Historical backdrop
• 6thcentury CE: age of small kingdoms gave way to large empires in central & southern India.
• पश्चिमी िालुक्य 6 वीीं शताब्दी क
े उत्तरार्ध में दक्कन क
े ऐततहासिक क
ै नवाि पर उभरे
• िालुक्यों का क्षेत्र : कनाधटक क
े बागलकोट श्िले में मलप्रभा नदी घाटी क
े तनकट
• 200 िे अधर्क वर्षों का लींबा शािनकाल : रािनीततक एकीकरण ककया, कला और वास्तुकला
क
े क्षेत्र में एक शानदार युग
• प्रारींसभक दक्कन वास्तुकला का िबिे बडा उदाहरण
• िालुक्य कला : र्ासमधक पररवेश और प्रारींसभक िालुक्य शािकों की व्यश्क्तगत र्ासमधक
िींबद्र्ता की एक उत्कृ ष्ट मागधदसशधका
चालुक्य राजवंश
• Therule of the Chalukyas: significant landmark in the history of South India.
• शश्क्तशाली-कलाप्रेमी रािवींश
• वास्तु की नई शैली का उद्भव : Chalukyan architecture.
• वास्तुगत- कलागत प्रयोगों एवीं अन्वेर्षणों का काल
• भौगोसलक श्स्ितत : उत्तर-दक्षक्षण परींपरा का प्रभाव
• The sacred landscape of the early Chalukya era: Vaiṣṇavism, Śaivism, Jainism.
• स्िानीय लोक र्मध : नाग पूिा, मातृकाओीं की पूिा, उवधरता िींबींर्ी पींि इत्यादद .
• िालुक्य कला शैली : लोक र्मध – स्िानीय ववचवाि – र्ासमधक ववचवाि का िींगम
• कलागत ववकाि का काल : art, sculpture, literature, performance arts and intelligent
discourses
चालुक्य मूर्तिकला कीववशेषताएँ
• मूततधयाँ गुफाओीं व िींरिनात्मक मददरों की स्िापत्य योिना क
े िाि िमायोश्ित
: मींददर-मूततधयाँ एक दूिरे की पूरक
• शरीर रिना में लयात्मकता, स्पष्ट गततशीलता
• शाींत, िींतुसलत, ऊिाध िे युक्त
• बसलष्ठ, िौडे क
ीं र्े युक्त ववशालकाय और आनुपाततक अींगयोिना
• ववशालकाय मुख्य आकृ तत
• मुख िामान्यतः िौडे, क
ु छ िपाट/िपटी नाक, मोटे होंठ, गोल िेहरा, दुहरे धिबुक
22.
चालुक्य मूर्तिकला कीववशेषताएँ
• पुरुर्ष मूततधयों की अपेक्षा नारी मूततधयाँ अधर्क लींबी
• ववशाल मूततधयों में शरीर क
े शेर्ष भाग की तुलना में मुख छोटा
• मुख्य देव आकृ तत क
े आयुर् उनक
े शरीर की तुलना में छोटे और बेमेल
• िुरुधिपूणध एवीं िींयत आभूर्षण
• अलींकृ त उदारबींर् िभी पुरुर्ष मूततधयों में
• िहायक मूततधयाँ मुख्य आकृ तत या प्रततपाद्य ववर्षय में पूरी तरह िमादहत : स्वतींत्र
अश्स्तत्व पररलक्षक्षत नहीीं
• मुद्राओीं का क
ु शल तनयोिन एवीं तालमेल
23.
चालुक्य कला परप्रभाव
• उत्तर एवीं दक्षक्षण की मूततधकला शैली का िुींदर िामींिस्य
• गुप्त शैली का ववस्तार बादामी और ऐहोल की प्रारींसभक िालुक्य मूततधयों में स्पष्ट रूप िे देखा िा
िकता है
• िालुक्य महाकाय मूततधयाँ : पूवधवती गुप्त काल की उदयधगरी व एरण की ववशाल मूततधयों का प्रभाव
• S.K.Saraswati: ऐहोल की आकृ ततयों की शाींत मुद्राएँ व अनुपात ककिी िीमा तक गुप्तकालीन िारनाि
शैली का प्रभाव है पर भाव क
े स्तर पर वे िारनाि की मूततधयों क
े स्तर तक नहीीं पहुँि पाया है
• नटेश ितुभुधि
• ववरूपाक्ष मींददर : काींिी सशलप और कलिुरी सशलप िे प्रभाववत
• बादामी गुहा िींख्या 3: त्रत्रववक्रम मूततध महाबलीपुरम की पललव मूततधयों का प्रभाव
• गणेश एवीं मातृका अींकन में : कलिुरी प्रभाव
24.
