तरह हरकत कए रहा था, कसी ब चे क तरह रोए जा रहा था।
उसके रोने ने मुझे थोड़ा सुकून तो ज र दया था, य क अ सर वो रोने के बाद शांत हो
जाया करता था। पर शायद कुछ कायदे और कानून सफ शराब क नया के लए होते ह,
गाँजे के लए नह । रतेश ने इतने नशे के बाद भी अभी तक पूरी तरह से हार नह मानी थी,
वो अभी भी अपनी ओर से पूरी को शश कर रहा था खुद को सँभालने क , जैसे हम अ सर
शराब पीने के बाद करते थे। पर आज उसक एक भी चलने वाली नह थी। एक तरफ म
उसे सुलाने क को शश कर रहा था तो सरी ओर वो बार-बार उठने क , जससे क वो मुझे
ये दखा सके क सब कुछ ठ क है, क वो इसे भी हडल कर सकता है। सच क ँ तो मुझे
रतेश पर पूरा भरोसा भी था क जब बात नशे क हो तो वो कुछ भी हडल कर सकता था,
मगर शायद गाँजा उसने पहली या मै स सरी बार लया था। तो ये लड़ाई नई थी उन दोन
के बीच और रतेश को थोड़ा व चा हए था उस गाँजे के दाँव-पेच सीखने के लए। इसी
बीच वो उठा और मेरे कंधे पर अपना सर रखकर बैठ गया। म भी धीरे-धीरे उसका सर
दबाने लगा, या पता शायद इससे ही उसे थोड़ा-सा आराम मले।
“भाई तुझे पता है आज या आ?” रतेश अपनी लड़खड़ाती ई आवाज म बोलने
लगा।
“नह तो यार, यही तो पूछ रहा ँ म कब से। बता भाई या आ है तुझ? े ” मने उसे
सँभालते ए पूछा।
“उसने मुझे मना कर दया यार।”
“ या मतलब है तेरा? तेरा और शफा का ेकअप हो गया या?”
“अरे नह यार, उसक कहाँ इतनी औकात क मुझसे ेकअप करे। आज उसने मुझे
से स के लए मना कर दया भाई। आज पहली बार कसी लड़क ने मुझे मना कया है और
वो भी उसने जससे म स ची वाला यार करता ।ँ तू तो जानता है यार, उसके लए मने सब
कुछ छोड़ दया। नह तो तेरा भाई रोज नई लड़क ला सकता है।”
“हाँ यार जानता ँ म, पर या आ जो उसने ऐसा कहा?” मने व और हालात क
नजाकत को समझते ए उसक बात को ऊपर रखते ए कहा और वैसे भी हर समझदार
दो त ये जानता है क नशे के बाद सामने वाला हमेशा सच ही बोलेगा। तब आप कोई जुरत
नह करगे उसे गलत सा बत करने क , चाहे वो खुद को ओबामा ही य न कहे। आप बस
‘हाँ’ और ‘तू सही है भाई’, इ ह श द का इ तेमाल करगे। इसे दो ती म इ जत दे ना कहते
ह और म तब वही कर रहा था।
“वो कहती है क म उसका प त नह ँ।” रतेश ने अपनी आवाज को मायूसी क
चादर म लपेटते ए कहा।
“अब या मतलब है यार इसका क तू उसका प त नह है! मतलब क शाद के बाद
ही वो ये सब कुछ करेगी या?” मेरी सोच और सहम त का तराजू रतेश क ओर झुक
गया।
“वही तो यार! ये या बात ई? या म श ल से चो दख रहा ँ उसे, या फर कोई
उ लु। कुछ भी बके जा रही थी और वो भी बेमतलब।” रतेश क आवाज फर उसके
आँसु के खारेपन म भीगने लगी।
ये बात गलत थी, ब त ही यादा गलत। कम-से-कम म तो इस बात को नह पचा पा
रहा था। आज हम उस दौर म ह, जब कॉलेज के स जे ट् स से यादा पॉन वी डयोस क
कैटगरीज ह हमारे पास। अब तो ये हालत है क कसी पॉन साइट पर जाने से पहले, एक
पेपर पर पूरी ल ट बनानी पड़ती है क कस पॉन टार को दे खना है और कसे छोड़ना है!
और इस दौर म कोई लड़क अगर ऐसी बात करे क म तो शाद के बाद ही सब कुछ
क ँ गी, तब तो सफ बीन बजाकर नाचना और नचाना ही बाक रह जाएगा हम लड़क के
पास।
“अरे हटा यार, ऐसी ब त-सी आती-जाती रहती ह। तू माट बंदा है यार, कहाँ कमी है
तुझ!े ” म अपने दो त के आ मस मान को सहारा दे ते ए बोला।
“नह यार, म उससे यार करता ।ँ तू लीज ऐसे मत बोल। अगर म व ध के बारे म
ऐसे बोलूँगा तो तुझे कैसा लगेगा?”
वो तब बलकुल कसी ब चे क तरह बात कर रहा था और मुझे उसक बात पर धीरे-
धीरे हँसी भी आने लगी थी। मुझे तो यहाँ तक लगने लगा था क उसक इन हरकत पर व
भी खुलकर हँसना चाहता था, पर शायद ये बात हम दोन अ छे से जानते थे क नशे के बाद
सामने वाले पर हँसना दो ती के ल-बुक के खलाफ था।
“ओके भाई सॉरी, वो मान जाएगी तू चता मत कर। तू ये बता क ये गाँजा कहाँ से
लाया और कब से ले रहा है तू इसे?”
“यार वो मेरा दमाग खराब हो गया था शफा क बात सुनकर। तो जब उसे छोड़ने म
कॉलेज गया तो र व ने पला दया यार। मेरा भी दमाग खराब था तो मने मना भी नह कया
उसे और ऊपर से जो उसके पास बचा था वो भी खरीद के ले आया।” उसने मुझे सामने
टे बल के नीचे रखी एक और पु ड़या दखाते ए कहा।
“सही है यार तेरा! मुझे छोड़ के अकेला ही शु हो गया!” मने उसे छे ड़ते ए कहा।
“भाई ये सब सेहत के लए खराब होता है। म तुझे ये सब नह लेने ँ गा और कभी तूने
मुझे बना बताए इसे लेने क को शश भी क तो तेरी मार भी द जाएगी ये याद रखना तू।”
रतेश तुतलाती-सी आवाज म मेरे गाल को सहलाते ए बोला।
उस दन रात भर रतेश ऐसी ही बचकानी-सी, बना सर-पैर क बात करता रहा और
न जाने कौन-कौन सी बात याद कर-करके बेमतलब ही मुझसे लपटकर रोता रहा। उसे ऐसे
रोते दे खना, उसे ऐसी बात करते सुनना नया ज र था मेरे लए पर सच क ँ तो उसक ये
हरकत एक अजीब-सी खुशी भी दे रही थ मुझे, य क मुझे ये अ छे से याद था क कसी
महान इंसान ने कहा है क दो ती क न व म मजबूती के लए कभी सीमट नह लगता, वहाँ
लगते ह हमारे यार के मासूम से आँस।ू और आज वही आँसू रतेश पूरी मासू मयत के साथ
हमारी यारी क न व म गरा रहा था। उस दन तो सच म हद कर द उसने, पूरी रात यही
तमाशा जारी रखा। साला एक तो वो खुद भी नह सोया पूरी रात और सरा उसने मुझे भी
नह सोने दया। करीब सुबह के 3-4 बजे के आस-पास सोया होगा वो और उसके बाद
थक-हारकर म भी सो गया।
“रात को कौन रो रहा था?” अगली सुबह आंट , मतलब क नई लडलाड ने अपना
मौचा सँभालते ए पूछा।
“कोई भी तो नह आंट ! य आपको कसी क आवाज आ रही थी या?” मने
हमेशा क तरह भोला बनने क को शश क ।
“दे खो, ये सब फालतू काम यहाँ नह चलेगा। यहाँ रहना है तो सही से रहो।” आंट ने
एकदम सी रयस मोड म आकर कहा।
म चुप-चाप मेरी ओर उठाई गई उनक उस उँगली और गु से से उठते- गरते उनके
ह ठ को दे खता रहा। शायद म शमा अंकल क तरह उनसे भी ‘डर गए या? म तो मजाक
कर रही थी’ जैसे श द का वेट कर रहा था। पर मेरी ये गलतफहमी ज द ही टू ट गई जब
आंट अपनी बकवास ख म करके अंदर चली गई और म वह अकेला, खामोश खड़ा रह
गया। मुझे उस दन ये पहली बार लगा क अब यहाँ मु कल होने वाली है। पर म करता भी
या! रतेश को वैसे भी कुछ बताने का कोई फायदा नह था, य क उसका जवाब मुझे
पहले से ही पता था क लोड य ले रहा है, दे ख लगे न यार। हमने शायद खु शय और
आजाद के उस छोटे से घर को छोड़कर ये बं दश का महल ले लया था। पर अब जो हो
गया था वो तो हो गया था। मने जैसे-तैसे खुद को समझाया क कोई बात नह अ भ, चलो
कुछ और दद यार के नाम, कुछ और दद दो ती के नाम।
***
“अ भ, रतेश कुछ बोल रहा था या तुझ?
े ” कुछ दन बाद कॉलेज म शफा ने मुझसे
पूछा।
“नह तो, य या आ?”
“यार वो कुछ दन से सही से बात नह कर रहा है मुझसे।” उसने उदास होते ए
कहा।
“मतलब, कुछ आ है या तुम दोन के बीच? तुम बात कर सकती हो मुझसे अगर
चाहो तो। शायद तु हारी बात म बेहतर तरीके से समझा पाऊँ उसे।” मने दे वर होने का फज
नभाते ए कहा।
“वैसे तो मुझे अ छे से पता है क तु ह सब पता है। पर फर भी, यार मुझे वो सब कुछ
सही नह लगा तो मने मना कर दया उसे। और इसी बात को अपनी इ जत से जोड़कर वो
नाराज है मुझसे।” शफा म कट न क कॉनर वाली सीट पर बैठने का मुझे इशारा करते ए
कहा और खुद काउंटर पर समोसे लेने चली गई।
“ओ ह, तो ये वाली बात है। दे खो लड़क के साथ यही द कत है, कुछ बात को वो
सीधा अपनी इ जत पर ले लेते ह। पर ड ट वरी यार, वो मान जाएगा।” मने उसे समझाते
ए कहा।
“ म, शायद।” वो अपने समोसे को चटनी म घुमाने लगी।
“पर शफा, यार एक बात मुझे भी थोड़ी अजीब-सी लगी। यार तुम फुल ऑन वो या
कहते ह, व के साथ चलने वाली लड़क हो। तुम आज के व को समझती हो, व के
साथ ढलते र त क ज रत को समझती हो, फर ये सब य ? मतलब क ये सब तो
नॉमल है न यार! वैसे ही जैसे समोसे के साथ चटनी होती ही है।” मने अपनी ही हो शयारी म
उसे सामने लेट म पड़ा समोसा दखाते ए कहा।
“मतलब क से स ना? म, सही है। पर वाद तो हम समोसे का दे खते ह अ भ,
चटनी का नह । हम कह से समोसा इस लए लेते ह, य क वहाँ का समोसा अ छा है।
इस लए नह क वहाँ क चटनी अ छ है।” वो मेरे ही अंदाज म मुझे जवाब दे ने लगी।
“पर तुम तो जानती हो क चटनी के बना समोसा अधूरा है, यही परफे ट कॉ बनेशन
है। हर कोई समोसे के साथ चटनी सोच के ही आता है।” मने बात आगे बढ़ाई।
“तो मने कब कहा क ये गलत है। मगर तुम ये भी तो सोचो क अगर तुम कसी शॉप
पर जाकर समोसा माँगो और वो तु ह समोसा दखाकर लेट म सफ चटनी दे दे , तो फर
तुम या करोगे?” उसने अपनी लेट म रखी चटनी मुझे दखाते ए मुझसे पूछा।
“ वाइंट है यार! गा लयाँ ँ गा साले को और या! कोई चू तया थोड़ी न ँ म क समोसे
क जगह चटनी खाऊँगा!”
“वही बात यहाँ है अ भ, मुझे से स से कोई द कत नह है और म जानती ँ क ये
सब आजकल नॉमल है। रयली यार, ये सब मेरे लए भी नॉमल है। पर यार कोई मुझे
समोसा दखाकर लेट म सफ चटनी नह परोस सकता। मतलब क यार क बात करके,
उसक जगह सफ से स को नह रख सकता। ये गलत है मेरे लए और म अपने से फ
र पे ट के साथ सफ इस लए जबद ती नह कर सकती क मेरा वाय ड ये चाहता है या
आज का व ये चाहता है। जब मुझे खुद ये ज री लगने लगेगा, तो कसी को मुझे कुछ
कहने और कुछ समझाने क ज रत ही नह होगी। सब यूँ ही हो जाएगा यार, तु हारे उसी
नॉमल क तरह। और सच म अ भ, मेरे ऐसे कोई स नह ह क शाद के पहले से स
नह , इसके साथ नह , उसके साथ नह और फलाना-ढे मका। बस मुझे ये सही लगना
चा हए, मुझे नॉमल लगना चा हए। और जब तक ये नह होता, म ये नह कर सकती यार।
इससे कोई फक नह पड़ता क सामने मेरा वाय ड है या प त। और मेरा यार इतना
कमजोर भी नह हो सकता क उसे उठने और खुद को सँभालने के लए इस से स नाम के
सहारे क ज रत पड़े।” शफा ने अपने दल क बात पूरी बेबाक से मेरे सामने रख द ।
बात नॉमल है, बात अभी के ड म है, ये काफ नह है। बात हम नॉमल लगनी चा हए,
हमारे उन एहसास को नॉमल लगनी चा हए जो रोज हमारे आ मस मान को स चते ह।
हमारे उन वचार को नॉमल लगनी चा हए जो हमारी पहचान बनाते ह। और अगर ऐसा नह
है तो आपके साथ ‘रेप’ हो रहा है। ये व और आपक कमजो रय पर नभर करता है क
आपका रेप कोई और कर रहा है या आप खुद। जहाँ तक म समझता ँ यादातर व तो
हम अपना रेप खुद ही कर रहे होते ह। मेरे यहाँ ‘रेप’ का मतलब सफ शारी रक जबद ती
नह ह, वो सब काम जो आप बना अपनी मज सफ कसी के दबाव या व के दबाव म
करते ह, तब आप रेप कर रहे होते ह। आप रेप कर रहे होते ह खुद का, अपनी ह का,
अपनी पहचान का और फर धीरे-धीरे आप अपनी जदगी क सबसे क मती चीज खो दे ते
ह। आप खुद को ही खो दे ते ह। मुझे यक न है क हमम से यादातर लोग आज इसी एक
चीज को ढूँ ढ़ रहे ह, हम सब आज कह -न-कह खुद को ही ढूँ ढ़ रहे ह।
“कुछ बोलो भी, चुप य हो गए अ भ?” शफा ने मुझे अपनी खयाल क नया से
बाहर नकालते ए कहा।
“तुम सही हो यार। बात हम सही लगनी चा हए, हम नॉमल लगनी चा हए। लोग और
व को सही लगने से कुछ नह होता।” मने उसक बात को अपनी जेहन म एक साफ-
सुथरी जगह दे ते ए कहा।
“और कौन कमब त इस जवानी म से स को ना कहेगा यार! इसके जैसा और है ही
या इस जहान म!” उसने हँसते ए कहा।
उसक इस बात ने मेरे दमाग म उसक सोच को लेकर जो सवाल थे, उनको लात
मारते ए ड ट बन का रा ता दखा दया। उसने मुझे बताया क उसूल के बना र ते कुछ
भी नह ह, चाहे व और हमारी सोच जतना चाहे उतना नया बनकर य न आ जाए। कूल
वाय ड या गल ड होने का मतलब ये नह है क जब भी सामने वाले का मन कया या
सामने वाले को नाराज दे खा, तो खोलकर सो गए। उसने मुझे बताया क जस बात का हम
सब ह वा बनाए ए थे, वो तो बस फुद् -सी बात थी उसके लए। बशत वो बात उसे नॉमल
लगे।
आज जब मेरी सोच क परत शफा क बात क धार से कटने लगी, तो मुझे मेरी सोच
म एक नई-सी ही रौशनी दखने लगी या यूँ क ँ क उसक बात म मुझे आज क औरत
दखने लगी। इन औरत को अब समाज और री त- रवाज का पुराना ठरा दखाकर डराया
नह जा सकता था, इ ह ‘तुम औरत हो, अपनी हद म रहो,’ कहकर दबाया नह जा सकता
था, इ ह अब व क चमक दखाकर बहलाया नह जा सकता, इ ह अब कसी भी छलावे
से फुसलाया नह जा सकता। आज शफा, रतेश क गल ड के कटै गरी से नकलकर मेरी
दो त क कटै गरी म आ गई थी।
“ शफा, लव यू यार!” मने अपनी बात म हँसी का तड़का लगाते ए उससे कहा।
“ओ ह! लव यू टू अ भ!” उसने भी उसी हँसी के साथ जवाब दया।
(10)
कसी इंसान को चाहे साल भर कोई पूछे या न पूछे, पर भगवान ने एक दन उसक झोली म
ऐसा डाला है जब अचानक ही सब लोग उसे इ जत दे ने लगते ह, उसक खैर-खबर लेने
लगते ह। एक ओर जहाँ चकन और शराब के भूखे भे ड़ये उसक ओर एक उ मीद भरी
नगाह से ताकने लगते ह तो सरी ओर उस दन वो खुद भी इसी उ मीद म रहता है क
आज तो उसके साथ कुछ तो खास होने वाला है, क शायद आज भगवान उसपर थोड़ा
यादा मेहरबान होने वाला है। अब कुछ हो या न हो, भगवान उस पर मेहरबान हो या न हो
ये तो व और उसक क मत क बात है, पर उस दन बंदा सही म खुश रहता है और
उसके साथ-साथ उसके दो त भी।
12 नवंबर, मेरा बथडे और इस दन को खास बनाने क हमारी तैया रयाँ लगभग पूरी
हो चुक थी। ब त दन क खोजबीन के बाद एक नया और महँगा कोस ढूँ ढ़ लया गया था
जो आने वाले दन म मेरी बेरोजगारी को कम करेगा और मेरी जॉब हं टग म हे प करेगा।
पर ये सब तो सफ बात थ , जसे मुझे पापा को म खन लगा-लगाकर समझानी थ और
उस कोस क फ स के पैस से अपने बथडे क पाट सजानी थी।
उस कोस के इ पॉटस क ऐसी और भी ब त सारी बात पापा को आज क बेरोजगारी
का डर दखा- दखा के अ छे से समझा द गई थ और ये भी क अ लाई करने क ला ट
डेट 10 नवंबर है। सादे श द म क ँ तो मेरा बक अकाउंट, पॉकेट मनी, पेशल बथडे भ ा
(जो बहन और म मी के पॉकेट से आता था) और उस कोस क फ स के पैस से फुल था।
वैसे भी कोई लड़का जब एक लड़के से एक ल डा बनता है तब उसका सब कुछ बढ़ जाता
है, जैसे उसका कॉ फडस, उसके र क लेने का टे मना, उसके झूठ बोलने क कपै सट
और उसके अकड़ क डे सट और म भी तब उसी दौर म था, तो ये पाट बड़ी होनी ही थी।
और वैसे भी इस साल म व ज नट के अपने साल पुराने शाप से आजाद आ था, तो एक
शानदार से ल ेशन तो बनता ही था।
तो इस महीने पूरी को शश क गई थी क मकान माल कन से बलकुल न उलझा
जाए। तो जब भी मौका मला, “हाँ आंट , आप सही ह, हमारी ही गलती है”, “आज आप
बड़े े श लग रहे हो आंट ”, “आंट आपक ये साड़ी बड़ी शानदार है, कहाँ से ली” जैसे
ब त सारे जुमल को दल खोलकर इ तेमाल कया गया था। सरी ओर, पूरे महीने आंट
को ‘ये उदयपुर क बे ट डश है’ बता-बताकर बड़े यार से पास के ठे ल का सब कुछ खला
दया गया था। उससे भी बड़ी बात तो ये थी क इस पूरे महीने आंट के उस लाचार बेटे को
म मै स भी पढ़ाई गई थी, वो भी ये जानते ए क मै स से उसक DNA म चग कभी हो
नह सकती। कुल- मलाकर ऐसा कुछ भी बाक नह रखा था, जो कया जा सकता था।
11 नवंबर, सुबह के 4:35 ए थे। आज म ज द उठ गया था, इस लए नह क
अनुलोम- वलोम करना था पर इस लए क टे शन जाना था, व ध आ चुक थी। पर मेरे जैसे
कुंभकरण के लए इतनी सुबह-सुबह इतनी अ छ न द को छोड़कर कह बाहर जाना ऐसा
था, मानो ज त क प रय क गोद छोड़कर म चुड़ैल क लो रयाँ सुनने के लए धरती पर
आ गया। ले कन उन कुछ पल के लए तब म अपना कुछ भी दाँव पर लगा सकता था, न द
तो ब त ही यादा छोट चीज थी। हाँ, वही पल जब भीड़ म मेरी नजर पहली बार उसे
खोजगी, वही पल जब मुझे दे खकर उसके हाथ से पहले उसके ह ठ अपनी बाँह फैलाने
लगगे, वही पल जब उसके मेरे पास आने पर उसके शरीर क वो पागल कर दे ने वाली खुशबू
मेरे रोम-रोम को बावला कर दे गी, वही पल जब इतने दन बाद एक बार फर से मेरी
उँग लयाँ मदम त होकर उसके बाल म फसलगी, वही पल जब दमाग सब कुछ छोड़कर
सफ मेरे टे टॉस ोन लेवल को सही करने म लग जाएगा, और म, उस व क गदन पर
अपना पैर रखकर व ध क ह को लो मोशन म अपनी ह से जोड़ने लग जाऊँगा। इन
कुछ पल के लए म सच म कुछ भी कर सकता था, तो म प ँच गया टे शन।
आज तक के मेरे सफर और शराब से बढ़ती दो ती ने मुझे इतना बेशरम तो बना ही
दया था क दलो- दमाग ने आस-पास के लोग को, लोग समझना ही छोड़ दया था। तो
मने उसे अपने पास आते ही वह टे शन पर ही अपनी बाँह म भर लया। उसक उस
मदहोश कर दे ने वाली खुशबू और उसके शरीर म बहती उस गमाहट ने हमारे चार ओर एक
ऐसा औरा बना दया, जहाँ आँख खोलकर कुछ भी दे ख पाना मेरे लए संभव ही नह था।
मुझे लगने लगा जैसे म बादल क गोद म लेटा आ ,ँ जैसे म अचानक ही कसी शू यता म
खो गया ।ँ तब न मुझे अपना शरीर महसूस हो रहा था और न ही आस-पास क नया।
तो कुछ दे र मुझे वैसे ही सँभालने के बाद वो कहने लगी, “आस-पास लोग दे ख रहे ह
बट् टू ।” पर म उसे ये कैसे समझाता क बंद आँख से नया कहाँ दखती है और जब
आपक मोह बत आपक बाँह म हो, तो कोई गधा ही होगा जो आँख खोलकर कुछ और
दे खेगा। तो मने उसक झझक को इ नोर कर दया और कुछ दे र वैसे ही, वह उसक बाँह
म का रहा।
“आपका हो गया हो तो चल।” व ध ने मेरी गदन को बड़े हौले से चूमते ए कहा।
“ को ना थोड़ी दे र। कहाँ जाना है इतनी ज द तु ह!” मने उसक जाने वाली बात को
टालते ए कहा।
व ध मुझे जानती थी। वो मेरी आदत , मेरी हरकत को मुझसे भी बेहतर समझती थी।
और वो ये भी जानती थी क अब ऐसी हालत म बस उसका कस ही मुझे उससे अलग कर
सकता है। तो उसने बना और व गँवाए अपने ह ठ को मेरी गदन से उठाकर मेरे ह ठ पर
रख दया। दे खते-ही-दे खते हमारे वो बदमाश ह ठ बना कसी क परवाह कए एक- सरे
को आ ह ता-आ ह ता भगाने लगे, धीरे-धीरे एक सरे क गहराइय म खोने लगे।
“दे खो यहाँ तु हारी ये र त नह चलेगी।” मने उसके ह ठ के मीठे समंदर से बाहर
नकलकर उसके ही नशे म डू बती अपनी नजर से उसे दे खते ए कहा।
“ओ ह!! ऐसा या!” वो बाइक पर बैठते ए बोली।
“ म…” मने उसे अपने और करीब ख चते ए, बाइक पर जतना हो सके उतना
अपने पास बैठाते ए कहा।
“तो जनाब या हाल है आपके?” व ध ने बाइक क बढ़ती पीड के साथ-साथ बढ़ती
ई उस ठं डक को थोड़ा-सा कम करने के लए अपने हाथ को मुझसे लपेटते ए कहा।
“अब तुम आ गई हो ना, तो म त ँ।” म उसके ठं डे हाथ को थोड़ा गम करने के लए
अपने एक हाथ से उ ह रगड़ने लगा और फर म पर जाते ही हमने खुद को ब तर और
कंबल के हवाले कर दया।
***
“बथडे बॉय, उठ साले!” शायद दो-तीन घंट क न द ही पूरी ई होगी हमारी क
रतेश बाहर से च लाने लगा।
मुझे आज तक ये समझ नह आया क ये न द के उस फाउंडेशन का असर होता था,
जसे रात का अँधेरा और चाँद क चाँदनी मलकर बनाती थी या फर सुबह क ओस म
नहाई उस रौशनी के मेकओवर का क व ध सबसे यादा खूबसूरत न द से उलझते ए
लगती थी। जब वो आधी न द के पास होती थी और आधी मेरे पास। उसे वहाँ छोड़कर
उठना, उससे यूँ बेवजह र होना मेरे लए सच म ब त ही यादा मु कल होता था। दल
यही कहता रहता क कतना कुछ मस कर ँ गा म अगर अभी यहाँ से उठ गया तो। उसक
वो मासूम-सी करवट, जो खामखा हम दोन को और पास ले आएगी, हमारे नाक क वो
सुबह-सुबह वाली बचकानी-सी लड़ाई, उसका वो नॉट वाला पहला गुड मॉ नग, वो बाहर
क ठं ड को ठगा दखाते हमारे कुछ ह स और वो बना श कए ए कुछ बासी पर मदहोश
कर दे ने वाले कसेस। या ये सही था क इतना कुछ छोड़कर कोई उठ जाए, और वो भी
बस इस लए क उसका एक नासमझ दो त बाहर खड़ा होकर बेवजह, बेव च लाए जा
रहा हो। पर ये दो त नाम क बीमारी होती ही ऐसी है। साले को पता था क म कहाँ ँ और
कसके साथ ,ँ इसके बावजूद भी न जाने या आफत आ पड़ी थी उसपर क वो इतनी
सुबह बाहर खड़ा-खड़ा अपना गला फाड़े जा रहा था।
“बोल भाई या लुट गया है तेरा जो इतना हंगामा मचा रखा है तून? े ” म दरवाजा
खोलकर गु से को अपनी आँख पर चढ़ाते ए बोला।
“भाई वो दन याद है या तुझ? े ” उसने अपने चेहरे हर शैतानी हँसी लाते ए मुझसे
पूछा।
“यार तेरा दमाग खराब है या! अभी ही तुझे टाइम मला ये सब बकवास करने का!
और तू इतनी ज द यहाँ कर या रहा है? और कस दन क बात कर रहा है तू?” मने
चढ़ते ए उससे पूछा।
“वही दन भाई, जब म म म शफा के साथ था और तू खड़क से ला टक के
ड पोजल अंदर फक रहा था। और वो या कह रहा था तू उस दन? क अगर कुछ कर
पाए तो ए वडस के लए इसम थोड़ा सा भर दे ना, उसे बाद म अ छे से ले मनेट करवाकर
याद के तौर पर म म सजा लगे।” उसने पुराने द तावेज को पलटते ए कहा।
“तो या? तुझे आज का ही दन मला उसका बदला लेने के लए? भाई यार छोड़ न
पुरानी बात, मेरा बथ डे भी है आज रात। इतना तो कर ही सकता है न तू मेरे लए। तेरे ब च
को आ लगेगी मेरी यार।” मने लगभग भीख माँगते ए उससे कहा।
“ना …. तुझे भी साला पता चलना चा हए क कैसा लगता है जब कोई आपके यार के
सामने, आपके पेशल मोमट् स म आपको परेशान करता है। म नी जाना यहाँ से, चाहे कुछ
भी य न हो जाए।” रतेश ने अपनी मुंडी को ऐसे हलाते ए कहा जैसे कोई बड़ा तीर मार
दया हो।
“जूता मा ँ गा साले, यहाँ से भाग नह तो!” मने फर गु से के रंग को अपनी आवाज
और अपनी आँख म चढ़ा लया।
“मार के दखा, आंट को कह न ँ क जो अंदर है वो तेरी बहन नह है।” उसने ऊपर
आंट के म क ओर अपना मुँह करते ए मुझे अपना रामबाण दखाया।
म लेते समय आंट को एक टोरी सुनाई गई थी क मेरी दोन बहन उदयपुर ही
पढ़ती ह और वो अ सर म पर आती-जाती रहगी। और वो दोन बहन व ध और शफा
थ।
“भाई चाहता या है तू?” मने खुद को पूरी तरह से उसके सामने सरडर करते ए
उससे पूछा।
“चल साले! तेरा बथ डे है आज तो तुझे माफ कया। पर आज क सुबह इतनी नॉमल
भी नह होनी चा हए तेरे लए। बाहर आ तेरे लए कुछ है मेरे पास।” उसने हँसते ए कहा।
अब म उसे ये कैसे समझाता क व ध के साथ मेरी कोई भी सुबह कभी नॉमल नह
होती। पर मेरा पा ट मुझे ये साफ-साफ दखा रहा था क वो ऐसे यहाँ से जाने वाला नह
था। तो उसके सामने सरडर करके, उसक हर बात मानने के अलावा मेरे पास कोई और
चारा भी नह था।
“ क आता ।ँ ” मने उससे हताश होते ए कहा।
मुझे पता था क रतेश को यहाँ से भगाने के लए म अब कुछ नह कर सकता था। तो
वापस म म जाकर मने अपने कपड़े पहने और व ध को ‘ रतेश आया है’ बताने के लए
उसके पास गया। पर वहाँ उसके चेहरे पर बखरे उसके उन बाल क एक-एक को शका
आज अपने पूरे मूड म थी क आज हो जाए, दे ख क कौन जीतता है, दो ती या यार। मने
उसके बाल को सहलाते ए उ ह उसके कान के पीछे , अपनी उँग लय क लोरी सुनाकर
सुला दया और फर उसके माथे को चूमते ए उससे कहा, “ बट् टू रतेश आया है, म आता
ँ थोड़ी दे र म।”
तभी उसने बना अपनी आँख खोले ही मेरे चेहरे को खोज लया और मुझे अपनी ओर
ख चकर अपने पास ही सुला दया। उसके हाथ धीरे-धीरे मुझे अपने आगोश म लपेटते जा
रहे थे जैसे वो मुझपर अपने हक को जताना चाहते ह और म उस हालत म बस अपनी
दो ती को अपने यार के सामने हारते ए दे खे जा रहा था।
“ठ क है, पर ज द आ जाना।” उसने मेरे हाथ को चूमते ए कहा।
“जाना कहाँ है बे?” म बाहर आकर रतेश से बोला। ले कन इस बार मेरी आवाज म
गु सा और चढ़ दोन बराबर अपनी जगह सँभाले ए थ ।
“चल तो, तेरे लए स ाइज है।” रतेश ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते ए कहा और
फर हम जैसे ही मेन गेट के बाहर नकले तो दे खा क घर के बाहर एक कार खड़ी थी और
उसके पीछे लखा ‘जय अंबे’ च ला- च लाकर ये कह रहा था क म रतेश के पापा क
कार ।ँ
“साले कैसे लाया तू इसे? तेरे पापा मार डालगे तुझे जो पता चला उ ह!” मने खुशी
और डर को सही टे सचर म मलाते ए उससे पूछा।
“भाई बात हो गई है हमारी, तू चता मत कर। आज तुम और व ध इसी कार म
घुमोगे।” उसने कार का दरवाजा खोलकर उसम बैठते ए कहा।
यार सच क ँ तो हम उस बरादरी के लोग थे ज ह अपना बथडे तक से ल ेट करने के
लए कसी-न- कसी कोस क फ स का सहारा लेना पड़ता था। और अगर इन हालात म
आपका दो त आपके लए कार ले आए, तो आप समझ सकते ह क आपके ज बात या
ह गे तब।
“थ स यार!” मने लगभग या क ँ वाली कशमकश म उलझते ए कहा।
“सही है तेरा, थ स बोलने लग गया है तू।”
“यार तुम और शफा भी साथ चलो ना, मजा आएगा।” मने शाम को साथ घूमने का
लान बनाते ए कहा।
“भग साले! तु हारे साथ कौन टाइम वे ट करेगा! तब हमारी पसनल दावत चलेगी।”
“साले कुछ होता तो है नह तुझसे और पसनल दावत करेगा। शाद के बाद सब कुछ,
भूल गया या?” मने उसे उसके सच का आईना दखाते ए कहा।
“हो गया तेरा? अब अपनी तशरीफ को खामोश कर के बैठा रह वहाँ और भूलो मत
क आपके बगीचे म जो ये फूल खले ह वो हमारी वजह से ही ह। तो इ जत बनाए रखो,
समझे या?” रतेश ने लगभग चढ़ते ए, व ध के मैटर म मुझ पर कए अपने एहसान को
मुझे याद दलाते ए कहा।
फर रात क पाट के सब एडज टमट करते-करते, थोड़ी यहाँ-वहाँ क बात करते-
करते दन अपनी र तार से आगे बढ़ता आ शाम तक प ँच गया। शफा म पर आ चुक
थी और इसका मतलब ये था क रतेश ब त बेस ी से हमारे यहाँ से जाने का इंतजार कर
रहा था और म व ध के बाहर आने का। वो अंदर तैयार हो रही थी। अब ये कोई बड़ी बात
नह थी, लड़ कयाँ अ सर ही तैयार होती ह। पर कुछ दन खास होते ह, उस दन वो सफ
और सफ आपके लए तैयार होती ह। उस दन वो अपने र ते क खूबसूरती के लए तैयार
होती ह, उस दन वो तैयार होती ह क आप उ ह दे खकर इसी बहाने उ ह एक बार फर से
कह सको क वो आपक सोच क हद के पार तक खूबसूरत ह। कुछ दन सच म खास होते
ह और आज मेरा वो दन था।
मने ब त कुछ सोच रखा था क उसके सामने आते ही म ये वाला डायलॉग मा ँ गा,
ऐसी वाली बात क ँ गा, वैसी वाली हरकत क ँ गा। पर जब वो सामने आई, तो मेरे मुँह से
एक श द भी नह नकला, मानो जैसे वो श द भी मेरे साथ-साथ उसक खूबसूरती क
बा रश म बना कुछ कहे ही झूमकर कसी द वाने क तरह नाचने म त हो गए ह । बस
तब सफ एक बात थी जो साँस के हर कतरे के साथ-साथ मुझम बहती जा रही थी और वो
ये थी क उसे कह मेरी नजर न लग जाए।
“कैसी लग रही ँ म?” व ध ने मुझे आईने क जगह रखते ए पूछा। मुझे समझ नह
आ रहा था क म पहले तारीफ कसक क ँ , बार-बार उसके कान से फसलते उन बदमाश
से बाल क जो शायद आज कसी के लाख रोकने से भी न कने क पहले से ही सोच चुके
थे या फर रात के अँधेरे से रंग उधार लेकर खले उसके उस काजल क जो उसक आँख
को इतनी गहराई दए ए था क मानो उ ह ने एहसास के एक गहरे, खामोश समंदर को
अपने आगोश म समेट रखा हो, या फर नीले रंग म रंगे उसके उस खूबसूरत सूट क जसने
शायद कसी मू तकार क तरह आसमान क सारी खूबसूरती को उसके बदन पर सहेज
दया था। म समझ नह पा रहा था क म तारीफ कसक क ँ और इसी कशमकश म म
बस आगे बढ़ा और उसे गले लगा लया। शायद उसे गले लगाकर म खुद को ही ये यक न
दलाना चाहता था क ये सब कुछ मेरे लए है, क हाँ इन पर सफ और सफ मेरा हक है।
व ध ने भी बना दे र कए मुझे खुद म समेट लया। शायद उसे जवाब मल गया था क वो
कैसी लग रही है। तभी शफा हम यूँ दे खकर हँसने लगी और ये वही वाली हरकत थी जसे
आप तब करते ह जब आप अपने पास वाल को ये बताना चाहते ह क हम भी यह ह,
अगर आपका हो गया हो तो। तब तक रतेश भी म पर आ चुका था और इसका मतलब ये
था क अब हम जाना था यहाँ से। मुझे आज तक ये बात समझ नह आई क इस पोशन म
2 बेड म थे। फर भी जब व ध यहाँ होती तो रतेश खुद को शफा के साथ पास वाले म
म कंफटबल महसूस नह करता था। तो उसके कबाब म हड् डी न बनते ए हम दोन नकल
लए फतेह सागर क ओर।
फतेह सागर झील, इसे यहाँ के लोग उदयपुर का दल कहते ह। जब शाम दन के प लू
से नकलकर कसी फूल क तरह खलने लगती है तब इसक धड़कन क आवाज, उस
फूल क खुशबू क तरह, दनभर क झक- झक से परेशान लोग को अपनी ओर ख चने
लगती है मानो जैसे वो जानती हो क उन लोग म जान कैसे फूँकनी है। चाहे कसी का दन
कैसा भी य न बीता हो, आपको शाम म उदयपुर का हर जदा दल इंसान इसी के कनारे
कह -न-कह बैठा आ मल ही जाएगा।
“ बट् टू या ग ट चा हए आपको?” व ध ने अपनी आँख से एक अजीब-सी मठास
बखेरते ए पूछा।
“कुछ नह यार! तुम यहाँ हो मेरे साथ यही काफ है मेरे लए। तुम ही मेरा सबसे बड़ा
ग ट हो।” मने ाइव करते-करते उसका हाथ थामते ए कहा।
“बोलो न बट् टू , या चा हए आपको?” वो इस बार थोड़ा सी रयस होकर बोली।
“शाद कर लो मुझसे।” मने मोह बत के उस बहाव म बहते ए तपाक से कह दया।
वैसे भी अपनी गल ड को इ ेस करने के लए ऐसी बात यॉकर बॉल क तरह मौका मलते
ही डालते रहना चा हए।
“कब करनी है बताओ?” उसने भी उसी बेबाक से जवाब दया।
“आज ही।” मने हँसकर उस बात को आगे बढ़ाते ए कहा।
“डन।” व ध मेरी हथली चूमते ए बोली।
एक बात मने व के साथ सीखी है क आपक क मत और आपक गल ड कब
मजाक के मूड म है ये बताना आपके और मेरे औकात के बाहर क बात है। तो जब भी आप
इन दोन के साथ ह तो सोच समझ के ही अपना मुँह खोल। मुझे कुछ सूझा नह तो उसे
थोड़ा लश करवाने और थोड़ा-सा इ ेस करने के लए ऐसे ही बोल दया था क शाद कर
लो, या अब म मजाक भी नह कर सकता?
“डन तो ऐसे कह रही हो जैसे सच म कर ही लोगी!” मने उसक बात को ह के म लेते
ए कहा।
“ या मतलब है तु हारा? तुम मजाक कर रहे थे या?” वो अजीब ही तरह से मुझे
दे खते ए बोली।
“तो फर या! तुमने या सही समझ लया! या यार बट् टू तुम भी ना!” मने
‘मतलब कुछ भी’ के अंदाज म कहा।
मेरी बात ने उसके दल और ह ठ के बजाय कह और ही अपना असर दखाया।
उसक आँख मुझे साफ-साफ बता रही थ क बात अब स रयस जोन म आ चुक थी। यार
कौन इस उ म शाद क बात पर गु से म आ सकता है! कोई इतना भी डंब कैसे हो सकता
है! पर वो ‘कौन’ नह थी, वो मेरी गल ड थी और जब ये कौम अपनी वाली पर आ जाती
है, तब सही-गलत जैसा कुछ भी नह होता। जो इ ह ने कह दया वो ही सही, चाहे वो बात
कसी भी तक के गले उतरे या न उतरे।
मने बना गल ड के दन को जया था और अब कसी भी हाल म म उन ग लय म
वापस नह जाना चाहता था य क मुझे याद था क कसी महान इंसान ने कहा है, “लड़का
चाहे जतनी भी बार ेकअप य न कर ले, लड़क वापस पैचअप कर लेगी य क उसके
पास आँसू ह और आप मद ह। मगर कभी गलती से भी लड़क ने सामने से ेकअप कर
दया तो सब वह ख म।” और अब ये मत कहना क हमारे पास भी तो आँसू ह, हाँ ये तो
ठ क है पर सामने वाली लड़क है भाई।
“ बट् टू , या है यार! लीज आज नह लड़गे।” मने अपने बथडे क भीख माँगते ए
उसे कहा।
“दे खो बात लड़ने क नह है। बात ये क तुम मेरे यार और मेरे भरोसे का मजाक बना
रहे हो।” उसक आवाज को सीढ़ बनाकर उसका गु सा और उसक चढ़ ऊपर उसके ह ठ
तक आने लगी।
“हद है यार! अब ये हमारे यार से सफ तु हारा यार हो गया! म कहाँ गया फर!”
मने उसक पागल जैसी बात पर चढ़ते ए कहा।
“यार जब तुम मुझसे शाद ही नह करना चाहते तो यार कहाँ रहा तु हारा!” उसने
अपना वाइंट लयर कया।
“अभी कौन-सी शाद यार! ये तो कोई बात नह ई। अभी शाद क उ है या
अपनी! यार ऐसे तो कोई नह करता।” मने उस बात और उस शाम को सँभालते ए कहा।
“दे खा बट् टू , ऐसी ब त-सी चीज ह जो हम नह करनी चा हए थी। जसे लोग नह
करते ह पर हमने क ह। तब तो तु ह ये ान क बात याद नह आत । तब तु हारे ये तक
कहाँ जाते ह!” उसने अब अपने यू लयर ह थयार धीरे-धीरे बाहर नकालते ए मुझसे
कहा। मुझे अ छे से दख रहा था क अब वो लीग से बाहर क बात करने लगी थी। वो मुझे
दखाने लगी थी क तुम बस दो-तीन बात और समझदारी क कर लो बेटा और फर दे खो
क कैसे सब द एंड होता है। और उधर म समझ गया था क अब यहाँ तक- वतक नह हो
सकता य क उस कार म तब साफ-साफ तानाशाही चल रही थी। उसक आबोहवा म र-
र तक डेमो े सी का कोई नामो नशान नह था। तो मने भी व क नजाकत को समझते
ए खुद को समझाया, ‘बात सँभाल लो ल ला, नह तो हलाते रह जाओगे बाक क पूरी
जदगी।’
“तुमसे बढ़कर मेरे लए या है बट् टू ! बोलो या करना है?” मने अगले ही पल बात
सँभालते ए उसक हाँ म अपनी हाँ मला द और अपने तक और सही-गलत के ह थयार
को वह -कह कचरे म डाल दया।
“स ची ना?” उसने अपनी उस का तल उँगली को मेरी ओर करके, अपनी आँख को
थोड़ा-सा और बड़ा करते ए पूछा।
“हाँ यार!”
“तो सुनो फर, पहले हम स र खरीदगे, फर एक रग और एक पडट वाली चेन। हम
आज ही केक कटने के बाद जब रतेश अपने घर चला जाएगा तब म पर शाद करगे।” वो
लगभग उछलते ए बोली।
सच क ँ तो उसका ये आइ डया सुनकर मेरी ह अंदर तक काँप गई थी। मेरी ह
च लाने लगी, “वाट द फक यार! चू तया है या तू? दे ख ऐसा कुछ मत करना। साले तेरा
जमीर-वमीर कुछ है भी के नह ! इस पागलपन को तू कसी भी हाल म सपोट नह करेगा।”
पर कौन कमब त ऐसे म ह और दमाग क सुनता है! नई गल ड बनाने म हम जैस को
कतनी मेहनत लगती है ये उस ह को थोड़ी न पता है।
“ठ क है यार, चलो फर शॉ पग करते ह। पर यार एक बात बताओ, शाद के बाद
सुहागरात भी तो होगी ना?” अब जब बकरे को कटना ही है तो य न हँसते ए कटे । यही
सोचते ए मने खुद क शाद म खुद ही को इनवाइट कर लया।
“ये डपड करेगा हे के बहै वयर पर।” वो इतना कहकर हँसने लगी।
शाम साथ बताने का लान दे खते-ही-दे खते साथ शॉ पग करने म बदल गया और जब
उसका मन शॉ पग से भर गया तो सब कुछ लेकर हम वापस अपने म क ओर चल दए।
व ध ब त ही यादा खुश थी अपने उस शाद वाले पागलपन के साथ और म टशन म। अब
चाहे मजाक म ही य न हो पर शाद अ छे -अ छ क हवा टाइट कर दे ती है। फर कुछ ही
दे र म केक और बाक सब कुछ लेकर हम म पर प ँच गए। जैसे ही मने कार हमारे म
क गली म मोड़ी तो मने दे खा क रतेश म के बाहर ही बैठा आ था और वो वहाँ बैठा-
बैठा सगरेट फूँक रहा था। सच क ँ तो वो हमेशा ऐसा करता नह था। इतनी ह मत उसम
तभी आती थी जब उसने पी रखी होती थी। आज फर शायद शफा से लड़ाई ई थी
उसक । मने कार पाक क और उसे वहाँ से उठाकर म म ले गया।
उधर आंट ऊपर से उसे कब से दे खे जा रही थी, पर शायद वो इतनी ह मत नह जुटा
पा रही थी क नीचे आकर उससे कुछ भी कहे या फर शायद वो मेरा ही वेट कर रही थी।
आंट क बगड़ती श ल दे ख म ये समझ गया था क आज क रात या फर शायद कल क
सुबह हमारे लए तूफान लाने वाली है। पर तब उस बात से यादा फ मुझे रतेश क हो
रही थी। पता नह अब या लफड़ा खड़ा कया था उन दोन ने।
“अब या आ यार? उसने लयर तो कया था सब कुछ। फर तू य उसे फोस
करता रहता है?” मने उसक उस बेकार-सी हरकत पर चढ़ते ए उससे पूछा।
“यार उसके पापा का कॉल आया था। उसके कसी रले टव ने हम साथ दे ख लया
है।” रतेश इतना कहकर फर से सगरेट के उस धुएँ को अपने फेफड़ म भरने लगा।
“पर तुम तो म म थे, यहाँ तु ह कोई कैसे दे ख सकता है?”