चालुक्य कला काप्रभाव
• राष्टक
ू ट कला पर – िैिे एलोरा का रावण
िटायु अींकन
• पूवी िालुक्य कला शैली पर
25.
चालुक्य राजवंश :धार्मिक अर्भव्यक्क्त
• प्रारींसभक िालुक्य रािाओीं की र्ासमधक प्रािसमकताएीं: उनक
े सशलालेखों और
उनक
े मींददरों क
े िमपधण िे स्पष्ट
• प्रारश्भभक असभलेख : Chalukyas claimed to be Vaiṣṇavas.
1. Maṅgaleśa : परम-भागवत in a 578 CE inscription in Cave 3 Bādāmi.
2. Pulakeśin II : परम-भागवत in his Chipḷun copper plates.
3. Vikramāditya I : परम-माहेचवर
4. पट्टडकल क
े मींददर : मुख्य रूप िे सशव को िमवपधत
26.
िालुक्य इततहाि, र्मधऔर कला
• पट्टडकल: शैव पूिा का एक क
ें द्र - पूरे भारत क
े तीिधयात्रत्रयों यात्रा करने हेतु आते िे
• कीतीवमाध द्ववतीय (754 ई.) का एक सशलालेख : एक त्रत्रशूल-स्तभभ क
े तनमाधण िो गींगा क
े
दक्षक्षणी तट पर मृगिाहार ववर्षय िे पट्टडकल में आकर बिे व्यश्क्त ने बनवाया िा
• पललवों द्वारा िालुक्य रािर्ानी वातापी क
े बारह वर्षों क
े कब्िे और क्रमशः ववक्रमाददत्य और
उनक
े बेटे और पोते ववनय और ववियाददत्य क
े उत्तर भारतीय असभयानों का प्रभाव
• उत्तर में कचमीर और मध्य भारत क
े िाि-िाि दक्षक्षण में पललव देश िे शैव प्रवािी, बडे
िमूहों में कनाधटक गए और रािकीय िमिधन और िींरक्षण क
े िाि वहाीं बिे
• पडोिी राज्यों क
े िाि इन िींपकों ने िालुक्यों क
े िामाश्िक और र्ासमधक िीवन पर एक
अलग छाप छोडी है िो उि िमय की मूततधयों और कला में पररलक्षक्षत
27.
िालुक्य कला काववकाि
• प्रारश्भभक मूततधयों में वैष्णव ववर्षयवस्तु की प्रर्ानता
• बाद में शैव ववर्षयवस्तु की प्रर्ानता
• क
ु छ उदाहरणों मे पहले की बनी वैष्णव गुफाओीं क
े गभधगृहों में सशवसलींग स्िावपत ककए गए
और नवीन शैव मूततध स्वरूपों को भी अींककत ककया गया
• मारुतत नींदन ततवारी : बादामी की गुहा िींख्या तीन मे बैक
ुीं ठनारायण एवीं वराह की मूततधयाँ
मींगलेश द्वारा स्िावपत िबकक नरसिींह एवीं हररहर की मूततधयाँ, पुरानी मूततधयों को दुबारा गढ़
कर बनाई गई है.
• Meister: Apart from the two Vaiṣṇava cave temples, the so-called Upper Śivālaya, located on
the highest spur of the northern hill of Bādāmi, was also perhaps dedicated to Viṣṇu.
28.
िालुक्य कला, र्मधऔर रािनीतत
• िालुक्य शािकों की व्यश्क्तगत र्ासमधक िींबद्र्ता : वैष्णववाद िे शैववाद की
ओर एक बदलाव को दशाधती है
• परींतु यह बदलाव बाद क
े मींददरों िे ववष्णु प्रतीकों क
े धित्रण क
े अींत का
द्योतक नहीीं
• िभपूणध िालुक्य वास्तुकला में वैष्णव और शैव ववर्षयों का िींतुलन : उदार
र्ासमधक वातावरण का िींक
े त
• शािकों द्वारा ववसभन्न र्ासमधक िमुदायों की र्ासमधक भावनाओीं को िींपुष्ट करने
का प्रयाि
• र्ासमधक अींकनों का उपयोग शािकों द्वारा रािनीततक रूपकों क
े रूप में : शािन
को वैर्ता प्रदान करने हेतु
• िालुक्य वास्तुकला, वैर्ता हेतु ऐिे दृचय रूपकों का तनरूपण
29.
िालुक्य कला काववकाि
• वववरणों एवीं लक्षणों में बढ़ती श्क्लष्टता
• बादामी की मालधगवत्त और ऊपरी सशवालय तिा पट्टडकल की मूततधयों में शरीर का
िपटापन/ स्िूलता िमाप्त
• आकृ ततयाँ और अधर्क उभार में और भरे िेहरे वाली
• पट्टडकल की मूततधयों में दो परस्पर ववरोर्ी शैसलयों का समधित रूप प्राप्त
• पहली शैली िट्टान में तराशे सशलप की : स्िूल शारीररक रिना व्यक्त
• दूिरी शैली वेंगी परींपरा की : अधर्क प्रभावशाली िेष्टाओीं वाली, पतले लींबे शरीर वाली
• िेष्टाओीं में स्वासभकता एवीं िींतुलन अधर्क
30.
िालुक्य कला औरप्रततमाशास्त्रीय लक्षण
• प्रततमालाक्षणणक ग्रींिों क
े वववरणों क
े प्रतत झुकाव की प्रवृवत्त : र्ीरे र्ीरे याींत्रत्रकता का
भाव
• कलाकार की स्वतींत्रता तनयींत्रत्रत = भावासभव्यश्क्त कमिोर
• तनमाधण क
े स्तर पर मूततधयों की िींख्या बहुत अधर्क बढ़ िाने िे गुणात्मक रूप में
उनकी कलात्मक असभव्यश्क्त प्रभाववत
• आठवीीं शती तक व उिक
े बाद की देवमूततधयाँ : क
े वल कलात्मक असभव्यश्क्त ना रह
कर ववसभन्न देवताओीं क
े ववववर् स्वरूपों की ऑपिाररक शास्त्रीय असभव्यश्क्त
1: Vishnu 2:Trivikrama; 3: Vishnu on
sesha; 4: Vishnu avatar Varaha rescuing
earth; 5: Harihara (half Shiva, half
Vishnu); 6: Vishnu avatar Narasimha
standing; 7: Garbha ghriya (sacrum
sanctum);
Blue O: ceiling carvings of Vedic and
Puranic Hindu gods and goddesses
बािामी गुहा संख्या तीन
35.
गुहा िींख्या तीन: बादामी : वराह
• िपध राक्षि को मिबूती िे वराह ने पैरों क
े नीिे क
ु िल ददया
• दादहनी ओर : कीततधवमधन क
े भाई मींगलेश का असभलेख िो ववियी िैन्य
असभयानों और भाइयों क
े कौशल का ज्ञान करता है
• वराह क
े बगल में सशलालेख का स्िान एक िींयोग मात्र नहीीं
• शायद सशलालेख क
े िींदेश पर िोर देने और ववष्णु अवतार वराह क
े िाि
शािक की िमानताएीं ददखने क
े सलए एक पूवध तनर्ाधररत िींयोिना
36.
गुहा िींख्या तीन: बादामी
• ववष्णु का वराह अवतार
• एक हाि में भूदेवी को पकडे हुए
• भू देवी का शरीर वराह की ओर झुका क्योंकक
वह वराह क
े िूिन क
े अींत में अपना दादहना
हाि लपेटे है
• मुख्य दृचय क
े नीिे नृत्यरत बौनों का अींकन
• पाताल लोक क
े रोर्ष िे हताश और घबरायी
भूदेवी धगरने िे बिने क
े सलए वराह क
े दाींत
को पकडे
• ववशाल मूततध: शेर्ष पर िालुक्य नरेशों
िमान ववरािमान बैक
ुीं ठ ववष्णु
• ितुभुधिी
• राििी आराम की मुद्रा
• ववधित्र मुक
ु ट : दक्षक्षण का प्रभाव ?