“यार वो म…म वो खरीदने मे डकल टोर जा रहा था तो वो भी साथ हो ली। अब यार
उसने इतने दन बाद हाँ कहा था, तो म भी ए साइटमट म उसे ना नह कह पाया।” रतेश
ने फर हमेशा क तरह अपनी गलती मानते ए अपने सर को जमीन म धँसा लया।
“तो ठ क है ना, कह दे गी क दो त है। कौन-सी बड़ी बात है इसम!” मने उसे और
उससे यादा अपनी सँभालते ए उससे कहा।
“यार शायद उसने हम म तक फॉलो कया है। शफा क बहन भी फोन पर थोड़ी
डरी ई थी।” रतेश ने पास म पड़ी कोक को अपने मुँह म उड़ेलते ए कहा जसम शायद
उसने रम मला रखी थी। उधर उसके मुँह से ये सब सुनते ही मेरी समझ जवाब दे ने लगी।
मेरा दमाग फुल पीड से उन सारे दरवाज को खोजने म लगा जनसे हम इस कंडीशन से
सेफ बाहर नकल सकते थे। म कुछ-न-कुछ सोचने क पूरी को शश कर रहा था पर व ध के
होते ए ये कहाँ पॉ सबल था! वो तब हमारी मदद करने के उलट बीच-बीच म अपना टु चा-
सा कोई आइ डया बता-बताकर सफ मेरे इ रटे शन को आग दे ने का काम बखूबी कए जा
रही थी। पर वो बेचारी भी या करती! उसको भी कोई आइ डया नह था क अगर ये सब
सही नह आ तो हम आगे कन हालात से गुजरना है। उधर इ ह सब परेशा नय के बीच
कुछ कसर शायद बाक रह गई थी तो उसे पूरा करने आंट भी नीचे आ गई।
“ये सब या चल रहा है? कौन है वो लड़क ?” उसने अपना मा लकाना हक जताते
ए म के बाहर से ही च लाते ए मुझसे पूछा।
“आंट स टर है मेरी, मने बताया तो था आपको!” मने म के बाहर आते ए कहा।
“ या म तु ह पागल लग रही ? ँ वो कहाँ से तु हारी स टर लग रही है?” उसने अपनी
उँगली और अपने गु से को मेरी तरफ करते ए कहा।
“मतलब या है आपका? आंट आप कलर पर मत जाओ यार, वो म मी पर गई है
और म पापा पर। दे खो आंट आज मेरा बथ डे है तो वो यहाँ आई है।”
“तो! बथडे है तो कुछ भी करोगे या! ये शरीफ क कॉलोनी है। यहाँ इ जतदार लोग
रहते ह। यहाँ ये सब नह चलेगा समझे तुम?” आंट ने अपनी आवाज को अपने गु से के
मसाले म तलकर और तेज कर ली।
“आंट अब आप कुछ भी बोल रही ह। शरीफ से या मतलब है आपका? हम या
गुंडे ह? बदमाश ह?” मेरा गु सा भी उसक घ टया बात से धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा।
माँ कसम तब एक ओर तो मुझे शफा क टशन थी तो उसके सरी ओर शफा के घर
क ओर से आने वाले उस तूफान क चता और साला उसके ऊपर से ये सवाल-जवाब। मेरा
वो सारा गु सा और वो सारी खु स मौका दे खकर बाहर आने लगे जसे हर बार कभी
मजबूरी का नाम दे कर, तो कभी समझदारी का नाम दे कर मने बाहर नह आने दया था। पर
शायद तब कह थोड़ी कसर अभी और भी बाक रह गई थी जो रतेश भी म से बाहर आ
गया और वो जैसे ही बाहर आया, म समझ गया क आंट गलत टाइम पर नीचे आ गई है
य क जब वो पी जाता था तब तो मेरी भी ह मत नह होती थी उससे उलझने क और
आज तो उसके सामने से कसी ने उसका नवाला भी छ न लया था।
बात बगड़ने वाली थी और म ये ज द ही समझ गया था। मने व ध से कहा, “ शफा
को कॉल करो और उसे कहो क वो आकर तु ह अपने साथ ले जाए।” पर वो मेरी बात
मानने के बजाय ऐसे हालात दे खकर रोने लगी। शायद ये सब उसके लए पहली बार था या
फर उसका दमाग ये सोचे जा रहा था क अगर ये लफड़ा यादा आ तो बात उसके घर
तक भी प ँच सकती है। और शायद इसी लए ही उसने रतेश का हाथ पकड़ा और उसे म
के अंदर ख चने क को शश करने लगी। तभी नीचे से तेज-तेज आवाज सुनकर कुछ ही दे र
म अंकल भी नीचे आ गए। मने मु कल से रतेश को म म डाला और बाहर से दरवाजा
लगा दया।
“अंकल या आ है ऐसा जो आंट ऐसे रए ट कर रही ह? बाहर बैठकर एक सगरेट
ही तो पी है उसने। उसके पापा का ए सीडट हो गया है आज, दमाग वैसे ही खराब है
उसका।” मने झूठ का सहारा लेकर बात सँभालने क फर से को शश क ।
“शराब पी रखी है उसने, बदबू आ रही है उसके मुँह से।” आंट ने गु से को अपनी
आवाज म आजाद छोड़कर अंकल क ओर दे खते ए कहा।
“आंट ठ क है ना, पी ली होगी उसने। कुछ कर थोड़ी न रहा है। हो जाता है कभी-
कभी, आप तो समझते हो ना! म तो हर जगह आपक तारीफ करता रहता ँ क हमारे
लडलाड कतने सपो टव है। वो उन घसे- पटे लोग क तरह नह ह जो साल पुरानी सोच
के साथ जीते ह। वो ट होने के साथ-साथ हम पूरा पेस भी दे ते ह अपने हसाब से जीने
के लए।” मने बना आग के दाल उबालते ए कहा और ऊपर से उसम ब त सारा बटर भी
डाल दया।
अंकल समझ गए थे क अब उनक एक भी उ ट बात उनको उन घसे- पटे लोग क
बरादरी म लाकर खड़ा कर दे गी जनक म अभी बात कर रहा था, तो वो थोड़े ठं डे होने
लगे। पर शायद आज व को भी ये मंजूर ही नह था क कैसे भी ये बात सुलझे। इसी लए
शायद तब म और अंकल दोन ही ये भूल गए थे क इस क वरसेशन म एक औरत भी है
और अब ये तो जग जा हर है क बुरी क मत और सनक औरत को सफ मौत ही रोक
सकती है, ले कन आंट तो अभी जदा थ ।
“म इनको भी कभी घर पर पीने नह दे ती और तुम मेरे घर म बैठकर दा पी रहे हो
और ऊपर से मुझे ही हो शयारी दखा रहे हो। तु हारे घर वाल ने यही करने यहाँ भेजा है
या तु ह? पता नह ब चे ऐसे ह तो माँ-बाप कैसे ह गे?” आंट गु से म फनफनाती ई
बोली।
आंट तब अपनी सुध खो चुक थी और कुछ भी बोले जा रही थी। उधर अपनी
धमप नी को अपने सामने ऐसे उफनते दे ख अंकल क साल से धूल खाती मदानगी भी धीरे
से अपना सर उठाने लगी और अब जब इतना सब कुछ हो ही रहा था तो उनका खून कैसे
पीछे रहता। तो अपने माँ-बाप को ऐसे लड़ाई म उलझता दे ख ऊपर से उनका बड़ा बेटा भी
फॉम म आकर ध का फज नभाने नीचे आ गया और च लाने लगा क नकालो इन बेवड़
को घर से, खाली करवाओ मकान अभी के अभी। सालो ने रंडीखाना बना रखा है पूरे घर
को।
उसके मुँह से ‘रंडी’ श द सुनते ही मेरी समझदारी डाय रया के लूज मोशन क तरह
बना एक पल ठहरे ही पछवाड़े से बह गई। मने पहले तो अपने म का दरवाजा खोला
जससे क रतेश बाहर आ सके और फर जतना म इकट् ठा कर सकता था उतना दम
इकट् ठा करके उसक छाती पर एक लात मारी। एक ही लात म उसका सारा जोश हवा हो
गया और जो बाक कसर बची थी वो रतेश ने पूरी कर द । कुछ ही मनट म आंट का
लड़का धूल म सना आ अपने बाप के पीछे जाकर छु प गया। उधर रतेश अपना आपा खो
रहा था पर अब उसे रोकने का मेरा कोई मूड नह था। आंट ने तभी रतेश को उसक माँ-
बहन क गा लयाँ दे ना शु कर दया। फर या था— रतेश ने आंट के पास जाकर अपने
बाएँ हाथ से उनका टटु आ दबा दया।
तब अंकल वह थे, उनका बेटा वह था और आस-पास इकट् ठा ए पड़ोसी भी। पर
माँ कसम तब कसी क भी ह मत नह ई क कोई आगे आकर रतेश को रोके। अब या
तो वो सब रतेश के गु से से डर गए थे या फर वो सब भी यही चाहते हो क रतेश आंट
का टटु आ तब तक दबाए रखे जब तक उसका शरीर ढ ला न पड़ जाए।
पर इसी बीच कसी समझदार ने पु लस को फोन कर दया था और उ ह ने आकर कुछ
ही मनट म सारा मामला ठं डा कर दया। गु से-गु से म पता ही नह चला क या आ पर
सरे ही पल हम कसी मुज रम क तरह अपने पैर के बीच अपना सर दबाकर थाने म बैठे
थे। साल ने हमारे ट शट और पट तक नकलवा लए। अब पता नह कस बात पर उनको
हम दोन पर दया आ गई थी जो शरीर पर क छा तो रहने दया था।
इ ह सब के बीच जब हमारा खून ठं डा होकर दमाग से शरीर के बाक ह स म
उतरने लगा तब हम याद आया क व ध भी वह थी। मने रतेश को कहा, “भाई व ध वह
है।” हमारी टशन और बढ़ने लगी क कह वो उसे कुछ करे ना, कह कुछ बोले ना। रतेश
बोला, “तू डर मत यार, अगर उसे एक श द भी बोला तो साल को जदा जला ँ गा म।” वो
सब तो ठ क था पर बात तो आज क रात क थी। मुझे टशन हो रही थी क वो अकेले कैसी
होगी। हमारी तो शाद थी आज और मेरा बथ डे भी।
थाने क घड़ी म 9 बजे थे और हमारे 12। तभी एक कां टे बल मोटा-सा चमड़े का बे ट
लेकर हमारी ओर आता दखा। मुझे अ छे से दख रहा था क उस बे ट पर ‘तेरे नाम’ लखा
आ था और जस ओर से वो आ रहा था वहाँ से पहला मेरा ही नंबर था। मने खुद को तैयार
कर लया उस बे ट के गरमा-गरम चु मे के लए। वो मेरे पास आया और जतनी दे सकता
था उतनी सारी गा लयाँ एक ही सुर म उसने हम दे डाली। उसने फर मुझे मारने के लए
अपने बे ट पकड़े हाथ को आसमान म ऊपर उठाया। वो चमड़े का बे ट अपने पूरे घमंड से
हवा म हचखोले खा रहा था जैसे वो मुझे कह रहा हो, “आर यू रेडी?” पर तभी अचानक
अंदर से एक आवाज आई और वो ठु ला वह क गया और तब जाकर कह मेरी जान म
जान आई।
फर घंटे भर तक हमारे पास कोई नह आया। शायद रतेश समझ गया था क वो या
चाहते ह। तभी वो कां टे बल वापस हमारे पास आया, पर शु था क इस बार उसके हाथ म
वो बे ट नह था। उसने हम हमारे कपड़े वापस पहनने को दए और फर हम वहाँ से बाहर
लेकर चला आया। बाहर जाकर उसने हम सगरेट ऑफर क । रतेश ने उसक इ जत रखने
के लए एक ले ली पर मुझे तो अभी भी हवा म लहराता वो बे ट ही नजर आ रहा था और
उसी के डर से मेरा दमाग पूरी तरह से सु आ जा रहा था।
फर वो ठु ला हम धाराएँ गनाने लगा, जनसे हम जेल के अंदर जा सकते थे। जनसे
हम आगे जाकर सजा हो सकती थी। उस दन पहली बार हम ये समझ आया था क थाने म
होने और जेल म होने म या फक होता है। अभी हम थाने म थे मगर कसी भी व जेल म
जा सकते थे।
तभी उसने कानून क सफेद छोड़ अपना असली रंग दखाया, “अगर बाहर जाना है
तो 10000 पये लगगे।” ये सुनकर मेरा तो मुँह ही सूख गया। कोई मजाक है या!
10000 तो उस ठु ले क महीने भर क सैलरी भी नह होगी और हम कौन-से कसी अमीर
खानदान क औलाद थे जो इतने पैसे दे दे ते उसे। तभी हमारी श ल दे खकर वो भी समझ
गया क इतने म तो डील नह हो पाएगी, तो वो बात आगे बढ़ाते ए बोला, “तुम कतने दे
सकते हो?”
रतेश बोला, “2000 सर।” माँ कसम उसका मुँह दे खने लायक था। उसने अपना मुँह
कपड़े क कान के उस मा लक क तरह बनाया जसे हमने 1000 क शट के 300 पये
कह दए ह । पर तब मुझे उस ठु ले के मुँह से यादा व ध क टशन हो रही थी और ऊपर
से उस बे ट का डर भी तो मेरे जेहन म अभी तक जदा था। इसी वजह से मेरे पास तब
उससे बाग नग करने का व नह था। मने फटाफट म उसे 5000 कह दया और उसके
सामने अपने हाथ जोड़ दए, “सर अब इससे यादा नह ह हमारे पास।” उसने तुरंत ही
5000 म डील फाइनल कर ली और मने ATM से पैसे नकालकर उसे दे दए। जाते-जाते
उसने हम ट इं कशन दए क आज रात म पर नह जाना है और अगले 3 दन म
कसी भी हाल म वो म खाली करना है और ये भी क अगर ज रत पड़ी तो वो हम और
हमारे पैरट् स को वापस भी बुला सकते ह।
उसक बात क और उसके साथ-साथ उस माहौल क अजी बयत अभी भी मेरे जेहन
म एकदम ताजा थी। तब उन सबक चता करना मेरे दल को उतना ज री नह लगा
जतना क व ध क चता करना लगा और इसी लए उस ठु ले के जाते ही मने व ध को
कॉल कया। वो कॉल उठाते ही रोने लगी। मुझे ये जानकर थोड़ी तस ली ई क वो शफा
के साथ थी और ठ क थी। म तब रतेश के सामने खुद को काबू म दखाने क पूरी को शश
तो कर रहा था पर असल म म खुद को रोक ही नह पा रहा था। मेरे हाथ और पैर म
अजीब ही तरह क कंपकंपी हो रही थी। आज पहली बार मेरी वजह से व ध इतनी परेशान
ई थी। म इतना गैर ज मेदार कैसे हो सकता था! ऐसे कई खयाल म उलझते-उलझते,
रतेश के कदम क र तार और दशा के साथ-साथ खुद के शरीर को धकेलते-धकेलते हम
फर वहाँ से सीधा म पर आ गए। मेरी बाइक गेट के अंदर खड़ी थी तो हमने अब कोई
और पागलपन करना सही नह समझा। हमने वहाँ से रतेश क कार ली और फर फतेह
सागर प ँच गए। कुछ ही दे र म शफा और व ध भी वहाँ आ गए।
व ध ने जैसे ही मुझे दे खा वो पागल क तरह दौड़कर मुझसे लपट गई। मने भी उसे
कसकर अपने से लगा लया। तब हम दोन रो रहे थे बस फक सफ इतना था क उसने
अपने आँसु को बहने दया था और मने उ ह रोके रखा था। रतेश और शफा का भी यही
हाल था। जतने भी लोग वहाँ आस-पास थे वो सब हम दे ख रहे थे पर व ध इतना रो चुक
थी क तब उसे कसी भी बात क सुध नह थी और मुझम तो वैसे ही कुछ बचा ही नह था।
मुझे बस इतना पता था क अब म व ध को खुद से एक पल के लए भी अलग नह कर
सकता था। वो आज ब त रो चुक थी मेरी वजह से। उधर शफा को भी ज द वापस अपने
घर जाना था। उसके पापा अभी तक घर नह आए थे, तो जो दन म आ था वो अब तक
सॉ व ही नह आ था और उसे भी खबर नह थी क उसके पापा उस बात पर कैसे रये ट
करगे। शफा घर चली गई, रतेश वह पास बैठकर सगरेट फूँकने लगा और म व ध के सर
को अपने पैर पर रखकर उसे सहलाने लगा। उसे सुलाने क को शश करने लगा। कुछ ही
दे र म वो शांत हो गई और वह मेरे पैर पर सो गई। मने उसे धीरे से उठाकर कार म बठाया
और फर रतेश हम होटल छोड़कर खुद अपने घर के लए नकल गया।
आज न तो मेरे बथडे का केक कटा, न कसी ने क दा पी और न ही मेरी शाद
ई। व ध ब त डर चुक थी, शायद ऐसा कुछ कभी उसने दे खा नह था। वो न द म होने
बावजूद भी अभी तक मेरा हाथ पकड़े ए थी। मेरी थोड़ी-सी हरकत पर उसक पकड़ और
मजबूत हो जाती मानो वो इस बार कसी भी हालत म मुझे कह जाने नह दे गी। सच क ँ तो
म आज इतना कुछ दे ख चुका था क न द के लए अब कह जगह ही नह बची थी। म बस
ब तर पर लेटे-लेटे अपने एक हाथ से व ध के सर को सहला रहा था और सरे को अपने
सर के नीचे रख उस सी लग फैन को घूमते ए दे खे जा रहा था।
(11)
अगले दन ही मने व ध को जयपुर वापस भेज दया। उधर शफा का उस दन के बाद से
कोई कॉल नह आया था और न ही वो खुद कॉलेज आई। मने रतेश को ब त समझाया तब
जाकर वो कह शांत बैठा आ था। दो दन बाद ही हम नये म म श ट हो चुके थे। पर
आजकल वहाँ सफ रात को ही जाना हो पाता था। पूरा दन हम इसी उ मीद म कॉलेज म
बैठे रहते थे क शायद शफा कॉलेज आ जाए और जब उसका इंतजार करते-करते थक
जाते तो एक-दो लास भी कर लेते और फर ै टक स भी। पर इतने इंतजार के बाद भी
उन सैकड़ लड़ कय क भीड़ म शफा कह नह थी।
लगभग बारह दन के बाद कॉलेज पा कग म हम वो कूट फर दखी और इतना कुछ
होने के बाद भी साला उसक नंबर लेट पर लखा ‘खान’ आज भी अपनी उसी अकड़ म
था, पर अभी हमारे पास उससे उलझने का व नह था। शफा क कूट दे खते ही रतेश
सीधा केमे लैब क तरफ भागा और उसके पीछे -पीछे म भी। शफा ने जान-बूझकर
अपनी कूट उसी जगह पाक थी जहाँ हमारा पुराना अड् डा आ करता था। जब भी हम
कॉलेज म आ जाया करते थे तब हम अ सर वह बैठा करते थे। उसे पता था क रतेश
उसक कूट दे खते ही सब समझ जाएगा इस लए वो भी पहले से ही लैब क ला ट वाली
डे क पर थी और उसक नजर गेट पर।
रतेश को दे खते ही शफा क आँख खुद को सँभाल नह पा और इतने दन म शफा
के साथ जो कुछ भी आ उसे उन आँसु के सहारे रतेश को बताना शु कर दया। उधर
रतेश का इतने दन का इंतजार भी पल भर म ही फूट पड़ा। मने होश म रतेश को रोते ए
आज से पहले कभी नह दे खा था। मेरा मन तो कर रहा था क जाकर थाम लूँ उसे। पर
आज उसे मेरे कंधे से यादा कसी और क ज रत थी। यार करने वाले ये अ छे से जानते
ह क उनके र ते म बहती मोह बत के साथ-साथ उसम उफनते दद पर भी सफ और सफ
उनका ही हक होता है। वो उस दद को भी सर के साथ तब तक नह बाँटते जब तक वो
उ ह जला-जलाकर प थर न बना दे और वैसे भी अपने महबूब का दया कुछ भी कोई कैसे
कसी के साथ बाँट सकता है, चाहे वो दद ही य न हो।
रतेश से जब बाहर का नह गया तो वो धीरे से छु पते ए लैब म चला गया और
शफा क डे क के नीचे जाकर बैठ गया। सामने ोफेसर पे ोमे समझा रहा था तो
शफा नीचे नह झुक सकती थी और रतेश खड़ा नह हो सकता था, य क हमारा बैच तो
अलग था पर ट चर वही। उधर म लैब के बाहर ही बैठ गया, शायद ये सोचकर क रतेश को
मेरी ज रत पड़ सकती है। तभी रतेश ने धीरे से शफा का हाथ अपने हाथ म ले लया
और फर पागल क तरह उसे चूमने लगा। शफा भी तब तक रतेश के आँसु क उस
नमी और उनम बहती उसके लए बेस ी से कए इंतजार क उस गम को अपने हाथ पर
महसूस कर चुक थी। जतने मु कल वो बीते दन रतेश के लए थे शायद उससे भी कई
गुना यादा मु कल वो दन शफा के लए थे। शफा तब रतेश को शायद अपनी बाँह म
भरकर सँभाल लेना चाहती थी या फर शायद वो भी उसक बाँह का सहारा लेकर पूरी तरह
टू ट जाना चाहती थी। पर लैब म ोफेसर और बाक सब के सामने न ये शफा के लए
पॉ सबल था और न ही रतेश के लए और शायद इसी लए शफा ने तभी पीछे मुड़कर मुझे
दे खा। वो तब मुझे कुछ बोल तो नह पाई पर उसक आँख क उस नमी ने मुझे ब त कुछ
कह दया। मने अगले ही पल अपने पैर के पास पड़ा एक प थर उठाया और दे मारा लैब
क वडो पर और फर उसेन बो ट क पीड लए वहाँ से भाग खड़ा आ। वडो के लास
के ऐसे टू टने से पूरे लैब म अफरा-तफरी मच गई और मौका दे खकर रतेश शफा को लेकर
लैब से बाहर नकल गया।
उधर म वहाँ से भागकर सीधा कट न आ गया और फर वह बैठे-बैठे, व ध से बात
करते-करते, रतेश का इंतजार करने लगा। लगभग घंटे भर बाद रतेश वहाँ आया। मने
उसके आते ही उससे शफा के बारे म पूछा। वो बोला, “वो पीछे आ रही है। हम साथ-साथ
नह नकल सकते कॉलेज से। उसे डर है क कोई फर से हम साथ न दे ख ले।”
“वो तो ठ क है पर इतने दन तक वो कहाँ थी?” मेरे सवाल खुद-ब-खुद अपना रा ता
बनाने लगे।
“यार उसके पापा ने कॉलेज आना-जाना बंद करवा दया था उसका। वो बता रही थी
क बड़ी मु कल से उ ह मनाया है उसने। अब वो सफ कॉलेज टाइम तक ही घर से बाहर
रह सकती है, उसके बाद नह ।” रतेश परेशान होते ए बोलने लगा। म साफ-साफ दे ख पा
रहा था क उसक श ल उतर चुक थी पर कह कसी कोने म उसे इस बात क खुशी भी
थी क कम-से-कम अब वो उससे रोज मल तो पाएगा, उसे रोज दे ख तो पाएगा। फर चाहे
वो कुछ घंट के लए ही य न हो।
सच क ँ तो खुशी मेरे चेहरे पर भी थी अपने दो त के लए। म ये अ छे से जानता था
क कतने पापड़ बेलने होते ह कसी लड़क को अपनी गल ड बनाने के लए। उसके बाद
उतने ही पापड़ उसे पहली बार कस करने के लए, फर उससे भी यादा पापड़ उसे फोर ले
के लए मनाने के लए, और उस दद क तो बात ही नह कर सकते जब शु आती दन म,
बीच रा ते म ही वो अपने सो-कॉ ड सेकड हड या थड हड व ज नट को बचाने के लए बंदे
को बीच ए ट म ही रोक दे ती है। बेचारे लड़के के पम भी कं यूज हो जाते ह क इतना तो
आ ही गया ँ भाई! अब कहाँ जाऊँ? न वो नकल पाते ह और न ही वो वापस लौट पाते ह।
साला बंदा तब टशन म मा टरबेट भी नह कर सकता य क इतना दद झेलने के बाद उसके
झंडे थक-हारकर अपने आप ही गर चुके होते ह। इतना सब करने के बाद भी कोई बस ऐसे
ही आकर, बस यूँ ही उसक मेहनत को अनारकली क तरह घर क द वार म चुनवा दे , तो
बंदा कैसे जएगा भाई!
“वैसे भी ए जाम आ रहे ह यार। इस बार तो कुछ भी ेशन नह है, ब त पढ़ना
पड़ेगा भाई। ऐसा करते ह कल से लाइ ेरी वाइन कर लेते ह। या कहता है?” हम इस
कॉलेज म सच म कस काम के लए ह मने रतेश को ये बताते ए कहा।
“हाँ यार, बैक आ गई तो इस बार घर वाले मार डालगे। ठ क है भाई, डन, कल से
लाइ ेरी चलगे। और हाँ, एक और बात तो तुझे बताना भूल ही गया म। तू अब से कभी भी
मुझे ‘शाद के बाद सब कुछ’ वाली बात नह कह पाएगा।” रतेश ने कसी जीते ए यो ा
क तरह मु कुराते ए कहा।
“ या मतलब है तेरा! सब हो गया या! साले आउटडोर कर लया तून।े ” म अपना
रकॉड टू टते दे ख पागल-सा होते ए उससे पूछने लगा।
“बाप आ खर बाप होता है साले पर तुम या समझोगे इसे? तुम साले पछड़े लोग,
कमरे म लाइट बंद करने के बाद भी लकेट म घुसकर सब कुछ करते हो। खुले का मजा ही
कुछ और होता है।” रतेश ने अपनी कॉलर ऊपर करते ए कहा।
यार मोह बत क बात कब वा लट एंड वां टट ऑफ से स क लड़ाई म बदल ग
ये कह पाना मु कल था। ले कन तब सारी टशन को साइड म रखकर हम दोन हमेशा क
तरह कसने या कया है और कैसे कया है पर लड़ने लग गए।
“ या तीर मार दया बे साले तूने ये करके! तूने कभी चलती बस म कया है या? वो
भी बना कसी डर के।” मेरी बात सुनकर रतेश क आँख बड़ी होने लगी, “अरे रहन दे तू!
ऐसी क मत कहाँ तेरी! सालो तुम गँवार क तरह ही रहोगे, जंगली जानवर कह के!” मने
अपना ए पी रएंस स ट फकेट उसे दखाते ए कहा।
“साले ये कब कया तून?े बात छु पाने लगा है तू अब मुझसे। सही है यार! अब मेरे से
मत पूछना कभी क या, कहाँ और कैसे कया।” रतेश ने मेरी अचीवमट क जलन म
जलते ए कहा और ये जलन सही भी तो थी वैस,े अब कोई कैसे अपने जू नयर को अपने से
आगे नकलते दे ख सकता है। पर अगर असल बात बताऊँ तो एकदम ऐसा भी नह था क
हम कोई हवस के पुजारी टाइप के थे या सफ यही सब कुछ करना चाहते थे। हम दोन भी
अपनी-अपनी गल ड् स से ब त यार करते थे। वही वाला जसे कुछ न कर पाने वाले
लड़के स चा यार कहते ह। पर से स न स वल स वसेज के Mains ए जाम के हद /
इं लश के पेपर क तरह था। बाक पेपस म आप कतने भी अ छे मा स य न ले आओ
पर आप कुछ भी नह उखाड़ सकते अगर इसम पास नह ए तो। इसके मा स कह नह
जुड़गे पर इसे पास करना ज री है भाई।
“ सफ 1 महीना चैलज है अपना। अगर ये आउटडोर का रकॉड भी मने नह तोड़
दया ना, तो तू मेरा नाम बदलकर कुछ भी रख लेना,” म अपनी मदानगी क मूँछ पर ताव
दे ते ए कहने लगा, “और हाँ साले तू पाट दे गा अभी, आज तेरा ब त लंबा फा ट टू टा है।”
मेरी बस कहने भर क दे र थी क वो पाट के लए मान गया। फर हमने पास क ही
आ या मक शॉप से बकाड वाइट ली और उसे लेकर म पर आ गए पूजा-पाठ के लए।
वैसे भी अभी मेरे पास बथडे पाट का ब त सारा बजट बचा आ था तो ांड क तो चता
ही नह थी।
(12)
इन दन सब कुछ सही ही चल रहा था। रतेश और शफा का मामला भी सेट हो चुका था।
बस फक इतना था क म क जगह अब उ ह ने बॉटनी लैब के ऊपर वाली वाटर टक के
पीछे वाले ह से को अपना नया अड् डा बना लया था। फरवरी के ला ट वीक से ही हमारे
2nd ईयर के फाइनल ए जाम थे। अब रतेश का तो पढ़ने से कुछ यादा लेना-दे ना था नह
पर मुझे तो आज भी अपने उन पुराने रपोट् स काड् स क उ मीद पर खरा उतरना ही था तो
मने खुद को थोड़ा समेटकर लाइ ेरी और बु स के हवाले कर दया। पढ़ने म ठ क-ठाक तो
थे ही और इसी वजह से लाइ ेरी म 2-3 नये कंचे भी ड बन गए थे, ज ह म बीच-बीच म
के म पढ़ा दया करता था। कंच को पढ़ाने का पसनल फायदा तो था ही पर उसके साथ-
ही-साथ मुझे उनका लंच बॉ स भी शेयर करने को मल जाता था जससे क मुझे लंच के
लए लाइ ेरी से बाहर जाना नह पड़ता था और सरी ओर वो आउटडोर का टारगेट भी तो
था तो ये नये कांटे ट बनाना और भी यादा ज री हो गया था।
उधर व के साथ-साथ रतेश और शफा के र ते क गाँठ और भी कसने लगी थी।
हमारी वा लट और वां टट ऑफ से स क लड़ाइयाँ लगभग क-सी गई थ । आज-कल
हम दन भर कॉलेज रहने लगे थे, बस फक इतना-सा था क रतेश का यादातर व लैब
के ऊपर खुली हवा म गुजरता और मेरा लाइ ेरी के कसी कोने म।
ले कन हमारे यहाँ एक कहावत है, “आप सुधर सकते हो पर आपके कॉलेज आई.डी.
पर लगी आपक मचलती जवानी नह ।” रतेश एक दन लाइ ेरी आया और उसने मेरे
सामने एक परचा रख दया। उस पच को दे खकर मेरे अंदर का पुराना वाला अ भ अंदर-ही-
अंदर हँसने लगा। वो वाइपर लेकर तुरंत मेरी आँख क ओर दौड़ा और फर उसने कुछ ही
सेकंड् स म मेरे रे टना पर बनी के मकल काईने ट स और इको स टम मैनेजमट एंड
ोटे शन क सारी योरी और इ वेशंस को पल भर म ही साफ कर दया। अब म और भी
यादा साफ दे ख पा रहा था। उस पर लखा था, ‘ यू इयर ईव! सो हाट् स योर लान?’
मने फटाफट अपनी बु स समेट और वही परचा टे बल के सरे कॉनर पर बैठ
मताली को पकड़ा दया और उसे सोचकर कॉल करने का कहकर रतेश के साथ वो मैटर
ड कस करने नकल पड़ा। महीने भर से इस पढ़ाई- लखाई के च कर म सब कुछ जैसे
छू ट-सा गया था। वो खुराफाती दमाग जैसे हाईबरनेशन म चला गया था। तो चाय क थड़ी
पर कुछ चु कयाँ और कुछ एक कश मार के पहले दमाग को ए टव मोड पर लाया गया
और फर टाट ई यू ईयर ईव क ला नग।
“ कतना बजट है तेरे पास?” रतेश अपनी काउं टग पहले ही कर चुका था तो मेरी
हालत जानने के लए उसने मुझसे पूछा।
“पता नह यार, शायद 5000-6000 पड़े ह गे अकाउंट म तो।” मने अपना हाल
बताते ए कहा।
“म भी उतने तो कर ही लूँगा और कुछ कम- यादा आ तो दे ख लगे फर।”
“ब त है इतना तो! फर या लान है बता?” मने रतेश का मूड जानने के लए पूछा।
“ व ध को बुलाएगा या?”
“नह यार, अभी-अभी इस म म श ट ए ह, अभी कोई नया लफड़ा नह चा हए
मुझ।े तेरा और शफा का या लान है?”
“सेम पच यार! मुझे भी कोई लफड़ा नह चा हए। उसके घर वाल ने वैसे ही मेरी
वजह से उसका जीना हराम कर रखा है।” रतेश बोला।
“ कसी रजॉट पाट का पास ले ल या फर म पर ही सब करना है?” मने पहले ही
सब सोच लेने के इरादे से उसका ओ प नयन माँगा।
“दे ख लगे न यार तब, अभी से ही य टशन ले रहा है!” रतेश ने अपने फर वही
‘दे ख लगे यार’ वाले एट ट् युड म लान का लू ट ख चते ए कहा।
“हाँ ठ क है यार।” मेरे र ले स ने हमेशा क तरह बना कुछ सोचे-समझे ही जवाब दे
दया।
इधर लाइ ेरी और टडी के च कर म इन दन मताली से अ छ से टग हो गई थी
मेरी। व ध के साथ और उसके यार ने अब तक मेरी जवानी और मेरे कॉ फडस को इस
तरह ढाल दया था क अब कसी भी लड़क को जो टच म है, इ ेस करना यादा मु कल
काम नह था। जैसे म पूरी तरह से खुल गया था। अब म यादा र क ले सकता था। कसी
के लए भी बे झझक ाई करने क ह मत दखा सकता था। और अगर कुछ कमी फर भी
कह रह जाती, तो बाक का काम करने के लए के म के यूमे रक स तो थे ही। लाइ ेरी
क उस ला ट वाली टे बल पर हमारी एक- सरे के ह ठ से जान-पहचान तो ब त बार हो
चुक थी पर मेरे दमाग म आज भी रतेश क वो ‘आउटडोर’ वाली बात जमकर बैठ गई
थी। मेरे स ट फकेट् स म बस यही एक ड ी नह थी। जो मुझे कसी भी हाल म चा हए थी।
मेरे पास ऐसे ब त से मौके आए जब म मताली को अपने म पर लेकर जा सकता
था पर से स को लेकर उसके जो थॉट् स थे वो सोच-सोचकर मेरी हालत पतली हो जाती थी।
मताली दखने म व ध से यादा खूबसूरत थी। ट पकल सट गल या फर हमारी भाषा म
कहो तो एकदम कंटो माल थी। वो ऐसा कंचा था जसके बारे म सोचकर मुझे यक न है क
कॉलेज म ब त से लड़के अपनी कंबल खराब करते ह गे। पर वो थी एकदम े ट फॉरवड,
मतलब क जो दल म है वही जुबान पर। उसने मुझे बताया था क उसके पहले वाले
वाय ड से उसक कुछ यादा जमी नह और य का जवाब था, “वो उसे सै टसफाय नह
कर पाता था। वो उसे से सुअल डम नह दे पाता था।” मताली का मानना था, “ये सब
कैसे होगा उसम उसक पसंद और नापसंद भी उतनी ही ज री है जतनी उसके वाय ड
क । हर व सफ वही डोमीनेट नह कर सकता। वो लड़का है इसका मतलब ये नह क
सब कुछ उसके ही तरीके से होता रहेगा।” उसका मानना था क उसक बॉडी क भी कुछ
अपनी डमांड ह ज ह पूरा करने का उसे पूरा मौका मलना चा हए।
इधर साला जस दन से मने ये सब सुना था तब से मुझे तो खुद पर भी थोड़ा डाउट
होने लगा था। म सोचने लगा था क या म व ध को सेट सफाय कर पाता ? ँ या म उसे
से सुअल डम दे पाता ? ँ उसक पसंद या है? उसक बॉडी क डमांड या है? माँ
कसम, ऐसी बात न तो कभी मने व ध से सुनी थी और न ही कभी पूछ थी।
मने बात -बात म ये बात एक दन रतेश को बताई। उसने कहा, “तू बुला ले उसे म
पर, बाक सब म सेट कर ँ गा।” उसक बात सुनकर एक बार तो म सोचने लगा क साले
करना जब सब मुझे है, तो इसम तू या सेट कर दे गा बे? उसने आगे कहा क उसे पता है ये
सै टसफाय वाला कैसे करना है और उसक बात ने मेरे कॉ फडस वाले गु बारे म हवा भर
द और म मान गया। पर इस बार म म के मूड म बलकुल नह था। मुझे तो आउटडोर ही
करना था। अब आउटडोर का मतलब यही था क बॉटनी लैब के ऊपर क वाटर टक के
पीछे वाली जगह।
तो मने उस दन सब कुछ रतेश के कहे अनुसार ही कया। उसने बताया क पहले से
ही एक बार मा टरबेट करके जाना है। इससे सेकड इजेकुलेशन म यादा टाइम लगता है।
सरा, उसने मुझे आधे घंटे पहले ही वगोरा नाम क एक टै बलेट खला द । ये इं डयन
वया ा थी और फर म परफॉमस के लए रेडी हो गया। थोड़ा-ब त झझक और डर कह
बचा भी था तो वो भी रतेश ने मताली के माँ-बहन क गा लयाँ दे कर नकाल दया।
दसंबर का सरा स ताह था वो, हवा म ठं ड अब बढ़ने लगी थी। उस दन लाइ ेरी
म हम एक- सरे के ह ठ को भगाते- भगाते उस हालत तक आ चुके थे क अब यहाँ से
पीछे नह हटा जा सकता था। सरी ओर हम जानते थे क इससे आगे यहाँ कुछ नह हो
सकता और म ये भी जानता था क अब इसके आगे कहाँ जाना है। तो जैसा क मने और
रतेश ने लान कया था कुछ ही दे र म म और मताली एक अजीब-सी बेचैनी को दल म
लए ए लैब के ऊपर थे। हमारे ऊपर जाते ही रतेश ने सारे छत के दरवाजे छत क तरफ
से कुंडी लगा दए और खुद सरी ओर जाकर छु प गया। यानी क अब नीचे से कोई ऊपर
नह आ सकता था।
मुझे वहाँ ऊपर थोड़ा अजीब लग रहा था और शायद मताली को भी, पर हमारे
हारम स ने तब हम काबू के बाहर कर रखा था। हम तब उस चरम ब के अलावा कुछ और
सूझ ही नह रहा था। हमने कुछ ही मनट म एक- सरे को कपड़ से आजाद कर दया।
वैसे भी कसी महान इंसान ने कहा है क आपक कब, कहाँ और कैसे लगने वाली है ये
पहले से ही तय है। वो दन मेरा नह था! मताली और मने ब त को शश क मगर राजा बाबू
उठे ही नह । मा टरबेट करने क गलत टाइ मग, बॉडी क पहली बार वया ा से लड़ाई, मेरा
कॉ स े शन बगाड़ती मेरे खुले पछवाड़े को छू ती उफनते दसंबर क ठं डी-ठं डी हवा और
इन सबसे बढ़कर उसे सै टसफाय करने का वो ेशर, उसे से सुअल डम दे ने क वो महान
सोच, इस कॉ बनेशन ने मेरे मासूम से राजा बाबू को शायद इतना डरा दया या फर इन सब
के बारे म सोच-सोचकर उसे इतना थका दया क वो उठ ही नह पाया।
तो अब हालत ऐसी थी क बात मेरी मदानगी पर आकर क गई थी और अब म कसी
भी हाल म पीछे नह हट सकता था। तो मने थोड़ी और को शश क मगर मेरी इतनी को शश
करने के बाद भी कुछ नह आ। सच क ँ तो ये सब होता दे ख म अंदर-ही-अंदर हार गया
था और तब म खुद क इ जत को बचाने के लए कुछ भी नह कर सकता था। सरी ओर
अब हम यादा दे र तक ऐसी हालत म वहाँ क भी नह सकते थे तो हमने थक-हार कर
वापस कपड़े पहन लए। तब मताली कुछ नह बोली और न ही म कुछ बोला। कपड़े पहनने
के बाद म उसे वापस लाइ ेरी छोड़ आया और खुद सर पकड़कर वह कट न के बाहर बैठ
गया।
म जानता था क ये बात लड़ कय के बीच म आग क तरह फैल जाएगी क म कुछ
नह कर पाया और यही सब सोच-सोचकर मेरी हालत खराब होने लगी, मेरा सर फटने
लगा। इतने म रतेश भी वहाँ आ गया। मने उसे सारी बात बता द । मुझे यक न था क वो
साला मुझ पर हँसना चाहता था या फर ये कह सकते हो क मेरी लेना चाहता था पर मेरी
हालत दे खकर हँसा नह वो। मेरे लए अब इस कॉलेज को सहन करना मु कल हो रहा था।
मने तुरंत ही पा कग से अपनी बाइक नकाली और बना रतेश को लए ही वहाँ से नकल
गया। म वहाँ से सीधा दा क कान पर जाकर का और रम का अ ा ले लया। फर उसे
वह खोलकर एक ही साँस म जतना अपने अंदर उतार सकता था उतना उतार गया और
फर सरी साँस लेकर मने बची ई फर से उतारने क को शश क मगर मुझे तुरंत वो मट
हो गई। मने लाइफ म पहली बार नीट पी थी या यूँ कहो क उतारी थी।
उधर रतेश समझ गया क म कुछ-न-कुछ तो गलत करने जा रहा ँ और वो ये भी
समझ गया था क म सबसे पहले अब कहाँ जा सकता ।ँ तो वो भी कुछ ही मनट म वहाँ
आ गया। इधर वो वाइन शॉप वाला भी मुझे अ छे से जानता था। तो मुझे ऐसे पीते दे ख
उसने मेरे हाथ से पहले ही बोतल ले ली थी। उस दन रतेश मुझे जैसे-तैसे म पर लाया
और उसके बाद या आ मुझे सही से पता नह । रतेश बता रहा था क म पूरे दन उसे
पकड़कर रोता रहा। उसने न बू, दही सब कुछ ाई कया मगर कुछ फक नह पड़ा। य क
शायद तब मुझे चढ़ कम रही थी और वो नीट मेरे पेट म जल यादा रही थी।
सरे दन जब आँख खुली तब शरीर के हर ह से म कुछ-न-कुछ हो रहा था पर उससे
भी बुरा कुछ और भी होने वाला था। पूरे कॉलेज म मेरी बात फैलने वाली थी। मेरी तो ह मत
नह हो पा रही थी क म कॉलेज जाकर मताली से बात क ँ उसे समझाऊँ क ऐसा य
आ। पर अब मुझे कैसे भी ये सब कुछ ठ क करना था।
उस टाइम मेरे दमाग म मताली को कुछ पये दे कर बात दबाने से लेकर उसका मडर
करने तक के सब खयाल बारी-बारी आने लगे थे। पर वो सब तो मेरे गुद के बाहर क बात
थ । मुझे कुछ ै टकल सोचना था। फर मुझे एक आइ डया आया। मने याना को टारगेट
कया। याना मताली क अ छ दो त थी, मगर अंदर-ही-अंदर दोन एक- सरे से ब त
जलती थ । याना भी एक म त या यूँ कहो क शानदार कंचा था पर तब ये बलकुल मैटर
नह करता था। मुझे तो बस ये ूव करना था क मुझम सब कुछ सही से काम कर रहा है।
इस आइ डया के पीछे मेरी सोच ये थी क अगर मताली मेरी बात कभी भी बाहर नकालती
है तो उस बात को कसी भी हाल म याना से होकर ही गुजरना था। य क याना भी उनके
ुप म मताली के लेवल पर ही डोमीनेट करती थी और अगर याना इस बात को झूठा सा बत
कर दे , तो मताली क बात क वै ल डट वह ख म हो जाती और फर मेरी इ जत और
मेरी मदानगी पर कोई आँच नह आता।
तो यही सब कुछ सोचकर मने अपना पूरा दम लगा दया याना को सेट करने म। लॉ ग
ाइव, कडल लाइट डनर, एक ा टडी टाइम, सब कुछ। जो भी करना पड़ा वो सब कया
मने और स ताह भर म ही सेट कर लया उसे। वो चाहती थी क हम लाइ ेरी म जाकर पढ़
जससे क वो मताली को दखा सके क म अब उसके साथ ँ पर म अब भी मताली से
डरा आ था। उस दन के बाद से तो म कॉलेज ही नह गया था। मताली के सामने जाने क
बात तो ब त र थी।
वो 31 दसंबर का दन था। रतेश सुबह से ही माथा खाए जा रहा था क पाट का
या करना है? ले कन मेरा उसक बात सुनने या पाट करने का आज कोई मूड नह था।
बस एक ही बात थी जो तब मेरे दमाग म घूम रही थी और वो ये थी क म नये साल म इस
नामदानगी के दाग को साथ लेकर नह जाऊँगा। तो मने रतेश को कहा, “भाई अपन शाम
को मलगे और तू जो कहेगा वो सब करगे।” मने उससे साफ-साफ कह दया क तू आज
पूरे दन म पर नह आएगा। सच क ँ तो मेरे सर पर तब जैसे कोई भूत सवार हो गया था।
न मुझे तब कुछ सही दख रहा था और न ही कुछ गलत। बस म ये चाहता था और मुझे ये
करना था। फर मने याना को टडी के बहाने म पर बुला लया। इधर म पहले से ही उसके
लए वोदका ले आया था और अपने लए बीयर।
याना के म पर आने बाद हम कुछ दे र इधर-उधर क बात करते रहे और फर दे खते-
ही-दे खते म दो बयर पी चुका था और याना भी वोदका का लगभग वाटर अपने अंदर
उड़ेल चुक थी। व के साथ-साथ नशा जैस-े जैसे चढ़ता जा रहा था वैस-े वैसे मेरा गु सा
और मेरा पागलपन भी और बढ़ता जा रहा था। तभी वो अपना अगला पेग पीने ही वाली थी
क मने उसके हाथ को रोक दया। फर मने उसके लास क वोदका अपने मुँह म डाल ली
और उसे अपनी ओर ख चकर उसके ह ठ पर अपने ह ठ लगा दए। मेरे मुँह म भरी वोदका
धीरे-धीरे उसके गले से उतरती ई उसके खून म घुलकर उसके दमाग म चढ़ने लगी। असल
म तब तक हम दोन को इतनी चढ़ चुक थी क अब हम इस हालत म नह थे क वोदका
और ह ठ म अंतर कर पाए। अगले ही पल हम दोन एक- सरे को कसी लॉलीपॉप क
तरह चूसने लगे। ये पहली बार था जब म कसी लड़क के साथ था और वो भी इतने नशे म।
मेरा पागलपन अपनी हद पार करने लगा था और फर कुछ ही दे र म हमारे कपड़ो ने न जाने
कब हमारे शरीर से बेवफाई कर ली।
मेरे ह ठ जैस-े जैसे उसक ना भ को चूमते ए ऊपर क ओर बढ़ रहे थे, वैस-े वैसे
उसक आँख उस एहसास म खोते ए बंद होती जा रही थ । उसक आँख बंद होती दे ख
मेरा पागलपन या यूँ कहो क वहशीपन और भी यादा भड़क उठा और फर मने न आव
दे खा न ताव और उसके गाल पर एक थ पड़ जड़ दया। फर उसी पागलपन म म च लाने
लगा क तुझे आज ये सब दे खना है, तू अपनी आँख बंद नह कर सकती, समझी।
याना मेरी इस हरकत से जैसे कसी शॉक म आ गई। उसे ये समझ नह आ रहा था क
ये सब हो या रहा है और शायद न ही मुझ।े म पूरी तरह से नशे म डू ब चुका था। मने फर
बना कुछ सोचे अपने दाँत उसके ह ठ पर गड़ा दए। उसके ह ठ से तुरंत ही खून नकलने
लगा और कुछ ही सेकंड म उस खून का वाद हमारे मुँह म फैलता चला गया। उस दन म
जो भी कर सकता था, जतने भी पागलपन से कर सकता था, वो सब कुछ कर डाला। मने
पहले भी ये सब कुछ ब त बार कया था पर तब ये कभी यार, तो कभी शरारत के साथ
आ था। पर आज जो कुछ भी आ वो सफ और सफ मेरा गु सा था, मेरा पागलपन था,
मेरा वहशीपन था। पहले भी ये मेरे और व ध क मज से आ था और आज भी ये मेरे और
याना क मज से आ था पर तब मेरे इराद म सामने वाले के लए इ जत और यार था
ले कन आज कसी और को कुछ दखाने क एक पागल जद।
उन सबके बाद कब न द आई ये पता नह , पर वापस आँख कब खुली ये ज र पता
था मुझे। थोड़ा और होश आते ही मुझे महसूस आ क मने ये या कर दया। जो आ वो
नह होना चा हए था। कम-से-कम ऐसे तो नह होना चा हए था। कुछ घंट पहले जो जानवर
मुझ पर हावी था उसका अंदाजा मुझे इस बात से लगा क उठने पर मेरी हालत खराब हो
चुक थी। मुझे नीचे इतना दद कर रहा था क म ठ क से उठ भी नह पा रहा था। थोड़ा खुद
को सँभालकर जब मने याना क ओर दे खा तो मेरा वजूद अपनी गहराइय तक हल गया।
याना क हालत मुझसे भी यादा खराब थी। उसक तकलीफ और उसके दद को बयान
करते उसके वो आँसू मेरे अ त व और मेरी पहचान को कसी क चड़ म धँसाए जा रहे थे।
मुझे खुद पर शम आ सके तब म खुद को इस लायक भी नह समझ पा रहा था। म खुद पर
और अपनी सोच पर ही सवाल उठाने लगा। म खुद से ही पूछने लगा क या बस यही
मदानगी है तेरी? मेरा जमीर थोड़ा होश सँभालकर मुझसे बोला, “अगर तुझे अभी भी कह
से ये लग रहा हो क अब तूने खुद को मद सा बत कर दया है तो इससे अ छा तो यही होता
क तू हजड़ा ही पैदा होता। कम-से-कम तुझे ये मदानगी का बोझ तो नह ढोना पड़ता।”
म पता नह तब कस पागलपन म था जो मने ये सब कर दया। म खुद को जानता था
क म ऐसा नह ।ँ म वो लड़का था जो कसी लड़क से स चा यार करता था, उसक
इ जत करता था। मजाक अपनी जगह था पर म कभी ऐसा क ँ गा और वो भी इन इराद
के साथ, ये मने कभी सपन म भी नह सोचा था। असल म इस हादसे ने मुझे अपनी ही
नजर म ही गरा दया।
उधर याना थोड़ा-ब त खुद को सँभाल कर उठने क को शश कर रही थी पर उसका
वो दद उसे ऐसा करने नह दे रहा था। म ये सब दे खकर याना के पास गया और उसे कसकर
अपने गले लगा लया और फर याना ने जैसे ही मुझे अपने हाथ म समेटा, म बखर गया। म
एक-एक पल म उससे ब त कुछ कहना चाहता था। उसे अपना घनौना सच दखाना चाहता
था पर ये सब म उससे कैसे कहता! तब याना का एक-एक आँसू मेरे जमीर के कतरे-कतरे
को र द रहा था। म ब त को शश कर रहा था क कैसे भी खुद को सँभाल पाऊँ पर मुझसे ये
हो नह पाया और फर दे खते-ही-दे खते म टू ट गया। मेरे आँसू जब मेरे गाल से फसलकर
उसके गाल को भगाने लगे तो मुझे सँभालने के लए उसने खुद को मुझसे थोड़ा-सा अलग
कया और मेरे आँसु को प छते ए बोली, “अ भ ड ट वरी ना! म ज द ही ठ क हो
जाऊँगी। हम दोन नशे म थे। हम दोन को होश नह था। तुम इतना बुरा य फ ल कर रहे
हो? सब ठ क है, इसम तु हारी कोई गलती नह है।”
नशे म हो जाता है। बात नॉमल थी पर मुझे नॉमल लग नह रही थी। म उसे लेकर वह
बैठ गया और उसक बात को बार-बार दोहराकर खुद को शांत करने क को शश करने
लगा। पर उसके लाख समझाने, खुद को खुद ही लाख मनाने के बाद भी मेरे आँसू थम ही
नह रहे थे। ये दे ख वो मुझे पास के मै े स पर ले गई और उसने मुझे वह अपने पास सुला
दया। उसने मेरे तपते सर को अपनी छाती से लगा लया और धीरे-धीरे मेरे बाल को
सहलाने लगी जैसे वो चाहती हो क म कुछ दे र के लए वह उसके आँचल म सो जाऊँ और
जब उठूँ तब इस बात को एक बुरे सपने क तरह भूल जाऊँ।
तभी उसने मेरे सर सहलाते ए कहा, “अ भ, आई लव यू!” पर मेरे पास तब इस बात
का कोई जवाब नह था। एक ओर मेरा यार था जो यहाँ से मील र, इन सब बात से
बेखबर मेरे एक फोन के इंतजार म बैठा था और सरी ओर याना थी जो अपने आँसु म
अपनी अकड़ और अपने दखावे को बहाकर खुद को मेरे साथ एक नये र ते म जोड़े जा
रही थी। तब वो खुद भी दद से गुजर रही थी पर तब उसे खुद से यादा मेरे दद क फ
थी। तब वो खुद भी रो रही थी, पर उसे खुद से यादा मेरे आँसु क फ थी। उसक
उँग लयाँ मेरे बाल को वैसे ही सहला रही थ , जैसे म व ध के बाल को सहलाया करता था।
आज उसके शरीर क गम म मेरे लए वही यार था जो मेरे अंदर व ध के लए आ करता
था। मेरा दल कह रहा था, “अ भ बोल दे उसे क तू कसी और से यार करता है।” पर शम
और पछतावे ने तब मेरी जुबान सी रखी थी। उसने मुझसे फर पूछा, “अ भ, यू लव मी
ना?” म जानता था क ये गलत है, पर मने उसके माथे को चूमा और उसे अपने सीने से लगा
लया। फर मेरे ह ठ मेरी इजाजत के बना ही बड़बड़ाने लगे, “आई लव यू टू बेबी! आई लव
यू टू !” फर जे ही पल मने करवट बदलकर खुद को उसके चेहरे क ओर कर लया। तभी
उसने मेरे एक हाथ को अपने सर के नीचे रख उसे अपना त कया बना लया। जागने के बाद
उसक आँख को पहली बार इतने नजद क से दे ख रहा था म। उसके आँसू थम चुके थे,
उसके आँसू सूख चुके थे पर उनके बहने से बने वो नशान अभी भी उसके गाल पर जदा
थे। म न जाने य उन नशान पर अपनी उँगली घुमाने लगा मानो जैसे म उ ह मटा दे ना
चाहता ँ। कुछ नशान साफ ज र कए जा सकते ह, पर शायद उनको हमेशा के लए
मटाया नह जा सकता। और फर दे खते-ही-दे खते मेरा बखरता अ त व उसके यार का
सहारा लेकर अपने वजूद को फर से साफ-सुथरा करने म लग गया ले कन व और बहते
उन आँसु के साथ-साथ मेरा भी कुछ-न-कुछ उससे जुड़ता जा रहा था। शायद म भी अब
उसक चता करने लगा था। उसके दल म जो मेरे लए एक नया र ता बन रहा था उसक
फ करने लगा था। म जानता था क ये गलत है, पर म समझ ही नह पा रहा था क या
क ँ । तो जब कुछ भी नह सूझा तो मने अपनी आँख बंद करके सब कुछ व के हवाले
छोड़ दया। पर काश आँख बंद कर लेने से रौशनी क तरह हमारा सच भी गायब हो सकता!