• अन्य देवता नीिे
Cave 3 Badami:
Vishnu as Baikuntha
Shiva
• बादामी मेंगुफा 1 प्रवेश द्वार पर प्रदसशधत
• िामींिस्यपूणध अठारह भुिाओीं वाले नटराि
• एक तरफ परशु, त्रत्रशूल, डमरू और िपध
• दूिरे तरफ िुींदर नृत्य मुद्राओीं में रत हाि
• गुफा में हररहर व अर्धनारीचवर का अींकन
बरामदे क
े दोनों छोर पर : एक दूिरे का िामना
करते प्रतीत
• नृत्यरत गणेश, ढोल पीटते गण
• नींदी का झुका िर : िींगीत में खोया, ताल पर
सिर दहलाया।
मदहर्षमददधनी
• पललव कलात्मकशैली क
े िाि एक िीर्ा िींबींर्
• दुगाध क
े धित्रण में राक्षि मदहर्ष को मानव रूप में दशाधया गया है िो भय में
पीछे हट िाता है
• तसमलनाडु क
े मामललापुरम क
े गुफा मींददरों क
े िमान
• समशेल: इि तरह की िमानताओीं क
े पीछे का कारण पललव क्षेत्रों में
ववक्रमाददत्य द्ववतीय क
े तीन िैन्य असभयान हो िकते हैं, श्ििक
े दौरान
उन्होंने पललव कलाकारों को प्रारींसभक िालुक्य क्षेत्रों में वापि लाया
किानक अींकन
• पापनािमींददर की दक्षक्षण दीवारें : रामायण का व्यापक धित्रण
• पापनाि मींददर की उत्तर दीवारें : महाभारत की घटनाएीं
• रामायण अनुक्रम रािा दशरि द्वारा अश्नन यज्ञ करने क
े िाि शुरू और बींदरों द्वारा
लींका क
े सलए पुल बनाने और राम और रावण क
े बीि लडाई िे िमाप्त
• महाभारत क
े धित्र िींख्या में कम लेककन िुरुधिपूणध
• रामायण महाभारत क
े िरमोत्कर्षध दृचय िामने क
े बरामदे क
े स्तींभों पर िमाप्त
• रामायण अनुक्रम क
े अींततम दृचय में दोहरा राज्यासभर्षेक ददखाया : रािा िुग्रीव का
िो अपनी रानी और उिकी प्रिा क
े िाि बैठता है, और राम का, श्ििे तनिले
रश्िस्टर में िीता, लक्ष्मण और हनुमान क
े िाि ददखाया गया
120.
Coronation scenes fromthe Ramāyana,
south front of the porch pillar,
Pāpanātha temple, Paṭṭaḍakal
124.
कला एवीं रािनीतत
•पापनाि मींददर : राम क
े राज्यासभर्षेक का अींकन + शत्रु पक्ष िे बहादुरी िे लडते
रििवार अिुधन
• कीततधवमधन द्ववतीय और आदशध रािा राम क
े बीि और कीततधवमधन द्ववतीय क
े िैन्य
कौशल और अिुधन क
े बीि िमानाींतर खीींिने क
े सलए एक उपकरण
• हेलेन िे. वेक्स्लर : राज्यासभर्षेक और िैन्य िीत क
े दृचय, रािित्ता की दो िबिे
महत्वपूणध पहिान धिन्ह है। उन्हे बढ़ती राष्रक
ू ट शश्क्त क
े िमक्ष कीततधवमधन को
िीर्ा िींदभध देने क
े अींककत ककया गया िा
• राम की र्ासमधकता और अिुधन क
े कौशल क
े िाि कीततधवमधन द्ववतीय की िमानताएीं
: रािित्ता का दावा मिबूत
125.
कला एवीं रािनीतत
•िालुक्य सशलालेख : प्रारींसभक िालुक्य 'िप्तमात्तृकाओीं’ द्वारा िींरक्षक्षत
• िालुक्य सशलालेखों में प्रमुखता िे िप्तमात्तृकाओीं का प्रतततनधर्त्व
• दैवीय िींरक्षण की इि पररकलपना को रावण फडी गुफा (मींगलेश) में एक अनोखे तरीक
े िे
धित्रत्रत ककया गया
• गुफा क
े उत्तरी कक्ष में दि भुिाओीं वाले नटराि प्रदसशधत -पावधती, गणेश और स्कन्द क
े िाि
िप्तमात्तृकाओीं िे तघरे हुए
• अींकन क
े ठीक नीिे सशलालेख में ‘रणववक्राींत ’ नाम का उललेख = मींगलेश का दूिरा नाम
• सशलालेख + मूततधकला = स्वयीं रािा क
े देवता रूप का प्रतततनधर्त्व श्ििे िप्तमात्तृकाओीं
द्वारा ददव्य िुरक्षा प्रदान करते हुए ददखाया गया
चालुक्य जैन मूर्तिकला
• पाचवधनाि, महावीर, बाहुबली, श्िन, अींत्रबका, यक्षी पद्मावती, यक्ष र्रणेन्द्र, िुवणधभूतत
यक्ष
• श्िन मुद्रा : ध्यानस्ि, कायोत्िगध। स्िानक, बैठी
• बादामी और ऐहोल िे पाचवधनाि की मूततधयाँ महत्वपूणध : पाचवधनाि क
े िमाधर् और
ध्यान क
े दौरान राक्षि िाींभर (या कामता) क
े ववघ्न को दशाधने वाले शुरुआती उदाहरण
• बाहुबली की तपस्या : पहली बार बादामी और ऐहोल में अींककत
• मारुतत नींदन ततवारी : िौंदयध की दृश्ष्ट िे, ऐहोल में बाहुबली व अींत्रबका छववयाीं
प्रारश्भभक िालुक्य कलाकार क
े बेहतरीन कायों में िे एक
128.