म घंटे भर तक उसे ऐसे ही अपने पास लए सोता रहा और जब वापस आँख खुली तो
दे खा क शाम के 6 बज रहे थे। मने याना को न द से जगाया और कहा, “तुम े श हो
जाओ, म पेन कलर लेकर आता ।ँ ” म से नकलते ही मने रतेश को कॉल कया और
उसे म पर बुला लया। उसके आने से पहले मने याना को जूस पलाकर और उसे पेन
कलर दे कर उसे उसके म पर छोड़ आया। वापस आकर मने रतेश को सब कुछ बता
दया। वो सब कुछ जो मने सोचा, जो मने कया, जो मने याना से कहा। रतेश ये सब सुनते
ही गु से म आ गया। उसे यक न नह हो रहा था क म इतना कमजोर इंसान नकला क मने
एक फालतू-सी बात को बढ़ा-चढ़ाकर ये सब कारनामा कर दया क मने एक और लड़क
को खुद से जोड़ दया। पर शायद कह -न-कह रतेश भी मेरी लाचारी भाँप गया था और ये
भी समझ गया था क म खुद अब उस हरकत के लए पछता रहा ।ँ रतेश मुझे जानता था
क म ऐसा लड़का नह ँ। पर शायद कुछ गल तयाँ बस हो जाती ह बना कसी वजह। तो
उसने मेरी और मेरे ज बात क ऐसी हालत दे खकर मुझे हग कया और कहा, “टशन मत ले
तू, जो भी होगा दे ख लगे अपन।”
फर कुछ ही दे र म म म रम क बोतल चमकने लगी। लेट म चखना कसी नई
नवेली हन क तरह सजने लगा और शराब उन लास क द वार से टकराकर उस बोतल
से अपनी आजाद का ज मनाने लगी। मने व ध से पहले ही बात कर ली और उसे बता
दया क आज रात भर पाट चलेगी तो मुझे ड टब न करे। रतेश भी उधर शफा से चै टग
कर रहा था और साथ ही पेग भी मारे जा रहा था। पर हर रोज से अलग, आज न जाने य
मेरे खयाल रह-रहकर याना के पास ही जा रहे थे। पता नह यू!ँ पर म अब धीरे-धीरे उसक
ओर झुका जा रहा था। जैसे ही 12 बजे, रतेश और मने एक- सरे को गले लगाया और बीते
ए उस शानदार साल को आ खरी सलाम दे कर उसे उसी जोश और खुशी के साथ अल वदा
कह दया। तब तक व ध और बाक दो त के भी कॉल आना टाट हो गए थे। हमने उन
सबको नया साल पूरी गमजोशी के साथ वश कया। पर इन सब के बीच याना भी मुझे कॉल
करने क को शश कए जा रही थी पर मेरे कसी-न- कसी से बात करने क वजह से उसका
कॉल लगातार वे टग पर ही आ रहा था। फर उसे पता नह या सूझा क वो इतनी रात को
अपनी कूट लेकर मेरे म के बाहर आ गई। म तब बाहर ही था और व ध से बात कर रहा
था। मने याना को दे खते ही रतेश के आने का बहाना बनाकर व ध का कॉल काट दया और
भागकर उसके पास गया। उसे यहाँ इतनी रात को अकेले दे खकर मुझे ब त हैरानी ई। मने
थोड़े गु से और थोड़ी हैरानी से उसे पूछा, “ या आ? यहाँ इतना लेट, यूँ?”
जो लड़क कुछ घंट पहले ठ क से चल भी नह पा रही थी अब वो फर से मेरे सामने
खड़ी थी। उसके चेहरे पर एक माइल थी और उस रोड लप क लाइट म म ये साफ दे ख पा
रहा था क वो माइल उसके उस दद को कनारे करके कतनी मु कल से उसके ह ठ तक
आई थी। उसका दद अब भी हर सेकंड पूरी को शश कर रहा था क वो उस माइल को
पछाड़कर उस पर हावी हो जाए पर शायद याना ने उसे ऐसा करने क अभी तक इजाजत
नह द थी। उसे यहाँ, ऐसे दे खकर म इतना तो समझ रहा था क इन कुछ घंट क री ने
उसम ब त कुछ बदल दया था और हाँ, शायद मुझम भी।
वो कूट से उतरी और मुझसे लपट गई, “है पी यू इयर बेबी। बस मुझे तु ह पास
आकर वश करना था, तो आ गई।”
म च लाने लगा, “तुम पागल हो या! तुम सही से चल भी नह पा रही हो और यहाँ
आ गई! या ज रत थी इसक !” पर उसपर मेरी डाँट का कोई असर नह आ, वो बस
मुझे दे खे जा रही थी और बस दे खे जा रही थी। कुछ दे र मुझे ऐसे ही दे खने के बाद उसने
मुझे फर से हग कर लया और फर वो मुझसे बना कुछ कहे ही वापस अपनी कूट को
टाट करके जाने लगी। और म, तब न तो उसे हग कर पाया और न ही उसे यू ईयर वश कर
पाया। म न जाने य बस अपने ही खयाल म उलझा रहा।
पता नह यू!ँ ले कन उसका यूँ मुझे अकेला छोड़कर वापस जाना मुझे थोड़ा अजीब-
सा लग रहा था। मेरा दल बना तक- वतक कए, बना सही-गलत समझे उसे बस कैसे भी
रोकना चाहता था। तो मने अपने दल क सुनकर तुरंत ही उसे कॉल कया और उसे वापस
मेरे पास आने को कहा और जैसे ही वो लौटकर आई, मने उसे कस के अपनी बाँह म भर
लया। शायद वो भी यही चाहती थी वरना खामखा मुझसे लपटते ही उसके आँसू न नकल
आते। उसके उन बहते आँसु ने मेरी ट -शट को भगाने के साथ-साथ मेरे खयाल को भी
भगाकर उ ह एक चार द वारी म कैद कर दया था, जहाँ से न तो म बीता आ व दे ख पा
रहा था और न ही अपने आने वाले कल के बारे म कुछ सोच पा रहा था। उन आँसु ने मुझे
मेरे वतमान म ही बाँध दया। जहाँ म था, याना थी और था हमारा वो अध-पका र ता।
मने उसे थोड़ा-सा खुद से अलग करके पूछा, “ या आ? ये आँसू यू? ँ ” उसने मेरे
माथे को चूमते ए कहा, “आई लव यू अ भ, आई लव यू सो मच।” मने ये सुनते ही उसे
वापस अपनी बाँह म कस लया। शायद यही मेरा जवाब था, जसे म बना कुछ बोले ही
उस तक प ँचाना चाहता था।
“लॉ ग ाइव पर चलोगी या?” मने उसे वैसे ही अपनी बाँह म रखे ए पूछा।
तब रात के लगभग 1 बजने को थे और उसने बना कुछ सोचे-समझे ही हाँ कह दया।
मने भी अपनी बाइक नकाली और फर हम दोन ने उस नये साल क खुली हवा म, एक
नई र तार के साथ खुद को और अपने उस नये र ते को आजाद छोड़ दया।
(13)
ए जाम सर पर आ चुके थे। मताली वाले कांड क वजह से मने लाइ ेरी जाना लगभग
छोड़ दया था। मने फर से अपने माँ-बाप से पूछे बना ही अपने मकान मा लक को बताने
के लए याना को अपनी नई बहन बना दया था जो अपने भाई यानी क मुझसे मलने या
मेरे साथ पढ़ने बना कसी रोक-टोक के हमारे म पर आ-जा सकती थी। इ ह सब के बीच
गुजरते व के साथ-साथ रतेश ने भी याना को व ध क तरह ही अपना लया था और इस
कंडीशन म तो बस वही मेरा रलेशन शप एडवाइजर था। तो मने और रतेश ने एक दन
याना को बात -बात म ये भी समझा दया क रतेश क व ध नाम क एक बहन भी है जो
जयपुर म पढ़ती है। इन दन मेरा काम ब त बढ़ गया था। मुझे सबसे पहले व ध को मैनेज
करना था, फर याना को और इसके बाद मुझे ये भी दे खना था क कसी भी हाल म दोन
को एक- सरे का पता न चले। और इन सबके अलावा शफा और रतेश के यार को भी तो
सँभालना था य क व के साथ-साथ उसका र ता भी पकने लगा था, गाढ़ा होने लगा
था।
उधर ए जाम क वजह से सारे कॉलेज को जैसे साँप सूँघ गया था। आज कल वहाँ
कोई भी हलचल नह दखती थी। इन दन सब अपनी-अपनी वन वीक सरीज को अपनी
गल ड के मोबाइल नंबर क तरह रटने म लगे थे। म और रतेश भी पूरी-पूरी रात कताब
के बीच बताने लगे थे और कसी भी तरह के ड टब स से बचने के लए हमने म पर ही
र े शमट के लए सगरेट्स, रम और मैगी का पूरा इंतजाम कर रखा था। वो या था क हम
कसी भी रीजन क वजह से अपना टाइम वे ट नह करना चाहते थे। पर इस ए जाम टाइम
क जो सबसे खास चीज थी वो थी रात भर कसी उ लू क तरह जगने के बाद सुबह के 3
बजे बस टे शन पर पोहे और चाय के लए जाना। कभी-कभी तो पढ़ने का मन न होने के
बाद भी इसी पोहे और चाय के लालच म हम पूरी रात उ लु क तरह जगते रहते। कभी-
कभी इस मॉ नग दावत म याना भी आ जाती थी। ये वही बस टे शन था जहाँ म हमेशा व ध
को रसीव करने आता था। याना को यहाँ इस जगह अपने साथ दे खकर कभी-कभी मेरा
ग ट मुझ पर हावी हो जाता पर उस समय ए जाम का ेशर और रतेश क जदा दली न
जाने कैसे पर मुझे सँभाल लेती। दे खते-ही-दे खते व क र तार ने एक-एक करके सारे
ए जाम क डेट्स को पीछे छोड़ दया। सारे ए जा स अ छे से हो गए और हम फर से एक
और साल के लए आजाद हो गए। ए जाम क आ खरी रात हमने खुलकर पाट क , पूरे रात
ट ली होकर उन खाली सड़क पर जी भरकर नाचते रहे।
व ध कब से उदयपुर आने क जद कए जा रही थी, ले कन उसे यहाँ बुलाना मुझे
और रतेश दोन को कसी भी एंगल से सही नह लग रहा था। तो मने उसे मना कर दया
और इस बार मने खुद जयपुर जाकर उससे मलने का लान बना लया। मने याना को
बताया क म पापा के साथ कसी काम से कुछ दन के लए जयपुर जा रहा ,ँ तो तुम
कॉल नह करना। जब मुझे व मलेगा तो म तु ह सामने से ही कॉल कर दया क ँ गा और
फर अगली सुबह म जयपुर म था। मुझे टे शन से सबसे पहले अपने दो त के यहाँ जाना था
और फर वहाँ से व ध के कॉलेज।
मेरे हसाब से जयपुर क सबसे बड़ी द कत ये थी क यहाँ उदयपुर से उलट सब कुछ
एक- सरे से ब त र- र था। हम, जो उदयपुर म बना बाइक के चाय पीने तक जाना भी
अपनी तौहीन समझते थे, उ ह यहाँ बस म खड़े-खड़े जाना पड़ रहा था। उस सट बस से
अपने ड के म तक के सफर म म इतना तो सोच ही चुका था क आगे चाहे कुछ भी य
न हो जाए पर म दोबारा कसी भी सट बस म नह बैठने वाला। तो मने अपने सरे ऑ शन
का सहारा लया और ऑटो क शाही सवारी लेकर व ध के कॉलेज प ँच गया।
सबसे पहली बात जसने वहाँ मुझे थोड़ा आ य म डाला वो ये थी क वहाँ के कॉलेज
गेट के बाहर स यू रट गाड खड़ा था और कॉलेज के अंदर जाने के लए आपके पास
कॉलेज का आई काड होना चा हए था। माँ कसम ये दे खकर दमाग सोचने लगा, ‘ये कहाँ
आ गया बे!’ कोटा से आने के बाद मने सीधा एक गवनमट कॉलेज म एड मशन ले लया
था। ाइवेट कॉलेज म आज तक अपना कभी जाना आ ही नह था। फर भी भाई, या
गजब बकचोद पेल रखी थी इ ह ने यहाँ, आई काड! कॉलेज गेट पे! आर यू सी रयस?
साला हमारे कॉलेज म आई काड होता भी है इसका पता सफ और सफ इले शन के टाइम
म चलता था और वो भी जो इले शन म खड़ा होता था, वो उसे लाकर हम सामने से दे जाता
था और वो भी शराब के पैस के साथ। और यहाँ दे खो, सब कसी पालतू कु े के पट् टे क
तरह इसे गले म डालकर घूम रहे थे। साला एक मेरा कॉलेज था जहाँ कोई भी, कसी भी
व , कह से भी आकर घुस सकता था। वहाँ कसी भी कॉलेज का लड़का अपने दम के
हसाब से खुलकर रोमांस कर सकता था और वो भी बना कसी आई काड के।
सच क ँ तो वो कॉलेज का गेट और वो गाड मुझे जा तवाद, समाजवाद और धमवाद
के बाद कॉलेजवाद के नाम पर जवान दल क मोह बत और लड़क के दे श के कसी भी
कोने म, लड़ कय को ताड़ने के अ धकार का शोषण करता आ दखा। ये वैसे ही इंतजाम
थे जो साल से हमारे दे श म गरीबी और र तखोरी जैसी कई बीमा रय को ख म करने के
लए कए जाते रहे ह। जहाँ नयम , कायद और सजा को इसी गाड और इसी गेट क
तरह बड़ा, मोटा और हाथ म लट् ठ लए सजाया जाता रहा है। जो कमजोर को तो डराते ह,
पर अमीर और पैस वाल को अपने लूप होल दखाकर आगे का रा ता भी बताते ह।
बलकुल वैसे ही जैसे उस दन आगे वहाँ आ।
मने व ध को र से ही अपनी ओर आते दे ख लया था। पर इस बार म उसे दौड़कर
हग नह कर सकता था य क हमारे बीच वो गेट और वो एक मोटा गाड खड़ा था। पर
इसका भी हल उनके पास था। हाँ वही लूप होल, जसक म अभी ऊपर बात कर रहा था।
व ध ने अंदर से ही मुझे गेट के एक खाँचे से कसी और का आई काड थमा दया और म
उसे लेकर बड़ी आसानी से उस गाड और उस बड़े से गेट पर हँसता आ अंदर चला गया।
साला कसी मॉडन पजरे जैसा कॉलेज था वो, या यूँ कहो क टरोइड् स ठूँ स-ठूँ सकर
बनाए गए स स पैक ऐ स फ सक वाले कसी मॉडल जैसा कॉलेज था वो। और एक
हमारा कॉलेज था, एकदम कसी गाँव के ब नये क तरह मोटा, हट् ठा-कट् ठा, हर तरफ से
फैला आ। खैर छोड़ो हम या करना! वहाँ से व ध मुझे लेकर सीधा कट न आ गई और
फर कुछ ही दे र शु ई मेरी नुमाइश। उसने लगभग अपनी पूरी लास को ही वहाँ बुला
लया और जसको नह बुलाया वो भी वहाँ आ टपका मुझे दे खने। जैसे क वो सब अपने
नये-नये दामाद को दे खने आए ह क दे खे तो या नमूना है भाई!
धीर-धीरे करके मेरे पास वाली सारी चेयस भरने लगी। जब सब आ गए तो मने सबसे
पहले सारी लड़ कय को एक बार अपने फ टर से गुजारना सही समझा और फर कुछ ही
सेकंड् स म मेरा फ टर मुझे बताने लगा क उन सब म बस एक ही लड़क दे सी थी जो व ध
से थोड़ी यादा या कह सकते हो क बराबरी के लेवल पर खूबसूरत थी। ये दे खकर मने
खुशी के मारे धीरे से अपने कॉलर को थोड़ा ऊपर कया और अपनी क मत को थ स कहा
क साला ुप म सबसे अ छा माल अपने पास ही है।
उसके बाद मने सारे लड़क को एक-एक करके दे खा और वो सारे के सारे मुझे
मा टरबेशन क बीमारी के शकार दख रहे थे। मुझे लग रहा था क वो सब शायद अभी
यही सोच रहे ह क साला दखने म तो ठ क-ठाक ही है ये, पता नह या खास है इसम जो
अपने कॉलेज का कंचा इसके साथ मजे मार रहा है। ले कन ये तो सफ मेरी सोच थी वो तो
सारे-के-सारे शरीफ ब चे थे और शायद इसी लए ही वे सब चुप-चाप बैठे थे जैसे कसी क
मै यत म आए ह । इसी बीच एक लड़के ने ह मत करके कहा, “अ भ या खाओगे,
बताओ? हमारे कट न का आलू पराठा ब त अ छा है।”
माँ कसम, तब आलू के पराठे क बात सुनकर अचानक ही मेरी हँसी छु टने वाली थी
क मने जैस-े तैसे खुद को रोका और थोड़ा ककर मने खुद को समझाया क दे ख अ भ,
इतनी ज द कसी के बारे म कोई राय नह बनाते। या पता इस कॉलेज का क चर और
री त- रवाज ही यही हो। या पता यहाँ ल ड म आलू पराठे का ही वैग हो, या पता यही
यहाँ कूल होने क नशानी हो या ये भी तो हो सकता है क इन बेचार के पास कोई और
ऑ शन ही न हो। अब जो भी था पर वो व ध का ड था, तो उसक इ जत तो रखनी ही
थी।
“ठ क है, तुम कहते हो तो खा लेते ह।” मने उसक बात क लाज रखते ए कहा और
फर वो साहब उठे और आडर करने के लए चले गए। मने भी फर अपना पूरा फोकस व ध
पर लगा दया, वैसे भी उसके ुप म मुझे कोई और लड़क बात करने लायक लगी नह ।
फर कुछ ही दे र म बटर म नहाया आ पराठा, जसने लोग क नजर से खुद को बचाने के
लए जगह-जगह काला ट का लगा रखा था, हमारे सामने लेट म आ गया। अब ये बात, एक
तो म और सरा मेरा भगवान जानता था क जतना बटर उस एक पराठे पर था उतने बटर
म तो साला मेरी कॉलेज कट न वाला आराम से दन भर का भ जया तल सकता था। पर इन
सब चम कारी बात से बेखबर उधर व ध सफ और सफ मुझे दे खे जा रही थी, मानो जैसे
वो इस पल का एक ल हा भी वे ट नह करना चाहती हो। उसे ऐसे अपनी ओर दे खते दे ख
मने फटाफट उस पराठे को अपने मुँह म ठूँ स लया जससे क ये सब कुछ ज द ही ख म
हो जाए और हम दोन फर से अकेले हो जाएँ। उस व शायद कुछ उ टा-सीधा उन सब ने
मेरे बारे म सोचा और ब त सारा मने उन सब बारे म, पर जैस-े तैसे वो मुँह दखाई क र म
ख म हो ही गई और फर हम दोन वहाँ से जयपुर दे खने नकल गए।
ले कन हर बार से उलट इस बार म व ध के साथ ब त यादा ही खामोश था और
ज रत से यादा पजे सव भी। मने कॉलेज से ही उसका हाथ पकड़ रखा था और पूरे सफर
तक पकड़े रहा। मानो जैसे मेरे जेहन के कसी कतरे को उसके कह खो जाने का डर सताने
लगा हो मानो जैसे वो उसे थाम लेना चाहता हो, उसे व क र तार से यादा खुद म समेट
लेना चाहता हो। या फर म खुद ही अपनी स चाई से घबरा गया था और कैसे भी उसे
बदलना चाहता था। मुझे ये सब कुछ बड़ा अजीब-सा लगा रहा था और शायद उसे भी।
उसने मुझसे पूछा भी क कुछ आ है या? पर शायद तब मेरा सच उतनी ह मत नह जुटा
पाया था क वो व ध को उसके सवाल का जवाब दे पाए। तो मने भी अपने जवाब को
खामोशी का फेस पैक लगाकर गोरा होने के लए साइड म रख दया और उसक जगह एक
कुपोषण क शकार माइल को दे द ।
जहाँ तक म जानता ँ तब मेरे अंदर एक लड़ाई चल रही थी जसने मुझे दो खेम म
बाँट दया था। उसम से एक खेमा ये चाहता था क याना क स चाई आज व ध को बता द
जाए और इससे उ टा सरा खेमा मुझसे कह रहा था, “साले ये बकचोद करने क सोचना
भी ना। नह तो आज ये तेरी लाइफ से जानी तय है बेटा!” पर जब आप जानते ह क आप
गलत ह तब आप कतना भी उसे छु पाने क को शश कर आपके हाव-भाव सामने वाले को
कुछ-न-कुछ गलत है ये दखा ही दे ते ह। इसी बताने-छु पाने क कशमकश के बीच मेरा मन
तब मुझे ये यक न दलाने क नाकाम को शश कर रहा था क अगर म व ध को सब बता ँ
तो वो मेरी मजबूरी समझ जाएगी और मुझे माफ कर दे गी। पर मेरी ह मत पता नह कौन-से
कोने म जाकर छु पी ई थी क म चाहते ए भी उसे कुछ बता नह पा रहा था। आज ये
पहली बार था जब हम इतनी दे र साथ रहे और मने उसे एक कस तक भी नह कया। उसे
एक हग तक भी नह दया। उसे अपनी बेकार-सी बात से परेशान नह कया। लोग के
सामने कुछ उलट -सीधी हरकत करने का मजाक करके उसे डराया नह । पर सच क ँ तो
आज मेरे चेहरे पर मेरा रंग था ही नह , वहाँ तो बस एक खामोशी थी जो कैसे भी अपने यार
को कसी नद क तरह अपने ही दो कनार म बँटने से रोकना चाहती थी।
ऑटो के च के अपने पूरे जोश म शहर क सड़क को नापने लगे थे और म उसे अपना
सच बताने क ह मत खोजते-खोजते बस हमारे उस व को खच करता जा रहा था।
ले कन अपनी लाख को शश के बाद भी म नह बता पाया उसे। म नह बता पाया उसे क
मुझे या आ है? य अब म वो नह ँ जसके उधेड़पन को उसने अपने यार से स चा
था। जसे उसने अपने दलो-जान से यार कया था। जसे उसने यार करना और यार को
सँभालना सखाया था।
पूरे चार दन ‘उसे बता दे ता ’ँ , ‘नह रहने दे ता ँ’ म ही उलझकर रह गए और मेरे
वापस लौटने का व आ गया। म पहले सोच रहा था क व ध से मलकर मेरा ग ट शायद
कुछ कम हो जाएगा पर असल म ऐसा कुछ भी नह आ। वो उ टा और भी यादा बढ़
गया। उस दन मने उसे ब त मना कया पर वो भी मानी नह और मुझे छोड़ने टे शन तक
आ गई। उधर शाम दन से बेवफाई कर रात क बाँह म खुद को फना करने क बेकरारी म
पागल -सी भागी जा रही थी। तो इधर दो लोग, े व स के उस ऑ फस क उस कोने वाली
सीट पर बैठे ए कभी एक- सरे क खामोशी को समझने क को शश कर रहे थे तो कभी
एक- सरे क परेशा नय और उलझन को सँभालने क । तभी मेरी बस के उसके ऑ फस
के सामने आते ही व ध ने मेरे हाथ पर उसके हाथ क पकड़ को पहले से यादा मजबूत
कर लया जैसे क वो मुझे रोक लेना चाहती हो। पर तब उसने मुझसे ऐसा कुछ भी नह
कहा। ले कन सच कहता ँ अगर वो तब ये कह दे ती तो म माँ कसम सब कुछ छोड़कर
उसके पास ही क जाता। ले कन तब हम दोन खामोश थे, पर ये हम दोन अ छे से जानते
थे क हम एक सरे से ब त कुछ कहना चाहते ह। ले कन तब न तो व ध ने मुझसे कुछ
पूछा और न ही म उसे कुछ कह पाया। फर कुछ ही व म वो बस हमारी खामोशी और
हमारी उलझन को एक- सरे म बराबर बाँटकर मुझे उससे र लेकर चली गई। बस रात क
उस मासू मयत और उसके सूनेपन का फायदा उठाकर उसक चाँदनी क ठं डक म भीगे उस
काले अँधेरे को चीरती ई आगे बढ़ती गई और म उस वडो से बस क इस तानाशाही को
लाचार-सा दे खता रहा और सोचता रहा, “ये सब मेरे साथ य हो रहा है? य म बाक
लड़क क तरह दोन को एक साथ सँभाल नह पा रहा ँ?”
घंटे-दर-घंटे रात कटती रही और सुबह तक आ प ँची। सुबह जब उदयपुर उतरा तो
याना मुझे स ाइज करने के लए सामने ही खड़ी थी। म रात भर व ध को दए धोखे के बारे
म तरह-तरह से सोच-सोचकर तब पहले से ही इतना परेशान था और उसको यूँ इतनी सुबह
अकेले यहाँ टे शन पर दे खकर मेरा पारा और भी चढ़ गया। म वह सबके सामने उस पर
च लाने लगा। उसको अनाप-सनाप कुछ भी बकने लगा। मुझे ऐसे च लाते दे ख आस-पास
से गुजरते लोग भी पास आकर पूछने लगे क या बात है भाई? य लड़ रहे हो? पर म
या कहता उ ह? म तो व ध और याना के बीच बँटते-बँटते पागल ए जा रहा था। मुझे बस
व ध चा हए थी पर म याना को भी छोड़ना नह चाहता था और इन सबसे ऊपर म उन दोन
म बँटना भी नह चाहता था। इसी कशमकश म मने तब न तो उसके आँसु को रोकने क
को शश क और न ही उसे मनाने क । जब उसका रोकर हो गया तब उसक कूट के पीछे
बैठकर म अपने म तक आ गया और फर उसे बना कुछ कहे ही म म चला गया। ये
पहली बार था जब वो मेरे म के बाहर खड़ी थी, म अंदर था और मुझे ये पता था इसके
बावजूद भी दरवाजा बंद था। सच क ँ तो म ये भी अ छे से जानता था क जब तक म
दरवाजा खोल न ँ वो ऐसे ही बाहर ही खड़ी रहेगी। पर तब मेरा दल उस हद तक परेशान
था क म सही-गलत म कुछ भी समझ ही नह पा रहा था या फर शायद म समझना ही नह
चाहता था। शायद कह कसी कोने म मने इन सबका ज मेदार सफ और सफ याना को
मान लया था। और इसी वजह से शायद तब मने बस अपनी कंबल अपने सर तक ख ची
और उसे बाहर अकेला छोड़कर ही सो गया।
याना कोई सपल, सीधी-साद लड़क नह थी। उसे भी ये पता था क वो या चीज है
क वो मेरे से कई गुना यादा माट, कई गुना यादा पैसे वाले लड़क को बड़ी आसानी से
अपने आगे-पीछे घुमा सकती है। उससे भी बड़ी बात तो ये थी क ये बात उससे भी अ छ
तरह से मुझे पता थी। अगर म सीधा व ध के मेरी लाइफ म आने से पहले उसके लए ाई
मारता तो वो कसी भी हाल म मुझसे सेट नह होती। ए चुअली तब तो वो मेरे ाई जोन के
ब त ही बाहर यानी क अपनी औकात के ब त बाहर वाली ल ट म ही होती। मगर जब
आपके पास पहले से ही एक खूबसूरत गल ड होती है तब आपक औकात, आपक
ह मत और कसी भी लड़क क हाँ और ना को हडल करने क आपक समझ अपने-आप
ही बढ़ जाती है। और यही एक मा रीजन है क जसके पास पहले से ही गल ड है उसे
सरी ब त आसानी से मल जाती है और जनके पास नह है, वो ऐसे ही घूमते रहते ह।
(14)
रतेश ने ब त को शश क क म कैसे भी याना से वापस बात कर लूँ, पर मेरा उससे बात
करने का कोई मूड नह था। या शायद तब म अपने ही खयाल और अपनी ही सोच म इतना
यादा उलझ गया था क कुछ भी समझ ही नह पा रहा था क या क ँ । पर म भूल गया
था क वो याना थी व ध नह । और ये मुझे तब याद आया जब वो उस सुबह वाली घटना के
दो-तीन दन बाद एक शाम फुल ट ली होकर हमारे म पर आ गई और आते ही उसका
मुझसे बस एक ही सवाल था क ‘ यूँ?’
मने तब उसके सवाल को इ नोर करते ए उसे सँभालने क को शश क , उसे चेयर पर
बैठाने क को शश क , मगर वो नह मानी। असल म उसे ऐसे इस हालत म दे खकर मेरी बुरी
तरह से फट गई। मेरे दमाग ने तुरंत ही उस सचुएशन का सही एना ल सस करके मुझे
बताया, “अगर ये आज यहाँ च ला जाती है तो एक तो तेरी इ जत उतर जाएगी, चलो ये तो
फर भी तू सँभाल लेगा य क यादा है नह , पर सरा लडलॉड को भी ये पता चल जाएगा
क ये तेरी बहन नह है।” वैसे भी कौन-सी बहन अपने भाई के सामने ऐसे ट ली होकर
आती है!
इ ह सब वचार के बीच मने बना और व गँवाए सरे ही पल रतेश को आवाज
लगाई, वो कचन म मैगी बना रहा था। उसक भी याना को ऐसे दे खकर तुरंत फटकर हाथ म
आ गई। वो समझ गया क आज इस म म हमारा आ खरी दन है। अब यहाँ कभी पाट
नह होगी, कभी मैगी नह बनेगी। हमने आगे कुछ भी करने से पहले उस कमरे को पल भर
के लए यार से दे खना ही सही समझा क या पता कल हो न हो! तभी रतेश म इस
आपातकाल को दे खते ए अपनी रलेशन शप मैनेजर क पो ट तुरंत सँभाल ली और मुझे
तुरंत बाहर जाने के लए कहा। पर तब एक बार तो मेरा मन आ क म उससे क ँ, “भाई
मेरी गल ड है, म य बाहर जाऊँ?” पर फर मुझे खयाल आया क अगर उसने भी कह
दया, ठ क है भाई, तू ही दे ख ले फर, तब या क ँ गा—यही सोचकर म बना एक पल
और के वहाँ से सटक लया। और फर बाहर खड़े-खड़े यही सोचने लगा क आ खर यूँ?
या गलती है याना क इसम? एक तो वो पहले से ही मेरे जैसे फट चर के साथ रहकर
अपना टे टस गरा रही है और ऊपर से मुझे अब लड् डू मला है तो अब म कसी राजनी तक
पाट के MLA क तरह बेकार ही नाटक कए जा रहा ँ। पर सरी बात जो मुझे उससे भी
यादा परेशान कए जा रही थी वो ये थी क आ खर यू? ँ यार या है मुझम ऐसा क मेरे
लए वो अंदर रो रही है? अगर म याना होता तो ऐसा गलती से भी कभी नह करता। या
कया है मने ऐसा जो उसके जैसी लड़क मेरे लए इतना परेशान है! और ये सफ मेरी ही
बात नह है। हमने अ सर कई बेकार लड़क के लए बड़े-बड़े कंच को रोते दे खा था, उनक
डे पेरेशन को सुना था। या वो सब लड़ कयाँ पागल हो गई थी! या फर उन लड़क के पास
उन लड़ कय का कुछ ऐसा था जसे वो खोने से डर रही थ ! अगर म शाह ख खान मोड म
आ जाऊँ तो ये कह सकता था क उ ह ने अपना दल दया था, यार कया था तो डे पेरेट
तो ह गी ही। पर या है क शाह ख अपना कभी फेवरेट रहा ही नह , तो मेरे आम दमाग ने
मुझे अपनी आम भाषा म समझाना शु कया, “दे ख भाई, यहाँ बात कुछ और ही है। वो
सब लड़ कयाँ न ‘मेरा/मेरी स ोम’ से अ फे टे ड ह।”
ये स ोम इतना घातक है क इसने कसी को भी नह छोड़ा। अरे म तो यहाँ तक भी
कह सकता ँ क आप इ तहास क कोई भी लड़ाई ले ली जए और उसका न प
एना ल सस करके दे खए। आपको कोने म कह -न-कह यही ‘मेरी/मेरा स ोम’ हँसता
आ, अपनी ही अकड़ म बलखाता आ दखेगा।
दे खए दो चीज होती ह, पहली है गल ड, वाय ड, प त, प नी, ोपट , पैसा, माँ-
बाप, लाइफ, आजाद , फलाना-ढे मका और सरी है मेरी गल ड, मेरा वाय ड, मेरा प त,
मेरी प नी, मेरी ोपट , मेरा पैसा, मेरे माँ-बाप, मेरी लाइफ, मेरी आजाद और मेरा/मेरी
फलाना-ढे मका। और इन दोन बात म जमीन-आसमान का फक है। आसान श द म क ँ
तो यही एक मा कारण है क एक बेटा खुद को बेचकर भी अपने माँ-बाप को खुश रखना
चाहता है तो सरा, उनको बेचकर खुद को खुश रखना चाहता है। पहले वाले के लए वो
‘मेरे माँ-बाप’ ह और सरे वाले के लए ‘ सफ माँ-बाप’।
याना क द कत भी यही थी क म जैसा भी था, म उसका वाय ड था। यानी उसके
लए मेरे आगे ‘मेरा वाय ड’, ‘मेरा यार’ लगा आ था। अगर म उसके लए एक गलती
भी था, तो भी उसके लए म ‘मेरी गलती’ था और वो अपने इस मेरा /मेरी को बचाने के
लए कुछ भी कर सकती थी, रोना तो ब त छोट -सी बात थी।
म तब इ ह सब खयाल म उलझा आ था क रतेश कुछ ही दे र म बाहर आ गया
और मुझसे बोला, “सॉरी यार, वो कुछ सुन ही नह रही है। अब तू ही सँभाल। और हाँ,
उसके हाथ म बोतल है, थोड़ा सँभल के! कह तेरे सर पर न दे मारे।”
माँ कसम म तब कुछ समझ नह पा रहा था क या क ँगा उसे अंदर जाकर! पर
अपने जेहन म कह -न-कह , न जाने कैसे पर मुझे इतना तो यक न ज र था क अब तक
इतना कुछ सँभालते-सँभालते म इतना तो सीख ही गया ँ क शायद इसे भी सँभाल ही
लूँगा। तो म डरते-डरते, खुद को ह मत दे त-े दे ते अंदर गया। वो सामने ही चेयर पर बैठ थी।
उसका लुढ़कता सर मुझे ये साफ-साफ बता रहा था क उसने कतनी पी रखी थी। म धीरे
से उसके पास जाकर उसके पैर के बीच अपने घुटन के सहारे बैठ गया। फर मने उसके
चेहरे को अपने हाथ म थामा और यार से उससे पूछने लगा, “ या है यार ये सब?”
मेरी आवाज सुनकर उसने अपनी बंद होती आँख को पूरा खोलते ए मुझे एक पल के
लए दे खा और फर पलक झपकते ही मेरे गाल पर एक त बयत का थ पड़ जड़ दया। उस
थ पड़ क गूँज ऐसी थी क मुझे कुछ सेकंड के लए तो सफ टअअअअअअ….. ही सुनाई
दया और फर म कुछ और समझ पाता उससे पहले ही मेरी अकड़ ने तुरंत ही अपना आपा
खो दया। जवानी म पैर रखने के बाद कसी ने पहली बार मेरे गाल पर थ पड़ मारा था और
वो भी इस साली ने। यही सोचते-सोचते मने गु से म उसके सर को, पीछे उसके बाल से
पकड़ा और अपना हाथ उसे मारने के लए हवा म उठा लया। मेरा गु सा, उसके चेहरे पर
जमी उस अजीब-सी हँसी और उसक शराब के नशे से खुलती-बंद होती उन आँख को
दे खकर एक-एक सेकंड म हजार गुना बढ़ रहा था। म तब इतने गु से म था क म उसे उस
दन मार डालता। सच म, म मार डालता उसे। पर मेरा वो हाथ याना तक प ँचा ही नह ।
मेरी लाख को शश के बाद भी वो वह का रहा, मानो जैसे वो कसी क इजाजत का
इंतजार कर रहा हो। तब तक मेरी नाक और मेरे मुँह से गु से म पानी बहना शु हो गया,
मेरी साँस चढ़ ग । म हर सेकंड उसके बाल को और जोर से कसता जा रहा था और उसे
मारने क और भी यादा को शश कए जा रहा था। पर मुझे इतने गु से म दे खकर भी वो
डरी नह , वो वहाँ से हली नह । वो बेखौफ वह बैठ रही, वो एकटक मुझे दे खती रही। मने
दो-तीन बार और को शश क उसे पलटकर थ पड़ मारने क , मगर वो हाथ आगे बढ़ा ही
नह । म जानता था क मेरे हाथ को रोकने वाला उसका यार नह था, म जानता था क मेरे
उस गु से म यार का नामो नशान तक नह था। शायद मेरे हाथ को रोकने वाला मेरा उस
दन का ग ट था, हाँ उसी दन का, जस दन मुझपर खुद को मद सा बत करने का भूत
सवार आ था।
जब आ खरकार म कुछ भी नह कर पाया, तो उस लाचार-हताश प त क तरह जो
बाहर क नया म कुछ न कर पाने क भड़ास घर आकर अपने बीवी-ब च पर नकालता
है, मने टड से अपना गटार उठाया और उसे दे मारा जमीन पर। मेरा गटार एक ही पल म
अपनी आ खरी रदम के साथ टु कड़ म बँट गया। म फर हार गया था, म फर एक लूजर
बन गया था। मने आज एक ‘लड़क ’ के हाथ से थ पड़ खाया था। मेरी समझ मुझे इस
थ पड़ को उस दन क सजा बता-बताकर शांत करने क पूरी को शश कए जा रही थी, पर
तब मेरी सोकॉ ड मदानगी उसे ऊपर उठने ही नह दे रही थी। जैसे उसने मेरी समझ को
अपने काबू म कर रखा था, उसे एक पजरे म कैद कर रखा था और म दे ख पा रहा था क
कैसे वो उस पजरे म छटपटा रही है। तो जब म समझ गया क म नह मार पाऊँगा उसे तो
म अपनी उस लाचारी को लेकर वह बैठ गया और तब तक मेरे गु से ने मेरे शरीर को इतना
तपा दया था क मेरा वो गु सा, मेरी वो कमजोरी पघलकर अब मेरी आँख से बहनी शु
हो गई।
याना मेरी लाइफ म इस लए आई थी य क उस दन म मताली के साथ कुछ नह
कर पाया था और आज फर उसी दन क तरह म कुछ नह कर पाया। म एक बार फर हार
गया था। खुद पर इतना तरस तो मुझे व ज नट के उन दन म भी कभी नह आया था जो
मुझे इस व वहाँ आ रहा था। उधर मुझे ऐसे लाचार और बखरता दे ख याना खुद को रोक
नह पाई। वो चेयर से लड़खड़ाती ई उठ और मेरे पास आकर बैठ गई। फर उसने मेरे एक
हाथ को पकड़ा और उससे खुद के गाल पर ही मारने लगी और कहने लगी क तुम नह मार
पा रहे हो न मुझ,े चलो म हे प करती ँ।
वो मेरे हाथ से खुद को लगातार मारे ही जा रही थी क मने गु से म अपना हाथ वापस
ख च लया, और मेरे ऐसा करने पर उसने जे ही पल खुद के हाथ से ही खुद को मारना
शु कर दया। मेरी समझ म कुछ नह आ रहा था क म या क ँ ! एक ओर तो मुझे लगने
लगा था क इस र ते का अब बस यह अंत है, इससे आगे अब और कुछ नह । वह सरी
ओर वो लगातार तेज होती आवाज, जो याना के खुद को ही लगातार थ पड़ मारने से आ
रही थी, मुझे वापस उसी र ते के वेटर म बुनने लगी थी। शायद इसी लए मने उसे रोकने के
लए उसका हाथ पकड़ लया और बस मेरा यही उसको थामना था क उसने अगले पल ही
खुद क बेबसी और बेस ी को अपने आँसु के खारेपन म लपेटकर खुला छोड़ दया।
तब उस कमरे म रात का अँधेरा, शाम क रौशनी से अपनी कायनात के लए लड़ रहा
था, फश पर बखरा आ एक टू टा गटार था जो शायद अभी भी उस र ते क मोह बत को
बचाने के लए बेसुरा ही सही पर एक बार फर बज जाना चाहता था, और वह -कह एक
दा क बोतल भी थी जो अभी भी खुद को बेगुनाह सा बत करने क अपनी ही नाकाम
को शश कए जा रही थी और इन सब के अलावा वहाँ थे अपने ही आँसु म भीगते ए दो
लोग, जो एक पल के लए तो खुद के बीच स दय का फासला पैदा कर दे ना चाहते थे, तो
सरे ही पल एक- सरे क नजर से छु पकर एक- सरे को उस हद तक थाम लेना चाहते थे
क जहाँ पर उनके सारे सवाल, उनक सारी उलझन पल भर म ही अपना वजूद खो द। और
फर जब याना के आँसु का साथ दे ने के लए उसक सस कयाँ भी अपना सर उठाने
लगी, तो उसे ऐसे, इस हालत म दे ख म रोक नह पाया खुद को। मने इतने व बाद पहली
बार उसक आँख म दे खा। उसक आँख से इतने दन से अपने इस ‘ यूँ?’ का जवाब
ढूँ ढ़ने का वो संघष, उसक खुद को ही द ई वो तस लयाँ, उसका मुझसे अलग हो जाने
का वो डर, उसका मेरे लए और अपने इस र ते के लए वो बेपनाह यार, उसके आँसु
का दामन पकड़कर धीरे-धीरे बहे जा रहे था। जैसे वो सब मुझसे ये कहना चाहते ह , मुझे ये
समझाना चाहते ह क हम नह पता क यूँ? पर तुम जो इसके साथ कर रहे हो वो गलत है
अ भ।
मने फर बना कुछ सोचे-समझे जे ही पल उसे अपनी ओर ख चा और उसे अपनी
बाँह म समेटकर रोने लगा। मुझे ऐसे टू टता दे ख वो भी खुद को कैसे रोक पाती! और
इसी लए ही शायद अगले ही पल उसने भी मुझे अपने वजूद क आ खरी सीमा तक कस
लया। म हार चुका था, म टू ट चुका था पर याना के शरीर से नकलती वो गम मेरे बखराव
को पता नह कैसे पर धीरे-धीरे समेटती जा रही थी, वो मुझे ये यक न दलाती जा रही थी
क वो मुझे कभी भी, कसी भी हाल म अकेला जलने नह दे गी, मुझे बखरने नह दे गी। मने
अगले ही पल उसके चेहरे को अपने हाथ म लया और कहने लगा, “सॉरी बट् टू , सॉरी।
मुझे ये नह करना चा हए था, सब मेरी गलती है। पर अब म ऐसा कभी नह होने ँ गा, म
तु ह कभी भी खुद से र ीभर भी अलग नह होने ँ गा।”
उसने फर पलक झपकते ही मेरे ह ठ को अपने ह ठ से जोड़ लया और फर धीरे-
धीरे हमारे आँसु का खारापन, हमारे ह ठ क मठास म घुलता गया और व के उस
बहाव के साथ-साथ हमारी सस कयाँ और हमारी उलझन अँधेरे के उस त ल म म कह
गायब-सी हो ग । उस रात हमने टू टते ए, एक सरे को सँभालते ए, खुद को एक- सरे म
फना कर दया। उस रात वहाँ सभी थे, मेरा गु सा, मेरी मदानगी, मेरा ग ट, मेरा यार,
उसका गु सा, उसके सवाल, उसक मासू मयत, उसका यार और वो सब, जो मल कर
कह -न-कह इंसान क पहचान बनाते ह। उस दन उन सबने एक पल के लए इंसान के
वजूद को एक छोट -सी बात पर बखरते दे खा था, तो सरे ही पल बना के, बना सोचे
उसी बहाव के साथ वापस जुड़ते भी। वो शायद समझ गए थे क ये लोग एक छोट -सी बात
पर ये नया ख म भी कर सकते ह, तो उसी छोट बात के लए उसे और मजबूत भी।
(15)
उस थ पड़ वाली बात को लगभग महीना भर हो गया था पर आज भी उसक गम और
उसक गूँज मेरे दलो- दमाग म एकदम ताजा थी। म आज भी जब उस ांड क बोतल और
अपने म म पड़ी उस चेयर को दे खता तो लगता जैसे वे मुझ पर हँस रहे ह । सरी ओर इन
दन व ब त सु ती से गुजर रहा था। दल तो कर रहा था क व ध को यहाँ बुला लूँ पर
उस थ पड़ वाले कांड के बाद तो ह मत ने जैसे जवाब ही दे दया था। अब ऐसा भी नह था
क म कोई डर-वर गया था। बस कोई और लफड़ा नह चा हए था मुझे। पर कहते ह न क
कुछ घाव कभी भी सूखते नह वो बस वतमान का प लू ओढ़े छु पे रहते ह और जब उ ह
मौका मलता है, तब वो कसी बंपर सेल क तरह आपके सामने आ जाते ह और आपक
जदगी के अकाउंट म इकट् ठा ए सारे सुकून को पल भर म ही कह खच कर दे ते ह।
न जाने य पर व ध आज कल आ द य क ब त ही यादा बात करने लगी थी।
उसके ए जा पल दे कर मुझे बात समझाने लगी थी। मेरे हसाब से इसके दो ही मतलब हो
सकते थे। पहला, या तो वो आ द य को थोड़ा-ब त पसंद करने लगी थी या फर सरा, वो
उसे मुझसे यादा स सेसफुल और समझदार समझने लगी थी। अब इसका मतलब चाहे इन
दोन म जो भी हो पर म एक बात तो अ छे से समझ गया था क अगर मने अभी कुछ नह
कया तो व ध म अचानक ही आया ये बदलाव कसी द मक क तरह हमारे र ते को
खोखला कर दे गा।
आ द य व ध का बचपन का दो त था और उससे भी बड़ी बात ये थी क साला वो
MBBS कर रहा था। ये MBBS एक ऐसा ह थयार था जसे आज भी मेरे पापा टाइम-टाइम
पर मुझे मेरी औकात याद दलाने के लए इ तेमाल कर ही लया करते थे और गलती से
कभी वो ब त दन तक मुझे ये याद दलाना भूल जाते तो ये फर से मेरी म मी और उनक
उन फालतू औरत के ुप म कभी मेरी खराब क मत के नाम से, तो कभी मेरे लए
अफसोस के नाम पर फर से जदा हो उठता। इसके बाद भी कुछ कसर फर भी कह रह
जाता तो वो मेरे घर के नीचे खड़ी मा त वैगनआर भी तो थी। जसक खामोशी म भी पापा
का वो ताना हैशटै ग क तरह लगा आ था क अगर उ ह ने वो पी.एम.ट . क को चग का
पैसा मेरे पीछे नह लगाया होता तो उस वैगनआर क जगह और भी अ छा मॉडल हमारे घर
के नीचे खड़ा होता। और इन सब के साथ-साथ साला अब मेरी बुरी क मत क इंट सट भी
दे ख ही लो, मतलब क मेरे लाख न चाहने के बाद भी फर से मेरी लाइफ म ये MBBS नाम
क बीमारी वापस आ गई थी।
सच क ँ तो व ध का ऐसे अचानक ही आ द य क तरफ झुकाव दे ख मुझे उस
आ द य से बना जान-पहचान के ही जलन होने लगी थी। मुझे लगने लगा था क एक
MBBS तो हर हाल म मुझसे अ छ वाइस ही सा बत होगा चाहे कोई भी एंगल य न दे ख
लया जाए। कभी-कभी तो म खुद को याना का हवाला दे कर और याना को व ध से क पेयर
कर-कर के खुद को शांत करने क को शश कया करता। म खुद को समझाता रहता क
याना हर तरह से व ध से अ छ है। वो व ध से यादा खूबसूरत है। यादा केय रग है।
यादा माट है। अब कोई फक नह पड़ता अगर व ध चली भी जाए तो। पर कसी महान
इंसान ने कहा है क सब कुछ आपक लाइफ से जा सकता है पर आपका पहला यार नह
ल ला।
शायद इसी लए म आजकल अकेले म सोचता रहता था क म अब ऐसा या कर
सकता ँ क वो आ द य फर से मेरे सामने छोटा हो जाए और व ध क नजर म फर से
मेरी दबंगई चमक जाए। कभी-कभी तो मन करता था क पापा से कह ँ क म र शया
जाकर ाइवेट MBBS कर लेता ,ँ पर साला ये कोस लंबा भी इतना है क मेरे आने से पहले
तो यहाँ उन दोन के एक-दो ब चे भी हो जाएँगे और अगर न भी ए तो भी इतने पैस म तो
पापा क दो-तीन नई कार और आ जाएँगी, तो भला वो य मानने लगे मेरी बात। पर कहते
ह न क जसका कोई नह होता उसका भगवान होता है तो वो कैसे मुझे ऐसे घुट-घुटकर
मरने दे ता। तो उसी भगवान ने मेरी लाइफ म एक फ र ता भेजा, वो फ र ता मेरे कूल का
सी नयर था। व म नाम था उनका और वो आज कल द ली रहकर स वल स वसेस क
तैयारी कर रहे थे। उनक रात क द ली क े न थी तो दन भर वो मेरे म पर ही के रहे।
हमने खूब बात क उस दन। उनके मुँह से IAS मतलब क कले टर के पो ट क तारीफ
सुन-सुनकर मेरा कतरा-कतरा खल उठा। माँ कसम उनक बात सुन-सुनकर मुझे तब रह-
रहकर जैसे गूज-ब स आ रहे थे। तब जो-जो वो कह रहे थे, वो-वो म इमे जन भी करने लगा
था। थोड़ा-थोड़ा उसे जीने भी लगा था। म समझ गया था क अगर अब कोई मेरे इस
MBBS के नाकामी का दाग धो सकता है, तो वो यही है। कोई अगर मेरे यार को अब बचा
सकता है तो वो बस यही है। अगर म कले टर बन गया तो उस आ द य क कोई औकात
नह रहेगी मेरे आगे। उसका MBBS होना तब कोई काम नह आएगा।
यही सब सोचते-सोचते म उस रात के गुजर जाने का इंतजार करने लगा। पर सच
कहता ँ वो रात बड़ी मु कल से गुजरी। पर उस रात मने सपन म खुद को कले टर
बनाकर आ द य का जीना हराम कर दया। एक बार के लए तो उस साले को बेकार के
चाजस लगाकर हॉ पटल से ही नकलवा दया। इ ह खयाल और व म भैया क बात के
दो-चार बार और दोहराव के बाद सुबह जब उठा तो रात क जीत क चमक मेरे चेहरे से
फूट-फूटकर टपक रही थी। मुझे तो ऐसा लग रहा था क जैसे म कले टर बना आ ही ँ।
दे खते-ही-दे खते कुछ ही घंट म र तोगी और कोटपाल मेरी बुक शे फ के ाउंड लोर
पर चले गए और ल मीकांत और लाल एंड लाल ज ह म अभी नया-नया ही माकट से
खरीदकर लाया गया था, मेरी बुक से फ क टॉप लोर पर, नये यूज के ऊपर सज गए। उन
कुछ घंट म मने अपनी जदगी का ब त कुछ बदल डाला। जैसे राज थान प का क जगह
‘द ह ’ ने ले ली और डे वड गलमौर के पो टर क जगह इं डयन पो ल टकल मैप ने ले
ली। उधर ‘अहा! जदगी’ मैगजीन क जगह उस मंथ क ‘ स वल स वस ो नकल’ ने ले
ली और सा हर लु धयानवी और यंत कुमार क गजल क बु स क जगह CSE के
सेलेबस और लानर ने ले ली। मतलब क आज से म एक नये मशन पर था तो शु आत तो
अ छे से करनी ही थी। तो इस सफर क शु आत ई खुद क सफाई से और वो भी ल स
क अनोखी खुशबू वाले नान के साथ। फर मने याना को कॉल कया और उसे ज द रेडी
होकर म पर आने को कहा। म चाहता था क इतने बड़े काम क शु आत करने से पहले
एक बार कसी मं दर जाकर आशीवाद ले लया जाए। जहाँ हमारा म था उसके आस-पास
भी ब त से मं दर थे पर वो दन पेशल था तो इस पेशल दन के लए नीमच माता मं दर
को चुना गया। य क वो सबसे यादा ऊँचाई पर था और मेरा मानना था क अगर पसीना
यादा बहेगा तो बात भी ज द सेट हो जाएगी। इधर मुझम आए अचानक इस बदलाव को
दे खकर याना भी थोड़ी परेशान थी क आज ये लीन शेव और ये मं दर कस खुशी म और
उसने मुझसे इस बारे म पूछा भी। पर मने उसे कुछ भी बताना सही नह समझा। म नह
चाहता था क खामखा मेरे इस नये सफर पर उसक नजर लग जाए।
तो जब सब फॉम लट ज ख म हो ग तो बारी आई उस बुक के दशन करने क
जसके बना IAS ऑ फसर बनने क सोचना भी कसी पाप से कम नह था। शायद
इसी लए मने बड़े यार से ल मीकांत सर को बुक शे फ से उठाया और उसके पहले पेज पर
अपना नाम लखकर और उस नाम के आगे IAS लखकर इं डयन पॉ लट क उस बुक के
प को और अपने IAS बनने के सफर को आगे बढ़ाया।
माँ कसम पहले ही दन कुछ ही घंट म मने ‘ ह टो रकल बैक ाउंड’ वाले चै टर क
लाइन-टू -लाइन रट डाली। समझ म यादा कुछ तो आया नह मगर याद सब कर डाला। उस
एक चै टर के याद हो जाने क वजह से म इतने जोश म आ गया क मेरा दल कहने लगा
क आज तो पाट बनती है अ भ। तो मने तुरंत ही बना व गँवाए रतेश को कॉल कर दया
और उसे कह दया क आज पाट है मेरी तरफ से, आजा भाई।
शाम को जब रतेश म म घुसा तो म के मेक ओवर को दे खकर घबरा गया। म म
घुसते ही उसक नजर सबसे पहले द वार पर लगे मैप पर पड़ी और फर ल मीकांत, लाल
एंड लाल जैसे नये मेहमान को म म दे खकर उसक सनक गई और वो बोला, “ये या
लगा रखा है तून? े अब या आट् स पढ़े गा तू साले? जो है वो तो सही से हो नह पा रहा है
और ये फर या नई बीमा रयाँ ले आया तू?”
उसके इतने दयनीय रए शन के बावजूद मने उसे तब भी कुछ बताना एक IAS
ऑ फसर के व क बबाद समझा और बड़े सहज भाव से उससे कहा, “तू ये सब छोड़ रे!
और बस लगा बीयर।” फर कुछ ही पल बाद बोतल खुल , बुलबुले कैद से आजाद ए और
फर धीरे-धीरे मेरे सारे राज मेरी ही लड़खड़ाती जुबान से फसलते ए जमीन पर आ गए।
उस रात वो मुझ पर और मेरे IAS ऑ फसर बनने के सपने पर जमीन ठोक-ठोककर हँसा।
तभी उसक ऐसी हरकत पर मने सोचा क इसके हँसने से या फक पड़ता है! जब म
कले टर बन जाऊँगा तब साले के सारे दा के ठे के ही बंद करवा ँ गा य क वैसे भी बाक
कसी फ ड म तो कुछ होना नह है उसका। सच क ँ तो उसक उस हँसी ने जाने-अनजाने
म ही सही पर मेरी ह मत को और बढ़ा दया था। तब म ये सोच चुका था क म मेरे यार को
कसी भी हालत म कसी और के साथ नह जाने दे सकता और कसी MBBS के साथ तो
कसी भी हाल म नह , चाहे मुझे इसके लए कुछ भी य न करना पड़े।
(16)
फर कुछ ही ह त म चीज धीरे-धीरे बदलने लग । मेरे अपने यार को बचाने और IAS
ऑ फसर बनने क सनक ने रतेश को ब त ही अकेला कर दया। म अब यादातर व
लाइ ेरी और कताब के बीच रहने लगा था और वो शफा के साथ। पर जस ल डे क
जवानी लड़ कय क बात क चकनाई पर फसलने के बजाय कसी दो त के कंधे पर
शराब के नशे म पक हो, वो उन लड़ कय के वन पीस से यादा टाइम चपका आ नह
रह सकता। उसे वो दो त चा हए ही।
तो कभी-कभी हमारी इसी बात पर बहस भी हो जाती क मने ये या नॉ से स पाल
रखी है! क व ध कह नह जाने वाली है! यहाँ तक क अगर ऐसा होता भी है तो रतेश
आ द य का मडर करने को भी तैयार हो गया था। बस वो उस खालीपन को सँभाल नह पा
रहा था जो मेरी इन हरकत क वजह से उसक लाइफ म आया था। कभी-कभी तो मुझे
रतेश पर गु सा भी आता और उसी गु से म म उससे पूछ भी बैठता क यार तेरे और भी तो
दो त ह। तू उनके साथ चल य नह करता! पर वो कभी भी मेरी इस बात का जवाब नह
दे पाता था और फर, चल ठ क है तू पढ़ाई कर म चलता ँ, बस इतना कहकर वो वहाँ से
चला जाता था। ले कन म ये अ छे से जानता था क हर बार उसका वा त वक जवाब बस
उसक खामोशी म लपट कुछ बात होती थ , जसे व के साथ-साथ शायद मुझे ही
समझना था।
कभी-कभी तो ये सब कुछ मुझे भी ब त अजीब-सा लगता क म भी ये सब या करने
लग गया !ँ पर IAS ऑ फसर क पॉवर के बारे म दन-रात लड़क से सुन-सुनकर, यूट्यूब
पर इ ह सबके बारे म हजार वी डयोज दे ख-दे खकर और उ ह सब बात को रात को
सपन म थोड़ा-थोड़ा-सा जी-जीकर, जैसे तब एक नशा-सा चढ़ गया था मुझ पर। अब ये
सफ व ध को कसी से बचाने क या कसी को नीचा दखाने क बात नह रह गई थी। मुझे
अब बस कैसे भी ये करना था और मेरी अभी क ला नग के हसाब से थड इयर फाइनल
ए जाम के बाद मेरी पहली टकट द ली क ही कटनी थी। और जब मेरे इस लान का
रतेश को पता चला तो वो और भी यादा परेशान हो गया। वो डरने लगा था क वो यहाँ
अकेला रह जाएगा और पता नह फर या करेगा।
इ ह सब बात के बीच अब रतेश रोज नये-नये और भारी वाले बहाने खोजने लगा था
जससे क वो कैसे भी करके मुझे उस लाइ ेरी से बाहर नकाल सके और म उसके साथ
वैसे ही मजे मार सकूँ जैसे हम पहले मारा करते थे, म उसके साथ पीकर वैसे ही ट ली हो
सकूँ जैसे हम पहले आ करते थे। सच क ँ तो मुझे भी उसके इन बहान का पता होता था,
पर जब आपका बे ट ड आपके साथ सफ कुछ व बताने के लए इतना एफट करे तो
आप चाहे कतना भी खुद को य न रोक ल पर आ खरकार आपका दल पघल ही जाता
है। तो म भी कभी-कभी मन मारकर चला जाता था उसके साथ।
आज सुबह-सुबह भी वो मुझे बना कुछ बताए अपनी कार लेकर म पर आ गया था।
मने इस बारे म जब उससे पूछा तो वो बोला क आज बाहर घूमने जाने का लान बनाया है
उसने। उसक ये बात सुनकर मने तो कह भी घूमने जाने के लए साफ-साफ मना कर दया,
पर उस साले ने पूरा इंतजाम पहले से ही कर रखा था और मुझे इस बारे म सफ इस लए
नह बताया क मुझे कोई भी बहाना सोचने का टाइम न मल सके। उसको ना कहने के कुछ
ही टाइम बाद याना भी म पर आ गई जसे रतेश ने ही इनवाइट कया था। आज कल
पढ़ाई के च कर म म याना से भी यादा मल नह पाता था, पर मुझे खुशी इस बात क थी
क मेरे इस फैसले म याना अपना पूरा सपोट दे रही थी। वो भी यही चाहती थी क म अब
अपनी लाइफ को थोड़ा सी रयसली लूँ और ेजुएशन के बाद या करना है इसक पहले से
ही पूरी ला नग करके रखू।ँ और म ये सच कह रहा ँ, मने इसे महसूस कया है क जब
आप कुछ अचीव करने के लए मेहनत कर रहे होते ह तो आपक गल ड क नजर म
आपक इ जत और आपके लए यार और भी यादा बढ़ जाता है। उधर मुझे रतेश का भी
अ छे से पता था क वो ऐसे इतनी आसानी से तो अपने लान से पीछे नह हटने वाला। तो
मने भी अपना रामबाण फका क शफा आएगी तभी जाएँगे यार।
ए चुअली उस दन शफा को रतेश के साथ दे खने के बाद शफा के घर वाले उसक
आउ टग को लेकर ब त ही यादा ट हो गए थे और ऊपर से शफा के पापा क नाक
उनक सोसाइट म थोड़ी यादा ही ऊँची थी तो शफा कसी भी हाल म उनक नाक से पंगे
नह लेना चाहती थी। तो अब वो सफ फ स टाइम के लए ही कॉलेज आती थी और
फ स टाइम पर चली भी जाती थी। इसी वजह से उसका इस प पर आने का कोई चांस
ही नह था। पर म ये कैसे भूल गया था क मेरा मन भी अपने सारे दाँव-पेच वह से
सीखकर आया है जहाँ से मने सीखे थे। उसने शफा को भी पता नह कैसे पर पहले से ही
इस लान के लए मनाया आ था। मतलब क अब वो भी हमारे साथ इस प पर आने के
लए तैयार हो गई थी। मेरे दे खते-ही-दे खते रतेश शफा को लेने चला गया और म हारकर
यही सोचते ए वह चेयर पर बैठ गया क आज का दन तो गया। तभी याना ने पीछे से
आकर मुझे हग कर लया। उसने अपने बाल अभी धोए थे शायद, तभी उनक महक एकदम
े श थी और उतनी ही लजीज भी। फर कुछ ही पल म उसके उस यूट-सी नाक ने मेरे
गाल को सहलाना शु कर दया और म तो साला एक भारतीय लड़का था, मेरे लए तो
इतना ही काफ था।
तो उसके उन बदमाश बाल क उस मदहोश छु अन के नशे म बखरता आ म तुरंत
ही उस चेयर से उठ खड़ा आ और खुद को पास क ही द वार के सहारे सटाकर उसे अपने
और करीब ख च लया। उसने भी मेरे पास आते ही मुझे कस करने क को शश क मगर
मने उसे रोक लया और फर म उसे तब तक रोकता रहा जब तक उसने सामने से हार
मानते ए खुद को पूरी तरह से मेरे हवाले न कर दया। म तब हर बार क तरह उस त ल म
क कमान थामकर आगे बढ़ सकता था पर उसके परेशान होते चेहरे क उस मासू मयत को
दे खकर मुझे उस पर दया आ गई और इसी लए समपण का दामन थाम मने अपने ह ठ को
उसके ह ठ के हवाले कर दया। गुजरते हर पल के साथ उसके ह ठ, मेरे ह ठ से होते ए
मेरे शरीर के एक-एक कतरे पर अपने यार के नशान छोड़ते चले गए और हम भी हमारे
हाम स के उस उफान का साथ दे त-े दे ते उस शखर के चरम ब तक प ँच गए।
उस पाक शां त के हमारे नस म घुलने के कुछ व बाद ही रतेश और शफा बेव
ही वापस म पर आ गए और फर हम ला नग करने लगे क अब करना या है? सबसे
पहले तो हम शफा क कूट को कॉलेज पा कग म रखना था जससे क कोई अगर उसे
दे खने आए भी तो पा कग म उसक कूट दे खकर यही समझे क शफा कॉलेज म ही कह
है। अब सरी द कत ये थी क जाए कहाँ! य क हम ऐसी जगह सले ट करनी थी जहाँ
कोई शफा को दे ख न पाए। फर ब त ही सोचने के बाद वाटर पाक को चुना गया, य क
वहाँ तो टकट लगती थी और इसी वजह से कोई आलतू-फालतू भन भनाता आ वहाँ
आएगा ही नह । अब जब सब डसाइड हो गया तो हम नकल गए नया क वाट लगाने,
मतलब क उन पल को जी भर जीने।
हमारे साइंस कॉलेज म कॉलेज क मेन एं स को छोड़कर भी कॉलेज के अंदर घुसने
के छोटे -बड़े कई रा ते थे। पर कॉलेज क पा कग मेन एं स के पास ही थी। तो मने शफा
को मेन एं े स से कॉलेज म घुसकर, अपनी कूट को पा कग म मेन गेट क तरफ वाली फ ट
लाइन म लगाकर, कॉलेज ब डंग से होते ए के म लैब के पास से गुजरने वाली उस
पगडंडी के सहारे-सहारे पीछे वाले गेट से बाहर आने को कहा। ये सब करने के पीछे मेरा
मकसद यही था क अगर उसक कूट फ ट लाइन म रहेगी तो कोई पा कग के बाहर से ही
उसे आराम से दे ख सकता था, सरा पा कग करके अगर वो सीधा बाहर आ जाती तो या
पता कोई उसे नो टस कर लेता इसी लए मने उसे कॉलेज ब डंग से होते ए पीछे के रा ते
से आने को कहा। जससे क उसे कॉलेज ब डंग म घुसते ए कोई-न-कोई तो नो टस करे
ही। अब जब कॉलेज के अंदर से बाहर नकलने के इतने फुद्दे से काम को हम इतने यान
और इतनी ला नग से कर रहे थे तो आप समझ सकते ह क शफा वाला मैटर कतना
सी रयस था तब। तो तब शफा ने मेरे कहे अनुसार ही सब कुछ कया और फर हम उसे
कॉलेज के उसी पीछे वाले गेट से रसीव करके कुछ ही दे र म वाटर पाक प ँच गए।
उस दन बना पए ही हमने खूब म ती क । खूब मजे कए। पूरे दन भर हम पानी म
पड़े-पड़े ही खेलते रहे। ब त दन बाद उन सबके साथ ऐसे, इतना अ छा व बताकर
मुझम एक अजीब-सा ही सुकून भरा जा रहा था मानो जैसे तपती धूप म मील चलने के बाद
कह मट् ट के मटके का ठं डा पानी मल गया हो। ले कन अब द कत ये थी क दन भर
उस पानी म रहने से न जाने कैसे हम सब क कन कुछ यादा ही लैक पड़ गई थी और ये
दे खकर शफा को टशन होने लगी क वो घर जाकर या कहेगी? पर उसके इतना परेशान
होने के बावजूद भी रतेश के कुछ ह स और कुछ कसेस ने उसे कुछ हद तक तो नॉमल होने
क ह मत दे ही द । मतलब क थोड़े लाड- यार के साथ तब रतेश ने उसे हमेशा क तरह ये
समझा दया क तू लोड मत ले, जो भी होगा दे ख लगे अपन।
उधर इस लैक कन को वाइट करने का आइ डया सोचने के च कर म हम ब त लेट
हो चुके थे। शफा को ज द ही घर जाना था तो हम फटाफट वहाँ से कॉलेज के लए नकल
गए। वैसे तो लान के हसाब से शफा को कॉलेज के उसी पीछे वाले गेट पर उतरना था और
वहाँ से उसे पैदल ही कॉलेज पा कग तक आना था पर हम पहले ही ब त लेट हो चुके थे
और हम कसी भी वजह से कोई और लफड़ा नह चाहते थे। तो मने शफा को थोड़ा व
और दे ने के इरादे से कार को सीधा कॉलेज के मेन गेट पर ही ले लया। शफा कार से
उतरकर ज द ही कूट लेकर बाहर आ गई। तभी रतेश कार से बाहर नकला और उसने
शफा के पास जाकर उसे हग कर लया। जब इतना अ छा दन साथ म बीता हो तो सी-
ऑफ हग तो बनता ही है और वैसे भी तब वहाँ कोई था नह ।
पर तभी पीछे से दो लड़के आए। मने कार को टन करते व उ ह दे खा था। वो पीछे
जूस सटर पर ही बैठे थे। उनम से एक सीधा रतेश के पास गया और सरे ही पल उसने
रतेश को एक थ पड़ जड़ दया। हम समझ ही नह पाए क ये हो या रहा है। पर रतेश को
वो थ पड़ पड़ते दे ख मेरा पहला रए शन यही था क चलो अब कभी याना के थ पड़ वाली
बात उसने बाहर नकाली तो मेरे पास ये वाली बात काउंटर अटै क के लए रहेगी। पर तभी
उस सरे लड़के ने भी रतेश को मारना शु कर दया। सच कहता ँ क ये सब दे खकर
मेरी फट के हाथ आ म गई। पर अब जो भी था, चाहे म कतना भी डरा आ था पर कोई
रतेश को मेरे सामने नह मार सकता था। तो अगले ही पल म च लाता आ कार से बाहर
नकला और बना कुछ सोचे-समझे ही टू ट पड़ा उन दोन पर। उधर रतेश तब तक भी सदमे
म ही था क ये आ या है? पर जब उसने मुझे त बयत से मार खाते दे खा तो वो भी जोश
म आ गया और लगा धोने उनको।
फर दे खते-ही-दे खते मेरा ए े न लन लेवल आउट ऑफ कं ोल होने लगा। साल ने मेरे
सामने रतेश को मारा था और मेरी गल ड के सामने मुझे। शायद इसी लए ही म तब
पागल क तरह च ला रहा था और उ ह मार रहा था। रतेश बना च लाए ही उ ह मार
रहा था और वो साले तो गा लयाँ दे -दे कर हम पेल रहे थे। दे खते-ही-दे खते कुछ ही दे र म
वहाँ भीड़ इकट् ठ हो गई। पर वो हमारे कॉलेज का ए रया था और ये बात वो दोन जोश-
जोश म भूल गए थे। जैसे ही वो लड़ाई क बात आग क तरह फैली, वैसे ही कुछ ही दे र म
द पाल, अ भषेक, मतेश, व पन और भी हमारे ब त सारे दो त लाठ , स लयाँ, हॉक
टक जो मला वो लेकर प ँच गए वहाँ और फर सबने मलकर उन दोन को या धोया क
पूछो मत। मुझे तो लगा क वे मर जाएँगे आज। पर उस भीड़ ने उ ह मरने से बचा लया और
वे मौका मलते ही वहाँ से रफूच कर हो गए।
जब माहौल शांत आ तो इस जीत क खुशी म मने उन सब दो त को जो हमारे लए
तब वहाँ आए थे, श नवार रात क पाट के लए इनवाइट कर दया। फर रतेश शफा को
उसी क कूट के पीछे बैठाकर और म याना को अपने साथ कार म बैठाकर म पर ले
आए। इधर शफा बस रोए जा रही थी, वो लड़के उसक जान-पहचान के ही थे और वो
उसके पापा के ऑ फस म ही काम करते थे। उधर मुझे याना ने सँभाल रखा था य क मुझे
तो पता ही नह चल रहा था क ये सब हो या रहा है। अगर ये सब कुछ दन पहले होता तो
शायद मुझे इतना अजीब नह लगता, पर अब बात अलग थी। मतलब क भ व य का एक
IAS ऑ फसर ऐसे सड़क पर लड़ाई कैसे कर सकता था। अब मेरे कले टर बनने के बाद
कस- कस को दे खना है क ल ट म मेरे लाख न चाहने के बावजूद भी ये दोन लड़के जुड़
चुके थे।
हक कत म तब मेरी जो फट पड़ी थी वो तो थी ही पर तब मने और रतेश ने शफा को
बड़ी मु कल से सँभाला और उसे समझाया क कोई भी हमारा कुछ नह बगाड़ सकता
और न ही उसका, और ये भी क हम साथ ह उसके चाहे कुछ भी य न हो जाए। अब
अगर सच क ँ तो तब रतेश का तो मुझे पता नह था पर आने वाले कल के बारे म सोचकर
मेरी तो पछाड़ी पूरी तरह से फट चुक थी और इसके सरी ओर अब जैसे-जैसे मेरी बॉडी
ठं डी हो रही थी वैसे-वैसे उस मार के कारण पैदा आ दद भी आ ह ता-आ ह ता अपना
फन उठाने लगा था। अब कह जाकर हम समझ आने लगा था क कहाँ-कह पड़ी है और
कतनी- कतनी पड़ी है।
कुछ ही दे र म एक अनजाने डर को अपने साथ लए शफा अपने घर के लए नकल
गई। इधर मने भी याना को उसके म पर ाप कर दया और फर म और रतेश वह
बैठकर सोचने लगे क अब वा त वक सचुएशन या है। लगभग 2-3 घंटे बाद जब उन
चोट के दद ने हमारे ए े न लन लेवल को पीछे धकेलकर अपना रंग दखाना शु कया तो
सही से ये समझ आया क असल म कहाँ-कहाँ लगी है हम। धीरे-धीरे रतेश का गाल और
उसक दा आँख के ऊपर वाला ह सा सूजने लगा था। थोड़ा-थोड़ा काला पड़ने लगा था।
और इधर गाल के बजाय मेरे सर का चमड़ा कसी गम तवे पर पकते ऑमलेट क तरह
फूलने लगा, साल ने सर पर ही उछल-उछलकर मारा था मुझ।े माँ कसम मुझे अपनी हाइट
कम होने का आज पहली बार खासा अफसोस हो रहा था। साल ने या त बयत से ठोका
था हम। फर व के साथ-साथ मेरे बाल के नीचे क चमड़ी ऑमलेट से अपना मोह भंग
करते ए एकाएक पकौड़े पैदा करने लगी और उस अजीब से दद के बारे म तो म बता नह
सकता जो तब अपनी ही मज से रह-रहकर मेरे पूरे सर पर कह भी उठे जा रहा था। और
फर जब वो टशन और वो दद हमारी सहने क औकात से यादा बढ़ने लगा तो हम बयर
क याद आई, पर आज मार यादा लगी थी तो दवाई भी थोड़ी यादा ॉ ग वाली चा हए
थी। तो कुछ ही दे र म ला टक के उन ड पोजल लास म बयर क जगह ओ ड म क रम
सज गई। उस रात बात करते-करते, एक सरे के सूजे ए चेहरे दे खते-दे खते, उस पर
कलेजा फाड़ हँसते-हँसते हम रम क पूरी बोतल पी गए और फर सफ चखना खाकर वह
सो गए।
(17)
रात के लगभग 11:30 ए ह गे क गेट बजने क आवाज आई। वो गेट लगातार बजे जा
रहा था और गेट के इतने पास सोने के बावजूद भी रतेश ने उठकर उसे खोलने क को शश
नह क , साला आलसी कह का! थक-हारकर मने ही उठकर गेट खोला और दे खा तो
सामने कुछ लड़के खड़े थे। नशे और अँधेरे क वजह से सामने कौन था वो तो दखा नह पर
उसने गेट खोलते ही मुझे कसके एक लात मारी। उस लात के असर से म जे ही पल
खाँसता आ फश पर जा गरा और फर वे सब रतेश और मुझ पर महीन से भूखे भे ड़य
क तरह टू ट पड़े।
जहाँ तक म दे ख पा रहा था, तब हमारा पूरा म ल ड से भरा आ था और वो सब
बना कुछ सोचे-समझे कसी जंगली साँड़ क तरह पागल होकर बस हम मारे जा रहे थे। मेरे
कले टर और जुलो ज ट वाले दमाग ने तुरंत ही पूरा हसाब लगा लया क अगर उन सब ने
एक-एक लात भी हम मारी तो भी हमारी मौत फ स है। मने अ सर सुना था क एकता
और भीड़ म दम होता है और आज उसे दे ख भी लया था। उस भीड़ को दे खकर लड़ने का
आइ डया हमारे दमाग ने हमसे बना पूछे ही ॉप कर दया था और फर हम लचार से उस
आ खरी मु के या लात का वेट करने लगे जसके बाद या तो हम बेहोश हो जाने वाले थे या
फर मर जाने वाले थे।
तभी इतना हो-ह ला सुनकर ऊपर से भैया, जो हमारे मकान मा लक थे वो नीचे आ
गए और फर उ ह ने पास ही पड़ा लट् ठ उठाया और जो उनके सामने आया उसे दे मारा। वो
पागल क तरह उन लड़क पर टू ट पड़े। बलकुल वैसे ही जैसे कोई आदमी अपने खेत म
घुसे जंगली जानवर को खदे ड़ रहा हो। वो लड़के अचानक ही ये सब दे खकर इधर-उधर
भागने लगे, पर तब भैया क ह मत और उनके उस पागलपन को दे खकर उन लड़क म से
कसी भी इतनी ह मत तक नह ई क वे पलटकर उ ह मारने क को शश भी कर। भैया
उदयपुर के जाने-माने ॉपट डीलर थे और ये सब उनके लए शायद आम बात थी। अब जो
भी था पर उ ह ने तब हम मरने से बचा लया और फर वो ज द से हम अपनी कार म
डालकर हॉ पटल ले आए। रतेश पहले ही बेहोश हो चुका था और म अब कसी भी हाल म
खुद को सोने नह दे ना चाहता था।
उन लड़क ने हम दोन को हर जगह से तोड़ दया था। शरीर कहाँ-कहाँ से उधड़ा आ
था वो तो सुबह भी नह दख पाया, य क हमारे शरीर जगह-जगह से बंडेजेज के नीचे दबे
ए थे और सरी तरफ पेन कलस भी हमारे खून म पूरे उफान पर थे, तो इस कंडीशन म
दद का भी सही-सही अंदाजा नह लग पा रहा था। उधर मने रात को ही भैया से कह दया
था क अभी घर पर न बताएँ, पर शायद उ ह भी डर था क अगर हम दोन म से कोई भी
मर गया तो सब कुछ उन पर आ जाएगा। तो उ ह ने रात को ही हमारे घर पर कॉल कर दया
था।
सच क ँ तो मुझे ब त यादा लगी थी, पर उस व मुझे मुझसे भी यादा रतेश क
चता थी। य क वो अभी तक भी होश म नह आया था। हमारे हॉ पटल आने के कुछ दे र
बाद ही रतेश के पापा-म मी भी हॉ पटल म आ गए। रतेश के पापा बलकुल मेरे सामने ही
खड़े थे पर वो फॉम लट के लए भी मुझसे मेरा हाल-चाल तक पूछने नह आए। मुझे ये सब
थोड़ा अजीब लग रहा था, शायद वो इस सब का ज मेदार मुझे ही मान रहे थे। पर उनके
इस बताव क भरपाई कुछ ही घंट बाद मेरे पापा ने कर द । वो भी रतेश का हाल पूछने
उसके पास नह गए, शायद वो भी इस सब के लए रतेश को ज मेदार मान रहे थे।
उस घटना के 3-4 घंटे बाद ही मेरे पापा मेरे बेड के पास बैठे ए थे और रतेश पापा
उसके बेड के पास, पर न जाने य वे दोन ही खामोश थे। शायद तब रतेश के पापा के
लए म और मेरे पापा के लए रतेश, कसी वलन से कम नह था। पर तब उन दोन के
चेहरे पर आते-जाते उन भाव को दे खकर मुझे लग रहा था क अगर ये हॉ पटल नह होता
तो वे दोन एक- सरे को और उसक परव रश को गा लयाँ दे -दे कर मार डालते। पर इस
हालात म भी मुझे खुशी बस इस बात क थी क उन दोन को उनके हाल पर छोड़कर,
हमारी म मयाँ एक- सरे से खुलकर बात कर रही थ और एक- सरे को दलासा भी दे रही
थ क सब कुछ ज द ही ठ क हो जाएगा। शायद उनके लए हम दोन अब भी सफ उनके
बेटे थे, और उनके लए उन बेट के आगे अ छे , बुरे, आवारा, लफंगे जैसे कोई भी फ स
नह लगे ए थे।
सरे दन शाम को कह जाकर रतेश को होश आया। उसे होश म दे खकर मुझसे खुद
को रोका नह गया और मेरे न चाहने के बाद भी मेरे आँसू मेरी आँख से बाहर नकल आए।
मुझको तब इतना दद हो रहा था क म रह-रहकर डॉ टर को और पेन कलर लगाने को कह
रहा था, पर इतने दद के बाद भी म रोया नह । मेरा एक आँसू भी तब तक मेरी आँख से नह
गरा, जब तक क रतेश होश म नह आया। मानो जैसे मने अपने उन आँसु को कह
रतेश क ह मत न टू ट जाए इस लए कह बचाकर रखा था। कह वो मुझे ऐसे रोते दे खकर
बाद म मेरी उड़ाए न, यही सोचकर शायद उन आँसु को कह छु पा रखा था।
उसने भी होश म आते ही सबसे पहले मेरे लए पूछा। उसक म मी ने उसे मेरी ओर
उँगली कर उसे मेरे बेड का पता बताया और अगले ही पल उसने मुझे दे ख लया। एक- सरे
को दे खकर हम दोन खुश थे क चलो जदा तो ह! जसक कल रात को हम दोन म से
कसी को भी उ मीद नह थी। मुझे अ छे से पता था क हम दोन अभी एक- सरे क श ल
दे खकर एक- सरे पर खुलकर, पागल क तरह हँसना चाहते थे। हम एक- सरे को बताना