बादामी गुहा िींख्या4
• बाहुबली : गहरी िमाधर् में खडे
• बाहुबली क
े हाि-पैरों में लताओीं का घूमना,
और उिक
े पैरों क
े करीब िे तनकलने वाले
िाींपों की उपश्स्ितत : ववसशष्ट ववशेर्षताएीं =
तपस्या क
े िमय क
े लींबे िमय का िुझाव
• ददगींबर िैन परींपरा क
े अनुिार िुींदर ििाए
गए मुक
ु टों और अन्य आभूर्षणों िे अलींकृ त
दो ववद्यार्ाररयों की आकृ ततयाँ भी
अश्भबका
• परींपरा अनुिार: नेसमनाि की यक्षी, ितुभुधिी, सिींहारूढ़, दो दादहने हािों में, आम और आम
क
े पेड की एक शाखा । बाएीं हािों में एक में लगाम और दूिरे में उिक
े दो बेटे
• 8वी शताब्दी िे पूवध की यक्षी अश्भबका की प्रततमाएीं : दो हािों क
े िाि तनरूवपत
• इनका तनरूपण क
े वल तीिंकर नेमीनाि क
े िाि 8 वी शताब्दी तक तय नहीीं
• अकोटा,ढाींक,मिुरा आदद स्िानों पर यक्षी अश्भबका को तीिंकर ऋर्षभ ,पाचवधनाि और अन्य
तीिंकरों क
े िाि भी तनरूवपत
• मेगुती िैन मींददर, अींत्रबका मूततध : प्रािीन िैन यक्षी अश्भबका की प्रततमाओीं में िे एक
• प्रारींसभक िालुक्य कला का अनुपम उदाहरण
• तनमाधण प्रतापी रािा पुलक
े शी द्ववतीय क
े राज्य काल में 634 ईस्वी में
अश्भबका : मेगुतीिैन मींददर, ऐहोले
• द्ववभुिा यक्षी अश्भबका का तनरूपण सिींह की िवारी क
े िाि
• भाव भींधगमा मनोहारी और आकर्षधक । शारीररक बनावट िुगढ़ और िुन्दर
• दोनों भुिाएीं खींडडत । सिर पर एक ऊ
ँ िा कलात्मक मुक
ु ट अवश्स्ित
• पाचवध अलींकरण : एक िमरर्ारी, िेववकाएीं, आम्र लताओीं, मयूर, वानर आदद िे पररपूणध
• देवी अश्भबका क
े दोनों पुत्रों का तनरूपण परन्तु दोनों बालक उिकी गोद में नहीीं
• एक सशशु : अींत्रबका क
े दक्षक्षण में िेववका की गोद में। दूिरा,यक्षी क
े वाम भाग में िेववका क
े पाि खडा
• एक अन्य िेववका क
े हाि में कमल पुष्प और िँवर
• मारुती नींदन प्रिाद ततवारी : प्रततमा िुगढ़। बादामी िे प्राप्त यक्षी अश्भबका की तुलना में अधर्क
कलात्मक
Dharanendra Yaksha
• Dharaṇendra= Yaksha (attendant deity and
protective god) or śāsana devatā of Parshvanatha.
• Enjoys an independent religious life and is very
popular amongst Jains.
• Digambara Jain tradition: when Pārśvanātha was a
prince, he saved two snakes (a nāga and a nāgina)
that had been trapped in a log in the ritual fire of a
sorcerer named Kamaṭha. Later, these snakes were
reborn as Dharaṇendra, the ruler of the
underworld Nāgaloka, and Padmavati (as his
consort). They then sheltered ascetic Pārśvanātha
when he was harassed by Meghalin, Kamaṭha’s
reborn.
• Dharanendra Yaksha Aihole Museum: Seated with
yoga patti, holding Pasa in the upper hand and a
lotus in the lower hand