चाहते थे क दे ख साले तेरे को यादा मारी उ ह ने। हम एक- सरे क सूजी ई श ल पर
भद्दे -भद्दे कमट करना चाहते थे और उससे भी यादा रम का पूरा हॉल एक ही साँस म
अपने अंदर उतारकर इन सबको भूल जाना चाहते थे पर शायद इन सबके लए ये व सही
नह था। पर इन सब से इतर रतेश उठ गया था। वो होश म था और अब म आराम से अपने
कलेजे के ठं डे पड़ने तक रो सकता था।
सरे दन सुबह याना, द पाल के साथ हॉ पटल आ गई। मुझे ऐसे दे खकर वो लाचार-
सी वह मेरे बेड के पास बैठ गई और शायद मेरी नस म उबल रहे उस दद को महसूस करके
अगले ही पल वो फूट-फूटकर रोने लगी। इधर मेरी म मी ये समझ नह पा रही थी क ये
कौन है जो उसके लाल के लए इतना रो रही है। पर मेरे पापा ज द ही सब समझ गए।
उनक श ल ने याना को दे खकर एक अजीब ही जे चर बनाया आ था। उधर रतेश के
पापा खी थे क उनके बेटे को मलने कोई लड़क नह आई। पर जब याना कुछ दे र बाद
रतेश का हाथ पकड़कर उसके पास बैठकर रोने लगी तो रतेश के पापा के होश उड़ गए।
अगले ही पल हमारे दोन के पापा कं यूज हो गए क ये कसक ब है। पर तब याना से ये
पूछना दोन म से कसी ने भी सही नह समझा और न हमने बताना।
याना को दे खते ही मुझे व ध क याद आने लगी। तीन दन से उससे बात नह ई थी
मेरी। वो मुझे लेकर एकदम पागल-सी थी। एक बार क बात है, मने ऐसे ही फोन पर जोर से
खाँस दया, तो सरे दन मैडम उदयपुर आ ग । मुझे अ छे से याद है क 2 इंजे शन
लगवाए थे उसने अपनी केयर दखाते ए। व ध का खयाल आते ही मुझे फर से टशन होने
लगी। म उसे कॉल करता उसके पहले ही मुझे कुछ और बात याद आ गई। वही जो शायद
उस व रतेश भी सोच रहा था। मने याना को तुरंत ही अपने पास बुलाया और उससे शफा
के बारे म पूछा।
वो बोली, “ठ क है वो भी, पर उसे भी ब त मारा है उसके घर वाल ने। कल ही बात
ई थी उससे मेरी।” ये सुनते ही मेरा ए न लन लेवल फर चढ़ने लगा क साले हरामजाद
ने भाभी को कैसे मारा! पर तभी मेरी ह ड् डय ने तुरंत मुझसे कहा क भाई सो जा चुपचाप,
ये जो बच गया है वो खुदा क और मकान मा लक क मेहरबानी है। तो अभी ठं ड रख
थोड़ी।
पर कसी महान इंसान ने कहा है क आपक कब, कहाँ और कैसे लगने वाली है ये
पहले से ही तय है। आपको बस सही व पर अपनी लेकर वहाँ प ँच जाना है और फर
आराम से बैठकर तमाशा दे खना है। उधर मेरी बहन अनु ने अपने भाई का लाइव टे लीका ट
व ध को कर दया था और ये मुझे तब पता चला जब व ध मैडम अगले ही दन उदयपुर आ
ग और टे शन से सीधा हॉ पटल आकर मेरे सामने कट हो ग । मेरा और रतेश का कॉल
न लगने क वजह से व ध ने शायद अनु को कॉल कर दया था और अनु ने उसे मेरी ठु काई
क बात नमक- मच लगाकर बता द ।
व ध मेरी दे सी हालत दे ख तुरंत ही बखर गई और मेरे पास आकर मेरा हाथ थामकर
फूट-फूटकर रोने लगी। इधर मेरी म मी फर क यूज क अब ये कौन है भाई? तो उधर
रतेश के पापा फर टशन म क इसके बेटे के पास तो दो ह। उन दोन से इतर सरी ओर मेरे
पापा का तो पूछो ही मत। वो तुरंत समझ गए क इन ढाई साल म मने सफ और सफ
आवारागद ही क है।
तब व ध पागल क तरह रोए जा रही थी और बेचारी मेरी म मी उसे कैसे भी चुप
करवाने क अपनी नाकाम को शश कए जा रही थी। या सीन था वो! मेरा तो कलेजा मुँह
तक आ गया था। मुझे तो यहाँ तक लगने लगा था क अगर ये ह ड् डयाँ कसी तरह जुड़ भी
ग तो पापा फर से बना रहम कए इ ह तोड़ दगे। अब तो मुझे बस मेरी माँ का ही सहारा
था जो तब पूरे मन से अपनी सरी वाली ब को सँभालने म लगी ई थी। उधर साला ये सब
दे खकर वो हरामी अधमरी हालत म हँसे जा रहा था। मेरा मन तो कर रहा था क लूकोज
क बोतल उठाऊँ और दे मा ँ उसके सर पर। पर कह मर-मरा गया तो उसक मौत का
इलजाम मुझपे न आ जाए, यही सोचकर वो बोतल मने मारी नह उसे। अब बस मुझे एक ही
चीज क टशन थी क अब कह याना यहाँ न आ जाए।
तो मने द पाल को कॉल करके उसे हॉ पटल बुला लया और जब वो आया तो मने
उसके पैर पकड़ लए क भाई अब सफ तेरा ही सहारा है। कैसे भी करके याना को 2 दन
तक मत आने दे ना यहाँ। उसे भी तब अपने आधे बचे दो त पर दया गई और वो मुझसे
ॉ मस करके चला गया।
ले कन सरी ओर अभी तक हमारे घर वाल को ये पता नह चला था क सच म उस
रात आ या था और हम कसने मारा था! पापा केस करना चाहते थे उन लोग पर, ले कन
मने उ ह ऐसा न करने के लए मना लया क बाद म लफड़ा हो जाएगा और मेरा कॉलेज
खराब हो जाएगा। य क अगर केस होता, तो हमारा मे डकल होता और मे डकल होता तो
ओ ड म क बाबा दख जाते सबको और अब म अपने घर वाल को एक बेवड़े बेटे का
तोहफा नह दे ना चाहता था।
इ ह सब के बीच व ध दो तक दन क वहाँ। वो पूरे टाइम मेरे सरहाने बैठ रही।
मेरा खयाल रखती रही। उसके आने से मेरी माँ को थोड़ा रलीफ हो गया था। वो अब आराम
से हॉ पटल के बाहर जा सकती थी मुझे व ध के हवाले छोड़कर। मेरे पापा या फर यूँ क ँ
क हम दोन के पापा के मन म ब त कुछ चल रहा था पर शायद उ ह ने भी नया दे खी थी
और वो ये जानते थे क ये व कसी भी बात के लए सही नह था।
तीसरे दन मेरे पापा व ध को बस टे शन छोड़ने खुद गए। अगर म ठ क-ठाक होता तो
ये दे खकर मेरी आँख म आँसू आ जाते पर अभी तो म उनक मजबूरी समझ रहा था। एक
बाप जसने अपने जवान बेटे क जवानी क क करते ए उसे मारना और डाँटना बंद कर
दया हो और वही बेटा एक दन उसके सामने ऐसे आधी टू ट -फूट हालत म पड़ा हो, तो वो
बाप कसी से अब या कह सकता है। म ये नह कहता क मेरी माँ को ख नह था, मेरी माँ
को भी मेरी हालत का ख था, पर वो नॉमल थी। ले कन उससे उलट मेरे पापा ब त ही
यादा खामोश हो चुके थे। सच क ँ तो इतना खामोश मने उ ह पहले कभी नह दे खा था।
यहाँ तक क वो तो हमेशा न द म भी खराटे मारते रहते ह, हमको सफ ये बताने के लए क
यहाँ पर न द म भी सफ उनक चलेगी। उनको इतना खामोश दे ख तब मेरे जेहन म बस यही
बात बार-बार घूमे जा रही थी क जब रतेश को मार खाता दे ख मेरे तन-बदन म इतनी आग
लग गई थी, तो अपने बेटे क ये हालत दे ख उन पर या गुजर रही होगी और ऊपर से वो तब
चाहकर भी कुछ कर नह पा रहे थे। लाचारी कैसी भी हो, ब त ही खराब होती है। वो जब
भी आती है तब हमारी पछली पूरी जदगी और उसके सारे फैसल पर एक बड़ा-सा
च लगा दे ती है और उससे भी बुरी चीज होती है एक जवान बेटे के बाप क लाचारी।
जो मेरे पापा क आँख और उनक खामोशी तब मुझे साफ-साफ दखा रही थ ।
(18)
मेरा बलकुल भी मन नह था, पर म तब पापा से जद करने क हालत म भी नह था। कुछ
दन बाद जब मेरे दमाग ने सही से मेरे शरीर को सँभालना शु कया तो पापा घर लेकर
आ गए मुझे। असल म तब एक तो म रतेश के साथ कना चाहता था और सरा घर जाकर
जन सवाल से मेरा सामना होने वाला था, म उनसे बचना चाहता था।
‘ठाकरडा’, राज थान के डू ंगरपुर जले का एक सु त-सा गाँव। ये वही गाँव है जसक
ग लय ने मेरे बचपन क हर करवट को अपना लार दया था। कंच क बा जय से लेकर,
साइ कल सीखते व लड़खड़ाकर गरने तक का सफर मने इसी गाँव का हाथ थामे ए पूरा
कया था। पर उसके बाद बो डग कूल चले जाने क वजह से इस गाँव से मेरी रयाँ बढ़ती
चली ग । ले कन पापा अ सर कहते रहते ह क इस गाँव म हमारी जड़ ह और चाहे कुछ
भी य न हो जाए हम कभी इसे छोड़कर नह जा सकते। शायद पापा सही ही कहते ह
य क जो सुकून इस गाँव क हवा म है, वो कसी भी शहर म लाख खोजने पर भी नह
मल सकता। बलकुल कसी माँ क ममता के जैस।े
इधर गाँव आते ही घड़ी क सुइयाँ जस र तार से घूम रही थ , उसी र तार से मेरी
खैर-खबर लेने वाले लोग का मेरे घर पर आना-जाना भी बढ़ने लगा था। इस बढ़ती भीड़ से
न तो म खुश था और न ही मेरे घर वाले। पर इनके आने से मेरे ज का मूड ज र बदल
गया था। इतने सारे के ए पल को खुद म आते दे ख, वो खुद को बेवजह ही हे द समझने
लगा था। उस ज के मजाज को छोड़कर एक और चीज मेरे घर म बदल गई थी। मेरी माँ
अचानक से ही एक जबरद त टोरी टे लर बन गई थी। तब जतने भी लोग मुझसे मलने आ
रहे थे, उनको माँ ने तीन कटै गरी म बाँट दया था।
पहली कटै गरी म ‘ए पल’ लाने वाले लोग थे, ज ह सच बताना था जतना उ ह खुद
पता था। सरी कटै गरी म ‘मौस बी’ लाने वाले लोग थे, ज ह इस कांड को सफ एक
ए सीडट बताना था और उनके सामने अपनी औलाद को यानी क मुझे अभी भी एक
आइ डयल ोड ट के प म माकट करना था। तीसरी कटै गरी म वो लोग थे जो सफ
‘केले’ लेकर आए थे, उनसे बस यहाँ-वहाँ क बात करनी थ और चाय के साथ वही केले
खलाकर वापस रवाना कर दे ना था। माँ कसम मुझे आ खर क दोन केटे ग रज वाले लोग
से कोई खतरा नह था। मुझे तो बस डर था तो उन ए पल लाने वाले लोग से। ये वही लोग
थे ज ह नासा और इसरो वाले गलती से अपने यहाँ भत करना भूल गए थे। आप बस कोई
भी बात छे ड़ दो इनके सामने, इ ह हर चीज के बारे म सब कुछ पता होता था। मुझे तो
कभी-कभी यहाँ तक लगने लगता था क ये लोग नॉलेज के मामले म तो गूगल को भी पीछे
छोड़ सकते थे। ये आपको चुनाव से पहले ही बता सकते थे क कौन जीतेगा। ये पूत के पाँव
दे खकर बता दे ते थे क वो आगे जाकर सपूत बनेगा या कपूत। अब ऐसा भी नह था क ये
मौस बी और केले वाले लोग ानी नह थे क ये लोग मेरे घर आकर अपना ान नह बाँटते
थे। ान बाँटने म तो ये भी पीछे नह थे बस द कत सफ इतनी-सी थी क मेरी माँ इन
लोग क बात को अपने लेवल क न समझते ए उ ह अपने कान नह दे ती थी।
तो इ ह ए पल वाल म से कसी एक ने मेरी माँ को उसके बहन क ननद के लड़के
क टोरी बताकर मना लया था क ये जो कुछ हमारे साथ आ था वो सफ इस लए आ
य क मेरे न खराब थे और वो बस यह तक नह के, उ ह ने मेरी माँ को उस यो तषी
का पता भी दे दया ज ह ने उसके बहन के ननद के बेटे का इलाज कया था। म शत लगा
सकता ँ क आप Youtube पर लाख पॉवर ऑफ क यु नकेशन के वी डयोज दे ख लो,
नोट् स बनाकर क पेयर कर लो, पर जो पॉवर ऑफ क यु नकेशन इन ए पल वाले लोग के
पास होती है वो कसी और के पास नह हो सकती। ये अपने लाइव और वाई ट ए जा प स
से सामने वाले को ऐसे समझाते ह क सामने वाले को भी ये समझ आ जाता है क ये जो
बता रहे ह वही एक आ खरी रा ता है। और जब सामने एक माँ हो, तो तो फर या कहने।
तो उस ए पल वाले ानी के ान बाँटने के कुछ दन बाद ही उस यात यो तषी से
मलने जाने का मु त नकल चुका था। दो दन बाद का अ वाइंटमट मला हम। मतलब क
साहब के पास पहले से ही हमारे जैस क भीड़ थी जो या तो खराब न के शकार थे या
इन ए पल वाले लोग के। उन व यात यो तषी ने दखाने आते व अपने साथ म पी ड़त
के दाएँ हाथ क लक र, पी ड़त क ज मकुंडली और पी ड़त के घर क एक धान औरत
( जसम पी ड़त क माँ को ॉयो रट द ई थी) को लाने के साफ-साफ इं शन दए थे।
अगर तब मेरा बस चलता तो म अपना दाया हाथ ही काटकर दे दे ता उ ह, मगर उस हाथ ने
बुरे दन म मेरा ब त साथ दया था तो अब उसे यूँ धोखा नह दया जा सकता था। तो म भी
रेडी हो गया उनके साथ उस यो तषी के पास जाने के लए।
या अ या मक माहौल था यो तषी जी के घर का! घर के बाहर पी ड़त और उनके
साथ आए लोग के लए वे टग म बना आ था और घर के अंदर घुसते ही उनक OPD,
जहाँ वो न से परेशान लोग से मलते थे, उनका इलाज करते थे। उ ह ने अपनी OPD म
कोई टे बल या कुस नह लगा रखी थी, बस वहाँ फश पर उ ह ने एक मोटा-सा गद्दा बछा
रखा था, जैसे वो जमीन से अपने र ते को आज भी भूलना नह चाहते ह । उस गद्दे पर
उ ह ने बलकुल अपने च र क तरह ही साफ-सुथरी, सफेद रंग क एक बेडशीट बछा
रखी थी। उ ह ने अपने उस गद्दे के पास एक छोटा-सा टू ल भी लगा रखा था जसपर
जतने भी पॉ सबल हो सकते थे उतने भगवान रखे ए थे। उन भगवान को वहाँ दे खकर
ऐसा लग रहा था क मानो वो सब अपना-अपना चम कार दखाने के लए एकदम रेडी बैठे
ह और शायद आपस म लड़ भी रहे ह क पहले कौन अपना कमाल दखाएगा या फर ये
भी हो सकता है क उस यो तषी महाराज को सही से पता न हो क उनके पछले वाले
पेशट् स को सही म ठ क इनम से कौन-से वाले भगवान ने कया था, तो उ ह ने कसी भी
तरह का र क न लेकर सबको एक साथ ही बैठा दया था क अगर कोई एक गलती से चूक
भी जाए तो तुरंत ही सरा अपना कमाल दखा दे ।
तभी घंटे भर बाद मेरा नंबर भी आ गया और म, माँ और पापा वे टग म से उनक
उस शानदार OPD म आ गए। मुझे दे खकर उस यो तषी ने अपना चम कार दखाना शु
कर दया। उनके मुँह से पहले श द ही यही नकले क कहाँ ठु क- पटा के आए हो? और
उनका बस इतना ही कहना था क अगले ही पल मेरी माँ को ये यक न हो गया क ये
यो तषी सही म कोई ानी पु ष ह, य क उ ह ने अभी तक उ ह ये बताया नह था क
मेरी पटाई ई थी। मेरी तब जो हालत थी अगर उसे कोई मेरी उ से रलेट करके दे खे तो
कोई भी समझदार आदमी ये बता सकता था क मुझे कसी ने ज र ठोका है। और जब
सामने वाला मेरी जैसी हालत म हो और वो कॉलेज म पढ़ रहा हो तो ये गप मारना और भी
आसान हो जाता है। पर अब ये मेरी माँ को कौन समझाए!
फर थोड़ा और माहौल बनाकर उस यो तषी महाराज ने अपनी भ व य बताने वाली
कताब बाहर नकाली और उसम दए डेटा का जोड़, बाक , गुणा, भाग करने लगे और फर
थोड़ी दे र बाद वो आसमान क ओर दे ख कुछ सोचने लगे, शायद उ ह कुछ मल नह रहा था
जो वो खोज रहे थे। कुछ दे र ऐसे ही आसमान म शायद ह क दशा का एना ल सस करके
एक बार फर से उ ह ने उस कताब म अपनी आँख टका द और इस बार इंट ेशन,
ड शएशन और एडवांस कैलकुलस का इ तेमाल करके मेरे साथ जो आ था उसका
वा त वक कारण आ खरकार उ ह ने खोज ही नकाला। उ ह ने हमारी ठु काई वाली बात के
लए श न और गु के गलत दशा म वेश को दोषी ठहराया। अब ये तो स दय से
इंसा नयत का थंब ल रहा है क जब कोई बात समझ नह आए तो उसे सही मान लो, उस
व यात यो तषी के सामने अपने हाथ जोड़े बैठ मेरी माँ ने भी यही कया।
कुछ दे र और मेरे सारे न और मेरे हाथ क लक र से बातचीत करने के बाद
महाराज ने मेरा शन लख दया। उस शन के हसाब से अब सबसे पहला
काम जो मुझे करना था वो ये था क मुझे अब से 42 गु वार तक उपवास रखना था और
इससे ये होना था क मेरे जो न कसी और रा ते भटक गए थे उ ह मेरी भूख क आग
सही रा ता दखाने वाली थी और वो वापस अपनी सही जगह आ जाने थे।
सरा इलाज जो लखा गया था वो ये था क अब हम कालसप क पूजा करवानी थी।
जससे क वो साँप अपने बल से बाहर नकलकर उन ल डो क बुरी तरह लेने वाला था
ज ह ने उस रात हम पीटा था और इसके साथ-साथ ये गारंट भी द जा रही थी क आगे
आने वाले लफड़ म भी वो साँप हमारी हर मुम कन मदद करने वाला था। साथ ही साथ उस
साँप को मेरी ए जै ट लोकेशन बताने के लए मुझे उस पूजा वाले दन से ही अपने दाएँ
हाथ क तीसरी उँगली म चाँद क एक साँप वाली अँगूठ भी पहननी थी। तीसरा इलाज ये
लखा गया था क उस पूजा वाले दन ही हम 11 पं डत को दाल, बाट और चूरमे का भोग
चढ़ाना था। जससे उनक भूखी आ मा शांत हो जाएगी और भगवान मुझसे खुश होकर उस
दन जैसी गलती फर कभी मेरे साथ वापस नह करेगा।
सच क ँ तो तब मुझे इन सब बात से यादा यक न तो इस बात पर था क गधे के 12
स ग होते ह पर तब म इस कंडीशन म नह था क इसका वरोध कर सकूँ। सरी ओर मेरी
म मी के होते ए मेरे पापा भी अपना दमाग लगाना सही नह समझते थे य क उनको भी
पता था क वो कतनी भी सही बात य न कर ल पर माँ के आगे उनक एक नह चलनी।
शायद इसी लए ये पं डत लोग घर क एक औरत को साथ लाना क पलसरी रखते ह।
जससे उ ह इस तक- वतक से मु मल सके।
पापा ने बना कुछ यादा बोले और सोचे ही उस यो तषी क बताई सब बात का
इंतजाम कर दया। उस दन यो तषी महाराज ने अपनी फ स नह ली। उ ह ने कहा क ये
सब तो वो समाज सेवा के लए करते ह, जससे लोग क मदद हो सके। उ ह ने आगे ये भी
कहा क अगर हम उनको द णा दे ने के बजाय उनके मं दर म अपनी खुशी से कुछ चढ़ाना
चाह तो ज र चढ़ा सकते ह जससे क बस उनके मं दर का द या जलता रहे। पर उनके उस
मं दर म भगवान ही इतने सारे थे क अगर सबके लए 50-50 पये भी रख तो भी
कैलकुलेशन अपने आप ही ब त यादा हो जाती और जब रखने वाली कोई औरत हो तब
तो भगवान चाहकर वो द या बुझा नह सकते थे। तो इसी म म मेरी माँ ने पापा से 500
पये माँगे और 500 अपने जोड़ कर पूरे 1000 पये वहाँ रख दए और वो भी सफ
इस लए क वो द या जल सके।
उनको इतने पैसे रखते दे ख मेरा और पापा का चेहरा दे खने लायक था। हमारे यहाँ के
सबसे फेमस फ ज शयन क फ स 100 पये त पेशट थी, जसने न जाने अपनी जदगी
के कतने साल अपनी MBBS और MD को पूरा करने म अपना दमाग खपाते-खपाते लगा
दए थे। सरी ओर ये यो तषी जो शायद कह से ेजुएट भी नह था वो एक MD से 10
गुना यादा कमा रहा था। दे खा जाए तो वो असल म कर या रहा था, बस लोग को भूखा
रख रहा था और उसके जैसे ही कुछ और पं डत को खाना खलवा रहा था। पर वो कहते ह
न क जब तक इस नया म एक भी मूख जदा है तब तक कोई समझदार भूखा नह मर
सकता।
फर कुछ ही दन म पूजा भी हो गई और पं डत ने अपना पेट भी भर लया। पर इन
सब म सबसे बुरी बात तो ये थी क उस साँप वाली अँगूठ ने मेरे लुक को एक तां क के
लुक म बदलने म कोई कसर नह छोड़ी थी। घर का खाना, माँ का यार और यो तषी का
इलाज, इन सबक गम को अपने आस-पास दे खकर मेरी ह ड् डयाँ अपनी पूरी र तार से
जुड़ने लगी थ । इन तीन-चार महीन म घर का खाना खा-खाकर मेरे गाल अब फूलने लगे थे
और साथ-ही-साथ मेरा पेट भी थोड़ा-ब त बाहर नकलने लगा था। अब ये सब तो ठ क था
पर इन सबके अलावा ब त कुछ और भी था जसे म उदयपुर छोड़कर आया था। जनके
बना मेरी जदगी वैसी ही थी जैसी जूस नकालने के बाद ग े क होती है। तो इसी बीच मने
अपनी माँ को मनाना शु कर दया क मुझे उदयपुर वापस जाना है पर वो तब तक नह
मानी जब तक मेरे फाइनल इयर ए जाम क डेट्स नह आ गई।
उस दन मने खूब मना कया पर पापा नह माने और मुझे उदयपुर छोड़ने साथ आ
गए। सरी ओर पापा को साथ आता दे ख मेरी बहन भी साथ हो गई और बहन को दे ख माँ
भी, मतलब क पूरा प रवार एक मार खाए ए इंसान को वापस लड़ाई के मैदान म छोड़ने
आ गया। मुझे अंदाजा था क उस दन पापा मुझसे ब त कुछ कहना चाहते थे पर हमारे
यहाँ मद के कमजोर होने का रवाज नह है चाहे वो बाप हो या बेटा और शायद इस लए
उ ह ने उस दन मुझे ऐसा कुछ नह कहा जो वो हमेशा कहते रहते थे, जैसे क पढ़ाई अ छे
से करना, गलत चीज म मत पड़ जाना, यादा दो त मत बनाना, बाइक धीरे से चलाना।
उस दन उ ह ने जाते-जाते मुझसे बस इतना ही कहा क अपना यान रखना। सच क ँ तो
इतनी छोट -सी बात अपने पापा के मुँह से सुनने का म आद नह था पर उनके वहाँ से जाने
के बाद ही उस बात ने अपना रंग दखाना शु कया। बलकुल वैसे ही, जैसे मेहँद सूखने
के बाद अपना रंग दखाने लगती है। असल म उनक उस छोट -सी बात म सब कुछ था।
एक बाप का यार, एक बाप क कमजोरी, एक बाप का डर, एक बाप क अपने भगवान से
माँगी अपने बेटे क सलामती क ढे र सारी आएँ और सबसे ऊपर एक बाप क उस व से
क ई ये उ मीद क उसके जाने के बाद उसके बेटे के साथ सब कुछ ठ क होगा और वो
सब कुछ अ छे से सँभाल लेगा।
उनके जाने के बाद एक अजीब ही बेचैनी को महसूस करते ए मने अपना म
खोला। लगभग पाँच महीन बाद वो म खुल रहा था। सच क ँ तो उस रात के नशान उस
कमरे म अभी भी कसी जुगनू क तरह चमक रहे थे। म म सब कुछ बखरा आ था और
कह -कह पर पड़ा आ सूखा खून, उस रात क बात को उसी सफाई से मुझे समझा और
दखा रहा था जैसे वो ई थ । इन सबसे इतर मुझे एक डर ये भी था क उस रात के बाद
अब भैया कह हमसे म खाली न करवा द। अब वो उनका घर था वो जो चाहे वो कर पर
मुझे खुशी इस बात क भी थी क उ ह ने उस रात हम बचा लया था। कुछ दे र म म
गुजारकर म उनसे बात करने ऊपर गया। मुझे ऐसे ठ क-ठाक दे खकर वो ब त खुश हो गए।
उ ह ने उस रात के बारे म मुझसे कोई भी बात नह क , बस मुझे चाय- ब कट दया और
फर घर क और मेरी त बयत क बात पूछने लग गए। वापस नीचे आते व मने उ ह उस
रात के लए थ स कहा तो वो हँस दए और कहने लगे, “यार तु हारी वजह से मुझे उन
लोग को पीटने का मौका मला। मने तो वो सारा गु सा उन पर नकाल दया जो तु हारी
भाभी क वजह से मेरे दल म इकट् ठा हो रखा था।” पर उनक उस मजाक से उलट ये म
भी जानता था और शायद भैया भी क उ ह ने हमारे लए या कया था क वो अगर उस
रात नीचे नह आते तो हमारे साथ या- या हो सकता था।
(19)
तीन साल म ये पहली बार था जब इतने दन के लए म उदयपुर से अलग रहा था। मेरी
बु स पूरी तरह से धूल म नहा चुक थी। शायद ये वही भूल थी जो मुझे ये सोचने पर मजबूर
कए जा रही थी क अगर उस दन वो सब नह होता तो मेरे सपन पर भी इतने दन क
धूल नह जमती। उस दन उस कमरे म मेरी अब तक क सारी गल तयाँ मेरा हाल-चाल
पूछने इकट् ठा हो गई थ । म तो यहाँ तक भी सोचने लगा था क रतेश के बना मेरी अब
तक क जदगी कतनी आसान होती, कतना कुछ मुझे नह सहन करना पड़ता! तब उस
बेड पर लेटे-लेटे म हर बात को पकड़कर या आ और या हो सकता था के तराजू म
तोलने लगा। म रतेश के बना अपनी गुजरी जदगी और आने वाली जदगी को सोचने लगा
था।
उस दन मुझे सबसे मलना था पर पापा के साथ होने क वजह से म उ ह ये बता नह
पाया था क म आज आने वाला ँ ले कन पता नह यू,ँ उस म और अपनी हालत
दे खकर तब कसी से भी मलने का मन नह कर रहा था। म बस वह बैठकर सब कुछ
वापस से सोचना चाहता था। म ये सोचना चाहता था क मने अब तक या कया था और
अब आगे या करने वाला था।
तो म बीती और आने वाली हर बात को उसके हर एंगल पर रखकर सोचने लगा,
उनका समझदारी भरा न कष नकालने लगा। बात को इतनी गहराई से सोचने क कभी
मेरी आदत नह रही तो ज द ही मेरा दमाग इन सब बात क डबेट से फटने लगा और म
उन सब बात को अपने साथ लेकर वह सो गया। ये शायद उदयपुर क सबसे गहरी न द थी
मेरी जैसे कसी ने मुझे मीठ लो रयाँ सुनाकर अपनी बाँह म सुला दया हो और उसक उन
थप कय ने मेरे तपते ए खयाल को ये समझा दया हो क कोई बात नह आगे जो होगा
वो अ छा ही होगा।
उस न द के बाद शाम को जब आँख खुली तो बीते कल और आने वाले कल के बीच म
गोते खाती मेरी जदगी का उलझन भरा तूफान लगभग थम चुका था। मने फर अपना
टे बल साफ कया और वह बैठकर अपनी कताब को पलटने लगा। मने तब ब त को शश
क मगर मुझे कुछ सूझ ही नह रहा था क वापस कहाँ से शु क ँ । वैसे भी कसी महान
इंसान ने कहा है क जब कुछ समझ म नह आए तो बेमतलब उँगली नह करनी चा हए। तो
मने उन उल- जलूल खयाल से अपने दमाग को हटाने क सोचते ए याना को कॉल कया,
वो पास के ही एक कैफे म अपने दो त के साथ बैठ ई थी। ले कन पता नह यूँ! मने उसे
ये बताना सही नह समझा क म उदयपुर म ही ।ँ मेरा मन तो था क म जाकर मल लूँ
उससे पर न जाने य आज सब कुछ अजीब-सा ही हो रहा था। फर मने रतेश को कॉल
कया और उसे बताया क म यही ँ। उसने मेरी बात सुनकर मुझसे कुछ भी नह पूछा और
बस यही कहा क तू वह क म आ रहा ।ँ उस दन उसको मुझसे मलने के लए आते दे ख
म अकेला वहाँ खड़ा-खड़ा जैसे लश करने लगा था। वैसे ही जैसे कोई नया-नया आ शक
अपनी गल ड का इंतजार करते ए करता है। म अंदर-ही-अंदर ये सोचने लगा था क जब
वो सामने आएगा तो बात कहाँ से शु क ँ गा? या क ँगा? कैसे क ँगा? सच क ँ तो म
बस बेचैन आ जा रहा था, जैसे म आज से पहले उससे कभी मला ही नह ।ँ व को
काटने के लए जो मल रहा था बस खाए जा रहा था। बेमतलब अपने मैसेजेस और
फेसबुक अकाउंट चेक कए जा रहा था। फर कुछ और व क टक- टक और फर रतेश
मेरे सामने था।
हमने एक- सरे को र से ही दे ख लया था। उसे दे खकर मुझे सबसे पहले इस बात क
खुशी ई क वो भी पूरी तरह से बडेज से आजाद था। जैस-े जैसे हमारे बीच क डसटस
कम हो रही थी वैस-े वैसे हमारी माइल भी बढ़ती जा रही थी। उसने मेरे पास आते ही, “ या
बात है भाई! कैसा है?” ये पूछते ए हड शेक के लए अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया पर मेरे
हाथ क मस स म इस तरह क हरकत करने क कोई पुरानी मेमोरी थी ही नह । रतेश के
हाथ को ऐसे दे खकर मेरी जनरल बॉडी ल वेज थोड़ी-सी कं यूज हो गई और फर मने अपने
हाथ क उस हालत और उस क यूजन को समझते ए आगे बढ़कर रतेश को गले से
लगा लया। शराब के नशे को छोड़ ँ तो शायद ये आज पहली बार था जब म रतेश को ऐसे
बीच रा ते गले लगा रहा था। पर तब मुझे कसी बात क कोई फ नह थी। मेरा यार मेरे
पास था और वो भी वन पीस म, यही काफ था मेरे लए और शायद उसके लए भी। और ये
मुझे तब पता चला जब उसके हाथ क पकड़ भी धीरे-धीरे जदा होने लगी, धीरे-धीरे और
मजबूत होने लगी। फर जैसे ही हमारे शरीर ने एक- सरे को ये समझा दया क सब कुछ
ठ क है तो अगले ही पल हम दोन एक- सरे को दे ख ठहाके लगाकर हँसने लगे। मने इतने
दन क इकट् ठा सारी गा लयाँ एक-एककर उसे दे डाली और वैसे भी गा लय को दो ती म
अ छे शगुन का दजा मला आ है। जब तक आपक दो ती म ये गा लयाँ जदा ह आपक
दो ती क ह जदा है। तब हम दोन के पास ब त कुछ था जो हम एक- सरे को बताना
था, एक- सरे से पूछना था, ले कन हम दोन ही ये समझ नह पा रहे थे क शु कहाँ से
कर। अब एक बात तो लयर थी क ऐसे तो काम चलना नह था। ऐसे तो बात होनी नह
थ । तो बना कुछ सोचे ही मने उससे पूछ लया क या मूड है बता? उसने भी बना दे र
कए कह दया, “भाई बकाड ही लगे, ओ ड म क पनौती है अपने लए। दे खा न तूने उस
दन या आ!”
आज शायद ये पहली बार था जब काली ब ली के बाद शराब क कसी ांड को भी
पनौती क ल ट म शा मल कया गया था। हमने फर पास क शॉप से ही रम ली और फर
थोड़ा चखना लेकर हम चल पड़े म क तरफ। धीरे-धीरे शराब के नशे के साथ-साथ हमारी
बात भी अपनी शम और झझक छोड़कर बहकने लग । इतने घंट से जो बात म कह अपने
अंदर दबाए बैठा था वो भी मौका दे खकर बाहर आ ही गई।
“ शफा कैसी है?” मने रतेश क आँख म इसका जवाब खोजते ए उससे पूछा।
उसने कुछ दे र सोचा और कहा, “अब तू आ गया है न, वो भी ठ क हो जाएगी।”
मुझे उसका जवाब सही से समझ तो नह आया, पर उसक आँख के उस भराव को
दे खकर मुझे इतना तो आइ डया लग ही गया था क कुछ तो है जो ठ क नह है। तभी व ध
का कॉल आ गया और म उससे बात करने के लए बाहर चला गया। व ध खुश थी क म
वापस उदयपुर आ गया था और पहले क तरह ही हरकत करने लगा था, पहले क तरह ही
पीने भी लग गया था। व ध के साथ रहकर मने ये जाना था क लड़ कयाँ हम बदलने क
को शश तो ब त करती ह, ले कन उ ह भी ये पता होता है क हमारा वजूद भी तभी तक है
जब तक हमारी ये ब च जैसी, पागल जैसी हरकत जदा ह। उसने उस दन मुझे बना डाँटे
बस इतना ही कहा क यादा मत पीना, म वापस कॉल क ँ गी चेक करने के लए। मने भी
उसक हाँ म हाँ मला द , पर हम दोन ये जानते थे क तब ऐसा कुछ भी होना नह था।
व ध से बात करके जैसे ही म अंदर गया तो मने दे खा क तब तक रतेश बची ई पूरी
बोतल ख म कर चुका था।
रतेश क ये भखा रय जैसी हरकत मुझे बलकुल पसंद नह थी। साला पूरी बोतल
लाए थे हम और जैसे पहले कभी शराब दे खी ही न हो वैसे वो फटाफट पूरी पी गया! जब
हम उसे खरीद रहे थे तब मने उससे कहा था क दो बोतल ले लेते ह, पर तब तो साहब ान
बाँट रहे थे क आजकल मने यादा पीना छोड़ दया है, बस एक दो पेग ही लूँगा। साला
बेवड़ा कह का! हद है यार! फर मने उसे साफ-साफ कह दया क साले आज अगर तू
इतनी ज द ट ली होकर फालतू क हरकत करने लगा तो जान नकाल लूँगा तेरी। रतेश
सच म टं क था, वो साला कतनी भी पी सकता था। पर मुझे भी आज अ छे से पीना था,
ब त महीन से पी नह थी मने।
फर हम वापस नई बोतल खरीदने के लए नकल गए। ले कन तब तक सारी वाइन
शॉ स बंद हो चुक थी, तो हम लैक म खरीदनी पड़ी। पर आज पैस क कोई टशन नह
थी, मुझे तो बस आज लीवर फाड़ पीना था। तब रात के लगभग 10 बजे ह गे और हम एक
बोतल खुद के अंदर और एक पीछे बैग म लए ए कसी बंजारे क तरह सड़क पर लोग
को गा लयाँ दे ते ए बाइक लए चले जा रहे थे। तभी मुझे याना क याद आई और वैसे भी
हमारे यहाँ पीने के बाद गल ड को याद करने का रवाज-सा है। अगर कोई पीने के बाद भी
अपनी गल ड को याद न करे तो इसके दो ही कारण हो सकते ह, या तो उसक गल ड म
दम नह है, या फर उस ल डे क जवानी म और अपने तो साला दोन म ही दम था। सरी
ओर रतेश भी कहाँ कम था, वो भी बोला चलो फर, कसका इंतजार हो रहा है अब तक!
तो रतेश के झंडा उठाते ही मने बाइक याना के म क ओर मोड़ ली और फर हम
कुछ ही दे र म याना के म के बाहर खड़े थे। मने उसे कॉल कया और बाहर आने के लए
कहा, पर वो तो अपने म म थी ही नह ! वो मूवी दे खने गई थी अपनी ड के साथ। अगर
तब हम दोन अकेले होते, ‘तो ठ क है कल मलगे’ कहकर वापस चले आते, पर तब हमारे
खून म रम भी थी! तो अब ये तो होना नह था! तो मने उसे थएटर से नकलने के लए कहा
और फर हम कुछ ही दे र म बाइक को उसक पूरी औकात के साथ भगाकर मॉल प ँच गए।
मुझे एक तो उदयपुर म दे खकर और ऊपर से ऐसे नशे म दे खकर, वो पागल-सी हो
गई। वो मेरे पास आते ही च लाने लगी क आते ही टाट हो गए तुम! और आए कब तुम?
मुझे कब बताने वाले थे?
“दे खो, च लाकर दमाग खराब मत करो, बात करनी है तो को वरना भागो यहाँ
से।” खून म रम ने जो थोड़ा ब त अपना असर था वो दखाना शु कया।
उसे शायद बुरा लग गया मेरी बात का, तो वो बना कुछ और कहे ही वापस मॉल म
जाने लगी। तभी उसे ऐसे जाते दे ख म पीछे से च लाया, “एक बार थएटर से नकलने के
बाद वो वापस अंदर घुसने नह दे गा तु ह।” मेरे ऐसे जोर से च लाने से उसे और गु सा आ
गया, पर बात सही थी भाई! और शायद इस लए वो वापस थएटर म जाने का लान
छोड़कर, अपने म जाने के लए ऑटो को रोकने लगी। उसके रोकने पर एक ऑटो का
भी पर तभी रतेश ने उस ऑटो वाले को बड़े यार से समझा लया क खसक ले यहाँ से
ल ला।
हमारी ये हरकत दे खकर वो फर से हम पर च लाने लगी क अगर हम यहाँ से नह
गए तो वो कभी हमसे बात नह करेगी! तभी मने तुरंत रतेश क ओर दे खा, उसने इशारा
कया क कोई ना ऐसे ही डरा रही है। उधर रतेश का इशारा मलते ही मने भी याना से कह
दया, “नह जाएँगे हम, ये मॉल तु हारे घरवाल का थोड़े ही है!”
मेरी हर बात उसके गु से को बूँद-बूँद बढ़ा रही थी, पर वो भी ये जानती थी क हम ऐसे
तो अपना पागलपन रोकने वाले नह थे। तो वो थक-हारकर वह पास लगी लैब पर बैठ
गई। मुझे भी तभी लगने लगा क अब यादा हो रहा है। म अ छे से दे ख पा रहा था क तब
उसका गु सा उसक नाक तक प ँच गया था। पता नह कैसे और कहाँ से ये शु आ था,
पर उससे मलने का लान धीरे-धीरे उसे टॉचर करने के लान म बदल चुका था। म बात को
सँभालने के लए उसके सामने गया और अपने कान पकड़कर सॉरी माँगते-मँगाते उठक-
बैठक करने लगा।
रतेश अ सर कहा करता था क पीने के बाद तू कसी भोले से ब चे क तरह हरकत
करने लगता है, तेरी शकल न एकदम यूट-सी हो जाती है और शायद इसी बात पर ही याना
को भी दया आ गई और कुछ ही दे र म मुझे ऐसे कान पकड़कर माफ माँगता दे ख वो भी
हँसने लग गई और उसके साथ-साथ रतेश भी। फर उसने मुझे अपने पास बठाया और
पूछने लगी क आज कस खुशी म पी है? मने भी टपाक से कह दया, “बस यूँ ही, तु हारे
पास आने क खुशी म।”
वो भी हँसते ए कहने लगी, “कहाँ आए तुम? अब टाइम मला है तु ह तो!”
“परेशान था यार, समझ ही नह आ रहा था क कहा से शु क ँ ? या शु क ँ ?”
मने माफ क उ मीद म उसके हाथ को थामते ए कहा।
“अ छा तो शराब से शु करने का डसाइड कया फर तुमने!” वो अपनी हँसी म
थोड़ी-सी हैरानी मलाते ए बोली।
“सॉरी न यार .. बस मन कया क एक बार दे ख लूँ तु ह, तो आ गया। चलो तु ह म
छोड़ दे ता ।ँ ” मने उसक आँख म कुछ तलाशते ए कहा।
“अ छा सुनो ..” म वहाँ से खड़ा होने ही वाला था क वो मुझे रोकते ए बोली।
“हाँ बोलो ना।”
“कैसे हो अब?” इसबार उसक आवाज के साथ-साथ, उसक आँख भी थोड़ी-सी
नमी लए ए थ ।
“ठ क ही ँ! शायद थोड़ा परेशान भी। पर कोई ना, म धीरे-धीरे खुद को सँभाल
लूँगा।”
“तुम चता मत करो, सब कुछ ठ क हो जाएगा, सब कुछ पहले-सा वापस हो
जाएगा।” उसने मेरे कंधे पर अपने सर को सुलाते ए कहा।
कुछ दे र वह बैठकर हम तीन बात करते रहे, फर मने रतेश को वह कने को कहा
और याना को उसके म पर छोड़ने चला गया। इतने दन बाद हम मल रहे थे और वो भी
ऐसे! म सोचने लगा क कह इन दन ने हम एक- सरे से र तो नह कर दया, कह सब
कुछ कसी हगओवर क तरह उसके दल से उतर तो नह गया!
कोई माने या न माने पर उन र त के टू टने का डर हमारे मन म हमेशा रहता ही है
जसे बनाने के लए हम मेहनत करनी पड़ी हो, जन र त को जोड़ने के लए हम खुद को
ूव करना पड़ा हो और यही एक कारण है क इन र त के साथ हमारा हर इमोशन थोड़ी
यादा ही एनज से बाहर नकलता है, चाहे वो यार हो या फर नफरत।
सरी ओर अगर म सच क ँ तो उस रात के बाद न जाने मुझम या बदल गया था क
अब म हर बात को ब त ही यादा सोचने लगा था या यूँ क ँ क हर बात को ज रत से
यादा ही ख चने-तौलने लगा था। मतलब क जो था नह उसे भी म सोचने लगा था। और
इ ह सब सोच- वचार के बीच फर कुछ ही दे र म उसका म भी आ गया और इधर उससे
ेकअप के उस अंजान से डर ने मेरी सारी उतार भी द । मुझे यूँ शांत दे खकर उसने पूछा,
“ या आ? अचानक चुप कैसे हो गए तुम?”
“कुछ नह यार, बस यूँ ही।” मने बाइक को रोकते ए कहा।
“बस मुझे दे खने ही आए थे या कुछ और भी था जो कहना था!” याना बाइक से
उतरकर मेरे पास आ गई और हवा क वजह से बखरे मेरे बाल को सही करने लगी।
“कुछ चा हए था इस लए आया था म तो।” म ब च -सी श ल बनाते ए बोला।
“ या?” उसने मेरी नाक को हमेशा क तरह ख चते ए पूछा।
“ क सी चा हए थी ब त सारी। कतने महीने हो गए यार मुझे एक भी नह मली! पेट
म चूहे पागल क तरह उधम मचा रहे ह।” म फर से कसी ब चे क तरह श ल बनाकर,
अपने पेट पर हाथ फेरते ए बोला और मुझे ऐसे बोलते दे ख वो भी अपनी हँसी रोक नह
पाई।
“तो तु हारे चूह को क सी चा हए! पर मेरा अभी चूह को क सी करने का कोई मूड
नह है।” उसने भी अपनी उस यारी-सी हँसी के साथ उसी बचपने को ओढ़ते ए कहा।
सरी ओर उसक उस हँसी ने मेरे उससे ेकअप हो जाने के उस बेकार, बेमतलब से डर को
थोड़ी ब त ठं डक-सी दे द थी और अगले ही पल म उसे अपने और नजद क लाया और
उसक छाती पर अपना सर रखकर अपने उस डर को उसक नजद कय से, उसके पश
से डराकर भगाने लगा। इस हालत म अपने पैर से बाइक को सँभालना मेरे लए मु कल हो
रहा था। तो मने बाइक को वह साइड टड पर लगा दया और फर वापस याना के पास
जाकर उसे कसकर हग कर लया। उसे ऐसे अपनी बाँह म पघलता दे ख मुझे लग रहा था
मानो जैसे मेरा यार, जो इतने दन तक उससे र रहा था, वो कुछ ही पल म उन सारे दन
क भरपाई कर लेना चाहता हो। म उसे कतरा-कतरा और कसता जा रहा था, उसे अपने
नजद क के और भी यादा नजद क लाए जा रहा था। जैसे म अब हम दोन के बीच हवा
भर क री को भी बदा त नह करना चाहता था। तो खुद को मेरी बाँह म यूँ कसता दे ख वो
कुछ ही दे र म बोली, “अ भ तुम मुझे कतना भी कस के पकड़ लो, पर म इससे और यादा
तु हारे पास नह आ सकती। अब म तु हारे अंदर तो नह घुस सकती ना!”
“ह म, पर या क ँ , म खुद को रोक ही नह पा रहा।” मने एक गहरी और ठं डी साँस
छोड़ते ए कहा।
गल ड का हग फा ट रलीफ क तरह होता है, वो आपका दद तो मटाता ही है पर
उसके साथ-साथ आपके जेहन पर एक मीठ -सी ठं डक भी छोड़ जाता है और वो ठं डक
आपक उन उलझन क जलन को धीरे-धीरे कम कर दे ती है, आपके उन सारे सवाल और
आपक हक कत से लड़ते उनके जवाब को मीठ -मीठ सी लो रयाँ सुनाकर कुछ व के
लए उ ह सुला दे ती है।
मुझे याना क बाँह से जुदा होने का कोई मन नह था, पर रतेश वह मॉल के बाहर
खड़ा था तो न चाहते ए भी जाना ही पड़ा। फर कुछ ही दे र म हम दोन ने म पर प ँचते
ही फर से पीना शु कर दया। मौसम धीरे-धीरे फर बेईमान होने लगा, बात फर से अपना
सीना तानकर, अपनी ही अकड़ म बहकने लगी। धीरे-धीरे नशा जब और बढ़ने लगा तो
रतेश के हाथ से वो सारी र सयाँ फसलने लग , जनसे उसने खुद के कई इमोश स और
अपनी ब त सारी बात को बाँध रखा था। ज ह वो शायद मेरे सामने नह लाना चाहता था,
ज ह वो शायद मुझसे छु पाना चाहता था। उसने फर मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपने माथे
से लगा लया और फर उसने अपने उन आँसु को बहने के लए खुला छोड़ दया ज ह
पता नह वो कब से अपने अंदर कह दबाए बैठा था। उसे इस तरह फूट-फूटकर रोता दे ख म
घबरा गया और उससे पूछने लगा क अब या आ यार? य रो रहा है तू? अभी तक तो
सब ठ क था!
वो बोला, “सॉरी यार, तुझे मेरी वजह से उस दन मार खानी पड़ी। तूने तो मुझे पहले
दन से ही कहा था क म इस लफड़े म न पडँ, पर मने तेरी एक भी नह सुनी और इसम तेरी
गलती या थी यार? बेवजह तुझे भी इतने सारे दद और तकलीफ से गुजरना पड़ा। बस
सफ और सफ मेरी वजह से, मेरे यार क वजह से।”
साले ने ये बात करके मेरी दो ती के गाल पर, बड़ी त बयत से तमाचा मारा था। उसक
ये बुज दल जैसी बात सुनकर मेरा रोम-रोम कहने लगा क अ भ ठोक साले को, नकाल दे
उस रात का सारा गु सा अभी के अभी। पर मने खुद को ये समझाते ए रोक लया क
अभी-अभी तो ह ड् डयाँ जुड़ी थ उसक , अगर मने मारना शु कया तो कह फर से न टू ट
जाएँ। साला इतनी मार खाने के बाद वो अब रो रहा था और वो भी मेरे सामने!
“भोसड़ी के, ऐसे रोना हो तो नकल जा यहाँ से अभी। तेरे को पता है कतनी ह ड् डयाँ
टू ट मेरी? कतना दद आ मुझ? े पर माँ कसम एक सेकंड के लए भी मेरी उन टू ट
ह ड् डयाँ ने भी ये नह सोचा क ये सब तेरी वजह से आ और यहाँ तू कसी गेलचोदे क
तरह ये सब सोचकर मेरी स पैथी क उ मीद म रो रहा है! वो सब हमारी वजह से आ था,
इस लए हमारे साथ आ था। और साले तेरी इतनी औकात कब से हो गई क तू अकेला
इतना बड़ा लफड़ा कर दे ! और अगर फर भी तुझे ये तेरा-मेरा करना हो तो कल से तू तेरे
रा ते और म मेरे।” मने गु से म उसक कॉलर पकड़कर सीधा उसक आँख म दे खते ए
कहा।
मेरी बात सुनकर मुझसे बना कुछ कहे ही उसने मुझे अपने गले लगा लया। उसके
आँसू अभी भी नह के थे, जैसे आज उसके अंदर से वो सारी ग ट नकालकर ही कने
वाले ह जसे उसने इतने दन म, अकेले म, इन सब बात के बारे म सोच-सोचकर इकट् ठा
कया था। यार वो रतेश था! मेरा दो त, मेरा भाई। उसे भगवान ने मेरे साथ कसी र ते का
टै ग लगाकर नह भेजा था, वो मेरी वाइस था। वो मेरी लाइफ का एक पाट बनेगा या नह ये
मने डसाइड कया था। अगर वो सही डसीजन था तो भी मुझे भुगतना था और अगर गलत
था तो भी मुझे ही। बस चार लट् ठ खा लेने और दो-चार ह ड् डयाँ टू ट जाने क वजह से वो
मुझे ये वचन नह दे सकता था क या उसक वजह से आ था और कहाँ-कहाँ उसक
गलती थी। मेरी लाइफ म जो भी आ था, वो कस के कारण आ और य आ, ये सब
सफ और सफ म डसाइड क ँ गा, वो नह । उसे तब म ये कैसे समझाता क मेरे खून म
RBC, WBC, लेटलेट्स और ला मा के साथ-साथ वो भी उसी हक से बहता था। उनक
तरह अगर वो भी मेरे खून म थोड़ा-सा भी कम हो गया तो म बीमार हो जाऊँगा, म जदा तो
र ँगा पर जी नह पाऊँगा।
उधर उसके आँसू व के साथ-साथ मेरे गु से को भी शांत कए जा रहे थे। कुछ दे र
बाद मने उसके चेहरे को अपने कंधे से उठाया और कहा, “साल क वाट लगा दगे अपन।
उनक इतनी औकात नह है क शफा को र ले जाए तुझसे। बस तू ये लड़ कय क तरह
रोना बंद कर समझा? साले तेरे साथ फर से रहने के लए मने तो साँप तक क पूजा करवा
ली, दे ख ये अँगूठ और तो और कतने पं डत को म दाल-बाट और चूरमा खला दया
भाई! और तू यहाँ मुझे अपनी गल तयाँ गनवा रहा है! यार थोड़ी तो शम कर!”
शायद वो उस साँप क पूजा और उस पं डत वाली बात से हँसने लगा और उस हँसी
को उसके चेहरे पर फर से नखरता दे ख मने भी खुश होते ए कहा, “ये ई न बात!” और
वैसे भी कसी महान इंसान ने कहा है क अगर यार म दो-चार लट् ठ नह खाए, तो फर
या घंटा यार कया तुमने।
(20)
उस कांड वाली रात से शफा का कोई अता-पता नह था। उससे कांटै ट करने क हमारी
सारी को शश लगभग नाकाम ही रही थ । उन कुछ महीन म बीच-बीच म कभी-कभार
शफा ने रतेश को कसी और के नंबर से कॉल ज र कए थे, पर कभी भी ढं ग से बात नह
हो पाई थी उनक । अब जब म आ गया था तो रतेश ने ब त बार उसके घर के आस-पास
जाकर उसे बस एक बार दे खने क अपनी इ छा मेरे सामने जा हर ज र क थी, ले कन
बना शराब के मुझपर हमेशा उस रात वाली बात का दद हावी हो जाता था और म कोई-न-
कोई बहाना या रीजन दे कर शफा को दे खने वाली उसक बात को टाल दया करता था।
शफा से मलने क हमारे पास बस एक ही उ मीद बची थी और वो थी फाइनल ए जाम
डेट्स। शफा को कसी भी हाल म ए जाम दे ने कॉलेज आना ही था। तो मने भी रतेश को
इसी उ मीद का झंडा पकड़ाकर बठा दया और कुछ दन शांत रहकर चुपचाप पढ़ने के
लए उसे मना लया।
सरी ओर उस पटाई वाली रात ने मेरे दलो- दमाग म ऐसा खौफ भर दया था क
अब उस म म मेरा मन नह लगता था। म सुबह होते ही लाइ ेरी आ जाता और मेरे पीछे -
पीछे अपने उसी अकेलापन से नजात पाने रतेश भी। हम दोन शाम तक वह के रहते
और पढ़ते रहते। इ ह दन मने फर से अपने IAS बनने के सपने पर अपना पूरा फोकस
डाल दया था और इसके लए फर से तैयार भी कर ली थी। पर इससे पहले मुझे अपने
फाइनल ईयर ए जा स को भी दे खना था, तो मने अपने व को इन दोन म बराबर बाँट
दया और खुद को पहले वाली लय म लाने के लए मेहनत करने लगा।
दे खते-ही-दे खते मजाक-म ती म, एक सरे को दलासा दे त-े दे ते ए जा स के दन भी
आ ही गए। इस बार फ ट पेपर ही ऑग नक केमे का था। सबक हवा टाइट हो चुक थी।
पर सबसे उलट हम तब एक अलग ही टशन म थे। आज इतने महीन बाद शफा कॉलेज
आने वाली थी। इधर हमने पहले से ही कॉलेज े सडट से बात कर ली थी क कॉलेज कपस
म कोई भी बाहर का नह आएगा और वो भी इले शन म हमारे कॉ युशन को याद करके
इस बात के लए मान गया था। उस दन म शफा क लास के बाहर खड़ा था, याना
कॉलेज के मेन एं स पर खड़ी थी और रतेश बॉटनी लैब के ऊपर। भगवान का शु था क
उस दन ए जाम के घंटे भर पहले ही शफा आ गई और फर याना ने उसे हमारे लान के
हसाब से ही रतेश के पास भेज दया।
रतेश का रोल नंबर मेरे म म ही था, पर घंटे भर बाद तक भी वो म म आया नह
था। मुझे टशन होने लगी थी क कह वो शफा के च कर म ए जाम ही न छोड़ दे ! वैसे भी
पागल था वो। पर शु था क वो थोड़ी ही दे र बाद आ गया। मेरी जान म जान आई। तब
मुझे शफा के बारे म उससे ब त सारी बात करनी थ , पर ये सब अब ए जाम के बाद ही
पॉ सबल था। फर कुछ ही दे र म पेपर बँटे और उसे दे खकर मुझे ये यक न हो गया क
जसने भी वो पेपर सेट कया था, उसक शफा के पापा के साथ ज र कुछ-न-कुछ से टग
ई थी। उस पेपर को दे खकर मुझे तो लगने लगा क इस बार तो प का बैक आएगी। तभी
मुझे एक ओर मेरे पापा दखने लगे तेल और उसपर मच लगाए लट् ठ के साथ, तो सरी
ओर मुझे आ द य दखने लगा व ध के साथ।
फर मने तुरंत ही अपनी उस साँप वाली अँगूठ से अपना मैटर फ स कर लया क
अगर म ऑग नक म पास हो गया, तो शवजी को पूरे एक महीने तक रोज एक लीटर ध
चढ़ाऊँगा। उस साँप से अपने मैटर को फ स करने के बाद मने खुद को फोकस कया और
लग गया उस पेपर को सॉ व करने म।
उधर लगभग हाफ टाइम ही आ था क रतेश अपनी सट से उठ गया, ये कहते ए
क सर हो गया पेपर। इधर उसके मुँह से ये सुनकर एकबारी तो मेरा दमाग भी खराब होने
लगा क साला ये इतना इंटेलीजट कब से हो गया क इतनी ज द उसने इस ऑग नक के
पेपर को सॉ व कर दया! और ये सफ मेरा ही हाल नह था, तब शायद सारी लास भी मेरे
साथ-साथ यही सोच रही थी। फर हमारे म के उन सारे टू डट् स ने अपने भावी कॉलेज
टॉपर को दे खने के लए अपना कुछ व नकाला और उसे बधाई दे ने क नजर से दे खकर
वो सब वापस से अपने जैस-े तैसे पास होने के लान म जुट गए। पर तब उन सब लड़क से
उलट मुझे पता था क उस साले का पेपर इतनी ज द कैसे हो गया था क वो इतनी ज द
पेपर करके कहाँ जा रहा था। पर तब वो सब सोचने का टाइम नह था मेरे पास। मुझे तो
कैसे भी करके इस पेपर म पास होने लायक लखना था। तो फर मने भी अपना पूरा जोर
लगाकर भर द वो पूरी आंसर शीट और बाक सब कुछ उस साँप और शव जी पर छोड़
दया।
पेपर ख म होने के बाद जब म नीचे गया, तो कॉलेज टॉपर, अपनी उसी टॉपर वाली
माइल के साथ लाइ ेरी के पास बैठे ए थे। आज त बयत सही लग रही थी उनक । मेरे
पूछने पर साहब ने इशारे म ही बता दया क सब मजे म है। चलो कोई तो खुश था, ऐसे
पेपर के बाद! सरी ओर आज तो हम दोन के पास रीजन था शराब पीने का, वो शफा से
मलकर खुश था और म ऑग नक के अ याचार से खी। तभी रात को पीते-पीते रतेश
कहने लगा, “सब कुछ नॉमल है शफा के घर, बस उसे अब बाहर नह जाने दे ते ह अकेले।”
“कोई बात नह यार, होता है! इतना तो रये ट करगे ही उसके घर वाले।” मने उसे
सब कुछ ठ क है क उ मीद दे ते ए कहा।
“शायद!” वो अपने लास म बची ई रम को अपने अंदर उड़ेलते ए बोला।
“यार वो टाइम नकालकर, थोड़ा छपकर रोज कॉल य नह करती तुझ? े ” मने
थोड़ा इमोशनल होते ए उससे पूछा।
“उसके घर वाल ने उसे धमकाया है क अगर फर से कभी मुझसे कोई कांटे ट करते
ए पकड़ी गई वो, तो मुझे फर से मारगे।” रतेश ने अपना अगला पेग बनाते आ कहा।
उसक ये बात सुनते ही मेरी रम मेरे हलक म ही क गई। शायद रतेश ने ‘हम दोन
को मारगे’ क जगह गलती से सफ ‘मुझे मारगे’ बोल दया था। मतलब क साला फर से
खानी पड़ सकती है! ये खयाल दमाग म आते ही मने तुरंत अपनी कैलकुलेशन क , और
पाया क रतेश जस तरह क हरकत इन दन कर रहा था उस हसाब से तो हमारे फर से
मार खाने क पॉ स ब लट 85% तक थी। शायद उधर रतेश मेरी हालत समझ गया था, तो
मुझे शांत करने के लए बोला, “तू टशन मत ले भाई, कुछ नह होगा हम। उनक इतनी
औकात नह है क अपना कुछ भी बगाड़ सक।”
उसक ये दलासा दे ने वाली बात सुनकर मेरे दल ने रतेश से मन-ही-मन कहा क
भाई अभी भी तुझे ये दे खना बाक रह गया है या क उनक कतनी औकात है और वो
या- या बगाड़ सकते ह अपना! ले कन म ये जानता था क रतेश अब न तो मेरी सुनने
वाला है और न ही मेरे दल क , तो मने एक नजर फर अपनी साँप वाली अँगूठ पर डाली
और वो सुबह फ स कए एक लीटर ध को, ‘अगर म इस साल और मार खाने से बच गया
तो…,’ ये जोड़कर तुरंत ही 5 लीटर कर दया। सरी ओर मने अगले दन से अपनी टे बल
पर ही अपने माँ-पापा क फोटो े म भी लगा द क या पता कल या हो जाए!
***
उस रात रतेश क कही बात का मुझे कह -न-कह डर तो था, पर शायद उस साँप क
वजह से अब सब कुछ सही ही चल रहा था। इतना स ाटा मेरी लाइफ म पहले कभी नह
आ था जतना इन दन था। ऑग नक के पेपर को छोड़कर बाक सब पेपर म त ए थे,
और वहाँ रतेश का भी शफा के साथ सही ही चल रहा था। बस एक आ खरी पेपर आज
बचा था और इसके बाद तो बस बोतल ही खुलनी थ ।
तो मने रतेश को पहले ही कह दया था क आज रात को तो गाँजा ही मारगे यार, तू
अरज करके रखना सब कुछ। और ये खुशी तब और गनी हो गई जब उस दन का पेपर
हाथ म आया। अब मुझे पूरा भरोसा हो गया था क रज ट अ छा ही आना है। अब बस एक
ही वा हश थी क कैसे भी ज द से ये पेपर ख म हो जाए और फर म पर जाकर
आराम से गाँजा मारा जाए। सच क ँ तो म आज रात सरी बार गाँजा लेने वाला था पर वो
पहली बार का मजा मुझे आज भी याद था।
तो मने उसी वाद को एक बार फर जीने क ज दबाजी म फटाफट ही उस पेपर को
ख म कया और ज द से कॉलेज म रतेश को खोजने लगा। पर वो साला कह नह था। न
बॉटनी लैब के ऊपर, न लाइ ेरी म और न ही कट न म। मुझ लगा शायद आज रात क पाट
का अरजमट करने गया होगा, य क मुझे कॉलेज म कह शफा भी नह दख रही थी। तो
उसी खुशी म मने भी खुद को आज क पाट के लए रेडी कर लया और म पर जाने के
लए पा कग म अपनी बाइक नकालने प ँचा।
उधर मेरी सोच से उलट रतेश साहब पा कग के सामने क तरफ एक कार म बैठे ए
थे और उनके साथ उस कार म उनके कुछ और दो त भी बैठे ए थे और ये सब मुझे तब
दखा जब रतेश ने मुझे उस कार के अंदर से ही आवाज लगाई क यहाँ आ भाई। अब अगर
सच क ँ तो मुझे भी ये बड़ा अजीब लगा क कार आते ही भाई के तो अंदाज ही बदल गए
है! चलो कोई ना! ये तो व -व क बात है, ये सोचकर म जब उसके पास गया तो उसने
मुझे कार म बैठने के लए कहा। पर तभी उस कार म अपनी नजर डालते ही मेरा दमाग
खराब हो गया। जो लोग कार म बैठे थे उनको मने कभी न तो हमारे कॉलेज म दे खा था और
न ही कभी रतेश के साथ दे खा था। ले कन उनम से एक चेहरा मुझे अ छे से याद था। ये
लड़का वही था जसे हमने उस वाटर पाक जाने वाली शाम को कॉलेज के बाहर पीटा था
और उसने वापस रात म हम। मुझे समझ नह आ रहा था क ये हो या रहा है! मेरा दमाग
सोचने लगा क कह रतेश ने कुछ ले-दे कर इनसे कॉ ोमाइज तो नह कर लया! पर वो
जो भी था, उसे दे खकर म बड़ा कं यूज हो गया क अब या क ँ ? वो लड़के मेरे कॉलेज म
खड़े थे, म अगर चाहता तो उनक वह चटनी नकलवा सकता था। पर तभी मुझे खयाल
आया क ये तो रतेश भी कर सकता था, तो फर वो उनके साथ य बैठा था?
मेरी उलझन और मेरी हालत रतेश शायद समझ गया था पर उसक हालत म बलकुल
भी समझ नह पा रहा था। तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और लगभग भीख माँगने जैसे लहजे
म कहा, “ लीज बैठ जा न भाई!” उसके ऐसे र वे ट करने पर म भी सोचने लगा क वो
य ऐसा कर रहा है? क वो मुझे य कार म बैठने को कह रहा है? मुझे तो ये भी नह पता
था क वो हम दोन को लेकर जाएँगे कहाँ! ले कन मुझे इतना ज र पता था क जैसे ही वो
कार इस कॉलेज गेट से बाहर नकली, उसके बाद हम दोन चाहकर भी कुछ नह कर
पाएँग।े
माँ कसम इ ह सब उलझन के बीच म तब सफ और सफ यही चाहता था क रतेश
बस एक बार मुझे इशारा कर दे , और उसके अगले ही पल उन साल क म यह क खोद
ँ । तभी इ ह सब खयाल के बीच उस रात क मार का दद मेरी आँख के सामने तांडव
करने लगा, वो मुझे समझाने लगा क यही मौका है अ भ उस रात का हसाब बराबर करने
का, और अगर तू आज कुछ नह कर पाया तो तू कभी कुछ नह कर पाएगा। पर तभी मेरी
सोच के उलट रतेश ने मुझे एक बार और कार म बैठ जाने को कहा। म रतेश को अ छे से
जानता था क वो मार खा-खाकर अपनी ह ड् डयाँ फर से तुड़वा सकता था, मगर वो कसी
के डर से उसके साथ कॉ ोमाइज नह कर सकता था और तब तो बलकुल भी नह जब
बात उसके यार क हो। पर उसक इन हरकत और उसे इन लड़क के साथ बैठा दे ख मेरी
हालत उस बकरे जैसी हो गई जो ये सोच-सोचकर परेशान था क इस घर म वो पलेगा या
कटे गा।
फर रतेश के एक बार और कहने पर मने खुद को मना लया क अब जो होगा वो
दे ख लगे और फर भगवान का नाम लेकर म बैठ गया उस कार म। उधर वो कार कॉलेज गेट
से बाहर नकली, इधर उन लड़क क कॉलर तनकर चढ़ गई। मने तभी रतेश से पूछा क ये
सब हो या रहा है? और जो उसने बताया वो सुनकर मुझे तुरंत ही साँप सूँघ गया। वैसे भी
कसी महान इंसान ने कहा है क जब बुरा व आपक लेने पर आ जाता है, तब बाल तो
छोड़ो शरीर पर खाल तक भी नह बचती। और इसी महान वचार के साथ तब मुझे उस दन
यो तषी क उस उलझन का रह य भी समझ म आया क उस दन उसने मेरी कुंडली
दे खकर ऐसा य कहा था क इसपर श न का कोई कोप नह है, इसक कुंडली म श न
अपनी सही जगह पर है। ले कन ऐसा कैसे हो सकता है क बना श न का साया पड़े इसके
साथ इतना बड़ा ए सीडट हो जाए!
ए चुअली उस दन वो यो तषी ये दे खना भूल गया था क मेरे साथ तो जीता-जागता
श न रहता था, अब ह वाला श न मेरी कुंडली म हो या नह इससे या फक पड़ना था!
रतेश के होते ए मुझे कसी और श न क ज रत ही नह थी। यार कोई दमाग का इतना
पैदल कैसे हो सकता है! सारे ए जा स अ छे से तो हो गए थे, बस ये एक आ खरी बचा था।
पता नह उसे या सूझा, वो ए जाम म से बीच पेपर ही उठकर शफा के साथ हमारे म
पर जाने के लए कॉलेज से बाहर नकल गया! शायद वो डर गया था क आज के बाद वो
कभी शफा से मल नह पाएगा, कभी उसके साथ व नह बता पाएगा और अब ऐसी
कंडीशन म कोई भी आ शक इमोशनल हो ही जाता है। पर रीजन चाहे जो भी रहा हो, उसने
ये गलत कया था। उन दोन को फर से उ ह ने साथ-साथ पकड़ लया था। उधर म कहाँ
पाट का लान बना रहा था क आज इस आ खरी ए जाम के बाद मजे करगे! पर मेरे श न
के होते ए ये पॉ सबल कहाँ था!
शफा के मैटर क वजह से हम पहले से ही ब त परेशान हो चुके थे और इतना सब
होने के बाद भी उसे शफा से कॉलेज म मलने का पूरा मौका मल रहा था। उसे कोई
ज रत नह थी ये पागलपन करने क । पर कहते ह न क पट के प पू के आगे कसी क न
तो कभी चली है और न ही कभी चलेगी।
(21)
उस गाँड़ फाड़ दे ने वाली घबराहट और बेचैनी के बीच वो कार एक कैफे के बाहर जाकर
क । उसके कते ही रतेश कार से नकला और सीधा कैफे के अंदर जाने लगा, जैसे उसे
सब पहले से ही पता हो क या करना है। म भी अपनी उन सब उलझन को साथ लए ए
उसके पीछे -पीछे चल दया। तभी कैफे के कॉनर वाली टे बल पर मुझे शफा बैठ ई दखी
और उसके पास एक ंड-सुंड आदमी। माँ कसम वो आदमी कसी साँड़ से कम नह दख
रहा था। लगभग 6 फुट से भी यादा क हाइट थी उसक और उतना ही फैला आ शरीर।
तभी शफा क हालत दे खकर मुझे ये अंदाजा हो गया क वो आदमी कोई और नह
उसका बाप था और ये अंदाजा होते ही मुझे एक पल तो खयाल आया क कह शाद क
बात करने के लए तो हम यहाँ नह बुलाया है या ये भी हो सकता है क उसके पापा रतेश
को शफा को छोड़ने के लए पैस का ऑफर दे द, जैसा क अ सर मूवीज म होता है। अब
वो जो भी था, पर एक सरा सच तो ये था क तब शफा क हालत खराब थी, रतेश क तो
फट पड़ी थी और इधर म तो बस यही सोचे जा रहा था क इस फै मली कोलैबोरेशन म मेरा
या काम है भाई!
हम दोन के बैठते ही शफा के पापा ने हमारे लए जूस आडर कया। ये पहली बार था
जब हम कसी कैफे म गए ह और हमारे लए अनार का जूस आडर कया गया हो। नॉमली
अनार का जूस हमारे लए ‘वे ट ऑफ बजट’ क बात आ करती थी, य क जतने म दो
आदमी अनार का जूस पएँगे उतने म तो रम का पौवा आ जाएगा और अब वो कोई पागल
ही होगा जो रम क जगह अनार के जूस वाले ऑ शान के साथ जाएगा।
तभी कुछ ही दे र म अनार का जूस हमारे सामने आकर वेट करने लगा क कब हम
हमारे यासे ह ठ उस पर लगाएँगे और कब वो हमारे अंदर जाकर अपना कमाल दखाएगा।
मगर तब न तो मेरी ह मत ई ऐसा करने क और न ही रतेश क । वैसे भी मैनस भी कोई
चीज होती है! अपने ससुर जी के सामने, पहली ही मी टग म कोई कैसे खुलकर खा-पी
सकता है! तो रतेश ने ऐसा कुछ कया नह और उसे दे खकर म भी आगे बढ़ा नह ।
“इतनी मार खाने के बाद भी दमाग ठकाने नह आया या तु हारा?” शफा के पापा
ने उस अंदाज म हमसे पूछा जैसे कोई कसाई कटने वाले बकरे को अपना खून से सना आ
छू रा दखाते ए पूछ रहा हो क या भाई, या हाल है?
इतनी दे र क खामोशी के बाद अचानक ही शफा के पापा क आवाज ने हमारे शरीर
म एक कँपकँपी-सी पैदा कर द और मने भी अनार के जूस से अपना फोकस हटाकर उसे
तुरंत ही शफा के पापा क बात पर लगा दया। मुझे पता था क उसके पापा ने हमसे कुछ
पूछा है, पर तब हम दोन ही खामोश थे। सच क ँ तो तब हम ये समझ नह आ रहा था क
इस कंडीशन म साउथ के कसी तूफानी हीरो क तरह बीहैव करना है या फर बॉलीवुड के
कसी डरे-मरे हीरो क तरह। पर तब रतेश क नकलने वाली थी, तो मने ही थोड़ी ह मत
क और कहा, “नह अंकल ऐसी कोई बात नह है, आप फालतू म ही यादा सोच रहे ह।”
“ या मतलब है तु हारा क म फालतू सोच रहा !ँ बुलाऊँ या तु हारे माँ-बाप को
यहाँ?” उ ह ने गरजते ए कहा।
अब ये भी कोई बात होती है या? इस उ म माँ-बाप को बुलाने क धमक कौन दे ता
है? ऐसा लग रहा था क कूल के दन वापस आ गए ह और शफा ने अपने पापा को हम
डराने-धमकाने के लए कूल म बुलाया हो। पर हम तब कर भी या सकते थे! उनके पास
शफा थी और बाप का पॉवर भी। अगर तब रतेश गु से म उनसे कुछ भी उ टा-सीधा
कहता तो शफा वैसे ही उसके हाथ से चली जाती, ये कहकर क तुमने मेरे पापा क
बेइ जती य क ? भाई बाप बाप होता है! और वैसे भी लड़ कयाँ अपने वाय ड का साथ
तभी तक दे ती ह जब तक उ ह वो बेचारे से लगते ह, कभी अपने पापा के सामने तो कभी
अपने भाइय के सामने, जैसे तब हम दोन दख रहे थे।
उसके पापा ने अपना खड़ा रोना शु कया और कहने लगे, “दे खो शफा क पहले
से ही इंगेजमट हो चुक है, और एक-दो साल म शायद उसक शाद भी हो जाएगी। अब ये
तु ह दे खना है क तु ह ये बात समझनी कैसे है! म समझ सकता ँ ये सब मु कल है,
य क म भी कभी तु हारी उ से गुजरा ।ँ पर जो तुम अब कर रहे हो वो सही नह है। न
तु हारे लए और न ही मेरी फै मली के लए।”
उसके पापा तब हम दोन को खुली चुनौती दे रहे थे क बोलो या करना है अब? क
कैसे समझना है? और वो ये भी कहना चाह रहे थे क अगर रतेश पीछे नह हटा तो वो हम
फर से ठु कवा सकते ह या फर मरवा भी। जब आपने एक बार अपनी मौत को इतने पास
से महसूस कर लया हो तो आपम इतनी डे रग तो आ ही जाती है क ऐसी बात पर दल क
धड़कन बहकने न लग, क आँख नीचे झुकने न लग। ले कन तब उनक उस धमक से
यादा मुझे शॉक इस बात को सुनकर लगा था क शफा इंगे ड थी और मुझे ये बात अब
तक पता ही नह थी। अब असल बात तो ये थी क रतेश को ये पता था या नह ।
शफा के पापा तब अपने पूरे जोश म बोले जा रहे थे, वो अपनी ओर से हम डराने क
पूरी को शश कए जा रहे थे। जस तरह से वो बात करते-करते अपने उस जूस ॉ से खेल
रहे थे, उनका डर और उनक बेचैनी भी छप नह पा रही थी। वैसे भी हम कसी और को
डराने क ज रत तभी पड़ती है जब हम खुद उससे डरे ए ह । पर शफा के पापा भी सही
थे, वो खुद इस उ से गुजरे थे और उ ह ये अ छे से पता था क ये जो चीज थी, जो रतेश
और शफा को तब एक कए ए थी, जो रतेश को इतनी मार खाने के बाद भी इतनी
ह मत दे रही थी क वो उनके सामने सीना फुलाकर बैठा था, जसे लोग ‘इ क’ कहते ह,
उसक औकात कतनी है। शायद वो ये जानते थे क उनके इस इ क के सामने उनका ये डर
एक पल भी नह टकना था और ये बात उ ह तब रतेश क उन सुलगती आँख से और
उसके उन बेपरवाह हाव-भाव से अ छे से पता चल रही थी। वो शायद ये भी जानते थे क
जब कसी आ शक के पास, उसके यार के साथ-साथ कोई पागल दो त भी हो, तो ये बात
और भी यादा बगड़ जाती है। वैसे भी कसी महान इंसान ने कहा है क इ क के खेल म
आपक जीत आपके यार क गहराई से नह होती, यहाँ आपक जीत आपके कतने और
कैसे दो त ह उससे होती है। य क जब कसी का यार नया के डर से घबराने लगता है,
बखरने लगता है, तब उसके वो दो त और उनक वो दो ती अपने उस दो त के यार को
अपने पीछे रखकर खुद अपना सीना तानकर उस डर के सामने खड़े हो जाते ह जससे उस
इंसान को कुछ व और मल जाता है अपने उस डरे और सहमे ए यार को फर से
सँभालने के लए। उसे ये बताने का क दे ख ये सब भी हमारे साथ ह और सब कुछ ज द ही
ठ क हो जाएगा।
तब म ये साफ-साफ दे ख पा रहा था क रतेश को उनक बात परेशान कए जा रही
थ और अगर सच क ँ तो ब त हद तक शायद मुझे भी। म तब ब त कुछ कहना चाहता था
शफा के पापा से, पर उसके लए न ये सही व था और न ही म सही इंसान। वैसे भी कसी
को कसी क बात से यादा कोई चीज अगर परेशान कर सकती है, तो वो है सामने वाले
क खामोशी और तब रतेश खामोश था और यही बात शफा के पापा को और भी यादा
परेशान कए जा रही थी। वो शायद उसके मुँह से यही सुनना चाहते थे क अब म आगे से
ऐसा कुछ नह क ँ गा।
वो हम कुछ और कहते इससे पहले ही रतेश ये कहकर वहाँ से उठ गया क आपको
जो सही लगे वो आप दे ख ली जए। इधर म रतेश क उस बात पर सोचे जा रहा था क
इतना सब कुछ करने के बाद या रतेश ने सब कुछ शफा के पापा पर छोड़ दया था! वो
तो यूँ भी ना ही कह रहे थे, अब इसम उनपर कुछ छोड़ने जैसी या बात थी!
शायद तब उसके श द के पास मेरे सवाल के जवाब नह थे, पर उसके उन श द से
उलट उसक उस खामोशी के पास वो सारे जवाब थे। उसने अपने यार को कसी के हवाले
नह छोड़ा था, उसने तो बस बना कुछ कहे अपने यार को कुछ व के लए अकेला छोड़
दया था। अकेलापन हमेशा ज री होता है ये जानने के लए क हमारे लए या सही है
और या गलत, और उसने भी तब यही कया था। उसने शफा को अकेला छोड़ दया था ये
सोचने के लए क या वो उसके लए सही है या नह ? अगर उसे लगा क रतेश उसके
लए सही है, उनका यार उसके लए सही है, तो वो ज र उसे वापस कॉल करेगी और
अगर नह तो ….. अब इसका जवाब तो तब उसक खामोशी म भी नह था, य क इसका
जवाब तो सफ और सफ व के पास था।
उस रात हमारे म म शराब आई और वो सारी वजह भी जो कसी पाट के लए
ज री होती थ , पर उस रात कोई पाट नह ई। शायद ये बात शराब भी अ छे से जानती
थी क उसक दो ती सफ गम और खुशी के साथ है, उसका खामोशी से र तक कोई लेन-े
दे ना नह है। अ सर र त म गल तयाँ ढूँ ढ़ जाती ह, ये बताया जाता है क कौन गलत है?
या गलत है? पर कभी-कभी सफ व गलत होता है, इंसान नह । कतनी छोट -सी बात
थी वो क दो लोग एक- सरे को पसंद करते थे, एक- सरे के साथ रहना चाहते थे। उनका
कल या होगा वो तो उनको भी नह पता था, पर फर भी सबको उनके कल को लेकर
चता थी।
शफा के पापा को टशन थी क वो दोन कह भाग न जाएँ, कह कुछ गलत न कर द।
ले कन वो ये समझना भी नह चाहते थे क ये सब इतना भी आसान नह था। वो ये समझना
नह चाहते थे क इन सबम उनक लड़क क हाँ क भी वहाँ ज रत पड़ेगी, क वो भी अब
बड़ी हो गई है, समझदार हो गई है, क वो भी ये समझ सकती है क उसके लए या सही है
और या गलत। ये सब करके वो अपनी ही परव रश पर सवाल खड़े कर रहे थे।
इन सबके सरी ओर एक म था, जसक गंगा ही उलट बह रही थी। मेरी लाइफ म
एक ओर व ध थी जो मेरा स चा यार थी। म हमेशा यही मानता था और शायद आज भी
मानता ँ। जसके साथ मेरा र ता दन-ब- दन फ का होता जा रहा था और सरी ओर
याना थी, जससे मेरा र ता एक गलती क वजह से शु आ था, और स पैथी का दामन
पकड़कर आगे बढ़ा था। अब व के साथ-साथ उसे म अपने और करीब लाता जा रहा था।
पर ये भी सच था क न म तब व ध को खोना चाहता था और न ही याना को।
(22)
म धीरे-धीरे ये मानने लगा था क इस नया म आप कसी भी चीज को अपने बाप क
बपौती समझकर नह चल सकते। चाहे वो आपका ‘ र ता’ हो या फर आपका ‘सपना’
य क ये सब जदा चीज ह, साँस लेत , चीखत - च लात , व के साथ खुद के दायरे को
घटात -बढ़ात । आपको हर कदम खुद को सा बत करना होगा क आप लायक हो इनके। ये
हर कदम आपका इ तहान लगी, आपको तोड़ने क को शश करगी। इस लए नह क ये
आपके पास नह रहना चाहत ब क इस लए य क ये कसी महँगे ज जैसे आपके दल
के कसी कोने म कसी भूले ए टमाटर क तरह सड़ना नह चाहत । यानी क ये आपको
बखेरने क पूरी को शश करगी और इनक हजार को शश के बाद भी अगर आप टके रह,
तो ये भी टक रहगी और अगर आप कभी भी कमजोर ए तो ये भी आपको कोई अ छा-
सा, वजन वाला बहाना पकड़ाकर आपके हाथ से नकल जाएँगी। अगर आप सच म चाहते
ह क आपके ये र ते या सपने हमेशा आपके साथ रह, उसी तरह महकते रह तो आपको
हमेशा मेहनत करनी पड़ेगी। वो भी उतने ही डेडीकेशन से जतनी आप कसी खूबसूरत
लड़क को पहली बार इ ेस करने के लए करते ह।
शफा के पीछे या यूँ क ँ क अपने यार के पीछे रतेश ने अपने फाइनल ईयर
ए जा स बगाड़ डाले थे। उसे अब समझ ही नह आ रहा था क वो आगे या करे? पर
इससे इतर उसे इस बात क खुशी थी क उस दन शफा के पापा से मलने के कुछ दन
बाद ही शफा ने वापस कॉल कया था उसे।
रतेश से उलट मेरा तो पहले से ही फ स था क ए जाम के ख म होते ही मुझे द ली
के लए नकलना है, स वल स वसेस क को चग के लए। उस दन मार खाने के बाद से
और व ध के मुँह से बात-बात पर आ द य क तारीफ सुन-सुनकर म ये तो समझ गया था
क आज अपनी कोई औकात नह है और अगर अपनी औकात बनानी है तो मुझे IAS
ऑ फसर बनना ही है। उधर मेरी सोच के उलट मेरे द ली जाने के फैसले से मेरे पापा खुश
थे। उ ह इस बात क तस ली थी क वहाँ जाने के बाद कम-से-कम म उदयपुर और रतेश
से तो र र ँगा। मेरे इस फैसले से कोई सबसे यादा परेशान था तो वो था रतेश। मेरे जाने
के बाद उसे ये सब कुछ अकेले ही करना था। वो ये समझ ही नह पा रहा था क वो ये सब
करेगा कैसे? उसक परेशानी, उसक बेमतलब और बेवजह क चढ़ हर बात पर मुझसे
लड़ने म साफ-साफ झलक रही थी। वो मुझे रोकना चाहता था, वो मुझे कहना चाहता था
क उसे मेरी ज रत है। पर खुद के लाख चाहने के बाद भी वो ये कह नह पा रहा था
य क वो भी ये समझता था क मेरे लए मेरी जदगी उससे यादा ज री है। तो धीरे-धीरे
उसने भी खुद को समझा लया क अब मेरे बना ही उसे ये सब मैनेज करना है।
उस शाम मेरे हजार बार ना कहने के बाद भी वो मुझे रेलवे टे शन छोड़ने आ ही गया।
हम दोन ने यादा बात नह क उस दन। शायद इन तीन साल म हम दोन को एक- सरे
क जैसे आदत हो गई थी। सच क ँ तो म भी रतेश को छोड़कर जाना नह चाहता था। म
तो अपनी पूरी जदगी ऐसे ही उधम मचाते ए उसके साथ बताना चाहता था। ले कन ये
व ब त ही यादा क मती था मेरे लए, मेरे सपन के लए, मेरे आने वाले कल के लए
और इसी लए मने खुद को मनाया था क म जो ये सब कर रहा ँ वो आगे जाकर हम दोन
के लए अ छा ही होगा। मने खुद को ये समझाया था क वो व ज द ही फर वापस
आएगा जब हम दोन यूँ ही साथ बैठकर लीवर फाड़ रम पएँगे और फर मरने क हद तक
उ टयाँ करगे। पर तब हमेशा से उलट उसे यूँ उदास-खामोश दे खकर म इतना बेचैन हो गया
था क मुझे पता ही नह चल रहा था क उससे या क ँ? उसे या समझाऊँ?
“दे ख यार तू परेशान न हो, तेरा भाई ज द ही IAS बनकर वापस जाएगा और इसके
बाद दे खगे उन साल को।” मने माहौल को ठ क करते ए रतेश से कहा।
“वो सब छोड़ और तू बस यान रखना अपना और कॉल करते रहना।” उसने बस
इतना ही कहा और फर उसने मुझे गले लगा लया। मने भी उसे कसकर अपने से लगा
लया क शायद उसे इसी से समझा पाऊँ क म हमेशा उसके साथ र ँगा, चाहे म जहाँ भी
र ँ। म तब उससे कुछ और कहता उससे पहले ही वो चला गया। उसने एक बार भी पीछे
मुड़कर नह दे खा। शायद उसक आँख भीग चुक थ और यही वो छु पाना चाहता था
मुझसे।
म उदयपुर से जा तो रहा था पर मने अपना म खाली नह कया था। य क मुझे
पता था क रतेश को आज नह तो कल इसक ज रत पड़ेगी और वो अकेला इस म का
रट अफोड नह कर पाएगा। वैसे भी उस म म हमारी ब त-सी याद थ , ज ह म कसी
और के हवाले नह कर सकता था। इन बेजान से कमर म हमारा कतना कुछ होता है ये हम
तभी समझ आता है जब हम उनसे र जाना पड़ता है।
तब रतेश के जाने के बाद म और याना े न के खुलने तक वह बैठे रहे। उस आ खरी
व म एक- सरे को जी भर जीते रहे। दे खते-ही-दे खते वो े न लोहे क उस पटरी पर
खसकते- खसकते अपनी र तार पकड़ने लगी और म अपनी बथ पर लेटे-लेटे उस पूरी
रात, रतेश के साथ बीते उन तीन साल को रवाइंड कर-करके उसके हर ल हे को थोड़ा-
थोड़ा फर से महसूस करने क को शश करने लगा। मगर उन तीन साल म इतना कुछ आ
था क उसको बस एक नजर दे खने भर के लए भी ये रात काफ नह थी और उ ह सब
खयाल से गुजरते-गुजरते न जाने कब सुबह हो गई और नजामुदद् न टे शन आ गया।
अब मुझे यहाँ से सीधा नरेश के पास जाना था मुखज नगर। अब ऐसा नह था क
द ली म मेरी पहचान का कोई और नह था, पर नरेश ने इस बार का मस लखा था और वो
भी पहले ही अट ट म तो उससे अ छा ममेट कोई हो नह सकता था मेरे लए। वैसे भी
बेमतलब भटकने से तो अ छा है क उनसे ही रा ता पूछ लया जाए जो आपसे पहले वहाँ
जा चुके ह। ले कन शत ये है क आपको उन पर भरोसा हो। मने उसके म पर जाते ही
नरेश से एक ही सवाल कया क अब या? पर उसने कुछ भी कहना अभी ज दबाजी
समझा। उसने सबसे पहले मुझे मुखज नगर के दशन करवाना ही सही समझा। हम उस
शाम को मुखज नगर को दे खने के लए म से नकल गए। माँ कसम, कसी तीथ थल
जैसा नजारा था वो। जैसे कसी तीथ थल के बाहर, मं दर के अंदर भगवान क वा त वक
मू त है वैसी ही छोट -बड़ी मू तयाँ और पूजा के सामान को बेचने क कान होती ह, वैसे ही
वहाँ नोट् स के फोटो टे ट्स क कान थ । जहाँ आपको कसी भी को चग के नोट् स क
फोटो कॉपी मल सकती थी। मने मूवीज और यू जक क पाइरेसी के बारे म तो सुना था पर
यहाँ पहली बार नोट् स क पाइरेसी दे ख रहा था और वो भी खुलेआम।
म वैसी ही एक फोटो टे ट क कान म घुस गया और दे खते-ही-दे खते मने नोटस का
एक पूरा ढे र सले ट कर लया जो मुझे तब इ पॉटट लगा। सच क ँ तो वहाँ मेरे लए ये
चुनना ही मु कल था क कसे लूँ और कसे छोड़ ँ य क जैस-े जैसे म उस शॉप म आगे
बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे मुझे वो सब नोट् स इ पॉटट लगते जा रहे थे जो वहाँ रखे ए थे।
मेरे उस नोट् स के ढे र को दे खकर नरेश एकाएक हँसने लगा और उसने मुझे साफ-साफ मना
कर दया कुछ भी खरीदने को। मेरा तो दमाग फटा जा रहा था क वो सब कतने अ छे
नोट् स थे और उसने मुझे एक भी खरीदने नह दया।
फर उसने मुझे समझाया क यहाँ नये लोग ऐसे ही भटक जाते ह और अपना टाइम
वे ट कर लेते ह। उसने मुझे बताया क वो सारे नोट् स इ पॉटट ह पर अभी के लए नह ।
उसका इतना ही कहना था क म समझ गया था क यहाँ का मायाजाल अलग है भाई। मने
तो आज तक यही सुना था क शराब और लड़ कयाँ लोग को भटका दे ती ह, उनक जदगी
खराब कर दे ती ह पर यहाँ तो साली बु स भी लड़के क जदगी खराब कर सकती थ । तो
फर उस समझाइश के बाद उसने मुझे एक पाइरल र ज टर खरीदकर दया और कहा क
जाओ घूमो अब एक-एक को चग इं टट् यूट और दे खो क यहाँ असल म हो या रहा है। म
पहले तो समझा ही नह क कैसे? पर फर उसने मुझे बताया क यहाँ ायल लास के नाम
पर कसी भी को चग इं टट् यूट म एक-दो लासेस ले सकते ह। पर मुझे टा टग म
थोड़ी झझक हो रही थी तो वो मुझे पहले इं टट् यूट तक छोड़ने आया और फर तो मुझे
मजा आने लगा इसम।
तो अगले कुछ दन तक म सुबह-सुबह वैसे ही म से नकलता और फर एक के
बाद सरे, सरे के बाद तीसरे को चग इं टट् यूट म ायल लासेज के नाम पर शाम तक
पढ़ता रहता। उन ायल लासेस म जाते-जाते, वहाँ जो लड़के पढ़ रहे ह उनसे बात करते-
करते म इतना तो समझ गया था क म जो सोचकर यहाँ आया था वैसा यहाँ कुछ भी नह
है। फर मने उन इं टट् यूट्स के मायाजाल से नकलकर, नरेश के बताए अनुसार ही
फलॉसफ (जो क मेरा ऑ शनल चुना गया था), इकोनॉ म स और जओ ाफ क सेपरेट
लासेस लगवा ली और फर लग गया अपने सफर को सही गाइडस के साथ आगे बढ़ाने म।
लासेस और से फ टडीज के बीच खच होते-होते व अपनी र तार पकड़ने लगा।
सच क ँ तो वहाँ सब कुछ अ छा था और मुझे वहाँ के लड़क क भीड़ से भी कोई खासी
द कत नह थी य क म पहले ही Allen म पढ़ चुका था और उसक भीड़ के सामने तो ये
भीड़ कुछ भी नह थी। पर दन से उलट वहाँ क शाम मेरे लए ब त ही तकलीफ वाली
होती थी। शाम तक म इतना थक जाता था क मेरे शरीर क एक-एक सेल को रम क याद
सताने लगती थी। अब ऐसा भी नह था क द ली म रम नह मलती थी पर वहाँ वो कंपनी
नह थी जसके साथ मुझे पीने क आदत थी।
अगर कोई ये सोचता है क नशा सफ शराब म होता है तो उसने ढं ग से पी ही नह
कभी य क शराब का नशा भी आपको तभी म त कर सकता है जब वो खुद नशे म हो
और उसे नशे म आपक कंपनी लाती है, जनके साथ बैठकर आप पी रहे होते ह। मतलब
क वहाँ रम तो थी पर वहाँ रतेश नह था। उसक वो फालतू बात नह थ । उसक वो
पागल जैसी हरकत नह थ । द ली जाकर म एक सं कारी शराबी बनता जा रहा था। जो
पीने के बाद खाकर चुपचाप सो जाता था। मुझे कभी-कभी तो लगने लगता क मने अपने
आने वाले कल के च कर म अपना आज बगाड़ लया था और उससे भी खराब बात तो ये
थी क यहाँ मेरी कोई गल ड भी नह थी और फर से नई बनाने क मुझम ताकत भी नह
बची थी। मतलब क अब वापस से उस परम सुख क सारी ज मेदारी मेरे उन हाथ पर आ
गई थी। असल म ये मेरे लए वैसा ही था जैसे कोई करोड़प त एक ही रात म सड़क पर आ
गया हो। सरी ओर अब व ध और याना से बस बात भर हो पाती थी, य क रात तक तो
म इतना थक जाता क ब तर पर गरते ही न द मुझे अपने आगोश म समेट लेती।
मने तीन स जे ट् स क एक साथ सेपरेट-सेपरेट लासेस लगा रखी थी और उन तीन
लासेस के टाइम के बीच के टाइम को नकालने के लए वह एक लाइ ेरी क मबर शप ले
रखी थी। मतलब क म रोज म से सुबह 7 बजे नकलता और शाम को 7-8 बजे तक
वापस म पर आता। पहले कुछ महीन तक तो जोश-जोश म सब कुछ सही से चलता रहा
पर बाद म ये सब कुछ ब त है टक होने लगा। माँ कसम म सब काम सही से कर रहा था,
लासेस, से फ टडी और भी सब कुछ, पर मेरे अंदर का जो वो ‘म’ था वो कह गायब हो
गया था। मतलब क मेरी वो कभी न ख म होने वाली एनज ही कह गायब हो चुक थी।
आज कल मुझे 2-3 पेग म ही वो मट जैसा लगने लगता और सरी तरफ यहाँ द ली म
ऐसा कोई नह था जसके साथ म दा के नशे म सड़क पर घूम सकूँ, बेमतलब च ला
सकूँ, ठु ल से पंगे ले सकूँ, कोई हंगामा कर सकूँ। यहाँ कोई नह था जसे म गले लगाकर
कह सकूँ क I love you पागल। यहाँ कोई नह था जो मेरे बाल को अपनी उँग लय से
सहलाकर मेरी थकान मटा सके। यहाँ कोई नह था जसके पैर को म त कया बनाकर
सुकून से कुछ पल के लए सो सकूँ।
इ ह सब चीज से उलझते ए कभी तो मेरा मन करता क म जोर से च लाऊँ, इतना
क जससे या तो मेरे वोकल कॉड फट जाए या फर मेरे कान के पद। कभी-कभी मेरा मन
करता क म कसी से लड़ाई कर लू,ँ कसी को पीट डालूँ या फर कोई आकर मुझे ही पीट
डाले। पर यहाँ सब अपने काम म ही इतना बजी थे क कोई ऐसा कुछ करता ही नह क म
उससे लड़ सकूँ या फर उससे मार खा सकूँ। जब मेरी ये घुटन हद से यादा हो जाती तो म
बाथ म म जाकर खुद के ही गाल पर थ पड़ मारने लगता और फर वह खड़ा होकर घंट
तक खुद के उस लाल चेहरे को काँच म दे खता रहता, उसम कुछ-न-कुछ तलाशता रहता।
कुल- मलाकर मेरी लाइफ मोनोटोनस हो चुक थी और जसक मुझे आदत नह थी।
मुझे यहाँ पहले से ही पता होता क सुबह म या होना है और फर रात म या होना है। म यूँ
ही कभी सोचने लगता क या बदल गया है? म तो वही ँ, तो फर म यहाँ अपने लए
एडवचर य नह ढूँ ढ़ पा रहा ? ँ य म कसी शाद शुदा अंकल क तरह एक जैसा ही
जए जा रहा ँ?
मने अ सर लोग को ये कहते सुना है क आपको अपना एडवचर खुद ढूँ ढ़ना चा हए
पर मुझे नह लगता क वो सही कहते ह य क आप कभी भी अपना एडवचर खुद ढूँ ढ़ ही
नह सकते। यादा-से- यादा आप एक दो पहाड़ चढ़ जाओगे, एक दो बार काई डाई वग
कर लोगे, एक दो बार बंजी जं पग भी, पर फर या? अब आप रोज-रोज घर क छत से तो
नह कूद सकते ना!
तो अगर आप सच म एडवचर वाला हर दन जीना चाहते हो तो आप ऐसे लोग को
अपने से जो ड़ए, ज ह जदगी से खुराफात करना पसंद हो। ज ह हर सीधी बात को उ टा
करना पसंद हो। उनसे आपको ब त सारी परेशा नयाँ ह गी। कभी-कभी तो आपक जान
पर भी बन आएगी। पर वो आपके हर दन, आपके हर घंटे को स ाइज से भर दगे। आपको
हमेशा ये सोचने पर मजबूर कर दगे क अब या क ँ ? वो आपको हर बार ऐसी कंडीशन म
लाकर खड़ा कर दगे जहाँ से सफ अपना दमाग इ तेमाल करके आप नह नकल पाएँग।े
आपको वहाँ से नकलने के लए अपना सब कुछ लगाना पड़ेगा। अपने अ त व के हर भाग
को उसम झ कना पड़ेगा और ये वही सचुएशन होती है जहाँ हम सबसे यादा जदा होते ह।
वैसे भी कसी महान इंसान ने कहा है क मौत के आने से कुछ पल पहले ही इंसान सबसे
यादा होश म रहता है। माँ कसम अगर ऐसे लोग को आपने खोज लया तो न कभी
आपको बंजी जं पग क ज रत पड़ेगी और न ही कभी काई डाइ वग क । ये लोग आपक
लाइफ क ड शनरी से मोनोटोनस वड को नकालकर, उसका भ जयाँ तलकर खा जाएँगे।
ये लोग आपक लाइफ को हमेशा के लए ए ीनल फट क से आजाद कर दगे।
मेरे पास भी ऐसा ही एक इंसान था पर म उसे अब अपने से ब त र छोड़ आया था
और उसके जाते ही मेरी लाइफ से वो सब कुछ भी चला गया जो उसका था और वही सब
बचा था जो मेरा था। जसे म अब आज जी रहा था। सच क ँ तो मुझे अब कह जाकर ये
समझ आया था क अगर कॉलेज म रतेश मुझे नह मला होता तो मेरी लाइफ हमेशा से
आज जैसी ही होती। उस जदगी म सफ उ होती, जान नह ।
जब म द ली आया तो टा टग म रतेश ने मुझे कोई कॉल नह कए पर म उसे अ छे
से जानता था क वो ये सब बस मुझे यही दखाने के लए कर रहा था क उसे भी कुछ फक
नह पड़ता। पर जैसे-जैसे व गुजरता गया, वैस-े वैसे उसके फोन क वसी भी बढ़ने
लगी। उधर मेरे उदयपुर छोड़ के जाने के कुछ दन बाद से ही उसने अपने भाई क ठे केदारी
क फम वाइन कर ली थी और अब वो धीरे-धीरे अ छे से उस काम को करने भी लगा था।
सच क ँ तो म ब त ही यादा खुश था ये सुनकर क वो इतनी ज द ठे केदारी के काम को
अ छे से समझने लग गया था और अ छा-खासा पैसा भी कमाने लग गया था। मुझे सबसे
यादा बुरा तो तब लगता था जब वो मेरे बना कहे ही मेरे अकाउंट म पैसे डलवा दे ता और
मेरे पूछने पर कहता क ये तो र त है यार! जब तू कले टर बन जाए तो मेरी फम को ही
सारे कां े ट दे ना। म सच म खुश था क वो अब कमाने लग गया था, कम-से-कम वो बजी
तो था। सरी ओर कभी शफा के बारे म पूछने पर वो बस यही कहता क तू उसक टशन
मत ले, तू बस अ छे से पढ़, बाक म दे ख लूँगा ये सब।
इ ह सब के बीच कभी-कभी वो मुझे छे ड़ने के लए, उसक ठे केदारी के क से सुनाता
क कैसे उसने और उसके पॉ ल टकल दो त ने कसी अ धकारी को डराया और उससे
अपना काम नकलवा लया। उसक ये बात सुनकर म भी ताव म आकर कह दे ता क वो
मेरे जैसा नह होगा इस लए। अगर म होता तो पछाड़ी क चमड़ी उधेड़ दे ता तु हारी। सच
क ँ तो द ली आने के बाद से हम कसी-न- कसी बहाने से घंट बात करते थे। इतनी बात
तो म व ध और याना को मलाकर भी नह करता था, जतनी बात रतेश से कया करता
था।
उधर व ध से मेरा र ता दन-ब- दन और भी बगड़ता जा रहा था। वो अब मुझसे झूठ
बोलने लगी थी। जब लोग आपके दल के यादा करीब होते ह तो आप समझ जाते ह क
वो या सच बोल रहे ह और या झूठ। शायद वो अब मे योर हो गई थी। अब इसक वजह
आ द य था या कुछ और ये तो मुझे नह पता पर अब वो हमारे इस र ते को फायदे और
नुकसान म तोलने लगी थी। म ये तो नह कहता क ये गलत है, पर ये मेरे लए तो बस गलत
ही था। ये फेज भी सबके रलेशन शप म आता है जब आपका यार, अपना बचपना और
मासू मयत छोड़ समझदारी क दहलीज पर अपना कदम रखता है। व ध शायद ये सोचने
लगी थी क जो उसे मुझसे मल रहा था वो उसे वह जयपुर म भी मल सकता था या फर
शायद उससे भी कई गुना यादा अ छा और वो भी कम र क म और जब सब कुछ इतनी
आसानी से पास म ही मल रहा हो तो फालतू क मश कत कौन करे? इसी लए शायद वो
आजकल मुझसे बस लड़ने के बहाने ढूँ ढ़ने लगी थी। जो बात उसे पहले सबसे यादा पसंद
थ उ ह बात को लेकर वो बेवजह मुझसे उलझने लगी थी। शायद वो असल म कसी और
के साथ जुड़ना चाहती थी या फर या पता तब तक जुड़ भी चुक थी। ले कन उससे उलट
याना और म अभी भी साथ थे। वो आज भी अपने र ते को उसी एनज से नभा रही थी
जैसे वो शु आत म नभाती थी। लड़के अ सर लड़ कय को लेकर जजमटल रहते ह क
इस टाइप क लड़ कयाँ अ छ होती ह, उस टाइप क खराब होती ह जैसे क तब म और
रतेश थे। हमारी ड शनरी म याना जैसी लड़ कयाँ बेकार वाली कटै गरी म आती थ । ज ह
सफ लड़क के पैस से मतलब होता था या फर से स से। ज ह बस घूमने के लए महँगी
बाइ स और शॉ पग के लए एक लोडेड डे बट काड चा हए होता था। पर उसके साथ रहने
पर मुझे पता चला क ये सब बकवास बात थ । य क जतना व ध जो क हमारे लए
अ छ कटै गरी वाली लड़क थी वो हमारे र ते को नह सँभाल पा रही थी उतना तो याना
सँभाल रही थी।
(23)
लगभग 7 महीने हो गए थे द ली म मुझ,े और अब तक म पागल-सा हो गया था। मेरा दम
घुटने लगा था अब यहाँ पर। म अब और यादा यहाँ रह नह सकता था, इस तरह से नह रह
सकता था। मने उस दन कुछ भी नह सोचा, बस अपना बैग पैक कया और बना नरेश को
बताए ही नकल पड़ा उदयपुर के लए। न कोई लान, न कोई रजवशन, न नोट् स, न कोई
लौटने क डेट, बस नकल गया म। पर ऑटो जब तक रेलवे टे शन नह प ँचा, तब तक मेरे
दमाग म हजार खयाल आते रहे जो मुझे ये समझाते रहे क अगर म यहाँ से चला गया तो
मेरी इतने महीन क इतनी सारी मेहनत धूल म मल जाएगी। पर तब वहाँ कोई तो था जो
उन बात को उनक औकात से यादा मेरे दमाग म बढ़ने नह दे रहा था। वो कौन था?
रतेश, याना, व ध या म खुद। वो जो कोई भी था, पर अब ये तो तय था क म अब उसे
कसी भी हाल म छोड़ने वाला नह था।
तो तब मने खुद को जैसे-तैसे समझाया क म भी एक इंसान ,ँ मेरा अपना भी एक
अलग वजूद है। म खुद को ऐसे मरने नह दे सकता। मुझे जो नह पसंद वो नह पसंद। अगर
म IAS नह बन पाया तो यादा-से- यादा या हो जाएगा? म यादा पैसे नह कमा
पाऊँगा, मुझे दे खकर कोई से यूट नह ठोकेगा। पर कम-से-कम इस रा ते पर, कोई हर व
मेरे साथ तो होगा मुझे गले से लगाने के लए, मेरे साथ हँसने के लए, मेरे साथ रोने के लए,
मेरे साथ पागलपन करने के लए, मुझे जदा रखने के लए।
कहते ह हर बीमारी क जड़ म वजह सफ और सफ इंसान ही होता है। इंसान को ये
समझ आ गया था क अब वो समझदार बन गया है क उसे कोई जानवर क तरह कैद नह
रख सकता। तो उसने एक नई तरह क बीमारी नकाली, जसे वो ‘ यूचर ला नग’ कहने
लगा। बस एक बार इसका वायरस कसी को लगने क दे र होती है, फर उसे न तो कसी
बे ड़य क ज रत होती है और न ही कसी चौक दार क । वो खुद को ही कसी कैद क
तरह कैद कर लेता है और कभी गलती से वहाँ से भाग न जाए इसके लए चौक दारी भी
खुद ही करता है।
पर नह ! म ऐसा नह करने वाला था, म इस उ म अपने और अपने माँ-बाप के बुढ़ापे
म या- या हो सकता है, के बारे म ला नग कर-करके अपना आज नह बगाड़ने वाला था।
म मरने से पहले नह मरने वाला था। अभी तो मुझे ब त कुछ करना था, बकाड के अलावा
हमने आजतक पया ही या था! अभी तो ब त सारी ांड्स थ जो हमने कभी ाई ही नह
क थी, मुझे एक बार उ ह ाई करना था। मुझे एक बार फर से रतेश के साथ वा लट
और वां टट ऑफ से स क लड़ाइयाँ करनी थ , मुझे एक बार फर से पछली हार को
भुलाकर आउटडोर ाई करना था, मुझे एक बार फर से शराब पीकर सड़क पर च लाना
था, मुझे एक बार याना को अपने नज रये के लए सॉरी कहना था, मुझे एक बार फर से
शफा और रतेश के उस र ते के लए पूरी नया से भड़ जाना था।
उस दन मने रतेश को भी नह बताया क म आ रहा ।ँ साले को बड़ा वाला स ाइज
दे ना था मुझ।े सरे दन सुबह जब म उदयपुर उतरा, तो कह जाकर मेरी जान म जान आई।
े न से उतरने के बाद कुछ दे र के लए तो म वह टे शन पर ही बैठ गया, मानो जैसे तब म
अपने शहर को ये बताना चाहता था क दे खो कुछ दे र लगी पर म आ गया। म खुश था क
आज मेरे पास कोई शेड्यूल नह था, क कब कहाँ जाना है? कब या करना है? इसका
कोई लान नह था। आज म आजाद था, म जहाँ चा ँ वहाँ जा सकता था, जतना चा ँ
उतनी दे र तक उस जगह ठहर सकता था। उस दन मने न तो ऑटो लया और न ही कसी
ड को रसीव करने के लए बुलाया। म बस अपना बैग पीछे टाँगकर पैदल ही चल पड़ा,
उन सारी ग लय और रा त को एक बार फर से नहारने, ज ह ने मुझे आज फर से खुद
क ही कैद से आजाद कया था।
लगभग 20-25 मनट लगे ह गे मुझे अपने म पर प ँचने म, पर सच क ँ तो ये
उदयपुर क मेरी बे ट पैदल राइड थी। मने म म जाकर दे खा तो मेरा म एकदम वैसा ही
था जैसा म छोड़कर गया था। उधर टे बल पर पड़े डेयरी म क के रैपर मुझे ये बता रहे थे क
शफा भी मेरे द ली जाने के बाद आई थी म पर। तभी मने रतेश को कॉल कया और
कहा क पापा आए ह उदयपुर और उ ह माकट म कुछ काम है। तो तू बाइक लेकर प ँच
वहाँ, य क उनके पास कार है जसे लेकर वो हर जगह जा नह पाएँग।े तो मने उसे ये सब
कहकर घंटे भर म सूरजपोल आने को कह दया।
फर म भी फटाफट रेडी आ और ऑटो लेकर सूरजपोल प ँच गया। कुछ ही दे र म
रतेश भी वहाँ आ गया। माँ कसम वो तब ऐसे तैयार होकर आया था जैसे क मेरे पापा को
आज ये दखाकर ही रहेगा क वो भी एक सं कारी लड़का है। तभी मुझे ऐसे यहाँ दे खकर
उसे समझ ही नह आ रहा था क वो कैसे रए ट करे! उसके चेहरे के ए स ेशंस से मुझे ये
साफ-साफ पता चल रहा था क उसे मेरे आने क खुशी भी थी और उसे इसके बारे म न
बताने का गु सा भी और शायद इसी लए ही वो कुछ मनट मेरे सामने वैसे ही गूँगा बनकर
का रहा और फर अचानक ही अपनी बाइक टाट करके, मुझे लए बना ही वापस चला
गया। मेरा भी दमाग घूमने लगा क हाट द फक यार! ऐसे कैसे चला गया वो? उसने
लगभग 10 मनट बाद मुझे कॉल कया और कहा, “म म पर ँ और तू ऑटो लेकर आजा
भाई।”
उसक ये बात सुनकर मेरा मन तो कर रहा था क साले को ऐसी-ऐसी गा लयाँ ँ क
उसक फट के हाथ म आ जाए, पर तब म करता भी या! वो सामने था नह मेरे। तो फर म
वापस ऑटो लेकर म पर प ँचा और मने जाते ही उससे पूछा क ये सब या था?
“यार म तो तेरे पापा को लेने आया था वहाँ। अब वो तो वहाँ थे नह , तो या करता
म?” उसने भी गु से भरी भी आवाज म मुझसे कहा, जसम गा लय का तड़का भी बराबर
लगा आ था।
“अब तू दे ख साले, ये बात कसी भी हाल म भूली नह जाएगी और इसका सूद स हत
हसाब होगा एक दन।” मने भी अपनी ओर से बदला लेने क बात लयर करते ए कहा
और जे ही पल उसके पास जाकर उसे अपने गले से लगा लया। म जानता ँ और म ये पूरे
व ास से कह सकता ँ क तब हम दोन क हालत एक जैसी थी। हम दोन उस हग के
कतरे-कतरे म वैसा ही महसूस कर थे जैसे हम दोन को अपनी आधी खोई ई ह अब
वापस मल गई हो और शायद वो जदगी भी जसे हमने साथ मलकर कसी बंजारे क
तरह खल खलाकर हँसना सखाया था।
फर रतेश से बात करते-करते ही मने याना को भी म पर ही बुला लया। लगभग
घंटे भर बाद वो भी म पर आ गई। पूरे 7 महीन बाद अपने सामने दे ख रहा उसे, माँ कसम
कसी बला क खूबसूरत लग रही थी वो। मुझे दे खते ही, उसने रतेश क परवाह कए बना
ही भाग कर मेरे पास आकर मुझे अपनी बाँह म भर लया। फर न जाने कब हमारी आँख
बंद होने लगी और हमारे ह ठ अपने-अपने ह से क उस रौशनी को एक- जे म ही कह
खोजने म त हो गए। उसके ह ठ क वो मठास, उसके बाल से आती वो भीनी-भीनी-
सी खुशबू, मुझे लगभग पागल कर दे ने वाली उसक वो मदहोश-सी सस कयाँ, उसके बाँह
क वो गुनगुनी त पश, उसके ज म क वो एक अजीब ही तल म ली ई महक, पता नह
म कस नशे म था तब जो ये सब कुछ छोड़कर द ली चला गया था।
याना ने उस दन मुझसे कुछ नह कहा। न कोई गु सा, न कोई नाराजगी, बस वो खुश
थी क म उसक बाँह म था। शायद उसे अब कोई शकायत ही नह थी, न तो व से और
न ही मुझसे। तभी जैसे ही मने उसे सही से दे खने के लए खुद से थोड़ा-सा र करने क
को शश क , न जाने य पर तुरंत ही उसके आँसू नकल आए। उसके उन आँसु को
दे खते ही मने उससे पूछा क या आ? तो उसने बना कुछ कहे ही मुझे फर से अपने गले
लगा लया। मुझे सही से तो पता नह पर शायद वो मुझे अपनी बाँह म भरकर खुद को ही ये
यक न दला दे ना चाहती थी क म सच म वापस आ गया ँ और अभी सच म उसक बाँह
म ।ँ उ के इस पड़ाव पर अपने यार से इतना र रहकर, अपने उस र ते को पूरी स चाई
से नभाना सच म मु कल होता है और शायद इसी वजह से ही व ध अब ये कर नह पा
रही थी और सरी ओर याना क आँख म आज भी उतनी ही ईमानदारी और उतनी ही
गहराई थी।
“ या आ यार? तुम कहो तो चला जाऊ या वापस?” मने याना को छे ड़ते ए कहा
और उसने भी ‘ना’ म अपना सर हला कर, मुझे और जोर से कस लया।
तभी मने रतेश से शफा के बारे म पूछा, तो वो बोला, “बात ब त ही यादा बगड़ गई
है यार, उसक शाद होने वाली है कुछ ही महीन म।”
ये कुछ श द ही थे, पर इ ह बताते-बताते ए उसक आवाज बखरने लगी थी। इतना
बताते ए शायद वो इतना टू ट चुका था क उसे खुद को सँभालने के लए भी पीछे टे बल पर
अपने हाथ टकाने पड़ रहे थे। मुझे समझ नह आ रहा था क अब या क ँ उसे? म समझ
नह पा रहा था क उसे या तो ये क ँ क तू टशन मत ले, अपन दे ख लगे उनको या फर ये
क ँ क छोड़ न यार! हमने कम-से-कम को शश तो क न! पर इतना आसान नह होता है
कसी को कुछ समझाना, और तब तो बलकुल भी नह जब उसके हाथ से उसक जदगी
फसल रही हो। सच क ँ तो म भी अपनी पुरानी जदगी के लए वापस उदयपुर आया था
और म अपनी आँख के सामने इतनी आसानी से अपनी लाइफ क सबसे क मती चीज को
ऐसे बखरने नह दे सकता था।
“ या करना है बता तू? म साथ ँ तेर।े ” मने अपने कसी भी डर से ऊपर अपनी
दो ती को रखते ए कहा।
“अ भ हम कोट म शाद कर लगे यार। यार हम नह जी पाएँगे एक सरे के बना।”
उसने अपनी मोह बत को अपनी आँख म उतारकर, मेरी आँख म कसी उ मीद को
तलाशते ए कहा।
इधर ये सुनते ही मेरा यूज ही उड़ गया। मेरी आँख के सामने तुरंत ही वो मार खाने
वाली रात और वो कैफे वाला डरावना चेहरा उभरने लगा। मुझे खतरे का पूरा अंदाजा हो
गया क जो रतेश कह रहा है उसका अंजाम या हो सकता है! मेरी तो शायद नीचे से
नकलने ही वाली थी पर पता नह कैसे क गई! मने तभी याना को अपने पैरो से उठाया
और ‘बस एक मनट आता ँ’ ये कहकर खुद को थोड़ा ह का करने के लए बाथ म चला
गया। फर कुछ दे र मने वह बैठकर सोचा क अब या करे यार? मने पूरा हसाब पहले ही
लगाना सही समझा क हालत कतने यादा बदतर हो सकते थे, क या- या र क वहाँ हो
सकती थी। फर पता नह उस कमोड पर बैठे-बैठे ना जाने या- या सोचकर कुछ दे र बाद
म वापस म म आया और रतेश से पूछा क शफा का या कहना है?
तभी जवाब म उसने बताया क वो भी रेडी है। माँ कसम रतेश तब मुझे सीधा आग के
कुएँ म कुदने को कह रहा था और वो भी बना कपड़े पहने, और म या सोच रहा था…पता
नह यार! मेरे साथ यही द कत थी क अ सर मुझे पता ही नह होता था क म या सोच
रहा ।ँ
“तू शफा को बुला म पर, मुझे एकबार बात करनी है उससे।” मने एकबार शफा के
मुँह से या अभी रयल कंडीशन है और या- या अभी कया जा सकता है ये सुनने के लए
रतेश को उसे म पर बुलाने के लए कहा।
पर उधर न जाने यू,ँ रतेश मेरे मुँह से इतना सुनते ही ऐसे खल उठा जैसे क शफा
के पापा ने शाद के लए हाँ कह दया हो। पर म शायद उसक खुशी क गहराई और उसक
वजह को तब अ छे से जान ही नह पाया। वो दोन कोट मै रज क ला नग कब से कर रहे
थे, पर उसे शायद इसके लए मेरी ज रत थी। उसे लगता था क वो ये सब मेरे बना नह
कर सकता या फर शायद वो मेरे बना ये करना ही नह चाहता था, और उसने मुझे ये सब
पहले इस लए नह बताया य क उसे पता था क उसके कहने पर म ‘हाँ’ कर ँ गा और
सब छोड़कर द ली से यहाँ आ जाऊँगा। वो ये भी नह चाहता था क उसक वजह से मेरा
यूचर और मेरी लाइफ फर से खतरे म पड़े, या फर वो ये दे खना चाहता था क वो मेरी
लाइफ म कहाँ तक है, क म उसके लए या और कतना कर सकता ँ? और उस व
उसके चेहरे पर खली उसक वो खुशी मुझे बता रही थी क उसको उसके सारे सवाल के
जवाब मल चुके थे और वो खुश था उनसे।
फर कुछ ही घंट म शफा भी वहाँ आ गई। याना को वापस जाना था अपने म पर,
ले कन मने उसे ये कहते ए वह रोक लया क मुझे उसक आज सबसे यादा ज रत
पड़ेगी।
“ शफा या लगता है तुझे, कोई और रा ता है या जससे तेरे पापा मान जाए?” मने
उ मीद भरी नजर से शफा क ओर दे खते ए कहा।
“ रतेश ह है यार, वो कसी भी हाल म नह मानगे अ भ।” शफा ने ये कहते ए
रतेश का हाथ थाम लया।
“तो या कभी तु हारे यहाँ कसी मु लम लड़क ने कसी ह लड़के से शाद नह क
या?” मने पूछा।
“क है ना, पर अपने दम पर और कभी घर वाले सपोट भी करते ह तो वो भी सफ
पीछे से बस। ले कन उनम से भी ब त-सी कहा नय का अंत अ छा नह होता है अ भ।”
उसने मुझे हक कत से वा कफ कराते ए कहा। पर सच क ँ तो तब मुझे उसक बात
सुनकर अचानक ही शमा अंकल क याद आ रही थी। उनक बात मुझे उस दन से यादा
आज गहराई से समझ आ रही थ ।
“बाद म तो घर वाले मान ही जाते ह गे, जैसे हमारे यहाँ होता है?” मने फर से शफा
क आँख म एक नई उ मीद तलाशते ए उससे पूछा।
“हाँ, अगर लड़का रेपुटेट हो तो। मतलब क कसी बड़ी पो ट पर हो या उसके पापा
ब त ही यादा इकनॉ मकली साउंड हो तो।” शफा रतेश क ओर दे खती ई बोली।
“अब ये तो कहाँ से लाए यार! ये साहब तो अपना फाइनल इयर भी सही से लयर
नह कर पाए! और हाँ साले, तू कभी भी मुझे अपने घर लेकर नह गया! छु पा या रहा है तू
मुझसे?” मने गु सा करते ए रतेश से पूछा।
“यार ले चलूँगा कभी। कुछ है ही नह वहाँ दखाने को तो य ले जाऊँ तुझे वहाँ? और
तू मुझे कब ले गया अपने घर!” रतेश ने सफाई दे ते ए कहा।
“साले मेरा घर र है यहाँ से और तेरा उदयपुर म ही है। चल म तुझे आज लेकर चलता
।ँ ” मने फर से गु से को अपनी आवाज पर रगड़ते ए कहा और मेरी बात सुनकर वो
हमेशा क तरह अपना सर नीचे करके खड़ा हो गया। उसका ये लुक मुझे बलकुल पसंद
नह था। जब भी कोई बात उससे हडल नह होती थी या जब कभी भी कसी मैटर म उसक
गलती होती थी, तो वो ऐसे ही मुँह नीचे कर के खामोश खड़ा हो जाता था।
“ शफा तू बता क अब या चाहते हो तुम?”
“अ भ हमारे यहाँ वैसे भी छोट -छोट बात पर तलाक हो जाते ह। मेरी बहन का
नकाह इस लए टू टा य क लड़के को शक था क उसका कह और च कर है, जब क ऐसा
कुछ भी नह था। फर पता नह य शाद को इतना बड़ा हऊआ बना रखा है इ ह ने! यार
म नह जानती क ये सही है या गलत, पर म खुश ँ रतेश के साथ, तो मुझे उसके साथ ही
रहना है और म ये भी नह कहती क रतेश और मेरे साथ ऐसा कुछ कभी नह हो सकता
जो मेरी बहन के साथ आ। पर कम-से-कम वो मेरी वाइस होगी, कसी और क नह । म
कसी और क समझदारी जदगी भर अपने कंधे पर नह ढो सकती। अ भ मुझे रतेश के
साथ रहना है यार, मुझे तुम सब के साथ रहना है। म चाहती ँ मेरा समाज तुम सब बनो, मेरे
र तेदार तुम सब बनो। अब ये ज री तो नह क जो समाज और जो लोग सफ मेरे ज म
के नाम से मुझसे जुड़ गए ह , वो मेरे लए आज भी सही ह । म ये नह कहती क वो सब
गलत ह, म उनक इ जत करती ँ, उनसे ही आज मेरी पहचान है, पर अगर सोने क महँगी
चेन भी दम घोटने लगे तो उसे उतारना ही पड़ता है ना! और म कुछ यादा नह माँग रही
यार, बस मुझे अपनी पसंद के लोग के साथ रहना है। मुझे उनके साथ लड़ना है, झगड़ना है,
कभी गु सा होना है तो कभी खुद सामने से नाक रगड़कर उ ह मनाना है। मुझे उनके साथ
कुछ सही ड सजन लेने ह तो ब त सारे गलत भी, कभी मुझे उनके मेरे साथ होने पर फ
महसूस करना है तो कभी पछतावा भी।
यार मेरा भाई अपनी मज से कुछ भी कर सकता है तो म य नह ? बस म एक
लड़क ँ इस लए म कुछ नह कर सकती या? कोई भी अफेयर हो, उसम लड़का भी तो
होता है। अब तुम ही बताओ क ये कतनी बार आ है क कसी लड़के का कॉलेज आना-
जाना बंद आ हो, कसी लड़के को घर के कमरे म बंद कर दया हो! या लड़के घर क
इ जत नह होते है या? लड़क क हरकत ने अपने बाप क नाक का ठे का नह ले रखा है
या? या सफ हम कमजोर समझकर घर वाले ये एक ा ोटे शन दे रहे ह, ये एक ा
स एंड रेगुलेशन लागू कर रहे ह। और अगर सच म ऐसा है, तो मुझे बा कय का तो पता
नह पर मुझे ये ोटे शन नह चा हए यार! नह यार अ भ, म ये शाद नह क ँ गी। तब तक
नह जब तक म मान न लूँ क ये सही है मेरे आने वाले कल के लए, और आज मेरे लए वो
लड़का सही नह है।” शफा ने एक ही साँस म मेरी आँख म दे खते ए इतना कुछ कह
दया।
आज सब सही थे, कोई गलत नह था। शफा के पापा अपनी जगह सही थे, शफा भी
अपनी जगह सही थी, रतेश भी अपनी जगह सही था और मेरी घबराहट और मेरा डर भी
अपनी जगह सही थे। अब बस बात ये थे क हम सबको अपने-अपने सही के लए लड़ना
था। शफा के पापा के पास उनका अपना समाज था जो उनके सही के लए लड़ेगा, तो
रतेश और शफा के पास उनका अपना जो उनके सही के लए लड़ेगा। बात यहाँ कसी क
हार या कसी क जीत क नह थी, यहाँ बात तो सफ उस भरोसे क थी जसे कोई भी टू टने
नह दे गा चाहेगा, न तो शफा के पापा का समाज और न ही उन दोन का समाज।
“तो ठ क है यार, अब मरना ही है तो ठ क से मरते ह फर। हम सब कुछ सही से लान
करना होगा। सबसे पहले हम ये डसाइड करना है क शाद कहाँ, कब और कैसे होगी।”
मने उनक शाद म अपनी हाँ जोड़ते ए और जो भी होगा वो दे ख लगे वाले ललकारे के
साथ बात आगे बढ़ाई।
“वो सब तू मुझपर छोड़ दे , मने सब कुछ पहले से ही फ स कर रखा है।” रतेश ने
शायद मेरी ‘हाँ’ से खुश होते ए कहा। पर म सही था, वो दोन पहले से ही इस फराक म थे
क अगर कुछ भी नह आ तो कोट मै रज कर लगे। वो तो अब तक बस हम बारा तय के
लए के थे।
“चलो एक काम तो आ! अब ये बताओ क शाद के बाद कहाँ जाओगे? और पैस
का या होगा?” मने हर टे प को हर एंगल से सोचकर उन सबको एक-एक करके सामने
रखते ए कहा, जससे क हर ॉ लम और उसके हर पॉ सबल सॉ यूशन पर अभी ही
खुलकर बात कर ली जाए।
“दे ख यार पैस का पूरा इंतजाम म कर ँ गा, पर शाद के बाद कहाँ जाएँगे ये मुझे नह
पता।” रतेश ने अपने प े खोलते ए कहा।
“मेरा एक दो त है पंकज, बहार से है वो। मुझे वो कोटा मला था, PMT को चग म।
मुझे भरोसा है क वो हमारी हे प करेगा। वैसे भी वो ऐसी खुराफात करने म मा हर है और
सबसे अ छ बात तो ये है क उसक और मेरी ब त लंबे टाइम से बात नह ई है, न ही
कॉल से और न ही फेसबुक से। पर म उससे अभी-अभी एक दन द ली म मला था, वो भी
द ली म ही को चग ले रहा है तो फेसबुक से उसके नंबर लेकर म उससे सारी बात कर
लूँगा। कोई भी कभी जान ही नह पाएगा क पंकज और बहार कह भी तु हारी शाद के
लक म है और वैसे भी शाद के बाद बहार कौन भागता है भाई! सब अपनी गाँड़ का दम
भी लगा दगे न तो भी ये सोच नह पाएँगे।” मने अपना दमाग लगाते ए लान को आगे
बढ़ाया।
“वो तो ठ क है पर हम भागे तो सबसे पहला टारगेट भी तू ही बनेगा।” रतेश ने अपनी
चता जा हर क ।
“हाँ वो तो है, पर तेरे लए इतना तो झेल ही सकता ँ म। वैसे भी बाद म तुझे यही सब
मेरे और याना के लए करना है, तब हसाब बराबर हो जाएगा अपना। अब तू ये बता क
उदयपुर म अपने कतने दो त ह जनसे तूने पछले 4-5 महीन से कोई कांटे ट नह
कया?” मने लान को उसके अगले टे प तक प ँचाने के लए रतेश से पूछा। ए चु ली मुझे
इतना तो आइ डया था क हम दोन अकेले तो इस लान को सही से पूरा नह पाएँगे और
ऐसे भागकर भी या मतलब क दो-चार दन म ही वो धरे जाए और इसी च कर म कोई
मर-मरा जाए! तो म ये जानना चाहता था क और कौन-कौन है जसे हम साइलटली इस
लान म शा मल कर सकते थे।
उधर सरी ओर मुझे पता ही नह चला क म बात -बात म याना को शाद के लए
पोज कर चुका था, ये बात मुझे तब समझ आई जब याना और शफा मुझे दे खकर हँसने
लग । कुछ ही दे र म रतेश भी समझ गया क आ या है? और जैसे ही रतेश को पता
चला, वो फटाक से याना के पास प ँचा और उससे पूछने लगा क ‘हाँ’ या ‘ना’?
“तुम सब पागल हो या? हम यहाँ कुछ इ पॉटट मैटर ड कस कर रहे है यार!” रतेश
क उस पागल जैसी हरकत पर मुझे अचानक ही गु सा आ गया। यार यहाँ म इतना र क
लेकर, अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर उसक शाद क ला नग े म कर था ँ और उधर
वो भागकर याना के पास प ँच गया! हद है यार!
“चुप रे तू, इससे इ पॉटट कुछ भी नह है।” रतेश बात क ायो रट ल ट सेट करते
ए बोला।
उसक बात सुनकर म सोचने लगा क या ये वही समाज और वही लोग ह, जसे
शफा अपने साथ रखना चाहती थी! ये लोग तो सही से अपनी ायो रट भी सेट नह कर पा
रहे थे, ये या कुछ करगे उसके लए! उधर रतेश के बार-बार पूछने पर याना ने अपना सर
मेरे कंधे पर रख, मेरे हाथ को अपने हाथ म लपेट लया और फर रतेश के एक बार फर
पूछने पर उसने भी ‘हाँ’ म अपना सर हला दया। उसको बस इतना ही करने क दे र थी क
रतेश पागल होने लगा क याना ने हाँ कह दया।
कभी-कभी तो मुझे लगता क हम लोग सच म पागल ह, शाद क बात ऐसे होती है
या! और वो भी इस उ म! पर शायद यही पागलपन हमारी ह मत भी था। हमारे लए
बात चाहे कोई भी हो, वो सफ एक बात ही होती थी, न बड़ी और न ही छोट , न तो उसका
कोई व होता था और न ही उसे करने का कोई सही तरीका।
याना क हाँ के बाद रतेश ने आगे का लान भी वह बैठे-बैठे अनाउंस कर दया।
उसने कहा, “आज ही तुम दोन क इंगेजमट सेरेमनी होगी। अब हमारी तो हो नह पाई, पर
तु हारी ज र होगी और उसके बाद फर बाक सब बात।”
मने तब उसे ब त समझाया क इसक कोई ज रत नह है यार, पर वो नह माना।
साले ने ठे केदारी म पैसे तो खूब कमाए थे, तो उसक कमी तो थी नह । तो उसने कुछ ही
घंट म दो सलवर र स से लेकर केक और वाइन तक, सबका बंदोब त कर दया। मुझे ये
सब कुछ बड़ा अजीब लग रहा था, मेरा दमाग चीख-चीखकर कह रहा था क ये या
पागलपन है? पर रतेश के आगे न तो मेरी कभी चली थी और न ही कभी चलनी थी और
तब तक उन बात से याना के भी कई सारे इमोशंस जुड़ चुके थे, ज ह म कसी भी हाल म
तोड़ नह सकता था। तो म भी रतेश के उस लान का ह सा बन गया। पर तभी मुझे
खयाल आया क व ध का या? वो तो मेरा पहला और स चा यार है! पर जब मने अपने
जेहन म झाँककर दे खा तो वहाँ आज याना का पलड़ा भारी था। पर अब वो जो भी था,
ले कन अब म अपने चाहते या न चाहते ए भी रतेश के उस पागलपन का ह सा था।
फर या था, मने और याना ने एक सरे को र स पहनाई, फर केक कटा और फर
वाइन…ये सब एक तरह का पागलपन ही था, पर म खुश था ये दे खकर क रतेश इतनी-सी
बात के लए भी कतना ए साइटे ड था। तब मुझसे यादा खुश तो वो था, मानो जैसे उसक
खुद क सही वाली इंगेजमट हो रही हो। पर म असल बात दे ख नह पाया तब, म रतेश के
खयाल म झाँककर उनके वा त वक बहाव को समझ ही नह पाया तब। रतेश अ छे से
जानता था क जस सफर पर वो नकलने वाला है वहाँ हमारी लाख ला नग के बाद भी
कुछ भी हो सकता है। या पता फर कभी वो मेरे लए कुछ कर पाए भी या नह ! और वो
चाहता था क एक आ खरी बार मेरे लए कुछ तो करे, और इस बात ने उसे वही छोटा-सा
मौका दे दया था।
सरी ओर अभी कुछ घंट पहले म सगल था और अब इंगे ड, और सबसे बड़ी बात
तो ये थी क इस बात को हम चार के अलावा कोई भी नह जानता था। मेरी इंगेजमट
सेरेमनी म न मेरे घर वाले आए थे और न ही याना के। फर भी हम खुश थे, मानो जैसे
जदगी और उसके उसूल को हमने मजाक बना रखा हो। जैसे हमने ये सोच ही रखा हो क
जो काम जैसे होता आया है, वैसे तो करना ही नह है। फर उस पागलपन को जी कर, शाम
को हमने फर से रतेश क कोट मै रज का लान बनाना शु कया।
“ रतेश, उदयपुर म अपने कतने ड् स है जनसे तूने 4-5 महीन से कोई कांटे ट नह
कया है।” मने लान को आगे बढ़ाना शु कया।
“ब त से है यार, पर यू?ँ ”
“दे ख कोई यहाँ भी तो होना चा हए तेरी हे प करने के लए। तू अकेला यहाँ सब कुछ
सँभाल नह पाएगा।” मने लान क ज रत समझाते ए कहा।
“मतलब क तू यहाँ नह केगा! यार म ये सब अकेले मैनेज कैसे क ँ गा?” रतेश
मेरी बात पर शॉक होते ए बोला।
“दे ख यार, यहाँ अपने दो त ह, तो मैनेज हो जाएगा। अगर म यहाँ रहा तो सबसे पहला
शक ही मेरे पर जाएगा और सारा लान ही बगड़ जाएगा। म कल ही यहाँ से द ली के लए
नकलता ँ और वहाँ पंकज से बात करके बहार म कह पर तु हारे रहने और तेरी टपररी
जॉब का भी बंदोब त करता ।ँ अब मुझे तेरे लए जॉब भी ऐसी ढूँ ढ़नी पड़ेगी जो एक सही
रीजन लगे तेरे राज थान से बहार श ट के लए और इसके लए कसी NGO को ही
पकड़ना पड़ेगा मुझे। मु कल काम यहाँ नह है यार, मु कल काम तो यहाँ से नकलने के
बाद है। मुझे लगता है हम द पाल और बंट को इस लान म शा मल करना चा हए, वो दोन
टफ बंदे ह।” मने लान क बारी कयाँ समझाते ए कहा।
“अ भ, सब सही से हो तो जाएगा न यार?” रतेश थोड़े डर के साथ मेरी हथेली को
अपने हाथ म थामते ए बोला।
“हाँ य नह यार! तू डर य रहा है इतना! बस एक काम हम सबको सही से करना
है और वो ये है क कल से एक सरे से फोन पर सफ नॉमल कॉल जैसे ही बात करनी है,
और कॉल पर कसी भी हालत म इस लान के बारे म कोई बात नह होनी चा हए। तेरे और
शफा के मोबाइल क लोकेशन आज के बाद कभी भी एक नह होनी चा हए। तू अगर
शफा से मले भी, तब भी तुम दोन म से कसी एक का फोन या तो अपने घर रखा होना
चा हए या कह और। और हाँ, तुझे अपने फोन से बंट और दगपाल से भी कसी भी हालत
म बात नह करनी है। वो दोन तेरी कॉल ल ट म आने ही नह चा हए और तुम चार क
मोबाइल लोकेशन भी कसी भी हाल म एक जगह नह मलनी चा हए। शाद वाले दन भी
कोट म बंट और द पाल नह आने चा हए। म भी तु हारी शाद क डेट से 10-15 दन
पहले ही कोई लास वाइन कर लूँगा, जससे क म इं टट् यूट क CCTV फुटे ज म दखता
र ँ।
बस एक बार तुम बहार प ँच जाओ, उसके बाद तो सब सेट है। म द ली से ही
तु हारी इंफॉमशन लेता र ँगा। पर तुझे मेरे नंबर पर कॉल करने क कोई गलती नह करनी
है। अपनी बात कैसे होगी वो सब पंकज दे ख लेगा। और हाँ, तुझे इतने पये कैश लेकर जाने
ह क जतने म तू वहाँ सब सेट कर सके और 2-3 महीने आराम से नकाल सके। एक और
काम तुझे करना है और वो ये है क तुझे अपने कसी भरोसे वाले आदमी का डे बट काड
अरज करना है, जसम तू पहले ही कुछ पैसे और डपॉ जट करवा सके। मतलब क तु ह
यहाँ से भागने के बाद कसी भी हाल म अपना डे बट काड कह भी इ तेमाल नह करना है,
तु ह बस उसी आदमी का डे बट काड हमेशा इ तेमाल करना है। दे ख रतेश, भागने के
जतने भी लान आज तक फेल ए ह, उनम से यादातर तो सफ पैस क कमी के कारण
ही फेल ए ह। तो म नह चाहता क ये सब तु हारे साथ हो। तो एक डे बट काड तो अरज
करना ही है तुझ,े जसम तेरी ज रत के हसाब से हम भी व -व पर पैसे डलवा सके।
पर याद रहे क वो आदमी एक तो भरोसे वाला होना चा हए, सरा तेरे रलेशन म कोई नह
होना चा हए और तीसरा तेरा कोई नजद क का दो त भी नह होना चा हए। एक और बात
क तेरे बहार जाने से पहले मुझे वहाँ तेरे रहने और कसी NGO म तेरी जॉब का बंदोब त
करना है, तो उसके लए थोड़े ब त पैस क ज रत पड़ेगी मुझ।े तो वो पैसे तुझे मेरे द ली
वापस जाने से पहले, यानी क कल शाम से पहले कैसे भी अरज करने ह, और फर द ली
जाकर जैसे ही सब अरज होता है वैसे ही म अपने कसी और ड के नंबर से द पाल को
उन सब डटे स के साथ इ फॉम कर ँ गा और फर तुम उस डटे स के हसाब से शाद क
डेट फ स कर लेना और उसी नंबर पर द पाल के साथ-साथ मुझे इंफॉम करवा दे ना।” मने
पूरा लान उसे समझाते ए कहा।
रतेश और शफा मेरे लान से खुश थे और उधर मुझे भी मेरे लान पर पूरा भरोसा था
क यहाँ पर तो सब कुछ रतेश, बंट और द पाल सँभाल लगे और बहार प ँचने के बाद म
और पंकज। जब कसी को कोई लक ही नह मलेगा तो कोई या उखाड़ सकता है! वैसे
भी भागकर बहार कौन जाता है! अब बस उ ह शाद क डेट फ स करनी थी, बाक सब
सेट था या फर मेरे द ली जाते ही हो जाना था।
उस दन लान बनाते-बनाते, उसक हर बारी कय को ड कस करते-करते टाइम
यादा हो गया था। शफा को अपने घर के लए नकलना था। रतेश कुछ व उसके साथ
अकेले रहना चाहता था, य क आज के बाद तो वो शायद उनक शाद वाले दन ही मलने
वाले थे। बछड़ना हमेशा मु कल होता है, चाहे वो कुछ घंट या दन के लए ही य न हो,
और यही तब उन दोन के साथ भी हो रहा था। मने अपना पूरा दमाग इ तेमाल करके ऐसा
लान बनाया था, जो मेरे हसाब से एकदम सट क था। बस अब यही दे खना था क ये काम
कैसे करेगा।
उन दोन को एक- सरे के साथ अकेले छोड़कर म और याना घूमने चले गए। वैसे भी
हमारी आज इंगेजमट ई थी तो हम भी कुछ व अकेले बताना था। हमने आज कडल
लाइट डनर का लान बनाया था और रात साथ बताने का भी। सुबह से हम टाइम ही नह
मल पाया था एक- सरे से बात करने का, तो हम चाहते थे क रात म आराम से एक- सरे
से जी भर बात कर। वैसे भी कल शाम मुझे वापस द ली के लए नकलना था, तो कुल-
मलाकर हम दोन के पास बस आज क रात और कल के दन का ही व था।
तो उस शानदार डनर के बाद हम दोन वापस म प ँचे और फर कुछ दे र बाद याना
कहने लगी, “अ भ तुम इतना कुछ जो कर रहे हो, या वो सही है? तुम यहाँ अपनी उस
जदगी से परेशान होकर, अपने कतने महीन क मेहनत को छोड़कर आए थे और अब
इतनी ज द ही उसी जदगी म वापस जा रहे हो, और वो भी सफ रतेश के लए! अगर
उसक शाद के च कर म तुम फँस गए तो? अगर कोई पु लस का मैटर हो गया तो? अगर
शफा के घर वाल ने तु ह फर पीटा तो? अ भ ऐसा ब त कुछ है जो तुम कतनी भी
को शश करके भी लान नह कर सकते, और उनका रज ट भी कुछ भी हो सकता है। इस
लान के साथ तु हारा पूरा यूचर दाँव पर लगा आ है, तु ह पता है ना?”
“मुझे पता है यार, पर म उसे ऐसे अकेला नह छोड़ सकता। याना तु ह पता है क
ब त ही कम चीज हमारी जदगी म ऐसी होती ह ज ह पाने के लए हम अपनी जदगी एक
ही पल म दाँव पर लगा सकते ह, और यार भी उनम से ही एक है। आज उसे ज रत है मेरी
और म अब पीछे नह हट सकता। उसके बना इतने महीने रहकर दे खा है मने यार, उसके
बना कोई मजा ही नह है। मुझे उसके लेवल का कोई पागल मल ही नह सकता कभी, जो
मुझे जदा रख सके, जो मुझे पागल बनाकर रख सके। मुझे उस पर पूरा भरोसा है क अगर
उनक जगह आज हम दोन होते, तो वो भी हमारे लए यही सब कर रहा होता, और जब
इतने सब लफड़ म हम साथ-साथ नकल ही गए ह तो इसम भी नकल ही जाएँग।े मुझे
अपने लान पर पूरा भरोसा है, बस तुम मेरे साथ रहना। तु ह तो पता है न क म ये सब कुछ
तु हारे बना नह कर सकता।” मने अपने दल का हाल उसे बताते ए कहा, जो तब उसे
कतई भी सही नह लग रहा था।
पर अगर म हर एंगल को दे खकर बात क ँ तो याना का डर भी सही था और उसक
चता भी। म सच म रतेश के लए अपना सब कुछ दाँव पर लगाने जा रहा था। पर म या
करता! मुझे ये भी पता था क अगर म रतेश को मना कर दे ता तो वो मुझे कभी भी इस
मैटर म नह घसीटता, और शायद मुझे माफ भी कर दे ता। वो भी ये समझता है क सब कुछ
हर कसी के बस क बात नह होती है, और ये ज री भी नह है क हर कोई जो हमसे यार
करता है, हमारी केयर करता है, वो हमारे हर काम म हमारा साथ भी दे । शायद म अ छे से
कुछ समझ नह पा रहा था तब, या फर उस रात क मार एक जद के प म हमारे अंदर
आज भी कह -न-कह बह रही थी जो ये नह चाहती क जसके लए वो सब आ, वो
कसी और के साथ चली जाए। म नह बता सकता यू।ँ पर म इस बात के लए तो योर था
क म अब पीछे नह हटने वाला क रतेश और शफा क शाद तो होकर रहेगी चाहे शफा
का बाप कुछ भी य न कर ले। उस पूरी रात म इसी कशमकश म सो ही नह पाया। म पूरी
रात खुद से सवाल करके और खुद ही उनके जवाब दे कर खुद को ये समझाता रहा क सब
कुछ सही से हो जाएगा और कुछ बात बगड़ी भी तो फर तब क तब दे ख लगे।
(24)
रात भर सो न पाने क वजह से मेरी आँख भारी हो रही थ । न द आने के अभी भी र- र
तक कोई आसार नह दख रहे थे। मने इस हालत म ब तर छोड़कर उठ जाना ही बेहतर
समझा और फर कुछ और न सूझने पर याना को म पर ही छोड़कर म बाहर टहलने
नकल गया। सुबह-सुबह का उदयपुर हमेशा से ही मुझे ब त ही यादा खूबसूरत लगता था
और उससे भी यादा मुझे इसक सवेरे वाली ह क -ह क ठं ड पसंद थी। उसी ठं ड को
अपनी साँस म लए म कुछ दे र तक वैसे ही चलता रहा, उदयपुर को रात क चादर उतारकर
सुबह क भीनी-भीनी-सी रौशनी म नहाते ए नहारता रहा। पर तभी मुझे ये खयाल आया
क आज शाम क े न से तो मुझे द ली के लए वापस नकलना है और मुझे तो ये भी नह
पता क अब वापसी कब होगी। इस खयाल के दमाग म आते ही मने तुरंत उदयपुर क
अपनी हर फेवरेट जगह पर जाने का फैसला कर लया। फर म तुरंत भाव से वापस म
पर गया और बाइक लेकर फर से नकल पड़ा अपने शहर क मोह बत को नहारने, उससे
बात करने।
इस शहर को फर से छोड़कर जाना मेरे लए वैसा ही था जैसे कोई वग को छोड़कर
वापस भीड़-भाड़ से भरी इस धरती पर आ रहा हो। पर बात मेरे दो त के यार क थी, तो
जाना तो था ही। लगभग 5 बजे म अपने म से नकला था और मुझे वापस आते-आते 10
बज गए। आते व म अपने साथ याना का फेवरेट बड़ा-पाव भी लेकर आया था। मोहतरमा
अब तक सो रही थ । उसे तब उठाने से पहले मने उसके लए कॉफ बनाना ही ठ क समझा
य क मुझे ये अ छे से पता था क बना कॉफ के उसे लाख उठाने पर भी वो हर बार
वापस लुढ़क जाएगी। उसके लए कॉफ बनाकर, म उसे उठाने उसके पास गया। उसे न द
से उठाना और उसके लए मॉ नग कॉफ बनाना, मेरे फेवरेट काम म से एक थे। उसक
श ल न द से लड़ते ए हमेशा इतनी यूट हो जाया करती थी क उसे दे खते-दे खते म शायद
अपनी पूरी जदगी बता सकता था। सरी ओर वो भी हमेशा उसे उठाने पर खुद उठने के
बजाय मुझे ही अपने पास बठा दया करती और मेरे कंधे पर अपना आधी न द से भरा सर
रखकर अपनी पहली कॉफ ख म करती। म कभी-कभी सोचता भी क इन ल ह को हमेशा
अपने साथ रखने के लए म या कर सकता ? ँ और मेरा जवाब हमेशा यही होता क कुछ
भी और वो भी बना एक पल के लए सोचे। तो ऐसे ही कई पल रतेश और शफा के लाइफ
म भी तो ह गे, जनके लए वो भी कुछ भी करने को तैयार ह गे और अगर उनके उन ल ह
को बचाने के लए उ ह मेरी ज रत पड़े तो बताओ म कैसे ना कह सकता था उ ह!
उधर म आते व बु कग वाले के वहाँ से अपनी ट कट भी साथ ले आया था और जब
याना क नजर उस ट कट पर पड़ी तो वो थोड़ी सैड-सी हो गई और मेरे पास आकर मुझसे
चपककर मेरी गोद म सो गई। म समझ सकता था क वो नह चाहती थी क म इतनी ज द
वापस चला जाऊँ, पर शफा क शाद म अब यादा व नह था और मुझे द ली जाकर
ब त कुछ अरज करना था। इसी लए मेरे पास अब एक भी दन यहाँ और कने का व
नह था य क कसी भी रीजन से अगर पंकज वाला कुछ सेट नह हो पाया तो इस
कंडीशन म सब कुछ फर से लान करने के लए मुझे थोड़े और व क ज रत पड़ेगी और
वो ए ा व यह से बचाया जा सकता था। सच क ँ तो म तब कोई भी चांस नह लेना
चाहता था य क मेरी एक भी गलती शफा और रतेश के लए ब त भारी सा बत हो
सकती थी। तो याना को हग कर लेने और उसके उन इमोशंस को ‘हम ज द ही वापस
मलगे’ क दलासा दे ने के अलावा तब म कुछ भी नह कर सकता था।
उस दन फर हमने वह ब तर पर पड़े-पड़े खूब सारी बात क । कसी दन हम भी
हमारी शाद के लए ऐसे ही ए साईटे ड ह गे ऐसी उ मीद भरी कई आएँ हमने हमारे आने
वाले कल को द । पर कहते ह क हमारे पास जब व कम होता है तभी हम उसक र तार
से आगे नकलकर, उसी थोड़े से व म ब त कुछ समेट लेने क को शश करते ह और
शायद तब हम दोन भी यही कर रहे थे। फर म तैयार होकर द पाल और बंट से बात करने
के लए उनके म पर जा प ँचा और फर रतेश क शाद का पूरा लान, एक-एक बारीक
के साथ म उ ह समझाने लगा। म खुश था क वो भी हमारा साथ दे ने के लए रेडी हो गए थे
और सरी तरफ उ ह मेरा लान भी ब त ही अ छा और ब त ही सेफ लगा था।
उनसे बात करके मेरी खुशी तब गुनी हो गई थी और मुझे अपने लान पर भी अब
पहले से यादा भरोसा होने लगा था। म पर वापस आते ही याना ने मुझसे कहा क वो
अपने म जाना चाहती है, ता क वो टे शन जाने से पहले तैयार हो सके। तो मने उसे उसके
म पर छोड़ा और फर रतेश को कॉल कया ता क वो पैसे लेकर थोड़ा ज द ही यहाँ आ
जाए, जससे क हम थोड़ा-ब त और उस लान को ड कस कर ल, कह कुछ अगर छू ट
भी गया हो तो उसे भी एक बार फर से सरसरी नगाह से दे ख ल। उधर रतेश ने कॉल
रसीव करते ही कहा क पैस का अरजमट हो गया है और वो आधे घंटे म पैसे लेकर म
पर प ँच जाएगा। म अपना बैग पहले ही पैक कर चुका था, तो मेरे पास अब रतेश के आने
तक का टाइम था। तो मने ये टाइम अपनी फेवरेट ट शॉप पर, अपनी फेवरेट चाय के
एक याले के साथ बताने का सोचा और इसी लए म प ँच गया वहाँ।
अगर दनभर क भागदौड़ ने कह अपना सुकून छु पाया होगा तो मुझे पूरा भरोसा है
क वो जगह हो-न-हो चाय क कान ही होगी, य क यहाँ बैठे-बैठे, कुछ सोचते-सोचते घंटे
कैसे बीत जाते ह पता ही नह चलता। म भी घंटे भर तक यह बैठा-बैठा कभी अपने
खयाल से, तो कभी अपने लान क बारी कय से उलझता रहा। शाम के 7 बजे क े न थी
मेरी और अभी मेरी घड़ी 6:15 दखा रही थी। अब तक याना का कॉल आ चुका था क वो
तैयार हो चुक है पर रतेश का अभी तक कोई अता-पता नह था। तो मने उसे ज द बुलाने
के लए कॉल कया, पर साला वो मेरा कॉल रसीव ही नह कर रहा था। मुझे लगा क शायद
वो सीधा रेलवे टे शन ही आएगा, वैसे भी वो अपनी अलग इ पोटस दखाने के च कर म
हमेशा ही कुछ उ टा-सीधा ही करता रहता था और सरी ओर वो अपनी शाद को लेकर
कुछ यादा ही ए साईटे ड था और उसे ये भी पता था क उन पैस के बना उसक शाद
होनी नह है, तो उसे उन पैस को मुझे दे ने के लए झक मारकर वहाँ आना ही था। मने
रतेश को मैसेज कर दया क हम टे शन जा रहे ह, तू सीधा वह पर आकर हमसे मल और
फर म और याना कुछ ही दे र म टे शन प ँच गए और फर वह रतेश का वेट करने लगे।
सच क ँ तो मुझे रतेश को सब कुछ एक बार फर से समझाना था क कैसे और या- या
करना है, और ये भी क शफा को कॉल से कॉ टे ट करने क कोई गलती नह करनी है
और न ही सरे दो त को। य क मुझे रतेश पर कह -न-कह डाउट था क वो मेरे बना
यहाँ ये सब सही से कर पाएगा भी या नह , और इसी लए द ली जाकर कुछ भी करने से
पहले तब उसक आँख म मुझे वो सी रयसनेस और वो भरोसा दे खना ज री था।
इधर याना क श ल व के साथ-साथ और भी यादा उतरती जा रही थी। वो वहाँ
टे शन पर भी मुझे यही मनाने क को शश कर रही थी क म बस एक दन और क जाऊँ।
म भी दल से उसके पास कना चाहता था पर म ये जानता था क बीतता हर दन मेरे जाने
के लान को और भी यादा मु कल बनाता जाएगा और मेरे लए यहाँ से जाना ब त ही
यादा तकलीफदे ह हो जाएगा। शायद इस लए ही म चाहकर भी उसके पास नह क
सकता था। तभी े न के डपारचर क अनाउंसमट हो ई पर रतेश का अभी भी कोई अता-
पता नह था। मुझे तो डर लग रहा था क वो साला कह यादा लेट न हो जाए। सच क ँ तो
मुझे उस पर तो पूरा भरोसा था, पर उसक हरकत पर र ी भर भी नह था। सरी ओर म
ये भी अ छे से जानता था क उसक एक गलत हरकत मेरे पूरे लान पर पानी फेर सकती
थी और अगर ऐसा आ तो सबसे पहले म ही फँसने वाला था। रतेश को लेकर म अभी तक
योर नह था क वो ये सब कर पाएगा भी या नह क वो इतने दन तक शफा से बना
बात कए रह पाएगा भी या नह ।
तभी े न का हॉन बजा और उसने धीरे-धीरे खसकना शु कर दया। याना और मेरी
नजर अभी भी गेट क ओर ही थी और मेरे दमाग म बस यही चले जा रहा था क रतेश
कैसे भी वो पैसे मुझ तक प ँचा दे फर उसे समझाना-वमझाना तो बाद म भी होता रहेगा।
ले कन उधर े न धीरे-धीरे अपनी र तार पकड़ने लगी पर वो साला फर भी नह आया।
याना मुझे बार-बार कह रही थी आप े न म चढ़ जाओ, शायद वो कही फँस गया होगा। पर
मेरा दल न जाने य मुझे बार-बार यही कह रहा था क एक आ खरी बार तो उससे बात
कए बना मुझे यहाँ से नह जाना चा हए और मुझे वो पैसे भी तो लेने थे उससे, उसके बना
तो कुछ काम वैसे भी नह होना था।
माँ कसम तब मुझे रतेश पर इतना गु सा आ रहा था क मेरा मन तो कर रहा था क
साले क जान नकाल लू।ँ हम दोन यहाँ उसके लए परेशान हो रहे थे और वो पता नह
कहाँ गायब था। मुझे इतना तो भरोसा था क वो इस व जो भी कर रहा था वो कोई-न-
कोई फालतू काम ही होगा। पर अब मेरे पास कुछ भी और सोचने का व नह था। म
दौड़कर े न म गया और अपना बैग लेकर चलती े न से बाहर कूद गया। इधर याना मुझे
वापस दे खकर खुश थी और अगर सच क ँ तो कह -न-कह म भी क चलो एक दन और
मुझे उसके साथ कने को मलेगा। ले कन सरी ओर तब रतेश पर मुझे ब त ही यादा
गु सा आ रहा था। मने सोच लया था क बस वो एक बार मेरे सामने आ जाए फर म
उसक शाद करवाता !ँ म ये भी सोच चुका था क मेरी अगली ट कट का सारा खचा भी
वही दे गा।
उसके इतना लेट होने क वजह से मुझे पूरा यक न हो गया था क वो साला शफा के
साथ ही होगा और म अब इस बात के लए भी मन बना चुका था क अगर ऐसा आ तो म
उसे अब साफ-साफ कह ँ गा क अब म तेरे साथ नह ँ भाई क मेरा अब इस लान से
कोई लेना-दे ना नह है। इधर ऑटो म बैठा-बैठा म ये सब बात तब गु से-गु से म याना से
बोले जा रहा था। पर अब वो भी या कर सकती थी। वो भी बस चुपचाप मेरे कंधे पर
अपना सर रखकर, मेरी बड़बड़ सुने जा रही थी और बीच-बीच म ,ँ हाँ कए जा रही थी।
य क शायद उसे भी ये पता था क रतेश क उस रोती ई श ल को दे खकर मेरा गु सा
कुछ ही दे र म से शांत हो जाएगा और उसे बस दो-चार गा लयाँ दे कर म वापस से उसे, उसी
इ वॉ वमट के साथ पूरा लान एक बार फर से समझाने बैठ जाऊँगा और यादा-से- यादा
रात क स का खचा उससे करवाऊँगा।
म पर आते ही याना ने मेरे मूड को दे खते ए मेरे लए कॉफ बनाई। पर आज कॉफ
का कैफ न काफ नह था मेरा गु से को सँभालने के लए। म बस रतेश को गा लयाँ दे ने के
लए पागल-सा आ जा रहा था पर वो मेरा और याना दोन का कॉल रसीव नह कर रहा
था। शायद उसे खतरे का अंदाजा हो गया था क आज उसक लगने वाली है। उसका नंबर
ाई करते-करते रात के 10 बजने को आए थे और उसका अभी तक कोई अता-पता नह
था। मुझसे अब रहा नह जा रहा था। मने अपने लान क ऐसी-तैसी सोचकर याना को कहा
क शफा को काल करके पूछे क कहाँ ह उनके शहजादे ? याना ने मेरे बढ़ते गु से को
दे खकर तुरंत ही शफा को कॉल कया और उससे रतेश के बारे म पूछा। पर शफा को भी
उसके बारे म कुछ पता नह था। इधर ये सुनते ही मेरी टशन धीरे-धीरे और बढ़ने लगी और
मने थक-हारकर उसके पापा को कॉल कर दया। पर आज तो जैसे हद ही हो गई थी। उसके
पापा भी मेरा कॉल रसीव नह कर रहे थे। मने उनके नंबर पर एक-दो बार और ाई कया,
पर हर बार रज ट एक जैसा ही रहा। तभी रात को 11 बजे के आस-पास द पाल का कॉल
आया और वो कहने लगा क रतेश का ए सीडट हो गया है और एट द पॉट उसक डेथ हो
गई है यार। इधर म पहले से ही गु से म था तो रतेश के ह से क सारी गा लयाँ मने उस पर
नकाल द , और सरी ओर मुझे गु सा इस बात पर भी आ रहा था क जब उसे मने पहले
ही मना कया है क मुझे और रतेश को कोई कॉल न करे तो फर वो य कॉल कर रहा है
मुझ।े बस उनम से कसी क भी एक गलती और रतेश क शाद का सारा लान बेकार हो
जाना था। पता नह ये लोग कब समझगे इस बात को।
तभी कुछ दे र बाद याना के फोन पर च ा का कॉल आया और वो भी यही कह रही थी
क रतेश क डेथ हो गई है। सरी बार ये सब सुनकर मेरा दमाग फटने लगा और म बस
उसके नंबर पर पागल क तरह कॉल करने लगा पर मेरी हजार को शश के बाद भी कोई
मेरा कॉल रसीव ही नह कर रहा था। दे खते-ही-दे खते मेरी साँस फूलने लग । न जाने य
पर अचानक ही मेरी आँख से आँसू नकलने लगे। मुझे पता था क ये सब उस साले का
लान है मेरे गु से से बचने के लए, मेरी गा लय से बचने के लए। पर मुझे अंदर ही अंदर
कह एक अंजाना-सा डर भी लगने लगा था य क आज ये पहली बार था जब वो मेरा
कॉल रसीव नह कर रहा था। हमारी पहले भी ब त लड़ाइयाँ ई थ , भयंकर से भयंकर
वाली भी, पर वो मेरा कॉल तो हर हाल म रसीव करता था चाहे उसे उसके बाद कतनी भी
गा लयाँ य न सुननी पड़े।
आ खरकार जब मुझसे रहा नह गया तो मने अपनी बाइक नकाली और याना को
लेकर मने अपनी बाइक उसके घर वाले ए रया क तरफ भगाई। क मत दे खो मेरी! वो
साला आज तक मुझे कभी अपने घर नह ले गया था। पर मुझे वो गली पता थी जहाँ म उसे
हमेशा रसीव करने आता था। तो मने वहाँ जाकर लोग से कसी ए सीडट के बारे म पूछा,
पर वहाँ कसी को भी उस ए सीडट के बारे म कुछ पता नह था। ये सब दे ख-सुनकर मेरी
जान म जान आई और मने खुद को जैसे-तैसे थोड़ा ब त रले स कया क चलो कुछ
उ टा-सीधा नह आ है। ले कन रतेश का अभी भी कोई अता-पता नह था और यही सब
बारा सोच-सोचकर मेरा गु सा और मेरा डर फर से हर सेकंड के साथ-साथ बढ़ने लगा,
और म अपना सर पकड़कर वह सड़क के कनारे बैठ गया। उधर याना भी परेशान थी क
ये सब या हो रहा है? तभी याना ने मुझसे कहा क अगर ऐसा आ है तो उस ए रया के
पु लस टे शन पर इसक पूरी इनफामशन होगी ही। उसे च ा ने बताया था क उसका
ए सीडट रामपुरा चौराहे के पास आ है। म और याना भागकर म लातलाई पु लस टे शन
प ँच गए। वहाँ जाकर पता चला क कसी पए ए ाईवर ने उसक बाइक पर बस चढ़ा द
थी और उसक वह एट द पॉट डेथ हो गई थी। उ ह ने आगे हम ये भी बताया क उस व
उसके साथ एक बैग भी था, जसम कुल 42 हजार पये थे।
उस कॉ टे बल के मुँह से ये सब सुनकर मुझे समझ ही नह आ रहा था क म अब या
क ँ ? ये सब लोग कह रहे थे क रतेश अब नह है, पर मने तो कुछ घंट पहले ही उससे
बात क थी। वो पैसे लेकर मेरे पास ही तो आ रहा था। उसने कहा था क वो बस आधे घंटे
म आ रहा है। तो वो ऐसे कैसे मर सकता है! मेरी हालत ये सब सोच-सोचकर बद-से-बदतर
होती जा रही थी और उधर याना भी ये सुनते ही रोने लगी। फर पता नह मुझे या आ क
म अचानक ही हँसने लगा। मुझे पता नह तब या हो रहा था पर मुझे बस हँसी आ रही थी
क वो साला अब नह रहा क अब मुझे अपने यूचर क चता करने क कोई ज रत नह
थी य क अब तो मेरे लान क ही कोई ज रत नह थी। म हँसे जा रहा था और बस हँसे
जा रहा था।
तभी याना ने शफा को कॉल कया। उसे भी च ा ने बता दया था क रतेश अब नह
रहा। उधर उस पु लस वाले ने मेरी हालत दे खकर मुझे पानी लाकर पलाया और कहा क
उसके घर वाले हम मे डकल कॉलेज के मौचरी के बाहर मलगे। ये सुनते ही याना मुझे कहने
लगी क चलो हम वहाँ चलते ह पर मुझम इतनी ह मत ही नह थी क म वहाँ जा पाऊँ। उसे
ऐसे दे ख पाऊँ। सच क ँ तो म वहाँ जाना ही नह चाहता था। उसे ऐसे बेजान सोए ए
दे खना ही नह चाहता था। सच क ँ तो मने उसे अभी तक उसक आज क हरकत के लए
गा लयाँ नह द थी और चाहे कुछ भी य न हो जाए पर वो मेरी गा लयाँ सुने बना मर नह
सकता था और ऐसे कौन मरता है यार! ये भी कोई तरीका होता है या!
मेरे दमाग म तब ब त कुछ चल रहा था। जसे म न तो समझ पा रहा था और न ही
पचा पा रहा था और शायद इस लए ही तब मने याना के हॉ पटल जाने क बात को इ नोर
करके अपनी बाइक को सीधा वाइन शॉप पर रोका। ये वही शॉप थी जहाँ से हम अ सर
लैक म शराब खरीदते थे। हमेशा क तरह आज भी मने रम क पूरी बोतल ले ली। उधर
याना भी तब तक ये समझ चुक थी क वो आज मुझे कसी भी हाल म रोक नह सकती है
और उसने ये करने क ह मत भी नह क ।
मने म पर जाकर हमेशा क तरह दो लास म पेग बनाए। एक मेरा ह का वाला और
एक उसका यादा रम कम पानी वाला। रतेश हमेशा कहता रहता था क टा टग के दो पेग
हमेशा ॉ ग होने चा हए जससे क शराब को भी ये पता चल जाए क हम बहकाने क
उसक औकात नह । पर वो तो साला टं क था उसका या बगड़ता! यही सोचकर मने
उसक बात म न आकर आज भी अपना पेग ह का ही बनाया था। पर मने उसके पेग के
साथ कोई ची टग नह क थी। वो बलकुल वैसा ही था जैसा वो हमेशा पीता था। दे खते-ही-
दे खते म अपने एक के बाद एक पेग ख म करता गया और वो भी बना कसी चखने के, पर
उधर वो साला आज पहली बार अपने पहले पेग म ही अटका आ था। पर तब मने उसे
कुछ नह कहा, पर जैसे-जैसे मुझे चढ़ने लगी वैस-े वैसे उसक इस हरकत पर मुझे गु सा
आने लगा और तभी म उस पर जोर से च लाया क साले पीता य नह है तू! दे ख म भी
पी रहा ँ न तो तू भी पी। तू आज शराब ख म हो जाने क चता मत कर, तेरा भाई है ना!
वो फर जाकर ले आएगा। तू जतना मन चाहे उतना पी मेरे भाई और तू उ ट हो जाने क
चता भी मत कर। तेरा भाई है ना! वो म साफ कर लेगा, तू बस पी।
मेरे इतना च लाने और इतना सब कुछ कहने के बाद भी उस लास से थोड़ी-सी भी
शराब कम नह ई और ये सब दे खकर मेरा कलेजा फटने लगा। शायद तब तक म कह -न-
कह ये मान चुका था क अब सामने वाली जगह पर कभी भी मेरा वो पागल दो त नह
बैठेगा क अब म हमेशा बड़े आराम से, बना इस डर के क रतेश ज द -ज द सारी पी
जाएगा, अपनी शराब पी पाऊँगा। शायद तब तक म ये भी मान चुका था क अब मेरी लाइफ
बड़े आराम से, बना कसी लफड़े के गुजर जाएगी और ये भी क अब से इस कमरे का रट
भी मुझे अकेले ही दे ना होगा क अब से मुझसे बना पूछे कोई मेरे अकाउंट म मेरे खच के
लए पैसे नह डलवाएगा क अब कोई भी मुझसे एक फालतू बात के लए नाराज नह होगा
क अब मुझे मेरे गु से के डर से वो नीचे झुक श ल कभी भी नह दखेगी। शायद तब तक
म ये मान चुका था क रतेश अब मर चुका है क अब वो कभी वापस नह आएगा।
उस रात मने अकेले ही वहाँ बैठकर पूरी रात पी। याना भी पूरी रात मेरे पास ही बैठ
रही और कहती रही क अ भ लीज थोड़ा रो लो, सब ठ क हो जाएगा। पर शायद उसे पता
नह था क रतेश क मौत के साथ ही मेरी लाइफ का सब कुछ पहले ही ठ क हो चुका था।
मतलब क अब मेरी जदगी म ऐसा कुछ था ही नह जसे मुझे ठ क करना पड़े या जसे
ठ क करने क मुझे कोई ज रत हो।
सुबह जब म उठा तो सब कुछ शांत हो चुका था। मेरा वो म जो उसक बेमतलब क
बात और उसक अजीब-सी हँसी से पक चुका था वो अब शांत हो चुका था। मेरा वो दमाग
जो उसक शाद के लान को सँभालते-सँभालते थकने लगा था वो अब शांत हो चुका था।
मेरी वो ह जसे उसक शरारत और उसके फतूर के बना रहने क आदत नह थी वो अब
शांत हो चुक थी और मेरी वो दो ती जसको जदा रखने वाला अब हमेशा के लए सो चुका
था वो अब शांत हो चुक थी। सुबह जब म उठा तो सच म सब कुछ शांत हो चुका था।
उधर रतेश के शरीर को आज जलाने वाले थे। द पाल सुबह से ही मुझे कॉल कए जा
रहा था वहाँ जाने के लए। ले कन म वहाँ नह जाने वाला था। मेरे लए मेरा दो त आज भी
जदा था, बस वो मुझसे नाराज था क कल मने उसे अकेला छोड़ दया था क कल वो
बाइक पर अकेला था, य क हम दोन ये अ छे से जानते थे क वो मेरे बना एक भी काम
ढं ग से नह कर सकता था। तो वो नाराज था मुझसे क कल उसे बचाने के लए म कोई भी
लान नह बना पाया। वो मरा उससे भी यादा मुझे गु सा इस बात का था क वो ऐसे मरा।
पर शायद याना सही थी, हम चाहे कतनी भी को शश य न कर ल पर कुछ बात हम कभी
भी लान नह कर सकते। हम चाहे जदगी को कतना भी कम य न आँके, पर जो उसके
हाथ म है वो उसके ही हाथ म है। वहाँ न कभी कसी क चली है और शायद न ही कभी
कसी क चलेगी।
मने न तो उसे बेजान लेटे ए आ खरी बार दे खा और ना ही म उस दन उसे जलाने
मशान गया। म बस वह म पर बैठा-बैठा पूरे दन पीता रहा, हम दोन क फेवरेट वाली
ांड। द पाल ने बाद म मुझे बताया क वहाँ कॉलेज के सब दो त आए थे और रतेश के
पापा भी मेरे लए पूछ रहे थे। उसने ये भी बताया क शफा भी वहाँ आई थी और वो सबके
सामने उसक बॉडी से लपटकर खूब रोई। हमारे यहाँ लड़ कयाँ मशान नह जात पर
शफा रतेश के साथ-साथ मशान तक गई। रतेश के समाज वाल के लाख मना करने के
बाद भी उसे रतेश के पापा वहाँ तक लेकर गए।
पर मुझे कोई अफसोस नह था क म वहाँ नह गया य क मेरा ये पागलपन और मेरी
ये अकड़ ही रतेश को पसंद थी। हम कभी भी वो नह करना चाहते थे जो बाक लोग कया
करते थे। तो उस दन कैसे म उसे नाराज कर दे ता और वो भी सफ इस लए क वो अब मेरी
इस हरकत पर हँसने के लए, मेरी इस हरकत पर मुझे चढ़ाने के लए यहाँ नह है। अरे नह
रे! म मेरे दो त के उसूल को कसी भी हाल म नह टू टने ँ गा, कभी भी नह । और हाँ, चाहे
लोग ने, उसके घर वाल ने, उसके बाक दो त ने, याना ने, शफा ने कुछ भी कया हो पर
म एक आँसू नह रोया। य क हम दोन तो बेकार क बात पर रोने वाले लोग थे। इतनी
बड़ी बात पर रोना तो कभी हमने सीखा ही नह था। तो म उस साले के लए रोकर उसे एक
बार और जीतने दे ने वाला नह था। य क मुझे पता था क अगर उसने मुझे ऐसा करते दे ख
लया तो उसके बाद तो वो मुझे चढ़ा- चढ़ाकर मेरी नाक म दम कर दे गा, मेरा जीना ही
हराम कर दे गा।
रतेश के मरने के बाद म कुछ दन उदयपुर ही का रहा। याना के पास ही का रहा।
पर अब यहाँ वो नह था जसके लए म द ली और अपने IAS के सपने को छोड़कर आया
था। अब न जाने यूँ, पर उदयपुर मुझे द ली-सा ही लगने लगा था। तो कुछ दन बाद म
और याना फर से उसी े न के सामने खड़े थे जसके सामने हम उस दन उसका इंतजार कर
रहे थे। मेरी आज वाली ट कट रतेश को खरीदनी थी य क उस दन उसक वजह से मने
अपनी े न छोड़ी थी। पर आज भी ट कट मने ही खरीद थी और इस बात के लए कसी
पर गु सा करने क , कसी से नाराज होने क आज मेरे पास कोई वजह नह थी। य क म
ये जानता था क म आज उसका चाहे कतना भी वेट य न कर लूँ, उसे कतने भी कॉल
य न कर लू,ँ पर वो नह आने वाला था।
इधर याना मेरे दद और मेरी खामोशी को अ छे -से समझ रही थी। उसने खुद को मेरे
पास रखने के लए मेरे हाथ को अ छे -से पकड़ रखा था। पर तब उसक पकड़ इतनी
मजबूत थी क मुझे लगने लगा था क वो ताकत शायद रतेश लगा रहा था। शायद वो मुझसे
कह रहा था, “सॉरी यार, आ नह पाया म। तू बस अपना यान रखना और ज द ही
कले टर बन के वापस आ जाना। म तुझे यह मलूँगा, उसी चाय क थड़ी पर, उसी शराब
के ठे के पर, उ ह गा लय क आवाज म, उसी अपने कमरे क बेसुरी हवा म। तू बस
अपना यान रखना यार! आई वल मस यू यार, सच म ब त सारा!”
(25)
रतेश क डेथ वाली बात को पूरे 2 साल हो चुके थे और म आज फर से उसी म म खड़ा
था जहाँ कभी वो कमीना मेरे साथ हँसता था, रोता था। लीवर फाड़ दा पीता था और फर
मरने क हद तक उ टयाँ करता था। मने यहाँ से द ली जाने के बाद भी इस म को खाली
नह कया था और करता भी कैसे! इसम मेरा दो त आज भी तो रहता है। या पता कभी
बोर होकर वो यह रहने आ जाता हो। यह पीने आ जाता हो। और म कसी और को हमारी
याद के साथ कैसे खेलने दे ता! शायद इसी लए मने आज तक इस म म कुछ भी चज नह
कया। ब तर क जगह तक भी नह ।
आज शाम शफा क शाद का रसे शन था और हम वह जाना था। म शफा से
आ खरी बार तब मला था जब वो और रतेश मेरे म पर साथ थे। जब हम उनक शाद
का लान बना रहे थे। रतेश क डेथ के बाद शफा ने मुझसे ब त बार बात करने क
को शश क , मगर मने उससे कभी भी बात नह क । य क मुझे पता ही नह था क म या
बात क ँ गा उससे! या क ँगा उसे! या समझाऊँगा उसे! या रीजन ँ गा उसे क य म
उस दन वहाँ नह आया! क य म अपने दो त को आ खरी बार दे खने, उसे छोड़ने नह
आया! पर अभी महीने भर पहले एक दन शफा ने मुझे अपनी शाद का काड मेल कया
और उसने साथ म लखा था क म चाहती ँ क इस दन मेरा वा त वक समाज, मेरे
वा त वक र तेदार मेरे साथ ह । तो म अपने लाख न चाहने के बाद भी उसक शाद के दन
उसे कैसे अकेला छोड़ दे ता! अब ऊपर जाकर मुझे रतेश को अपना मुँह भी तो दखाना था!
म वहाँ खड़ा-खड़ा इ ह खयाल म उलझा आ था क उतने म याना भी तैयार होकर
आ गई और म तो पहले ही तैयार था तो हम फर प ँच गए उसके रसे शन म। मुझे पहले तो
ह का-सा डर था क कह शफा के भाई मुझे वहाँ दे खकर गु सा न हो जाएँ ले कन फर मने
सोचा क आज मुझे रतेश के लए वहाँ जाना ही था।
वहाँ जाने के बाद हम सीधा शफा के टे ज क ओर गए और मुझे दे खते शफा क
आँख म तुरंत ही आँसू आ गए। लगभग दो साल के बाद मुझे दे खा था उसने। सच क ँ तो
ब त ही यादा खूबसूरत दख रही थी वो बलकुल कसी परी क तरह और दखती भी य
ना, आ खर मेरे भाई क पसंद थी वो और उसक पसंद तो हमेशा से खास ही रही थी। तब
शफा ने मुझसे कुछ नह पूछा, बस मुझसे लपटकर रोती रही वो। याना ने उसे बड़ी मु कल
से सँभाला। म जानता था क तब उसके आँसु म और उसक उस खामोशी म कई सवाल
थे। पर उनका जवाब जो दे सकता था वो तब मेरे साथ था नह ।
धीरे-धीरे उसक आँसु क उस नमी ने मेरे गुजरे व को कुरेदना शु कर दया
और मेरा वो गुजरा व मेरी आँख के सामने फर से जदा हो उठा। अगले ही पल मने भी
शफा को अ छे से अपनी बाँह म भर लया और कुछ ही दे र म मेरे आँसु का वो सैलाब
जसे शायद म पछले दो साल से रोके ए था, मेरी आँख से आ ह ता-आ ह ता पघलना
शु हो गया। शायद म तब इस लए टू ट गया था य क आज मेरे यार का यार, जसके
लए न जाने हमने या- या नह कया था, वो कसी और का होने जा रहा था और म बस
वहाँ खड़े-खड़े उसे कसी और के साथ जाते दे खने के अलावा कुछ भी नह कर सकता था।
कुछ दे र बाद मने आ ह ता से शफा को अपने से अलग कया और उसके चेहरे को
अपने हाथ म लेकर बोला, “सॉरी यार, आज म अकेला ँ और तुम तो जानती हो ना क म
अकेले तु ह रोक नह पाऊँगा।” बस म यही कह पाया उससे और मने फर से उसे अपने
सीने से लगा लया। मेरा दल मुझे कह रहा था क रतेश यहाँ होता तो वो भी शफा को ऐसे
ही गले लगा रहा होता या फर यहाँ हंगामा खड़ा कर दया होता उसने तो।
मेरे हाथ म एक लफाफा भी था जसम कुल छ बीस हजार पये थे, जसे रतेश ने
जब म द ली म था तब बना मुझे बताए ही मेरे अकाउंट म डाले थे। उसने कहा था क जब
म कले टर बन जाऊँ तब उसे ये सूद स हत वापस लौटा ँ । ले कन म अब तक कले टर
बना नह था और मुझे ये भी नह पता था क अगर बन भी गया तो इन पैस को म
लौटाऊँगा कसे! शायद इसे शफा को लौटाना ही बेहतर था य क मेरे बाद अगर उन पर
कसी का हक था वो सफ शफा थी। तब उस लफाफे को उसे दे ते व शफा ने मुझे उन
पैस के बारे म पूछा भी, पर म उससे बस इतना ही कह पाया क ये उसका उधार था मुझ
पर जो शायद आज उतर गया है।
फर म और याना उसक पूरी शाद तक वह बैठे रहे और जसका क यादान हम
करना था उसे कसी और के साथ जाते दे खते रहे। मुझे पूरा यक न था क वो साला यह
कह बैठकर सब कुछ दे ख रहा होगा। पर आज वो कुछ भी उ टा-सीधा करेगा नह । य क
वो भी अपने यार क शाद कैसे खराब कर सकता है! मुझे तो ये भी पता था क वो यहाँ से
नकलने के बाद, एक रम क बोतल खरीदे गा और मेरे पास आकर कहेगा क यार दमाग
खराब हो गया साला, चल लगाते ह अब…
***
जो अब भी है…
आज भी मेरी और याना क उँगली म वो स वर रग वैसे ही चमक रही है, जैसे उस
दन रतेश ने हम लाकर द थी। हमने आज तक उस रग और हमारे उस र ते को रतेश क
एक याद के तौर पर सँभाल कर रखा आ है। अब म याना क और भी यादा केयर करने
लगा ँ, उससे और भी यादा यार करने लगा ँ। वो कभी-कभी गु सा ज र हो जाती क
अब म पहले क तरह ए टव नह रहता, मजाक-म ती नह करता, पर शायद अंदर-ही-
अंदर वो भी ये जानती है क अब वो मेरे साथ नह है जसक वजह से म हर बार कुछ-न-
कुछ नया तमाशा खड़ा कर दया करता था। साला अगर वो होता तो हमारी अब तक शाद
करवा चुका होता या फर शायद ेकअप।
उधर व ध, जो रतेश क वजह से ही मेरी लाइफ का ह सा बनी थी, वो अब कसी
और के साथ है। जैसे हमने हमारे र ते क शु आत म एक- सरे को ऑ फ शयली पोज
नह कया था, वैसे ही हमने कभी एक- सरे से ऑ फ श ली ेकअप भी नह कया। बस
सही व पर हम दोन ने ये मान लया क अब हम इस र ते को आगे नह बढ़ा सकते। पर
हम आज भी अ सर बात करते ह। वो अब मुझे अपने वाय ड के साथ वाले पक भेजती
है और म, मेरे और याना के। मने ब त बार को शश भी क इस र ते को पूरी तरह से ख म
करने क , पर आज तक कभी कर नह पाया। शायद कुछ र ते ए सपायरी डेट के साथ
नह आते, वो कसी-न- कसी बहाने से बस चलते रहते ह।
सच क ँ तो म आज भी जब रतेश के बारे म सोचता ँ तो मुझे ःख से यादा फ
होता है। य क हमने कभी भी जदगी को काटा नह था। हमारे ह से म जतना भी व
था उसे हमने हमारी पूरी अकड़, हमारे पूरे पागलपन से जया था। हमने हर बार अपना ही
कया था, चाहे वो लाख गलत ही य न हो। उस दन शफा को वो लफाफा दे ते व मुझे
लगा था क अब रतेश का सारा उधार मुझ पर से उतर गया है, पर शायद म गलत था।
आज जब म हमारी कहानी के आ खरी श द लख रहा ँ, तो मुझे अपनी गहराइय तक ये
महसूस हो रहा है क आज कह जाकर उसका उधार मेरे सर से उतरा है।
साले, अगर तू सुन रहा हो तो सुन
Miss You Yaar… ब त सारा!